शायद मेरा कुछ नाम हो गया है । आप चाहे जितना नियम या अनुशासन से रहिए लेकिन समाज आपके पास इन्हीं मक़सद से आता है । ऊपर कुछ उदाहरण दिये हैं जो अलग अलग लोगों ने मुझसे फोन पर कहे हैं। इस रविवार को दफ्तर में एक लड़का आया । गुलदस्ता लेकर । मेल किया कि विदेश में रहता हूँ आपका ज़बरदस्त फ़ैन हूँ । बस एक बार । मैंने बुला लिया । तीसरी लाइन में बोलता है मंत्री को फ़ोन कर दीजिये न । किसलिए । सर आप बोल देंगे तो पायलट की नौकरी लग जाएगी । वो किसी प्रकार की नैतिक दुविधा में नहीं था । उसे अपनी नौकरी से मतलब था । मैंने कहा कि न तो मंत्री को जानता हू और न ये काम करता हूँ । मेरे इस जवाब से ज़रा भी प्रभावित नहीं हुआ । क्या समाज सचमुच हमसे यही उम्मीद करता है । तो फिर तमाम बहस किस लिये । उसे लगा कि अपनी नौकरी के लिए इक्का हाथ लग गया है । भारी निराश मन से लौट कर गया। भारी निराश मन से लौट कर गया। इतना झुंझला गया था कि मुझे ही कहने लगा कि पांच सौ पायलट मिलकर
अपनी एयरलाइंस ही लांच कर दे तब।
ये अजीब परेशानी है जिससे हर पत्रकार को गुज़रना पड़ता होगा और इसी से गुज़रते हुए कई पत्रकार गए गुज़रे से आलीशान भी हो जाते हैं। एक झंझट और है। अचानक से शादी का न्यौता और मुंडन में बुलावा बढ़ गया है। मैं किसी को नहीं जानता ये सवाल नहीं हैं। आप मेरे दर्शक हैं और मुझसे प्यार करते होंगे तो शायद बुलाना चाहते होंगे। लेकिन मैं कैसे हर शादी में चला जाऊं। संभव है क्या मेरे लिए। एक जनाब तो जयपुर अपने पोते के मुंडन पर ले जाना चाहते थे। ज़िद करने लगे कि चलिये। मैं उनसे मिला भी नहीं था। फोन ही आया कि आपके फैन हैं चलना पड़ेगा। राम जाने कहीं नाच पार्टी की तरह लोग मेरा सट्टा न बांधने( अडवांस बुकिंग) लगें और मैं सीरीयल से रिटायर बचे खुचे स्टार की तरह बुलाया जाने लगूं। सोचता हूं कि ब्लैक शर्ट और व्हाईट पतलून का कांबिनेशन सिलवा कर रख लूं। काली कमीज़ पर पीले धागे की एम्ब्रायडरी से गोल्डन लुक भी चस्पां कर दूं ताकि लगे कि पार्टी के लिए. पार्टी के द्वारा और पार्टी से ही ये जनाब बने हैं। सेमिनार और स्कूल कालेजों के कार्यक्रम में जाने से इसीलिए अब मना कर देता हूं। कई लोग तो भावनात्मक शोषण करते रहते हैं। बुला लेते हैं और पता चलता है कि अपना ही पैसा लगा कर जा रहा हूं। मांगने आता नहीं और मांग सकते नहीं। जाना चाहिए लेकिन कब तक और कहां तक ये कर सकता हूं। मुझे नहीं जाना है। परिवार के लिए बचे समय को क्यों जाया करूं। कई लोग मना करने पर उसी नाम के खराब करने की सांकेतिक धमकियां देने लगते हैं। हद है। लिखो न रोज पांच पन्ना हमको गरियाते हुए। कुछ डराने लगते हैं कि हमीं काम आयेंगे। मिलना जुलना चाहिए। पता नहीं कब दिन खराब हो जाए। इसलिए जाया कीजिए मिला कीजिए। हद है। डर कर क्यों जाएं। लिख कर दीजिये तब कि आपके बुरे दिनों में चंदा करने से लेकर नौकरी का जुगाड़ करने में सदैव जुटा रहूंगा।
अपनी एयरलाइंस ही लांच कर दे तब।
