दिल्ली से गाज़िपुर सीमा पार करते ही समाजवादी पार्टी का पोस्टर दिखा । बहुत महीने पहले भी इस नेता का विशालकाय पोस्टर लगा चुका हूँ । समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधन रावत का पोस्टर इतना बड़ा होता है कि कैमरा पलट कर तस्वीर लेनी पड़ती है ।
I don’t know how you feel about it, but these elaborate posters seem excessive. It’s fascinating to see how complex issues manifest itself through slogans and jingles. Truly creative and I’m sure it influences people. But, it also starts a game where everyone is trying to outdo others. If I were to use Ravish’s terms, it seems no different than – kitabe hi kitabe, gadde hi gadde variety. These ads are effective, but what it also does is that it makes, kitabe or gadde, a commodity – there is nothing unique about it. Sadly, politics is not a commodity and voters not customers.
जाते हो कहाँ यू मुड़ के इंतजार के बाद आए हो इस तरह जाइए ना छोड़ के शिष्टाचार! से याद आए हो
स्मृति मे हो जब तबकि बार आए थे कैसी बेचैनी में हो तबकी तो बहुत बार आए थे
जब दो चार हुए थे बीनटोली की नालीयों से चमरटोली की गलियों से बाबूओं के चौपाल से बनियाटोली के मकड़जाल से
जब भावविह्वल हुए थे बेटियों की दशा पर वृद्धों की दु्रदशा पर विद्यालय के खस्ताहाल पर शौचालय के तरणताल पर
जब वादे किए थे एडिशन के बल्ब को जलाने का मारुति की कारों को दौड़ाने का बच्चों से रोबोट चलवाने का गरीबों को आवास दिलाने का
जब हुक्म किया था अस्पताल को नियमित खुलवाने का नदी पर पुल बनवाने का सामुदायिक भवन निर्माण कराने का पाठशाला को उन्नत बनाने का
जब गौरवान्वित किए थे मातृशक्ति पर अपनी देशभक्ति पर क्षेत्र की पहली रेल पर जेल से हुई अपनी बेल पर
जब आशान्वित किए थे सुशासन की महिमा बताकर विकास की संरचना समझाकर भ्रष्टाचार की भरत्सना कर शस्य-श्यामली की ज्योत्सना कर
हाँ तो श्रीमान हमारे कद्रदान अब सुनिए सीधी जुबान हमारे यहां तब गलियों में नालियाँ थी अब नालियों मे गलियाँ हैं विद्यालय में शौचालय नहीं था अब शौचालय में विद्यालय है
एवरीडे की बती है संकरे पथ से जाना है ठंड से तड़प रहा बदन है पापी पेट गा रहा गाना है ।।। नीरज प्रियदर्शी
Suchak patel ji ke comments kabile gaur hai. Neeraj ji kee kavita ke kya baat. kya baat . kya baat... "Sabka bhala mere Ramji kare"Jinka kal jyome paidaish manayenge.
Aapke prime time me gurgaun se karyakram me ..ek aadmi ne bilkul sahi kaha ki logo ne tv aur newspaper se viswas uth gya hai...abhigyan prakash to BJP ka prawaqta ban gya hai ...kitne paise mile hain use MODI se ..etna bhi jaida gir sakta hai NDTV bhi mujhe nhi viswas hota hai ..
हरियाणा में योगेंद्र जी के साथ आपको धूल फांकते देख खुशी भी हुई और गर्व भी. खुशी इसलिए कि टूटी जीप में प्रचार करते हुए भी योगेंद्र जी आत्मविश्वास से भरे हुए थे. खुशी इसलिए भी कि एक कुशल और ईमानदार शिक्छाविद संसद में पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं. और गर्व इसलिए कि भारत के किसी गांव में एक ईमानदार व्यक्ति से दूसरा ईमानदार व्यक्ति ( योगेंद्र जी और ऱवीश जी ) राजनीति पर बात कर रहे थे. सारी बातें तो गर्व करने लायक ही थीं. भारत, भारत का गांव, प्रबुद्ध शिक्छाविद और ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार एक साथ.
मैं सोचता हूं काश पूरे भारत के लोग ऐसे ही हो जाते और प्रत्येक दिन हम ऐसे ही लोगों को देखते, सुनते और समझते. काश किसी को यह नहीं कहना पड़ता टीवी मत देखो, अखबार मत पढो, फलाने से मत मिलो, फलाने से मत बात करो....काश ऐसा समाज बन पाता. निराश नहीं हूं, इसलिए खुद भी प्रयास करता हूं और ऐसे लोगों का खुलकर समर्थन भी करता हूं.
