जानवरों से एंग्री शनि
भय शनि की अराधना का मुख्य तत्व है। शनि के इस प्रचार-प्रसार काल में मंदिर किसी हादसे के बाद विस्थापितों के शहर में बनने वाले मेकशिफ्ट ढांचे जैसे हैं। शनि पूरी तरह से ब्लैक रंग पसंद करने वाले देव हैं। एकरंगा। दिल्ली के सीमान्त से लगे गाज़ियाबाद के वैशाली में एक पार्क है। इस पार्क में कुछ साल तक बंगाली प्रवासियों ने दुर्गा पूजा का शानदार आयोजन किया। उसमें चंदा मैंने भी दिया। अब इन लोगों ने अपनी धार्मिक ज़रूरतों के लिए काली का मंदिर इसी पार्क में बनवा लिया है। अच्छा भोग मिलता है। जब शनि की यह तस्वीर खींचने गया था तो मंदिर में एक बालक ने मुफ्त और बिन पूजा के ही भोग दे दिया। स्वादिष्ट। इसी काली मंदिर के पीछे बना है शनि मंदिर। जानवर आते जाते होंगे। मूर्ति पर चढ़ाए गए दूध-चीनी,मीठाई और पत्तों पर मुंह साफ कर देते होंगे। जो गाय खुद पूजनीय है उसी के स्पर्श से शनि देवता नाराज हो जाते हैं।
आप भगवान की तरफ से लगाए गए नोटिस बोर्ड को पढ़ सकते हैं।शनि में मेरी दिलचस्पी है इसलिए इनके ठिकानों को खोजता रहता हूं।
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10 comments:
शनि में दिलचस्पी तो मेरी भी है। कहते हैं वह न्याय का देवता है और अन्याय के लिए दंडित करता है। लेकिन सारे अन्याय करने वाले मौज में हैं। शनि का दंश न्याय चाहने वाले भुगत रहे हैं।
रविशजी, बहुरास्ट्रीय कंपनी एमवे की डोर टू डोर सेलिंग की तरह शनिभगवान की भी डोर टू डोर मार्केटिंग की जा रही है। घर से निकलकर बस स्टॉप तक पहुंचने के बीच में शनिभगवान साक्षात कहीं न कहीं बाल्टी में मिल जाएंगे। अब मंदिर या पुजारी बीच में नहीं है। शनिमहाराज की छवि क्रोधी की है। तो बचा क्या? या तो श्रद्धा से या डर के उनका टेक्स चुकाओं। कभी-कभी जब मूड ठीक नहीं रहता है तो मन करता है कि एक लात मारकर बाल्टी उड़ा दूं। लेकिन डर भी है कि शनिदेव नाराज हो जाएंगे।
शनि तो ऑम्निप्रेजेंस है। कमंडलों में पड़े तेल में गोते मारते हैं। इनके नाम पर दिए चंदे से शराब पी जाए तो दिक़्क़त नहीं है, उसी तेल में पड़िए मच्छी तल के पकौड़ों के चटकारे मार दें तो दिक़्क़त नहीं है, लेकिन कोई जानवर पत्ते चाटे तो नाराज़। सही है शनि आस्था का मूल तत्व भय ही है।
रवीश जी, आपने क्यूंकि लिखा है, "शनि में मेरी दिलचस्पी है इसलिए इनके ठिकानों को खोजता रहता हूं, आदि," इस कारण शायद आप अब तक तो ये तो जान गए होंगे कि शनि हमारे सौर-मंडल का एक ग्रह है जो ३० वर्ष में सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में घूमते हुए एक चक्कर पूरा करता है , जहां एक वर्ष हमारी पृथ्वी के एक परिक्रमा पूरे करने के समय को माना जाता है, यानि एक लंगड़े आदमी के समान इसकी चाल बहुत धीमी है...
और इसे 'पहुंचे हुए' प्राचीन खगोलशास्त्रियों/ वैज्ञानिक द्वारा लोहे के साथ और मानव शरीर के भीतर नर्वस प्रणाली के साथ भी जोड़ा गया है...जिस कारण मानव रूप में विकलांगो के पेट की खातिर शनि की लोहा से बनी आकृति, और उसे जंग से बचाने के लिए सरसों का तेल, एक बाल्टी में लिए "महान भारत" में सनातन काल से देखा जाता आ रहा है...अब आप उसे लात मारें या कुछ और करें तो वो विकलांगों के पेट में लात मारने जैसा होगा...
और आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार भी इसकी यह खासियत है कि यह बीच में गोलाकार लिए है जिसके चारों ओर कुछेक बहुत सुंदर बर्फ से बने छल्ले हैं...ऐसे ही छल्ले बृहस्पति ग्रह के चारों ओर भी हैं किन्तु वे छोटे और तुलना में मैले हैं. इस प्रकार दोनों ग्रह "सुदर्शन-चक्र धारी" हैं और हिन्दू मान्यता के अनुसार शनि और बृहस्पति को क्रमशः विष्णु और, उनका अष्टम अवतार, कृष्ण (काला) नाम दिया गया होगा...
