माँ के पास अथाह क़िस्से हैं । चौदह पंद्रह साल की उम्र में शादी हो गई थी । समंदर सा धीरज है । जब से दिल्ली आई हैं एक एक पल साथ रहने के लिए बेचैन रहता हूँ । बाबूजी के जाने के बाद उन्हें ज़्यादा समझने का मौक़ा मिला है । वो अब भी नाना नानी को वैसे ही याद करती हैं जैसे मैं अपने बाबूजी को । माँ ने अपने पूरे जीवनकाल में साड़ी के अलावा कुछ पहना ही नहीं । बचपन से लेकर आज तक सिर्फ साड़ी । कभी इस तरह से जाना ही नहीं माँ को । मेरी भतीजी ने वादा किया है कि इंजीनियर बनने के बाद पहली कमाई से दादी को जीन्स पहनाने वाली है । माँ और जीन्स में । अद्भुत क्षण होगा वो । मैं भी अपनी माँ को जीन्स में देखना चाहता हूँ । भतीजी ने पहले दावा न कर दिया होता तो तुरंत एक जीन्स ले आता । क्या भव्य रूपांतरण होगा । समय और पहचान का ।
बहरहाल लाल क़िला, इंडिया गेट ब्रांड नाम से चावल खाने वाली आज की पीढ़ी के लिए चावल की क़िस्मों के यही नाम है । आज गाँवों में भी धान की क़िस्में ख़त्म हो गईं हैं । माँ ने जो नाम बताये वो इस तरह है-
सीता, मनेसरा, कतकी( कार्तिक) मंसूरी, भनली,( दशहरा के पहले कट जाए) अगहनी, दूधराज, ललदेइया, भैंसालोटन धान , काला नमक, कलमदान,कनकजीर, गुरदी और बासमती । आप भी इस सूची में धान की क़िस्में जोड़ सकते हैं ।
कमेंट से कुछ नाम उठाकर यहाँ डाल रहा हूँ ताकि सब पढ़ सकें । विष्णुपराग, मोगरा, कालीमूंछ, दुबार, तिबार, जीरामन, सरजू-बावन, कतरनी, सोनबरसा,साठी,गम्हड़ी, विष्णुभोग, गुरमटिया, सफरी,राजभोग, पसेरी, काली कमोद, श्याम ज़ीरा, शुक्ला फूल, सकर चीनी ।
27 comments:
Vishunparag
1st Para is sooo.. touching, u r a gr8 writer too !!
कालीमूंछ, मोगरा, दुबार ( आधा टूटा ), तिबार ( तीन टुकड़े वाला) , जीरामन
सरजू-बावन,कतरनी,सोनबरसा।
आपने बहुत सी बातें कह दी इस पोस्ट में। अभी ये कमेंट केवल चावल धान पर ही ।
सबसे पहले दो बातें बासमती की खिलाफत में। बासमती, चावल की दुनिया में एक लुटियन है, दिल्ली है, अंग्रेज़ी है, ब्राह्मणवाद है । इंडिया गेट और कोहिनूर जैसे "पैन -इंडिया" नामों से ब्रांडिंग कर के इसकी ऐसी हवा चलाई गई, कि जिस बदकिस्मत घर में बासमती न महका, वहाँ से अब राईट टू बासमती की आवाज़ ही बाकी है। ऑर्डिनास रेडी है । चावल की दुनिया, भारत देश जैसी है। तरह तरह के रंग, रूप, स्वाद, खूबियां , खराबी, इस्तमाल । अपनी प्रचिलित खुश्बू के चलते, बासमती इस देश का फेयर एंड लवली बन बैठा है । वैसे फॉर दी रिकॉर्ड, जीरा बत्ती और गोबिंद भोग बासमती से कहीं ज़यादा खुशबूदार और स्वादिष्ट किस्में है ।
दो तीन वैरायटी के नाम यहाँ लिखना ज़रूरी है (जो मैंने खाई हैं ) - दुबराज , सोना मसूरी , कालीमूँछ। (जिन्हें कहाँ चाहूँगा ): मेघालय की दो किस्मों के बारे में पढ़ा था। नाम भूल गया । एक पकने पर गुलाबी हो जाती है । और दूसरी बैगनी । स्टिकी राइस का वैरायटी है।
एक स्पेशल मेंशन अवार्ड - साठी के लिए । इसकी जानकारी भी किसी गाँव वाले से ही मिली थी। अब कम ही मिलता है (ऐसा पढ़ा)। शहरों में तो नहीं के बराबर (कम से कम जहाँ मैं तह वहाँ तो नहीं ) । साठ दिनों में तैयार हो जाती थी फसल, इसलिए नाम पड़ गया साठी । पता चला गाँवों में रुतबा रसूक और पैसा आने पर लोग खुशबूदार चावल के चक्कर में इसे छोड़ दिए थे। फिर भी पूजा पाठ के इस्तमाल में आने के कारन थोड़ा बहुत मिलता रहता था। इससे बने लड्डू और इसकी गन्ने के रस के साथ बनी खीर के बार में भी सुना है। खाया नहीं कभी । सुना है बिहार में छठ के समय आज भी इस्तमाल में आता है। कोई इसकी पुष्टि कर सकता है क्या ?
