इंटरनेट का जासूस समाज

प्राइवेसी को लेकर अमरीका में बहस हो रही है । वहाँ की सरकार अपने ही लोगों के इंटरनेट और फ़ोन अकाउंट में झाँक रही है । सरकार पहले भी ऐसा कर चुकी है जब इंटरनेट नहीं था । वो लोगों की बातचीत रिकार्ड करती रही सुरक्षा के नाम पर । तमाम आलोचनाओं के बावजूद यह एक सर्वमान्य परंपरा है जिसके तहत ख़ुफ़िया तंत्र आपको सुनता और पढ़ता है । चोरी छुपे । लेकिन इस तरह से नागरिक की बातचीत को सुनना देखना उस ज़रूरत का बेड़ा इस्तमाल है । लेकिन क्या जो लोग इस पर व्याकुल हैं उन्हें नहीं मालूम कि फ़ोन आपकी गुप्त मौजूदगी को पकड़ने का सबसे बड़ा माध्यम है । पुलिस आसानी से इसके ख़ास नंबर को ट्रैक कर पीछा कर सकती है । तो जब फ़ोन ही प्राइवेट नहीं है, उसकी प्राइवेसी सुरक्षित नहीं है तो फिर रोना क्यूँ । 

पहले लेख में अमरीकी सरकार की हरकत को सवालिया निगाह से देखा है । इस लेख में प्राइवेसी के मसले को दूसरी तरह से देखने का प्रयास कर रहा हूँ । क्या हम ऐसे एप्स यानी अप्लिकेशन का इस्तमाल नहीं करते जिससे किसी को ये तक पता चलता रहे कि हम कहाँ हैं । क्या हम नहीं जानते कि अब ऐसे एप्स खुलेआम मुफ़्त में उपलब्ध हैं जिनसे आप जान जायेंगे कि फ़ोन करने वाला कहाँ से कर रहा है । आप से मतलब आम फ़ोन उपभोक्ता । एंड्रॉयड और आयफोन ने इसे और सुलभ किया है । फ़ेसबुक में आप इसका प्रदर्शन खुद ही करते हैं कि इस वक्त एयरपोर्ट पर हैं या पीवीआर सिनेमा हाल में । गूगल मैप तो आप फ़ोन के साथ कहाँ खड़े हैं वहाँ टिमटिमाने लगता है । जब आप अपनी मौजूदगी खुद ही अपने फ़ोन में ट्रैक कर सकते हैं तो ख़ुफ़िया एजेंसी को तकनीकी रूप से करने में क्या दिक्क्त होगी । 

मैं यह सवाल इस संदर्भ में कर रहा हूँ कि इंटरनेट पर प्राइवेसी है ही नहीं तो सरकार के आँकड़े लेने से हम ऐसे क्यों जाग रहे हैं जैसे इससे पहले ऐसा हुआ ही नहीं । जैसे ही इंटरनेट ने सामूहिक संचार के माध्यम दिये उसने प्राइवेसी के मायने को भी बदल दिया । पाँच हज़ार लोगों के बीच आप दोस्ती करें और कहें कि आपकी प्राइवेसी भी हो तो सुनने में ठीक लगती है बात, पर है कहाँ । क्या आप इन लोगों के भरोसे कह सकते हैं कि आपके पेज पर मौजूद दस हज़ार फ्रैंड आपकी बातों को कहीं चुपचाप फार्वर्ड नहीं करते । क्या हम सब कभी न कभी एक दूसरे की प्राइवेसी भंग नहीं करते । सामाजिक यातना नहीं देते । असली जीवन में भी कई लोग ख़ुफ़िया तंत्र की मानसिकता के तहत सूचनाओं को रणनीति के तहत इधर से उधर कर रहे हैं । समाज और सिस्टम के ये काम करने में बहुत फ़र्क होता है पर प्राइवेसी तो भंग होती ही है । ट्वीटर पर लाखों लोगों के अनुचर बनने की सुविधा है । खुद ये सोशल कंपनियाँ आप पर हर वक्त नज़र रखती हैं । कब लाग इन किया कब लाग आउट किया इन सबका डिटेल उनके पास ही होता है । 

