लड़ने के लिए लड़ाई लड़ाई लड़ाई

" जिसकी आस्था मुक्ति के उस मार्ग में है वो उस तरफ( बाबा विश्वनाथ मंदिर) और जिसकी आस्था मुक्ति के हमारे मार्ग में है वो इस तरफ ( ठीक सामने के सीपीएम आफिस ) आते हैं ।" सुबह सुबह यह ज्ञान दिया वाराणसी से सीपीएम के उम्मीदवार डा हीरालाल यादव ने । जब हम ठीक सामने की दुकान पर पूड़ी जलेबी और दही का लुत्फ़ उठा रहे थे तब सामने कुर्सी पर चाय पी रहे हीरा लाला यादव पर पड़ी । 

हीरालाल यादव प्रचार की चमक दमक की दुनिया से दूर अपनी बात रखने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं । बताने लगे कि पार्टी की तरफ़ से साझा उम्मीदवार लड़ाने का प्रस्ताव तो आया था मगर कोई तैयार नहीं हुआ । जब जब यहाँ सेकुलर, समाजवादी और कम्युनिस्ट मिलकर लड़े हैं भाजपा को हराया है । उसके बाद हीरालाल जी अपने पीछे अख़बार पढ़ रहे एक सज्जन से परिचय कराते हैं । ये बनारस के गंगापुर से हमारे पूर्व विधायक हैं ।

राजनीति में सादगी के मारे लोगों की नज़र भी इन पर नहीं पड़ती है । इसके अनेक कारण हैं । हीरालाल बताते हैं कि 67 में हमारा सांसद रहा है । एक विधानसभा क्षेत्र में हम नौ बार जीते हैं । लेकिन अब कितना वोट है ? यादव जी कहते हैं 2004 में आठ हज़ार वोट मिला था । क्यों लोग आपसे दूर हुए ? क्या आप जनता के मुद्दों को लेकर संघर्ष नहीं करते । 



जवाब में हीरालाल ने बताया कि हमने यहाँ तीन साल संघर्ष करके बाईस सौ एकड़ ज़मीन बचा ली । किसानों से ज़मीन लेकर हाई टेक सिटी बनाया जा रहा था । इस ज़मीन में तीस प्रकार की सब्ज़ियाँ होती हैं । इसी तरह से हमने कितनी ही ज़मीनी बचाईं लेकिन जब मायावती की आलोचना की तो उसी दलित ने वोट नहीं दिया । भूल गया कि उसकी ज़मीन के लिए संघर्ष हमने की थी । जाति ने हमें ही नहीं सबको कमज़ोर किया है । इसके बाद बताते हैं कि जब बनारस के बुनकर आत्महत्या कर रहे थे तब कोई दल सामने नहीं आया । हमारे प्रयास से बनारस के बुनकरों की गिनती हुई और उन्हें पहचान पत्र मिला और जब वोट देने का वक्त आया तो वे हमें भूल कर हिन्दू मुसलमान हो गए । प्रचार तंत्र ने तो राजनीति को और कमज़ोर कर दिया है । 

14 comments:

Unknown said...

Desh to gandhi ko bhul gaya Sir , phir ye purva Vidhyak kya hain, ab to Amit Sah or Azam Khan ka samay hai.

Ye log desh ki barbadi ka silanyas kar rahain hai.

Kriti Kapri said...

Achha nahi laga ye parh kar , reality bites.

tapasvi bhardwaj said...

Kadwa sach....hindustan pade likhe anpadon aur murkhon ka desh h

Abhijot said...

कामरेड सदैव अपनी सादगी,पड़े-लिखे और इमानदारी के लिए जाने जाते रहे हैं , अब भी है .लेकिन अब लोग उनकी विचारधारा से कटने लगे हैं. कारण उनका अविवहारिक विचारधारा का होना है . अगर आप लोकतंत्र में भी खुनी इन्कलाब की बातें करेंगे तो हाशिये पर चले ही जायेंगे . इनकी सादगी देखिये, आज के समय में इस सादगी से जीवन-यापन सिर्फ यही कर सकते हैं .#respect

Annapurna said...

Ye baat to sach h sir aaj bolte to sb h ki hm kya kre koi aage hi ni aata bt jb koi aage aata bhi h sach k liye ldta h to wo log apna dhram bdl lete h ......agr hr koi sirf ek dharm insaaniyat ko pehla sthan de to shayd hm m kisi ko bhi bhukhe pet na sone pde .....pr afsoos aisa ho ni pa ra h or jo kr bhi ra h use krbe ni diya ja ra h ..........kyunki shayd ye baat sach h ki paisa or power bolta h .. .pr ye bhi sach h wo sirf tbhi tk bolta h jb tk hm chup hai ......

