पागलनामा- पार्ट फ़ोर
फ़ेसबुक पर न्यूज़ चैनलों की रिपोर्टिंग को लेकर प्रतिक्रियाएँ पढ़ रहा हूँ । अब इतना कम टीवी देखता हूँ कि पढ़ते हुए लगा कि लोग क्यों देख रहे हैं । ये बातें कहीं दस साल पहले तो नहीं पढ़ीं । जब चैनल उनकी अपेक्षाओं पर खरे ही नहीं उतर रहे, उल्टा उनके भीतर चिढ़ पैदा कर रहे हैं तो उन्हें बंद कर मेरी तरह अख़बार का इंतज़ार करना चाहिए । अख़बार में भी कोई स्वर्ण युग नहीं है । फिर भी हर घटना में चैनलों का आपको बेवकूफ बनाना, आपका चैनलों के संग बेवकूफ बनना 'लव हेट ' रिलेशनशिप बन गया है । चैनल ऐसे ही रहेंगे । जो अपवाद हैं वो इस गंध में इधर उधर से निकल कर आते रहेंगे । एकाध छक्का तो हरभजन भी मार देता है । हम पहले पहुँचे, हमारी तस्वीर पहली है, हमने ही पहले बताया था । एक अंग्रेज़ी का रिपोर्टर यह बोल रहा था कि उसके सूत्रों ने बताया है कि आने वाले पलों में बारिश होगी । मुझे तो लगा कि इंद्र के दरबार में भी सूत्र है । सही है कि हमारी भाषा संरचना में चमत्कार और दैवी कृपा ऐसे ठूँसे पड़े हैं कि उन्हें जब सामान्य दिनों में निकाल नहीं पाते तो केदारनाथ को देखकर कैसे निकालेंगे । क्या पता कि अख़बार वाला भी इसी भाषा में लिख रहा हो । कितने रिपोर्टर गाँव गाँव भटक रहे हैं । टीवी के रिपोर्टर का पहुँचना ही घटना है । दिखाने की सुविधा होने के कारण वो खुद को घटना बनाता है ताकि पहले से घट चुकी घटना की भयावह़ता का वो हिस्सा बनकर नायक हो जाए । इसका कुछ नहीं किया जा सकता । केदारनाथ के ढहने पर चैनलों का टी सीरीज़ में बदल जाना मुझे हैरान नहीं करता । टीका अँगूठी ताबीज़ पहने ये रिपोर्टर ऐसी भाषा में नहीं बोलेंगे तो कौन बोलेगा । क्या ये केदारनाथ की वेदपाठी की परंपरा के विस्तार नहीं है? बिल्कुल ये रिपोर्टर उम्मीदों पर खरे उतरे हैं । जो भी टीवी में काम करने आ रहा है वो इसी तरह की भाषा और शैली का अनुसरण करे । आलोचक आपके संपादक नहीं हैं । गंध में गंध की तरह रहो । कीचड़ में कमल खिल जाने से कीचड़ की नियति नहीं बदलती । कमल व्यक्तिगत है । उस पर भी तोहमत है कि कीचड़ में ही खिला है । खुलकर गंध कीजिये । इससे नवोदित पत्रकार शुरू से ही सिस्टम के अनुकूल रहेंगे और कैरियर कम तनाव में गुज़रेगा । ज़्यादा पत्रकारिता के मानक सीखने में समय न लगायें । एडजस्ट कीजिये । जिसको देखने में तकलीफ़ हो रही है उसकी चिंता मत कीजिये । वो खाली बैठा है टीवी के सामने । दस साल के अनुभव से बता रहा हूँ । एक आलोचना का असर होते नहीं देखा है । जब आपके बड़े भी यही मिसाल छोड़ गए हैं तो खुलकर बिना किसी नैतिक संकट के करो । बल्कि केदारनाथ से हिन्दू संकट का एलान कर दो । दहाड़ मार कर रोना शुरू कर दो कि शिव का मंदिर बच गया है । इस ज्योतिर्लिंग में शक्ति है । आइये फिर से नई आस्था के साथ माँगने चढ़ाने आ जाइये । तमाशा है टीवी तो तमाशबीन है दर्शक । खुद घर में कंठी पहनकर बैठा होगा और आपसे कहेगा कि आप मंदिर के चमत्कार में न बहो । अपनी सेटिंग संपादक और शंकर से रखो । दर्शक क्या होता है । इससे पहले की कौन सी ऐसी घटना थी जिसमें टीवी ने ऐसी हरकत नहीं की थी । वो ऐसे ही करेगा । इसीलिए इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी मैं बीस मिनट भी टीवी नहीं देखा । हल्का फुल्का देखकर उसके बाद एम टीवी । अब अगर ये पता नहीं है कि नौटंकी होगी तो इसका मतलब लोगों को टीवी देखना नहीं आता । साल भर तमाशा देखो और एक दिन चाहो कि संवेदना और ज़िम्मेदारी से भरपूर वाला हो जाए तो हद ही है न । कई बार लगता है कि लोग फ़ेसबुक पर स्टेटस लिखने के लिए पाँच मिनट चैनल देखते हैं । पता चलता है कि ये भी गंध ढूंढ रहे हैं लिखने के लिए । अपना कान खुजाकर