इस विवाद के प्रसंग में ओबामा चाहते हैं कि सुरक्षा बनाम प्रायवेसी पर बहस हो । लेकिन प्राइवेसी है कहाँ इंटरनेट जगत पर । प्राइवेसी होती है घर में । दो लोगों के बीच । दीवारों के भी कान होते हैं यह जुमला कितना पुराना है । इंटरनेट के तो आँख कान नाक पाँव हाथ सब हैं । ज़रूर आज के दौर में प्राइवेसी का मतलब बदला होगा जिसे समझना ज़रूरी है । 

हम अपनी प्रायवेसी का इस्तमाल भी करते है । बड़ी संख्या में लोग नाम और लिंक बदल कर आपसे संवाद करने लगते हैं । हम खुद अपनी पहचान को संदिग्ध बना देते हैं । अजीब अजीब नाम से आईडी बनाते हैं जिसका हमारे सामाजिक नामों से कोई लेना देना नहीं होता । अजीबोग़रीब आईडी के चयन के साथ ही हम असली नाम को गुप्त बना देते हैं । अपनी कई प्रकार की प्राइवेसी गढ़ लेते हैं । रवीश नाम की प्राइवेसी और लड़की बनकर सुनयना नाम से आईडी की प्राइवेसी में फ़र्क है कि नहीं । ट्वीटर पर एक लड़का कई लड़कियों के नाम से सबको फौलो कर रहा था । एक लड़की जिसे मैं भी फोलो कर रहा था और किसी बड़े प्रबंधन संस्थान के होने का दावा करती थी उसके बारे में दो साल बाद पता चला कि वो लड़की नहीं लड़का है । असली जीवन में आप इस तरह के लम्हों में एक सेकेंड नहीं रह सकते । सोचिये कोई लड़का लड़की बनकर मिलने आ गया हो । कौन मेनका है और कौन रम्भा । रम्भा कब सांभा निकल आए ये भी राम जाने । अच्छा हुआ मैंने ट्वीटर छोड़ दिया । 

हम अपनी प्राइवेसी के साथ कुछ भी करने लगते हैं । हर आदमी  की कई प्रकार की प्राइवेसी है । लड़के की प्राइवेसी कुछ असली लोगों के साथ भी होगी । लड़की बनकर उस लड़के की प्राइवेसी कुछ और हो जाएगी । माँ बाप का दिया नाम तो अब पहचान के भी काम नहीं आएगा । कई लोग आपको आईडी नाम से जानने लगे हैं । एमके20drone इस तरह की पहचान हम रखते हैं । क्या पता चलेगा कि आप सुल्ताना डाकू हो या दफ्तर में मेरा बास ही । सोशल मीडिया की पहचान हज़ार्ड है । ख़तरनाक कबाड़ । हर पहचान एक नई प्राइवेसी है और हर प्राइवेसी की अलग और नई सार्वजनिकता । हम खुद ही कई प्रकार की प्राइवेसी सृजित कर रहे हैं । कई लोग सुंदर लड़कियों का फोटू लगा लेते हैं ताकि ज़्यादा लोग फोलो करें । हद है छपरा का लौंडा नाच मचा हुआ है यहाँ । 

