पागलपन - पार्ट टू
पानी शहर में डूब चुका था । नदियाँ शहरों में डूब गई थीं । पहाड़ शहर में खप गए थे । जिन्हें हमने डूबा हुआ मान लिया था अब यही सब हमें डूबा रहे हैं । बारिश बावरी हो गई है । जाने दो ये महीना हम फिर बनायेंगे । करेंगे विकास उन्हीं रास्तों पर जहाँ नदियाँ बहा करती थीं । सीमेंट से भर देंगे । जो विरोध करेगा वो पागल कहलाएगा । भरो भरो शहरों को रेत के बारूद से भर दो । नाली पानी के निकलने का रास्ता मत बनाओ । फ़्लाइओवर बनाओ । पैराग्राफ़ मत बदलो । बड़बड़ाते जाओ । इमारतें ढह रही हैं । जिस शिव की जटा से गंगा निकली उसी शिव की मूर्ति से गंगा दहाड़ मार मार कर टकरा रही है । महाविलाप का प्रलय है । कुछ का मर जाना तय है । गंगा ख़तरे के निशान से ऊपर है । हम नदियों से दूर जा चुके हैं । नदियाँ हमारी गर्दन पकड़ रही हैं । बचाओ बचाओ । ऐ विकास अलकनंदा सो बचाओ रे । ऐ विकास भागीरथी से बचाओ रे । मार देंगी दोनों । गंगा सबको नंगा कर देगी । मानसून का मातम सुन । सब गिरेगा सब बहेगा । कोई अफ़सोस मत करो । इंजीनियर ने पढ़ा ही होगा । नेता ने देखा ही होगा । पहाड़ों के रास्ते पहली बाढ़ नहीं है । हरहर हाहाकार ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
13 comments:
महाप्रलय से जीवन की शुरुआत है ..........शायद धरा उधर ही हो ..........
ye pragati ke naye aayamon per prakriti ka uttar hai, devbhoomi ko bhog-vilas ki bhoomi banane per prakriti ka rukh hai.
Prakriti ke sath wavfai ka yehi natiza hai.
Prakriti ke sath wavfai ka yehi natiza hai.
कोई इस हाहाकार से बचाये हमें।
sir Nitish jee par kuchh likhiye na,plz.
nuch ke ganga ka hamne rkha ab uski bari hai....
और हम... बेखुदी में ... खुद से ... बक्बकाय चले गए,
हम
Aaj Ganga ka avtaran hua tha wah kah rahi ki mein to lakhon varsh pahle aap hi ke aayi thi ab mere virodh mein mera rasta roko abhiyan kyon chala rahe ho Blulo mat mein hoo to aap hai nahin to bin pani sab soon
बड़का बड़का मकान भदभदा के गिर गया और पानी में विलाय गया. एक बड़का भोला बाबा पानी से लड़ते लड़ते भसिआय गए. चंदू मैंने सपना देखा छिट्टा दौरी ढंकना ढकनी ढेंगरा ढेंगरी सब बहता ही चला जा रहा है....आठ गो मंत्री ने शपथ ले लिया.
Pagalpan nam kyo diya ?
kaash logon ke dimagon men base laalach ke daanav ko bhi koi tsunami bahaa kar le jaati aur hammare parvat aur nadiyan bina atikraman ke shanti se bah paati...
इस महाप्रलय का मूल कारण हम है,हमने हीं प्रकृति के संतुलन में व्यवधान खड़े किये,अब भोगना हमे ही होगा !भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने कभी इन मुद्दों को समाज में चिंतन का विषय नही बनने दिया !सभी अपना पल्ला झाड अलग दिखने का ढोंग करते नजर आ रहे !
Post a Comment