अब वो अमर हो जायेंगे- प्रभात शुंगलू

अमर सिंह कहते हैं मैं समाजवादी बनूंगा मुलायमवादी नहीं। मुलायम के नाम से इतनी बेरूखी। वो तो आपके नेताजी हैं। आप उनके राइट हैंड,लेफ्ट हैंड,उनकी नाक,नाक के बाल,कान,उनकी लाज,उनकी साख,उनके धन,उनकी सम्पदा दिल, दिमाग,मन,मस्तिष्क,उनके सैफेई सब कुछ थे। मुलायम तो केवल नाम के मुलायम सिंह यादव रह गये थे असली समाजवादी तो आप थे। पार्टी की साइकिल तो आप ही थे। जिसके आगे अमिताभ और जया बच्चन थे,पीछे कैरियर पर संजय दत्त थे,हैंडल पर जया प्रदा भाभी थीं,अनिल अंबानी की घंटी थी। पीछे मेडगार्ड में गोदरेज की लाइट। आप खुद साइकिल की चेन,उसका पहिया और उसके पहिये में डलने वाले मोबिल ऑयल। वो अलग बात है कि साइकिल मुलायमवादी अमर सिंह की समाजवादी पार्टी का बस चुनाव निशान थी। बाकी तो आप तो कभी एसयूवी से नीचे चले नहीं। नेताजी को भी उसकी खूब सवारी करवायी।

सॉरी वो एसयूवी तो पार्टी के नाम कर दी थी आपने। आप हैं ही इतने दानवीर। आप कलियुग के कर्ण हैं। गलत लोगों के चक्कर में पड़ गये। मुलायम और उनके परिवार के फेर में पड़ गये। देश में समाजवाद लाने का बयाना जो ले लिया था। आपने नेताजी को भी माइनस पावर वाला दूर का चश्मा पहना दिया था ताकि वो सैफेई में बैठ कर मुंबई के बच्चन परिवार, अंबानी परिवार, जया प्रदा, संजय दत्त सरीखे 24 कैरेट के समाजवादियों को पहचान सकें। आप उनके संजय बन गये। इसलिये नेताजी की पास की रोशनी मंद हो गयी। वो अपने पुराने समाजवादी मित्र बेनी प्रसाद वर्मा और आज़म खान को नहीं पहचान पाये। वो राज बब्बर को नहीं पहचान पाये।

पार्टी में आपके पदार्पण के बाद मुलायम सिंह ने आपकी नज़रों से ही समाजवाद देखा, समझा, जाना, पर्खा। आपने कहा कि बीजेपी को हराने के लिये देश के सारे समाजवादियों को साथ लेना चाहिये। इसलिये एक दिन आप कल्याण सिंह के चरणों में गिर पड़े कि हे प्रभु राम के सच्चे भक्त बस हमारी डूबती नैय्या पार लगा दो। बन जाओ हमारे केवट। और पार करा दो वैतरणी। वैतरणी पार तो नहीं हुयी उल्टे आप के नेताजी ने जो मुल्ला-कट दाढ़ी उगा ली थी वो धीरे धीरे सुफैद पड़ने लगी। और 2009 पार करते तो शक होने लगा कि उनकी कभी ऐसी दाढ़ी थी भी या नहीं। इसलिये जब जब ये इल्ज़ाम लगते कि यूपी में मुलायम सिंह बीजेपी से सीक्रेट डील करके सत्ता में लौटे हैं तो ये इल्ज़ाम आप अपने सर ले लेते थे।