"हम काले हैं तो क्या हुआ/ दिल वाले हैं" को सार्थक करते हुए कृष्ण आकर्षण के केंद्र माने जाते हैं, और आधुनिक वैज्ञानिक भी जान गए हैं की हमारे तारा मंडल के केंद्र में एक शक्ति शाली "ब्लैक होल" है...
Ravishji,
Park wale Shani ko to aapne dikha diya, ummeed hai kuch aur shani tak aap jald hin pahunchenge.. :)
शनि महाराज को वीक एण्ड महाराज भी कहा जाता है। हर वीक एण्ड पर वो आपको नज़र आ जाएंगे बाल्टियों में।
चाहे शनि हो या कोई अन्य देवता हमारे यहाँ सभी देवी देवताओं को आतंकी रूप में प्रस्तुत किया जाता है उनका डर दिखा कर आम जनता को आतंकित करने का प्रयास किया जाता है. पता नहीं देवी देवताओं का अस्तित्व है कि नहीं. अगर है तो उनका स्वरुप कल्याणकारी होना चाहिए. भगवान् नें यह सूत्र बना दिया है कि अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है. इसके आगे भगवान किसी पचड़े में नहीं पड़ेंगे. भगवान् कोई आंकवादी नहीं हैं. वे किसी का अनिष्ट क्यों चाहेंगे.
सर, अक्सर देखा जाता है कि जिन लोगों की शनि देवता में विश्वास है वे लोग शनि भगवान को खुश रखने के लिए निश्चित रूप से शनिवार को काले रंग का वस्त्र का धारण करते हैं। उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता है कि कहीं शनि महाराज नाराज हुए तो कोई अनहोनी न हो जाए। शनिवार के दिन संयोगवश अगर कोई मन के विपरीत कुछ हुआ तो उसके लिए तो शनि ग्रह को ही दोषी ठहराया जाता है। कहने लगते हैं कि मेरा तो शनि ग्रह बिल्कुल ही ठीक नहीं चल रहा है। अगर संयोगवश शनिवार के दिन आप कोई और वस्त्रधारण कर अपने किसी शुभ कार्य के लिए जा रहे हैं और वह कार्य हुआ नहीं। तो बहुत हद तक शनि को उपर ही दोष मढ़ दिया जाता है। एक चीज मैं यहां जिक्र करना चाहुंगा कि मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के आसपास ही रहता हूं। पहले जब भी बाहर निकलता था तो शनिवार के दिन तेल और बाल्टी पर नजर पड़ते ही पर्स निकालकर शनि भगवान को खुश करने के लिए दान किया करता था। लेकिन एक दिन अपनी आंखों से देखने के बाद तो अब हिम्मत भी नहीं होती कि शनि भगवान के नाम पर उस बाल्टी में दान करूं। कुछ समय पहले की बात है। काले वस्त्र धारण किए हाथ में बाल्टी लेकर जय हो शनि महाराज की आवाज लगाकर दरवाजे-दरवाजे जाते हुए एक व्यक्ति को देखा। क्योंकि शनिवार महाराज का नाम लेकर वह व्यक्ति लोगों की दुआएं कर रहा था। स्वाभाविक था कि लोग शनि भगवान के नाम पर अपने घर से निकलकर उनकी बाल्टी में दान करने से नहीं चूके। लेकिन उसी व्यक्ति को जब मैंने शाम को देखा तो एक दूकान के पीछे शराब की बोतल निकाली और सिर्फ पांच मिनट में शनि भगवान का डर भूलाकर वह दूसरी दुनिया में मस्त हो गया। शायद मुझे लगता है कि करीब-करीब जितने बाल्टी वाले हैं वे शनि भगवान के नाम पर इकट्ठा का चंदा का दुरूपयोग ही करते होंगे।
तुलसीदास भी कह गए, "भय बिन होऊ न प्रीत."
शिवजी भोलेनाथ कहलाते हैं क्यूंकि वो किसी भी तपस्वी को वरदान देने के लिए प्रसिद्ध हैं - दिल खोल कर...यद्यपि उनकी तीसरी आँख के बारे में सबको मालूम है, फिर भी अज्ञानी लोग, (राक्षस) भस्मासुर जैसे, बाज नहीं आते उनको बेवक़ूफ़ बनाने के प्रयास से और यह नहीं समझ पाते कि शिव के साथ- साथ विष्णु और ब्रह्मा भी जुड़े हैं (सिक्के के तीन चेहरे जैसे)...अर्थात थ्री-इन-वन आइस क्रीम जैसे ही हैं परम ज्ञानी, परमेश्वर, शिवजी - जो भले के साथ भले हैं और बुरे के साथ बुरे :)
शिव के लोहे के बने त्रिशूल का अर्थ आधुनिक हिन्दू के कोर्से में नहीं आता है ;)
ravish Ji mai Apka fan hu. Kumbha Mele ka aapka live dispach bahut achha lagaa.badhaai.
regards manik
www.apnimaati.blogspot.com
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