पागलनामा पार्ट आठ
आता हुआ अख़बार कितनी कशिश पैदा करता है । खुश्बू से लिपटी हुई ख़बरों में इतराता दोहरा तिहरा होता कुम्हलाता है । परतों में परती पड़ी उसकी ज़मीन पर घास की तरह ख़बरें खुरदरी उगी नज़र आती है । कतरनें घुसी पड़ी होती हैं दुकानों और मकानों के पते की । एक अख़बार से कितने ठोंगे बनते हैं इसका हिसाब किसी संपादक को नहीं मालूम । पत्रकार पान की पीक से होंठ लाल कर ख़बर काली कर रहा है । अख़बार दैनिक बोख़ार है । चढ़ता है पर उतर जाता है । सरकार लोकतंत्र का बोख़ार है । जिसके एक खंभे पर टिका अख़बार है । चौथा है तो हर दिन इसका चौथा है । पन्ना पन्ना बंट जाता है । रूह किसी के हाथ में जिस्म किसी और की बाँहों में । जो जहाँ,जैसा है,ऐसा है,वैसा है । पहले कोमा है फिर फुलस्टाप है । नहाकर आई नायिका के बालों को काला करने वाली दवा की तरह ख़बर छपती है और उतर जाती है । सफ़ेद बालों पर कोई और सूचना सपना बनाकर बिठा दी जाती है । लेटी हुई नायिका के लिए टिप्स है अख़बार । संपादक का पाचक है अख़बार । पाठक पादक है । उसका हाज़मा ख़राब है । मर गया मर गया । जल गया जल गया । खंभा जो चौथा है । पोथा है बकवासों का । सब दलाल सब हलाल । सब माई के लाल । सूचना अनाथ है । लोकतंत्र केदारनाथ । बच जाता है । बाक़ी बह जाता है । टीवी के स्टुडियो में उतराता रहता है । एंकर भोले शंकर हैं । तांडव करते हैं । संपादक विष्णु हैं । लेटे हैं लक्ष्मी के साथ नाग के बिछौने पर । हाहाकार ही जयकार है । साधन बदलने से ज़माना नहीं बदलता । अख़बार के आने से हगने का टाइम नहीं बदलता । साथ साथ जाता है अख़बार । शोचालय का सच्चा साथी । लोकतंत्र का मदन मंजरी । पत्रकार खम्भे से लटका सरकार है । सैलरी साली है । नौकरी भाभी । मरेगा साला । दलाल बन जाए तो बच जाएगा । सेट होना ज़रूरी है । नहीं होता है तो कर देना चाहिए सेट । हेडलाइन ब्लूलाइन है । कुचलकर बासी हो जाती है । पैराग्राफ़ बिना बदले ही अख़बार छापो । पन्ना और पैराग्राफ़ मत बदलो । जूते के दराज़ में बिछाओ साले अख़बार को जिस पर बांचता पत्रकार है । टीवी में डालो इसको । बचाएगा जाकर लापता लोगों को । टूं टूं संगीत बजाएगा । दशहरी आम क्यों नहीं कोई खाता है । मनमोहन क्या खाता है मोदी क्या खाता है । लालू कितना खा गया । संजय दत्त जेल में पीता है । लोकतंत्र ने जब अपना अख़बार निकाला है हर दिन उसका मज़ार बना है । पैराग्राफ़ बदल लिये कि ठीक हो जाओगे । मत बदलो । सारे बाबू डाकू हैं । दो चार बौड़म साधो हैं । कबीर तो बच्चों के कैट नाम हैं । कबीर न किसी की तक़दीर है न बग़ावत की लकीर है । माला जपो । माल कमाओ । अख़बार पढ़ोगे तो तलवार कबाड़ में बेचोगे ।
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16 comments:
sach me loktantra kedarnath jaisa lag raha hai ravish, aap ko bohot sasakt dekhta tha, abhi kitne part me pagal hona hai??, nywz chaliye sab pagal ho jaye ek baar to astha tute logo ki aur hum sab mil ke talashe ek naya vikalp . . .
sach me loktantra kedarnath jaisa lag raha hai ravish, aap ko bohot sasakt dekhta tha, abhi kitne part me pagal hona hai??, nywz chaliye sab pagal ho jaye ek baar to astha tute logo ki aur hum sab mil ke talashe ek naya vikalp . . .
pairagraph mat badlo...
Akhbaar ek upyogi samagri hai. Khabron ki jaankaari to iss ke gunon ki suchi mein kaafi neeche hai. Yeh ek sassti aur jan-upyogik vastu hai. Iss ke upyogon mein se kuch:
1. Aloo ke tel mein rijhe paronthe lapetne ke liye. Desi pet thodi printer's ink to hazmaa leta hi hai.
2. Aam chooste ya ice cream chaat rahe samay keemti vastron ki suraksha ke liye god mein rakh lein.
3 Foot path par sone ke liye ek chaddar ka roop.
4. Aapat kaal mein toilet paper.
5. Shauchalya mein ek julaab ka roop to aap ne note kar hi diya.
6. Jo bach jaye raddi wale ko daan kar punya prapt kijiye.
Akhbaar ek kalyug ki nehmat hai.