ये अजीब परेशानी है जिससे हर पत्रकार को गुज़रना पड़ता होगा और इसी से गुज़रते हुए कई पत्रकार गए गुज़रे से आलीशान भी हो जाते हैं। एक झंझट और है। अचानक से शादी का न्यौता और मुंडन में बुलावा बढ़ गया है। मैं किसी को नहीं जानता ये सवाल नहीं हैं। आप मेरे दर्शक हैं और मुझसे प्यार करते होंगे तो शायद बुलाना चाहते होंगे। लेकिन मैं कैसे हर शादी में चला जाऊं। संभव है क्या मेरे लिए। एक जनाब तो जयपुर अपने पोते के मुंडन पर ले जाना चाहते थे। ज़िद करने लगे कि चलिये। मैं उनसे मिला भी नहीं था। फोन ही आया कि आपके फैन हैं चलना पड़ेगा। राम जाने कहीं नाच पार्टी की तरह लोग मेरा सट्टा न बांधने( अडवांस बुकिंग) लगें और मैं सीरीयल से रिटायर बचे खुचे स्टार की तरह बुलाया जाने लगूं। सोचता हूं कि ब्लैक शर्ट और व्हाईट पतलून का कांबिनेशन सिलवा कर रख लूं। काली कमीज़ पर पीले धागे की एम्ब्रायडरी से गोल्डन लुक भी चस्पां कर दूं ताकि लगे कि पार्टी के लिए. पार्टी के द्वारा और पार्टी से ही ये जनाब बने हैं। सेमिनार और स्कूल कालेजों के कार्यक्रम में जाने से इसीलिए अब मना कर देता हूं। कई लोग तो भावनात्मक शोषण करते रहते हैं। बुला लेते हैं और पता चलता है कि अपना ही पैसा लगा कर जा रहा हूं। मांगने आता नहीं और मांग सकते नहीं। जाना चाहिए लेकिन कब तक और कहां तक ये कर सकता हूं। मुझे नहीं जाना है। परिवार के लिए बचे समय को क्यों जाया करूं। कई लोग मना करने पर उसी नाम के खराब करने की सांकेतिक धमकियां देने लगते हैं। हद है। लिखो न रोज पांच पन्ना हमको गरियाते हुए। कुछ डराने लगते हैं कि हमीं काम आयेंगे। मिलना जुलना चाहिए। पता नहीं कब दिन खराब हो जाए। इसलिए जाया कीजिए मिला कीजिए। हद है। डर कर क्यों जाएं। लिख कर दीजिये तब कि आपके बुरे दिनों में चंदा करने से लेकर नौकरी का जुगाड़ करने में सदैव जुटा रहूंगा।
कई लोग तो मेरे इस दो कौड़ी के नाम पर मुझे ही मज़ाक़ में धमकाने लगे हैं । आपका ये फोटू लगा दें फ़ेसबुक पर हंगामा मंच जाएगा । लोग ये बोलेगा वो बोलेगा । हद है । रिश्तेदार तो अजीब अजीब इमरजेंसी सिचुएशन में फँसा देते है । ज़रूर दबाव में नहीं आता लेकिन जब बहुत क़रीब का कोई होता है तो उनकी परिस्थितियों का दबाव परेशान करने लगता है । तब भी खुद को रोक लेता हूँ । कुछेक बार क़दम बढ़ाया भी तो शर्म से पीछे खींच लिया । अब कौन किस प्रकृति का आदमी है पता नहीं । अपने जीवन में किस तरह के नाजायज़ काम से पैसा कमाता है पता नहीं लेकिन अगर कहीं वो मेरा नाम कहीं लेता होगा तो लोग क्या सोचते होंगे ।मैं ये सब क्यों सोचने लगा हूं। अपने घर किसी रिश्तेदार के न आने देने जैसा सख़्त अनुशासन का पालन करने के बाद भी इस तरह का ख़ौफ़ सताते रहता है । कोई किसी दल में नेता है तो किसी दल में । मेरे से फ़ायदा तो नहीं हुआ लेकिन राम जाने मेरा नाम कहाँ कहाँ लेते होंगे । पर मुझे क्यों लगता है कि इन सबकी करनी मुझे ही भरनी होगी । किसी ने कहा तुम्हारा नाम लेकर धमका दिये । मैं उल्टा बरस पड़ा लेकिन उस पर कोई असर नहीं । आपके बदलने से परिवार रिश्तेदार नहीं बदल जाते है । ज़रूर एकाध अच्छे हो जाते हैं । हम लोग जिस सामाजिक गंध से आते हैं इस बात की थोड़ी खुशी भी होती है कि कुछ लड़कों ने मेरे बाद दहेज़ को बिना ही शादी की । मगर कुछ का धंधा ही इतना गोरखधंधा है कि घर आने के आग्रह सुनते ही मना कर देता हूँ । पर मैं क्या कर लूँगा इन सबका । इनमें से किसी को फ़र्क क्यों नहीं पड़ता कि मैं अलग हूँ । उल्टा यही लोग मुझे डरपोक और बेवकूफ बोल कर जाते हैं कि देखो फ़लाना पत्रकार कितना कमाया उसको कौन बोल रहा है ।