समाजवाद को शिखर पर पहुंचाने के लिये आपने ऐसे कितने इल्ज़ाम अपने सर लिये। लेकिन आपको कोई नहीं समझ पाया। अखिलेश, धर्मेन्द्र, राम गोपल आपको कोई नहीं समझ पाया। अब ये लोग आपको उसी भाषा में समझाने में लगे हैं जिस तरह से आपने बेनी प्रसाद, राज बब्बर और आज़म खान का समझाया सॉरी निपटाया। देखिये न मुलायम सिंह अपने नज़दीकी परिवार वालों की ही साइड ले रहे। उनका उनसे खून का रिश्ता है। आप तो पैराट्रूपर थे। सॉरी हैं। इसलिये आपका इस्तीफा मंज़ूर कर लिया। और आपको बीते कल की कमज़ोरी बताकर कैसे मुंह फेर लिया। अब आपका उनसे दर्द का रिश्ता भर बचा है। इसलिये समाजवाद में फैले परिवारवाद की खातिर, समाजवाद में फैले पूंजीवाद की खातिर, मुलायम सिंह से अमर प्रेम की खातिर ये विष का प्याला तो आपको पीना ही पड़ेगा। आपको नीलकंठ बनना पड़ेगा। और अमृत्व को प्राप्त होना पड़ेगा।

(लेखक पत्रकार हैं। सीएनएन आईबीएन)

9 comments:

Taarkeshwar Giri said...

Very Nice Comments

Archana said...

Sahi Kaha Aapne...Amar Hone Ke Saath Khud Ko SAHID Bhi Batayenge..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बेहतर विश्लेषण,

Nikhil Srivastava said...

Jo kasar rah gai thi, wo aapne poori kar di sir. vyang ki prakashtha... maja aaya..kya bhigo bhiga kar mara hai...khaas baat hai ki mauka bhut accha hai.

अजित वडनेरकर said...

अच्छा व्यंग्य है। दलालों की सिफत बयां करती ये पंक्ति-आपने नेताजी को भी माइनस पावर वाला दूर का चश्मा पहना दिया था ....
पसंद आई।

दिनेशराय द्विवेदी said...

डोज अच्छी है, कुछ कड़वी है, अमर या मुलायम जो भी पियेगा कुछ तो स्वस्थ हो ही सकता है।

Unknown said...

namaskaar!
amar singh samaajvaadi nahii nahii mulayamvaadii nahii nahii samaajvaadii.
nahii nahii mulaayam aur amar dono samajvaadii hain nahii nahii hai nahii hain prakash karaat bhii kahate hain nahii hain

pataa nahii.
namaskaar.

नवीन कुमार 'रणवीर' said...

आपनें पहले उत्तर प्रदेश दौरे पर अमर सिंह नें जो संस्मरण पेश किया, उसमें उन्होनें अपनें संग में बैठे लोगों को जाति से संबोधित किया अपनें ब्लॉग पर सभी गैर-यादव थे। अगर वे ये कहते कि वो अपनें चाहनें वालों(सपाई या गैर-सपाई)के बीच थे। तो शायद उनको स्वंय को क्षत्रिय कहलवानें और राम जी से तुलना करनें की आवश्यकता नहीं पड़ती? लेकिन बेचारे क्या कर सकते हैं, अमर सिंह आज पिछड़ों, अति-पिछड़ों और क्षत्रियों का नया तान-बाना ना बुन रहे होते। रही बात उनको दधिची बनाकर यूपी में उतार कर “यूज़” करने कि? ये बात अमर सिंह को रह-रह कर क्यों कटोचती है। एक बार वो खुद को मुलायमवादी कहते हैं? फिर आनें वाले समय में स्वंय के समाजवादी बननें की घोषणा करते हैं? अपनें पदों से इस्तीफा देते है, पर राज्यसभा की सदस्यता बरकरार रखते हैं? अमर फिर मुलायम पर हमला बोलते हैं और युद्ध की घोषणा करते हैं? खुद को गैर-यादव नेता होनें पर समाजवादी पार्टी में आज ठगा महसूस करते हैं, लेकिन पार्टी को नहीं छोड़ते? बस अपनी राजनीतिक जमीन तलाशनें में जुटे हुए है, सही समय आनें पर अपना हथौड़ा जरूर मारेंगे। क्या ऐसा नहीं है? तभी तो अमर सिंह खुद को एक नई सोशल इंजिनियरिंग में व्यस्त किए हुए हैं।

Infotech said...

Nice Comment.