अय्यपन तुम शहर मत आना

क्या आप अयप्पन की तरह अपनी पत्नी को इतना प्यार करते हैं कि उसे अपनी पीठ पर लाद कर चालीस किमी तक चलते रहे । अख़बार में जो अयप्पन की तस्वीर छपी है उसमें कोई सिनेमाई भाव नहीं है । पत्नी का ख्याल रखने के दस कामयाब तरीके या कैसे करे संबंधों को बेहतर वाले लेख का कोई असर नहीं दिखता है । अयप्पन एक शून्य से आया हुआ वो शख़्स है जिसके चेहरे से हमारे भीतर का शून्य झलकता है । कई बार देखा । लगा कि मुझे ही घूर रहा है । पूछ रहा है मैंने तुम्हारे जैसे सपने नहीं देखे लेकिन जो हुआ उसका कोई उत्तर दे सकते हो । मुझे उत्तर नहीं चाहिए क्या तुम मुझे देखकर सचमुच रो सकते हो । बिना दहाड़ मारे । बिना छाती पीटे । 

अयप्पन की पत्नी सुधा बीमार थी । अपनी गर्भवती पत्नी के इलाज के लिए अस्पताल ढूँढने निकल पड़ा । उसे पीठ पर लादा और जंगल जंगल पार करता रहा । अपने भारी पेट की पीड़ा के साथ कैसे लदी होगी उसकी पीठ पर । कितना रोई होगी,कितना सिसकी होगी, अय्यपन का पसीना आँसू बनकर कैसे उसे भीगोता होगा वो कैसे उसके पसीने में लथपथ हो रही होगी । 

कोन्नी के जंगलों से जब वो निकला तो शुक्रवार था । सुबह का वक्त । सुधा चल नहीं पा रही थी । अयप्पन ने कपड़े से उसे अपनी पीठ पर बाँध लिया । खुद ठेला बन गया । अपनी पत्नी को लेकर वो पथनमथिट्टा के ज़िला अस्पताल पहुँच जाता है । जहाँ से उसे उसे कोटट्यम मेडिकल कालेज भेजा जाता है । सुधा की जान तो बच गई मगर बच्चा नहीं बच सका ।

यायावर क़बीलाई समाज के अयप्पन को कितनी तकलीफ़ हुई होगी जंगल के बाद के शहर को पहचानने में । शहर को किस नज़र से देखा होगा । कितनी उम्मीदें बाँधी होगी कि बस एक क़दम और । कुछ मिलेगा सुधा । हिम्मत रखना । मेरी पीठ तुम्हारा बिस्तर है । देखो बच्चा आयेगा । हमारा होगा । दोनों एक दूसरे पर सवार चलते रहे होंगे । आप बस महसूस कीजिये । नेताओं के शोर को सुनना कम कीजिये और ख्याल में ही अपनी पत्नी को पीठ पर उठा लीजिये । चलते रहिये । हर सुधा को अयप्पन नहीं मिलता । हर अयप्पन को सुधा नहीं मिलती । हम शहरी लोग हैं । दूर दराज़ से आती ऐसी ख़बरों से हिल कर जल्दी सँभल जाते है । अयप्पन चालीस किमी तक जिस प्रसव पीड़ा से गुज़रा होगा , सुधा की प्रसव पीड़ा को साझा किया होगा उसे हम नहीं समझ पायेंगे । अख़बार का रिपोर्टर भी समझ नहीं सका होगा । 

शुक्रिया इंडियन एक्सप्रेस दफ़्तरों में फ़र्ज़ी पदनामों के साथ बड़े हो जाने वाले हम शोहरती पत्रकारों को अयप्पन से मिलाने के लिए । नहीं , हमारी नाकामी याद दिलाने के लिए । वैसे न्यूज़ रूम की दुनिया में हर ख़बर एक शिफ़्ट होती है । वहाँ कोई अयप्पन नहीं होता । 

6 comments:

वार्तावरण said...
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Vicky Rajput said...

Subah subah.. akhbaar me pada ayaapann ke baare me.... dil bilkul hil gaya pad kar...

Mahendra Singh said...

Azadi 67 saal baad bhi hospital ka na hona who keral jaise Pradesh main sachmuch khed ke saath sharm ka visai bhi hai.Ayappan ke bare main kuch kahna unkee tauheenee hogi.mere level se woh bahoot unche hai. yeh ghatna Benazir hai.

प्रवीण पाण्डेय said...

काश अयप्पन को कोई अच्छा डॉक्टर मिल जाता।

Ram nath thakur said...

रविश जी उसे क्या कहेंग़ें जो कल ही सुना है शादी का सुट पहन कर पत्नी वियोग मे आत्महत्या कर लिया और पत्नी के हाथ का एक-2 चीज को सील करके घर में रख दिया ??

Ajay said...

अत्यंत दुखदायी किन्तु प्रेरक समाचार है