सूंघने वाले हैं ये । हालाँकि बातें इन्हीं की ठीक लगती हैं पर जिन बातों का कोई असर न हो उनका रास्ता छोड़ देना चाहिए । गटरकाल है पत्रकारिता का । गटर की गंध का अपमान मत करो । आपदा आई है । टीवी का प्रदर्शित दुख अपने आप में एक आपदा है । सब रिपोर्टर ऐसे बोल रहे हैं जैसे यही शुभचिंतक ठहरे । सर पीटो, माथा फोड़ लो बात एक ही है । कुछ सही में जवाबदेही से बोलते होंगे । पर क्या करना है । क़समें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या । रेटिंग आ जाएगी सब धुल जायेगा । अगले हफ्ते प्रोमो चलेगा कि इस घटना के कवरेज ने सबसे ज्यादा हम पर भरोसा किया । अभी एक महीना और एक साल की बरसी बाकी है । चैनल बदल कर करोगे क्या । हर तरफ अब यही अफसाने हैं । हम तो तेरी आंखों के दीवाने हैं । लाइफ़ और लेखन में पैराग्राफ़ मत बदलो ।
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18 comments:
'पागलनामा' के लालच में हम पागल हो रहे है. 'पागलनामा' पढ़ने के लिए हम पगला रहे है :) शुक्रिया सर, इस अनोखी विधा के लिए :)
सही है.....एक टीवी रिपोर्टर आपदा पीड़ित से पूछ रहा था कि आपने 3 दिनों से कुछ नही खाया...आप कैसा महसूस कर रही हैं ?
। क़समें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या । रेटिंग आ जाएगी सब धुल जायेगा :D :D :D
जो हो गया, उस पर दोषारोपरण करने से अच्छा है कि भविष्य में एक विश्वस्तरीय धार्मिक पर्यटन का स्थान बना दें।
यहाँ जो कमेंट डिलिट हुआ है वो मैंने नहीं किया है । खुद से हो गया होगा या लिखने वाले ने किया होगा
पूर्वांचल में एक शब्द है "टिघ्घा"....जिसका शब्दश: अर्थ मुझे नहीं पता लेकिन ऐसा तब कहते हैं जब कोई थोड़ा सा उंचाई पर चढ़कर कोई कार्य करता है तब कहा जाता है कि "ससुर टिघ्घा पर चढ़े हैं"..... कल यही देखा। एक पत्रकार एक आदमी के उपर चढ़कर, उसके कंधों पर बैठकर रिपोर्टिंग कर रहा था। पत्रकारिता का "टिघ्घाकाल" आ गया है।
जहाँ न पहुंचे सरकार ..वहाँ पहुंचे पत्रकार... :)
jab khabar dene ka kaam vyapar men badal gaya ho to tareekon par dhyan kaise jayega revish ji ??? power,paisa aur prasiddhi ka aasan rasta news channal ho gaya hai aur nayi patrakar peedhi kuch tathakathit editors aur media tycoons ke haath ki kathputliyan hain... aapka vyathit hona pramaan hai ki kuch bhi ho jaye khabar dene ke vyapar men kuch log aise rahenge jo patrakarita ki aatma ko zinda rakhenge.. baaki to sab chalta rahega .. desh mera rangrez ye baabu.. ghaat ghaat yahan ghatataa zaadoo....
patrakarita ka "gatarkaal" hai ... ye jitne media houses nen patrakaar banane ki factory khol rakhi hai tv patrakarita institute ke naam par unko ye jumlaa zaroor apne cource men ek chapter bana kar padhana chahiye ... aap bhi kamaal karte hai ravish ji ... :)
Pagalnama sabd se yaad aaya ki Khalil Zibran ka hindi main anudit novel ka naam hai- Pagla kahi ka. Hum bhi pagal ho jayenge aisa lagta hai.
संवेदनाओ का लहर उठा है झोंके तो लगेंगे ही
are sir coment mere se hi delete ho gaya tha...that's why wrote same, once again :D :D
ravish ji apke in pagnamon ne is nirmanadheen ptarkar ko bhut kuch sikhaya hai..
sau sau choohe khaker billi chali haz karne. aap kya kar rahen hain. blog per pravchan aur ancory mein chamchagiri. bhai rozi roti ka sawal hai.
Khabron ke silsile main to kya TV aur kya akhbaar Google hi sab se samay kifayati hai...
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