सत्तू की मिक्सी

पिछली बार कोलकाता आया था तो सड़कों पर सत्तू की मिक्सी दिख गई । सत्तू गाढ़ा होता है । पानी पड़ते ही भारी हो जाता है इसलिए उसे ठीक से घोलना पड़ता है । इस काम में हाथ पर बल पड़ता है और वक्त लगता है । पहली बार किसी ने इस काम का अर्ध मशीनीकरण करने की सोची और नतीजा आपके सामने । कोलकाता में सत्तू का एक ब्रांड ऐसी मशीन बाँटता है शायद किश्तों पर या मुफ़्त में ही । जैसे आइसक्रीम की कंपनी ठेला बाँटती है कुछ पैसे लेकर । 




लेकिन यह बदलाव ग़ज़ब का है । सत्तू के वर्ग उत्थान का लगता है । इससे पहले तसले में दाल मथने वाली लकड़ी की 'रही' से सत्तू के घोल को बारीक किया जाता था । आज भी यही होता है । पहली बार सत्तू का संबंध मशीन से होते देखा है । 
बड़े बुज़ुर्ग कहा करते थे कि सत्तू पौष्टिक के अलावा ग़रीब लोगों का व्यंजन है । आप गमछे में सत्तू रखिये तालाब या नदी की ऊपरी सतह से स्पर्श करा कर तुरंत सान दे । प्याज़ नमक के साथ कहीं भी खा लें । गैस और स्टोव के आगमन के पहले हर वक्त चूल्हा फूंकना मुश्किल था तो सत्तू देसी समाधान बनकर आया होगा । हम सब पीतल की थाली में चना या मकई का सतुआ सान कर खा लिया करते थे । इससे औरतें वक्त बेवक्त खाना बनाने के काम से बच पाती थीं । सत्तू तब भोजन था अब गैस भगाने का पाचक हो गया है । 

लेकिन सत्तू को जनउपभोग के स्तर पर लाने का यह आइडिया अच्छा लगा । ठेले पर सत्तू के कई ब्रांड रखे हुए थे । सुबह सुबह टैक्सी वाले सत्तू पीकर काम पर । सत्तू पेट में देर तक ठहरता है । मशीन में घुलता देख उत्पाद में यक़ीन बढ़ जाता होगा । 

कोई सरकार चाहे तो यह मशीन जो दो हज़ार के क़रीब की है, ग़रीब लोगों में बाँट कर नाम कमा सकती है । दरअसल हमारे यहाँ तकनीक आयातीत है । उसका हमारी सामाजिक समस्याओं और उपभोग से कोई संबंध नहीं । इसीलिए आप देखेंगे कि जुगाड़ वाली गाड़ी, तरह तरह की ट्रैक्टर की टालियां इंनवर्टर दिख जायेंगे । वाशिंग मशीन में लस्सी बनती दिख जाएगी । सत्तू की मिक्सी भी देसी समाधान है । 

7 comments:

राजेश सिंह said...

एकदम नई जानकारी ,चमत्कारी अविष्कार

Unknown said...

काम का शब्द अंतिम वाक्यों में दिखा - जुगाड़ की मशीन !

Unknown said...

chaliye twitter ki kami aap yahan puri ker de rahe hai.thanks.

प्रवीण पाण्डेय said...

सत्तू सदा ही बहुत उपयोगी फास्टफूड रहा है, बस पानी डालिये और तैयार। शीतलता और ऊर्जादायक भी।

mokshroopi said...

chahoo to sab kuch hai assan..... ye hai apna Hindustan...

sleepyhead said...

उत्तर भारत में गर्मियों की जान है सत्तू
मीठा पीजिये या नमकीन सब अच्छा है। ये नयी जानकारी अच्छी लगी। पटना में भी इसकी शुरुरत होनी चहिये. अब तक तो नहीं देखा पर हो सकता है अगली बार जाऊ तो वहां भी इसकी धूम हो।

Unknown said...

sattu puratan kal se hi bahut janopayogi khadya padartha raha hai. yah vishesh rup se bihar me paya jata hai. Lekin migration ke chalte padosi rajyon mei bhi kafi lokpriy ho raha hai. Jisko bhunane ke liye naye naye jugad ka invention ho raha hai. chane ka sattu bhar kar taiyar honewala vyanjan 'litti' ki lokpriyata bhi dinodin badhti ja rahi hai.
theth dehati/bhojpuri deshaj shabdon ka prayog jaise 'rahi' , 'makai ka satua etc. ka prayog bahut achchha laga.
dhanyavad