सही कहता हूँ इस तरह का ख़ौफ़ पहले कभी नहीं था । क्या सचमुच मै खुद अपने इस तथाकथित नाम से डरने लगा हूँ । आप चाहे जैसे रहें मगर दुनिया आपको देखेगी अपनी ही नज़र से । एक से बात करो तो दूसरा आकर कहता है एक दिन फँस जाओगे । तंग आ गया हूं । आए दिन किसी का फोन आ जाता है कि उसके यहां गए थे अरे उसका ये रिकार्ड है । मुझे तो पता नहीं था बास, अच्छा ये फलाने के गुट का आदमी है। अब क्या करें । मत बात करो आप किसी से, दस जगह बोलेगा कि आपसे मिलकर आ रहा है । अरे फेसबुक पर देखिये न आपके खिलाफ अभियान ही चला देगा सब । पर मैं कर क्या रहा हूं । पत्रकारिता के अलावा अपने टीचर के साथ कुछ अलग करने के लिए संस्था से जुड़ा तो खुद अलग हो गया । पता नहीं कब कौन किस मंशा का आरोप लगा दे । लोग ऐसी बात क्यों करने लगे हैं मेरे साथ । औकात बोध में रहता हूँ मैं । कहते हैं कि मेरी एक छवि है। अरे कपार छवि है जो छवि छवि करते रहते हैं।
पता नहीं मुझे क्यों डराया जाता है और मैं क्यों कई बार सतर्क हो जाता हू । किसी से भी घुलमिल जाने की मेरी स्वाभाविकता कहीं चली न जाए । मुझे अपने नाम की कत्तई चिंता नहीं । मेरा नहीं रहना ही अगर इस नाम की क़ीमत है तो रहे ये मेरी जूती के नीचे । ऐसा क्या हो गया है मेरे साथ । पता नहीं अब कोई मेरी तारीफ़ में कहीं लिखता बोलता है तो लगता कि ये ड्राईंगरूम से बेडरूम तक आ गया । कोई आलोचना करता है तो भी लगता है कि भाई किसी और को पकड़ लो । कहीं खड़ा होकर मज़ाक भी कर रहा होता हूँ तो लगता है कुछ लोग नोटिस कर रहे हैं कि अच्छा ये भी ऐसा कहते हैं ।कर भी रहे होते हैं । भाई आप ये उम्मीद का ठेला मेरी पटरी पर मत लगाओ । मैं अपनी समझ से ग़लत काम करने से बचने का पूरा प्रयास करता हूँ । पर लगता है कि समाज व्यक्तिगत रूप से मुझसे यही उम्मीद करता है कि जुगाड़ू हो जाऊँ । नहीं होना है । इस वजह से कई लोग नकारा घोषित करते हुए दूर चले गए। जो नहीं गए हैं वो हर बात में नकारा घोषित करते रहते हैं । मैं जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा । नाम के नाम पर बदलने का प्रयास न करें । मुझे एकांत में रहने दें । सहज समझ कर संवाद करें तो ठीक मगर विशेष समझ कर करना है तो जाइये तेल लेने । मैं चट गया हूं।
31 comments:
औकात बोध में रहता हूँ मैं ।
यह बोध बना रहे। आमीन! :)
Genuinly written sir. Its a fact. Missing you on twitter. Was following you on twitter regularly. Am disappointed when you left but I understand your problems.One can never fulfil everyones' expectations.Thanku very much. @indyannn Harish Kumar (ind.harix@gmail.com)