हम असली नहीं है यहाँ । असली लोगों का नक़ली संसार भी है ये । इंटरनेट ने हमें आज़ादी दी है कि आप असल के अलावा भी कुछ और बन सकते हो । ठगों की दुनिया है । लड़का से लड़की बनकर पहचान और प्राइवेसी के इस हथियार का इस्तमाल किया जा रहा है । आप खुद दूसरे की प्राइवेसी भंग कर रहे हैं । जिस मंच ने पहचान को इतना संदिग्ध बना दिया हो वहाँ ये नौबत आने ही वाली थी । आए दिन फ़ेसबुक के इनबाक्स में यूक्रेन या लंदन की किसी मिस टेलर का संदेश आ जाता है जो अपना अकेलापन दूर करने के लिए इस बिहारी को दोस्त बनाना चाहती है । पता नहीं बिना मिले कैसे जान जाती हैं कि मैं इंटरेस्टिंग हूँ । बड़ी संख्या में दफ़्तरों के सहयोगी और रिश्तेदार पहचान बदल कर आपको फोलो करते हैं । मैं खुद इस अनुभव को भुगत चुका हूँ । लोग भी एक दूसरे की जासूसी करने लगे है । कुछ लिखिये नहीं कि कई लोग उस मैसेज को तड़ से कापी पेस्ट कर पहुँचा देते हैं । कई सीनियर चुपचाप अपने जूनियर और सहयोगी को फोलो करते हैं । वहाँ लिखी गई बातों का इस्तमाल दफ्तर की पोलिटिक्स में करते हैं । तो फिर काहे की प्राइवेसी का ढोंग । आप कभी ये दावा कर ही नहीं सकते कि प्राइवेसी है । 

इंटरनेट और फ़ोन आपकी प्राइवेसी की गारंटी नहीं हैं । आप हर वक्त देखे जा रहे हैं । इसने हम सबको एक दूसरे का बिग ब्रदर बना दिया है । इसलिए प्राइवेसी को ठीक से समझने की ज़रूरत है । इंटरनेट ने एक जासूस समाज का निर्माण भी किया है । सरकार तो पहले से ही थी । जल्दी ही बिना फ़ोन और मेल के मिलना शुरू कर दीजिये । कबूतर पाल लीजिये । संदेश भेजने के लिए । 


6 comments:

Vicky Rajput said...

Ha ha ha.... sahi kaha sir jii aapne.......

वार्तावरण said...
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Suchak said...

sir,you miss big point in his...if RAW or IB access this for country than we have no problem at all but this privacy will be miss use by foreign agency...we can not trust on our politicians and system so,

प्रवीण पाण्डेय said...

जब कुछ छिपा कर रह ही नहीं सकते, तो जो भी करें ताल ठोककर करें।

mayank sachan said...

raveesh ji mujhe ti ye privacy naam ka shabd hi samajhne men problem hoti hai .. ye nijta yani privacy kya aisi baat hai jisko chhupaya jaye ?? aur desh ki raksha ke liye agar sarkar ye jaan bhi jaati hai ki aap kya khate hai, kahan jaate hai, kiske saath jaate hai, kitna kamaate hai, aur kya sochte hai to ismen galat kya hai ??? aakhir ham chhupana kya chaahte hai ?? apne karm, apni soch, ya apna vyaktitva ???

Jamal Uddin Abdul Rahman ( Raju Rahman) said...

Rahul Gandhi Ji Se Aur Hamari Adyaksha Soniyaji Se Yahi Anurodh Hai.
Aane Wale Jo 5 Rajiyo May Chunav Hone Walla Hai.
Uss May Zameen Sthar Se Jo Bhi Hamare Congress Ke Shipai Hai Unne
Bharose May Liya Jaye.Kyo Ki Aaj Janta NetaO Ke Bhashaan Se Jyadha
Unn Ka Kya Vikas Hoga. Yah Who Netao Se Nahi Waha Ke Zameen Sthar
Ke KarakarthaO Se Yah Jannane Ke Liye Athur Hai.(AANE WALE DINO MAY
KYA HAM CONGRESS PAR BHAROSSA KARE) Kyo Ki Unne BJP Ho Ya Koi Aur
Par Vishwaas Nahi Hai.Gao Ho Yaa Gali Kuchaa Har Mode Par Serf Zameen Sthar
Se Jude Karakartha Hi Unn Tak Pouch Raktha Hai.
Yahi Mera Anurodh Hai.
Jamaluddin Abdulraman (Raju Rahman)