बात एक दोस्त की


कोई बात कहीं से आकर
ठहर सी जाती है
भंवर सा बन जाता है
बातें उलझकर बातों से
लहर सी बन जाती है
लौटने का रास्ता कहां मिलता है
आ चुकी बातों को बाहर का
कुछ दोस्तों के सहारे
दिन और रात गुज़ार कर
बहुत बहुत कह लेने के बाद भी
बात वहीं रह जाती है
सुन लेना ही किसी अच्छे दोस्त का
पूरा सा सफ़र हो जाता है बातों का
जो आकर लौट नहीं पातीं

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कुछ बातें तो ठिकाना लेकर आती हैं..निकाले नहीं निकलती हैं।

nptHeer said...

Aap apneaap se naraz ho kya?:-|aap khush rahkar bhi vahin honge jo udaas hokar bhi:)to fir khush rahkar jeene main kya problem hai?:) anumaan se anumaan kaha:)keep smiling:)