8 comments:
I don’t know how you feel about it, but these elaborate posters seem excessive. It’s fascinating to see how complex issues manifest itself through slogans and jingles. Truly creative and I’m sure it influences people. But, it also starts a game where everyone is trying to outdo others. If I were to use Ravish’s terms, it seems no different than – kitabe hi kitabe, gadde hi gadde variety. These ads are effective, but what it also does is that it makes, kitabe or gadde, a commodity – there is nothing unique about it. Sadly, politics is not a commodity and voters not customers.
sir itna hee bada poster tha Madhosoodan mistry ka baroda me aur bahut height par tha...to bhi unke face pe kisi ne शाही छिड़क दी थी !
Khuda khair kare.
hum to intazar hi kar sakte hai.
badlega bharat aisi prathna karta hoon.
।।।। नेता जी! नमस्कार ।।।।।
जाते हो कहाँ यू मुड़ के
इंतजार के बाद आए हो
इस तरह जाइए ना छोड़ के
शिष्टाचार! से याद आए हो
स्मृति मे हो
जब तबकि बार आए थे
कैसी बेचैनी में हो
तबकी तो बहुत बार आए थे
जब दो चार हुए थे
बीनटोली की नालीयों से
चमरटोली की गलियों से
बाबूओं के चौपाल से
बनियाटोली के मकड़जाल से
जब भावविह्वल हुए थे
बेटियों की दशा पर
वृद्धों की दु्रदशा पर
विद्यालय के खस्ताहाल पर
शौचालय के तरणताल पर
जब वादे किए थे
एडिशन के बल्ब को जलाने का
मारुति की कारों को दौड़ाने का
बच्चों से रोबोट चलवाने का
गरीबों को आवास दिलाने का
जब हुक्म किया था
अस्पताल को नियमित खुलवाने का
नदी पर पुल बनवाने का
सामुदायिक भवन निर्माण कराने का
पाठशाला को उन्नत बनाने का
जब गौरवान्वित किए थे
मातृशक्ति पर
अपनी देशभक्ति पर
क्षेत्र की पहली रेल पर
जेल से हुई अपनी बेल पर
जब आशान्वित किए थे
सुशासन की महिमा बताकर
विकास की संरचना समझाकर
भ्रष्टाचार की भरत्सना कर
शस्य-श्यामली की ज्योत्सना कर
हाँ तो श्रीमान
हमारे कद्रदान
अब सुनिए सीधी जुबान
हमारे यहां
तब गलियों में नालियाँ थी
अब नालियों मे गलियाँ हैं
विद्यालय में शौचालय नहीं था
अब शौचालय में विद्यालय है
एवरीडे की बती है
संकरे पथ से जाना है
ठंड से तड़प रहा बदन है
पापी पेट गा रहा गाना है ।।।
नीरज
प्रियदर्शी
Suchak patel ji ke comments kabile gaur hai. Neeraj ji kee kavita ke kya baat. kya baat . kya baat... "Sabka bhala mere Ramji kare"Jinka kal jyome paidaish manayenge.
Aapke prime time me gurgaun se karyakram me ..ek aadmi ne bilkul sahi kaha ki logo ne tv aur newspaper se viswas uth gya hai...abhigyan prakash to BJP ka prawaqta ban gya hai ...kitne paise mile hain use MODI se ..etna bhi jaida gir sakta hai NDTV bhi mujhe nhi viswas hota hai ..
ravishji kabhi hamare Gwalior Chambal anchal (MP) bhi aaiye, hamare yaha ke beehado aur mahlo ki rajneeti par bhi kuch show kijiye
प्रिय रवीश जी,
हरियाणा में योगेंद्र जी के साथ आपको धूल फांकते देख खुशी भी
हुई और गर्व भी. खुशी इसलिए कि टूटी जीप में प्रचार करते हुए भी
योगेंद्र जी आत्मविश्वास से भरे हुए थे. खुशी इसलिए भी कि एक
कुशल और ईमानदार शिक्छाविद संसद में पहुंचने का प्रयास कर
रहे हैं. और गर्व इसलिए कि भारत के किसी गांव में एक ईमानदार व्यक्ति से दूसरा ईमानदार व्यक्ति ( योगेंद्र जी और ऱवीश जी ) राजनीति पर बात कर रहे थे. सारी बातें तो गर्व करने लायक ही थीं.
भारत, भारत का गांव, प्रबुद्ध शिक्छाविद और ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार एक साथ.
मैं सोचता हूं काश पूरे भारत के लोग ऐसे ही हो जाते और प्रत्येक
दिन हम ऐसे ही लोगों को देखते, सुनते और समझते. काश किसी को यह नहीं कहना पड़ता टीवी मत देखो, अखबार मत पढो, फलाने
से मत मिलो, फलाने से मत बात करो....काश ऐसा समाज बन पाता. निराश नहीं हूं, इसलिए खुद भी प्रयास करता हूं और ऐसे
लोगों का खुलकर समर्थन भी करता हूं.
सर, आपको धन्यवाद.
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