Keep writing, keep live the dying art of journalism, aapke nahi apitu aapke kaam ke qayal hain, wahi padna aur dekhna chahte hain...best wishes!!!
अगर आप अपनी इस व्यथा को अपने घर के नाम-पट्ट में भी चिपका देंगे तो लोग इसे बिन पढ़े घुस लेंगे, पढ़ लेंगे तो भी ये मानेंगे कि आपने किसी और के लिए, और बहुत संभव हो तो दुनिया को हाथी के दांत की तरह दिखाने के लिए लिखा है :)
अपनी एयरलाइंस ही लांच कर दे तब। ha ha :D
याद आता है कहीं पढ़ा था कि प्रमोद महाजन ने अपने दिल्ली आवास के बाहर लिखा था "friends are welcome anytime..relatives by appointment only." उनको मित्र की दरकार थी। जब कोई हिमालयीन कद के हो जाते हैं तो निकट सम्बन्धी उसकी छाया में सुस्ताने का सोचने लगता हैं। आपकी विचारधारा आपके प्रोफेशन पर फिट बैठती है और यही तो पत्रकारिता के मानक हैं।
Every thing is fine ravish ji dont bother much,i can't deny my affection towards ur kind of journalism,i am following u for long and frm Hyd to Gwalior and now when i am settled in delhi. Only problem i find in u,u hate ur critics and take it personally,you know there is a growing fan club for u,many watch ur primetime live or later next day like me. You know its not because we like Ravish Kumar as a person but asthat journo who present a different prospective on news&analysis. Stop doing bothered abt such things,ur image. U have gutts to abuse in polite manner but never become arrogant(which i perhapes saw some time in u). Rest relatives,netas are all for ur position. Only 'Friends' not fans (including me) will keep ur hands in ur grey days. So just keep ur freinds and stop bother abt others.
Keep writing. It entertain.
Every thing is fine ravish ji dont bother much,i can't deny my affection towards ur kind of journalism,i am following u for long and frm Hyd to Gwalior and now when i am settled in delhi. Only problem i find in u,u hate ur critics and take it personally,you know there is a growing fan club for u,many watch ur primetime live or later next day like me. You know its not because we like Ravish Kumar as a person but asthat journo who present a different prospective on news&analysis. Stop doing bothered abt such things,ur image. U have gutts to abuse in polite manner but never become arrogant(which i perhapes saw some time in u). Rest relatives,netas are all for ur position. Only 'Friends' not fans (including me) will keep ur hands in ur grey days. So just keep ur freinds and stop bother abt others.
Keep writing. It entertain.
नामी - बदनामी दोनों एक सी..... :)
हम सद्भावना देखते हैं, लोग संभावना।
I am glade to find your blog sir. I ma true flower of you and your show at NDTV. I thanks God to make journalist like you in this time.
