सूप पी रहे हैं सब । सूप उनके नए क्लास से मैच करता है । पूरा जीवन बिना सूप के जीया । मुझे तो लगता है कि सूप सिर्फ होटल और बारात का तरल व्यंजन है । ब्रैड स्टीक तो भाई घर में देखा न बारात में । प्लेन और ट्रेन का खाना थोड़ी देर के लिए आपको नए वर्गानुभव में रूपांतरित कर देता है । आप अचानक वैसे खाने लगते हैं जैसे आप किसी सिनेमा में लड़की के बाप को खाते देखते हैं जिसमें खाना कम बर्तन की आवाज़ ज़्यादा होती है । ब्रैड स्टीक पर लिखा है गुड फूड गुड ट्रैवेल । जिस लघु ट्रे में स्टीक और सूप आये हैं उसमें एक काग़ज़ का टुकड़ा बिछा है । लिखा है कृपया बख़्शीश न दें । हाँ भाई बख़्शीश पर भी पहरा लगा दो ।
कुछ यंग भी हैं जो लैपटॉप लेकर सिल्लीकन भैली से कनेक्टेड हैं । उनके कान हेडफ़ोन से बंद है और भीतर जैक्सन के तड़पने की आवाज़ गूँज रही है । इसी बीच एक जनाब ने अपनी अटैची चेन से बाँध दी हैं । वे आश्वस्त नज़र आ रहे हैं । फ़ोन बजता है और ऊँ जय जगदीश हरे की आरती चालू ।
5 comments:
Aapke is blog ko padhkar Swargiya Sharad Joshi ji ka Navbharat Times main bahoot saal pahle prakasit hone column Pratidin kee yaad aa gayee. EK baar unhone likha tha unkee padosan English tab tak boltee rahtee hain jab tak woh apne othon se puree Lipstick chat nahee jatee hai.Modern kapde pahanane ka ek main reason to apne dhoondh hee liya"Mere kapdon se meree umra ka pata hee nahi chalta"
Allahabad pahoonchane wale honge.
हा हा हा, गजबै रंग खींचा है। कितनी बार यही दृश्य देखे हैं।
Ha ha ha...hope 1 day will travel with u in train :)
Jaksan ka tadpnaa sabsy jayada mazydaar hai....
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