आपके राजनीति वाला रंग और रिश्तों वाली लेखनी रंग में बहुत अंतर है। ये रंग दिल को छू गया।
मेरा ममहर जो कि ऊपी में है वहाँ लोग हमें 'भात -भात " कहकर हमें चिढ़ाते थे।
पश्चिम चम्पारण में मिरचइया चुडा और आनंदी चावल का भुंजा मिलता है।
चम्पारण की एक और चीज़ जो मशूर है वो है ताश .
ताश घरों में नहीं बनायीं जाती , छोटे होटलो में ही बेची जाती है। गोश्त को सुबह मसालो से मैरिनेट किया जाता है और शाम में मटन की चर्बी में ही भुना जाता है। भोजन प्रेमी ये प्रमाणित कर देंगे कि बगैर तेल,प्याज अदरख ,लहसुन के माँस बनाना एक कला के बराबर ही है। मैंने चम्पारण के अलावा कही "ताश " बिकते हुए नहीं देखा है ना ही उस तरह की विधि से मटन बनते सुना है।
http://www.bioversityinternational.org/news/detail/from-the-fields-of-bihar-india/
Bahut kubh
आयुर्वेद में १५-२० तरह के चावल का वर्णन है और एक एक तरह की कई किस्में रही होंगी।
चावल तो बहाना है लेकिन मा के आपके प्रेम का चित्रण ,दिल से है, जय मा
हाँ! गम्ह्ड़ी का चावल बोलते है । छठ पूजा में खरना के प्रसाद में इसी चावल का खीर बनता है..सिर्फ पानी और गुड़ के साथ । और अक्षत के लिए भी इसी चावल का उपयोग करते है ।
धान और चावल का बहुत ही सांस्कृतिक महत्व हुआ करता था। लोगो का स्टेटस इससे जाना जाता था कि वो किस तरह का चावल और चिउरा खाते है। बासमती का तो कुछ खासा ही महत्व होता था, इसके ऊपर कई लोकगीत भी है। रोटी और पूड़ी का उतना स्थान नहीं था, किसी का भात काट देना मतलब समाज से अलग कर देना(हम उसके साथ नहीं खायेंगे !) । धान से चावल तैयार करना(हाथ से ओखल और मूसल से) भी एक खास स्थान रखता था। शादी-ब्याह हो या पूजा-पाठ, मेरे अनुभव मे धान का जितना महत्व था उतना किसी अनाज का नहीं। धान एक ऐसा फसल है जिसको उपजाने से लेकर चावल तैयार करने का प्रक्रिया जटिलताओं से भरा है। कुछ नाम जो मेरे जेहन मे आ रहा है वो है परवल, ललकी, मोटका।
bahut sundar.aap likhate achcha hai .dhan to ek bahana hai ,ma ki bate to aise hi suni v samajhi jati hai.
धान को लेकर एक और कहावत है, धान बो देना :)
No offence
धान की तो और भी किसम किसम की किस्में हैं - कुछ और याद आ रहे हैं - गुरमटिया, सफरी, सफरी नं 17, विष्णुभोग, राजभोग, पसेरी आदि.
विकिपीडिया में धान/चावल की 40000 (जी हाँ, चालीस हजार) किस्मों का जिक्र है!
हर धान/चावल की अलग खुश्बू और स्वाद होता है. हम छत्तीसगढ़िया धान के कटोरा वाले चावल प्रेमी जीव हैं, तो जाहिर है, घर में 4-6 किस्म के चावल मौजूद रहना तो आम बात है :)
Sir "Kaali muchh" bhi dhaan ka ek prakaar hai..
Sir "Kaali muchh" bhi dhaan ka ek prakaar hai..
हा हा | जैसे कह रहे हों कि मत बताओ इसको । ये लिख देगा । माँ से जुडी यादें लिखने के लिए धनयवाद सर |
काली कमोद, श्याम ज़ीरा, शुक्ला फूल, जुबराज, सकर चीनी ....
काली कमोद, श्याम ज़ीरा, शुक्ला फूल, जुबराज, सकर चीनी ....
काली कमोद, श्याम ज़ीरा, शुक्ला फूल, जुबराज, सकर चीनी ....
sonachur
Tab to meri Maa aapki Maa ek hi jagah ki hui. Mausiji ko mera Pranam kahiyega.
Dear Ravis Jee,
Bharat me Jana pehchana kuch Dhan varieties ke name......
SOME NOTIFIED RICE VARIETIES----
-MTU- 1001, MTU-1010, SWARNA' BPT-5204,LALAT, KHANDAGIRI, RANI DHAN, POOJA, IR-36, IR-64, MAHAMAYA, JALDI DHAN, JYOTIRMAYEE, TAPASWINI, SWARNA SUB1, KRANTI,POOSA BASMATI, KETKIJOHA, BHUBAN, HMT, RANJEET, SAHABHAGI
HYBRID RICE VARIETIES------
TEJ, DHANI, KRH-2& R(KARNATAKA RICE HYBRID), AJAY, RAJLAXMI ETC.
Chhatri in mp.
sharbati
bahut sunder.. ati sundar..sir aapne emotional kar diya...
Post a Comment