(1)yah bhale hee comment box main likha hai magar yah comment nahin opinion hai-dont say opinions are.... :)kya?yah mera area hai:)aap ke blog main hai to kya hua?:)
(2) aap chahe kitna bhi uncomfertable feel karte ho--mujhe yah/aise ravish kumar sahi lagte hai-aap ka dharma(pesha) confution paalna aur hamara(viewers) confution dena!:) :p
(3)aap apni kundali dikhaiye--Naam--chk karwa lijiye--fir dost aur rishtedar :)kya?:)mujhe laga so kaha :)
(4)maine kal aap ko yaad to kiya-but-miss bhi--to aap ko vapas aana chahiye vaisi raay bhi prakat to hui hee :( sorry-i should respect your space
(5)finally--yaad hai?--insan ravish kumar? :)
(6) :)
aur ha--Sher Saham kar nahin chala karte(pinjare main ho to bhee!ok?)--aatma ki sachchaai sher hai duniya ke sabhi jhuth aur buraiyon ke samne--aap saham kar mat jio aur aisa sochiye bhi mat:)mere kahne se nahin aap ki sachchaai ki vajah se:) hathi chale bajar.. aap ke vivek auryogyata se vyavhar ho to mujhe nahin lagta aap ko yah sochne ki jarurat hai ki aap ko koi notice kar raha hai-haina?:)kya?:)aap ne hee to mujhe yah baat sikhai thi:)well thanks kahne ka mouka dene ke liye :) :p
keep writing sir....
apne "aukaat bodh" ko jeevit rakhein....bahut kam logon tak seemit reh gaya hai ye bodh....
आप बस अपना काम करिय मन लगाकर और परिवार को समय देकर ज़िंदगी के मज़े लीजिए| इस समाज और इसके सवालो को रहने दीजिए|
ऐसा ही होता है :-)
सच बड़ी दिक्कत है
डागा साहब पता नहीं आपको कैसे और क्यों लगा कि मैं आलोचनाओं के प्रति सह्रदय नहीं हूं। ट्विटर कई और कारणों से छोड़ा है। जवाब देना मेरी फितरत है और हर को जवाब देने का वक्त नहीं है। मैं वहां अपने शो की टाइमिंग का तौलिया सुखाने नहीं गया था। वहां की आलोचनाएं ज्यादातर किसी काम की नहीं थीं। गाली गलौच और आलोचना में फर्क है। सोशल मीडिया का ही आदमी हूं मगर होने का प्रमाण ट्विटर पर मौजूद होकर नहीं दिया जा सकता। ये मैं अपनी तरफ से समझ कर ऐसा लिख रहा हूं। हो सकता है कि आपका संदर्भ कुछ और हो। जवाब नहीं देना आलोचना को नहीं सहने का प्रमाण नहीं है।
प्रवीण पांडे जी का सारा कमेंट पढ़ता हूं। सबका पढ़ता हूं।
डागा साहब पता नहीं आपको कैसे और क्यों लगा कि मैं आलोचनाओं के प्रति सह्रदय नहीं हूं। ट्विटर कई और कारणों से छोड़ा है। जवाब देना मेरी फितरत है और हर को जवाब देने का वक्त नहीं है। मैं वहां अपने शो की टाइमिंग का तौलिया सुखाने नहीं गया था। वहां की आलोचनाएं ज्यादातर किसी काम की नहीं थीं। गाली गलौच और आलोचना में फर्क है। सोशल मीडिया का ही आदमी हूं मगर होने का प्रमाण ट्विटर पर मौजूद होकर नहीं दिया जा सकता। ये मैं अपनी तरफ से समझ कर ऐसा लिख रहा हूं। हो सकता है कि आपका संदर्भ कुछ और हो। जवाब नहीं देना आलोचना को नहीं सहने का प्रमाण नहीं है।
प्रवीण पांडे जी का सारा कमेंट पढ़ता हूं। सबका पढ़ता हूं।
just a suggestion sir....