Khair sirji ....politics sach m bhut gandiho gyi h ...ab news dekhna bnd kr diya h maine bs aapka pprime time dekhti hu ......22 se exam hai is tym wo hi Zaruri h ye politics or ye system aise hi rahega

Nitin Shrivastava said...

मुझे NDTV देखना पसंद है। ठीक वैसे ही जैसे किसी हिंदुस्तानी सैनिक को पाकिस्तानियों के रेडियो सिग्नल सुनना और उन्हें decode करना पसंद होता है।

Nitin Shrivastava said...

जब मुल्लायम मंच पर टोपी पहनता है,
सोनिया बुखारी से मिलती है,
ममता बंग्लादेशी का राग अलापती है,
लालू नितीश मंच पर टोपी पहनने को लड़ते हैं,
आजम बाबू आर्मी में भी मुस्लिम ढुँढते है, किसी की टोपी पर एका एक उर्दु प्रकट हो जाता है,
तो चुनाव आयोग सोता रहता है,
लेकिन जैसे हीं मोदी टीका लगा कर मंच पर जय श्री राम बोलते हैं चुनाव आयोग सख्त हो जाता है,
आचार संहिता लग जाता है,
चुनाव धार्मिक हो जाता है,
बाह रे चुनाव आयोग एकदम से क्राँतीकारी हो,

Unknown said...

Politics gandi ho gayi hai to kya humhe use dosh dena chayihe.
Politics buri nahi hai politicians aapa imaan-dharam bhul gaye hai.
Par hum doshi politics ko hi mante hai.Politics humari life ka ek vital part hai.There is no place in this mother earth where politics does not exist.Par humare dimag mein to chhavi ban gayi hai.
Doshi to aam janta hai.Hum hi aapne kaam ko proper tarike se nahi karte hai aur unhe dosh dete hai.Ab to NOTA bhi hai tab bhi logo ko vote karne mein taklif ho rahi hai.Dosre desh ke liya kya kar rahe hum dekhte hai par humne kya kiya vo hum kabhi nahi sochte hai.

Unknown said...

This is the reality of democracy even in USA. Money speaks everywhere.
beware of Cyber Lumpen.

Unknown said...
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Unknown said...

SIR JI kahene padega ki aapko bahut sara matter mil jata hoga comments section se.
Ab to kafi interesting ho gaya ye section ,aapko bhi kafi anand a raha hoga.Aapki studio ki debates to yehi ho jati hai.

Unknown said...

Itne bade bharat varsh mein Shayad koi to asha ki Kiran layega.
Aisi umid karta hu desh ke mahan rajnetao se.

Rachit G said...

अब्राहम मूल के मजहबों के विषाणु से पीड़ित हिन्दुओं की एक खासियत होती है - अपने धर्मस्थलों की ऐसी तैसी करना। #दिल्ली_के_ठग ने काशी में यह घोषणा की है कि वह काशी को सभी धर्मों का केन्द्र बनायेगा।
अबे! तुम यहाँ धर्मप्रचार करने आये हो या चुनाव लड़ने? वोट के लिये मुल्लों के आगे कोर्निश करते यह भी भूल गये कि तुम्हारे एजेंडे में भ्रष्टाचार उन्मूलन प्राथमिकता में है न कि काशी की धार्मिक ऐसी तैसी करना!
अब्राहम मूल वाले मक्का और वेटिकन में ऐसा करने देंगे नासपीटे? काशी की तो वैसे ही लगी पड़ी है। विश्वेश्वर की ओर जाते गोदौलिया चौराहे के पहले सेंट थॉमस चर्च पड़ता है और विश्वनाथ के मूल स्थान को तो पहले से ही तोड़ कर ज्ञानवापी मस्जिद तामीर कर दी गयी है जहाँ हर शुक्रवार को मुल्लों के नमाज के प्रबन्धन में प्रशासन की ऐसी तैसी हुई रहती है। और क्या करना चाहते हो मियाँ?

Unknown said...

Left is always cut off from reality. They remain in oblivion in all states. They don't indulge in politics of participation but politics of removal; remove your adversary any how- by hook or crook. That's the reason they have become the party of just two states. Recently saw a poster of some movie called "Two States", i thought it was about Left :P