sampaadak "vishnu" hai aur paathak "paadak" hai .. anchor "bholeshankar" are prabhu ye goodh gyan ka blog hai jo dhyan se padh le usko bhaartiya patrakarita jagat ke saakshat darshan ho jayenge... lekin "dalaal ban jayega to bach jayega" wala gyan bilkul practical hai ...
ravish bhai sabse jyada log aapse nafrat karte hain us waqt jab log bhade ki light ka intjaam kar ke prime time dekhne ko bekrar hote hain or screen per ancor koai or aa jata hain . log us anchor se to jalte hi hain or apko bhi dil hi dil kuch kah hi dete hain. shayed aaz apke ndtv office ko pata nahi hoga ke aapne kitni chutti mari jitna aaz apke darshko ko pata hain. ab tak to maine sirf actor ke fan dekhe hain per anchor ke bhi itne fan hote hain ye dekh ker accha laga. log prime time ko aise dekhte hain ke raat ko nikal jaye to subah ko recoding jaise aurat seriol ko dekha karti hain or kuch time bhi aisa hi ho gaya hain .seriol bhi monday to thursday chaltey hain or prime time bhi. unki bhi recoding aati hain or prime time ki bhi.
ravish bhai sabse jyada log aapse nafrat karte hain us waqt jab log bhade ki light ka intjaam kar ke prime time dekhne ko bekrar hote hain or screen per ancor koai or aa jata hain . log us anchor se to jalte hi hain or apko bhi dil hi dil kuch kah hi dete hain. shayed aaz apke ndtv office ko pata nahi hoga ke aapne kitni chutti mari jitna aaz apke darshko ko pata hain. ab tak to maine sirf actor ke fan dekhe hain per anchor ke bhi itne fan hote hain ye dekh ker accha laga. log prime time ko aise dekhte hain ke raat ko nikal jaye to subah ko recoding jaise aurat seriol ko dekha karti hain or kuch time bhi aisa hi ho gaya hain .seriol bhi monday to thursday chaltey hain or prime time bhi. unki bhi recoding aati hain or prime time ki bhi.
अख़बार चौथा खम्भा है और संपादक उसके ऊपर चढ़ता उतरता व्यक्ति, जिसका काम गेहूं को भूसे से अलग करने जैसा होता है और यह सुनिश्चित करना कि भूसा ज़रूर छपे.
Zabardast,Maar hee daloge.Pagalnama kitne aank main aayega.
kya khub......
गुरू कम्बखत मारा अब डिजिटल हो चला । जो कभी नहीं चला वो भी चल रहा । अब तो हर कोई कट-कापी-पेस्ट की पकौड़ूी तल रहा । बबुआ और पप्पु के नाम का मसाला मलरहा.. @*%$#.... ई का हमरा लाईट चला गया बगल वाले का जल रहा ।
लेखन का नया प्रवाह निर्धारित कर रहे हैं आप..अच्छा लगता है, पागलपन तो बिल्कुल नहीं।
Aapka ye pagalnama agar sav logo tak pahuche to thori jagarukta aa jayegi sayad logon me...
Aapka ye pagalnama agar sav logo tak pahuche to thori jagarukta aa jayegi sayad logon me...
रवीश जी , प्राइम टाइम अब एक रसता का शिकार होने लगा है।
इस कार्यक्रम को और यथार्थ परक बनाने की जरूरत महसूस होने लगी है।
एक खास ऊंचाई पर पहुँच चुका ये कार्यक्रम अब अपना असर खोने लगा है । दर्शक तो केवल देखने या न देखने का फैसला ही कर सकता है । अब ये आप पर है कि आप इस बेहद रुचिकर कार्यक्रम को और बेहतर कैसे बनाते हैं। या फिर हमारी राजनीतिक पार्टियों की तरह जनता की आवाज को इस कान से सुन कर उसी कान से बाहर कर देते हैं। क्योंकि अगर आवाज एक कान से दूसरे कान तक गयी तो वो दिमाग से हो कर ही गुजरेगी और दिमाग से हो कर जाएगी तो फिर दिमाग पर असर तो डालेगी ही । इस लिए यदि किसी बात को न मानना हो तो बेहतर हैं कि उसे एक कान से सुन कर उसी कान से बाहर कर दिया जाए । देखते है, कुछ दिन और प्राइम टाइम को देखते है फिर फैसला करेंगे । और हाँ , ये कतई मत सोचिएगा कि अरे एक आदमी के कहने से क्या फर्क पड़ता है । एन डी टी वी तो बहुत बड़ा चैनल है, लोग देखेंगे नहीं तो जाएंगे कहाँ । आपने दूरदर्शन का वो पुराना विज्ञापन तो देखा ही होगा जिसमे एक ट्रक ड्राइवर रेल के फाटक पर सिग्नल को नज़र अंदाज़ कर के निकलने की कोशिश जी हाँ 'सिर्फ कोशिश' करता है और दुर्घटना का शिकार हो जाता है और फिर अपनी तस्वीर को एक फ्रेम में देख कर कहता है " फर्क तो पड़ता है भाई " अब आगे आप खुद हमसे कहीं ज्यादा समझदार हैं।
श्रीकृष्ण वर्मा
देहारादून
उत्तराखंड
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