(sabse pehle to maaf kijiyega hindi me comment karna mujhe nahi aata, par mujhe bi kuch kehna hai to keh rahi hoon)
ye aur jitne bi log apke kaam karne ke tareekon ya soch ko lekar baatein kar rahein hai....koshish karein ki inhe ignore karein.....
react na karein....ye hatne waale nahi hai....to apne mental peace ke liye aap hat jaayein.....
mujhe pata hai ki ye kehna aasan hai par karna mushkil....par koshish karein.....
keep up the good work sir...
regards
an admirer
ये व्यक्ति और समाज का हमेशा बना रहेगा। एक शेर अर्ज है जो शायद आपकी दशा पर कुछ फिट बैठे
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मेरी जिंदगी तो बस मेरे गमों का लिबाज है,
पर जमाना कहॉ इतना गम-शनाज है,
जब जमाना था मुत्मईन तो मैं था कुछ उदास,
अब मैं हू मुत्मईन तो जमाना उदास है।
आशुतोष
बढ़िया लिखा है, पर सच्चाई यही की जिसका थोडा नाम हो जाता है उसके रिश्तेदार और दोस्त कुकुरमुत्ते की तरह पनपने लगते है। तो आपके साथ तो होना ही था शक्ल से भोले जो दिखाते हो।
बस दिल की सुनिए सर... अगर नहीं तो बस नही और किसी कीमत पर नहीं और हां तो बस.... किसी के साथ रहने से बेहतर है खुद के साथ ही रहीए... मुझे पता है मै यह बताने के लिए बहुत छोटी हूं लेकिन लगा तो लिख दिया....
ऐसे तो आप हिंदी बोलते भी और लिखते भी बेजोड़ हैं लेकिन सबसे खास चीज मुझे लगती है टॉपिक का चयन. बहुत ही अच्छा टॉपिक चुना है इस बार. कुछ शब्द जैसे 'अरे कपार छवि है' में कपार का प्रयोग (ऐसे बहुत शब्द हैं आपके पोस्ट में )बहुत अच्छा लगता है. आपका धन्यवाद. डरिये नहीं, मैं अपना कोई काम कराने नहीं कहूँगा. हा .. हा ..हा ..
पत्रकारिता और एनडीटीवी छोड़ दीजिये और देखिये शायद ही कोई आपको फोन करे काम के लिए.प्रेस और पॉलिटिक्स में पावर लंबे दिनों तक हाथ मे नहीं होती .लेकिन जब तक उस जगह पर है तबतक लोगों की आपसे अपेक्षाएँ बनी रहेंगी .ऐसा ही माहौल बना दिया गया है कि आम नहीं केवल खास का ही काम होगा .नहीं तो फिर आसान से काम के लिए दौड़ लगाते रहिए. आप एनडीटीवी में नही होंगे तब मित्र नहीं तथाकथित मित्र भाग जाएंगे लेकिन रिश्तेदार कहा जाएंगे सुख दुख में आपके साथ खड़े होंगे.इन्हे ऐसा मौका क्यों दे कि बोले बबुआ बड़ा चले थे पत्रकार बनने.आखिर वे हमारे बाबा ,चाचा ,मामा ही तो होते है .जो गाँव और बाज़ार के चौक पर सीना तान के बोलते है फलां दिल्ली में बहुत बड़ा पत्रकार है.और उसमे मेरा ही संस्कार है .
राजगीर कुमार सिंह,पटना
sir ji kya kare ye duniya bahut tension deti hai..
sir ji kya kare ye duniya bahut tension deti hai..
I m speachless , na darne se pata nahi kya galti ho jaye aur darnte rahein to kya jeena chhor dein ? Kisi na kisi time sabke sath esa hota hai .. Public life ki to keemat hee yahi hai. Felt really sad after reading this. Bhagwan aapko shakti de, man ki shanti de...aur Jo aap kar rahe hain , sahi kar rahe hain...dariye nahi shukr keejiye, gumnaam nahi hain . Aur Jo hai naam vala ..........
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