महेश जी को फ़ोन किया तो उनकी बोलचाल से लगा ही नहीं कि मैथिल हैं । एक ज़माने में मैथिल बोल लेता था इसलिए बांग्ला की तरह इस मिठी बोली का स्वाद मालूम है । महेश जी अवधि बोल रहे थे । मैं समाजशास्त्री मानवशास्त्री की तरह पूछने लगा । तभी ध्यान आया कि जिस दुकान पर पोस्टर लगा था वे भी झा थे मगर मैथिल एक शब्द न बोल पाये । कहा कि नाम ही झा है पर पता नहीं यहाँ कैसे आ गए । यहाँ तो पीढ़ियों से हैं । किसी तरह से कुछ बचा हुआ है तो उनके नाम के बाद लगा 'झा' जो मैथिल ब्राह्मण अपने नाम के साथ लगाते हैं ।
ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष ने बताया कि उनके पास कोई पुस्तिका है जिससे पता तो चलता है कि कहाँ से कौन यहाँ आया था । लेकिन किसी को कुछ याद नहीं । उनका दावा था कि फ़िरोज़ाबाद शहर में चालीस हज़ार मैथिल वोट है । इतने के ही लगभग गाँवों में है । वहाँ कई लोगों ने ज़मीन ख़रीद ली है । गाँव में ही रहते हैं । शहर में भी दो हज़ार तीन हज़ार के पाकेट में रहते हैं । हमलोगों का मिथिला से सम्बंध टूट गया है । वहाँ के रीति रिवाज की जानकारी भी कम है । कोई मैथिली नहीं बोल पाता । सब चूड़ियों के कारोबार में कभी यहाँ आए थे और आज यहाँ के तरह तरह के धंधे में शामिल हैं मगर कोई बहुत बड़े आर्थिक हैसियत वाला नहीं है । इनकी शादी भी यहीं के झा लोगों में होती है । मिथिला में नहीं ।
महेश जी ने बताया कि सात आठ साल पहले ही वे लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए हैं । बीजेपी ने जगह नहीं दी इसलिए सपा के साथ हैं । बीजेपी में जो ब्राह्मण हैं वे कुछ नहीं समझते । अस्सी हज़ार का वोट है हमारा । उनके किसी दावे को सत्यापित तो नहीं कर सकता था मगर फ़ोन पर हुई इस बातचीत को आपके लिए लिख रहा हूँ । ये लोग अपनी जड़ों से कट चुके हैं । नई जड़ें निकल आईं हैं । पलायन स्थानीय बोली तो सीखा देता है लेकिन पीढ़ियों बाद पूरी तरह से अपने जड़ों से विच्छेदित कर देता है । इसे और भी कई तरीके से पढ़ा जा सकता है मगर यह सोच कर रोमांचित तो ही गया कि फ़िरोज़ाबाद में अस्सी हज़ार मैथिल ब्राह्मण की कुछ तो पूछ होगी ही । अपना हिंदुस्तान क़िस्सों से भरा है ।
11 comments:
मेरे बच्चे सब दिन दक्षिण में ही रहे, पत्नी को मैथिली नहीं आती... लेकिन बच्चे मैथिली सीख गए हैं..जो मैथिली ना बोल पाये वो कैसा और कैसे मैथिल ?
शायद आपको मालूम हो कि बांग्ला की तरह ही मैथिली की भी अपनी लिपि है..मिथिलाक्षर । दरभंगा शब्द शायद द्वार और बंग से मिलकर बना है..दरभंगा में काफी संख्या में बंगाली रहते हैं जो आकर नहीं बसे हैं बल्कि यहीं के हैं.. संभव है इसी बांग्ला के प्रभाव से मैथिली भी मीठी हो गयी हो...
पहले दरभंगा जाता था तो वापस आने पर फिर से हिंदी शुरू करने में कठिनाई होती थी क्योंकि बाज़ारों और दफ्तरों, हर जगह मैथिली ही बोली जाती थी.. अब वैसा नहीं रहा...
लोकल सिनेमा हाल अब हिंदी फिल्म अफोर्ड नहीं कर पाते इसलिए भोजपुरी फ़िल्में दिखाते हैं.. आसपास के खेतों में मकान पसर गए हैं.. युवक गावों से निकल चुके हैं..
Apne Hindustan ki bahut kahaniya hai.desh mera rang rejia babu.
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wah sir,
khushi hui ye jankar ki aap maithili bolna jante the and mithilanchal ka itihas batata hai ki mithila bahut din tak bengol ke saath raha hai and mithila world ka sabse first democracy bhi hai sir humari lipi tirihuut hia mai apna lipi likhna janta to nhi hu but maithili bolta hu gaun jata hu pura family darbhanga se 30 km door ek gaun me rehta hia shadi bhi 2013 me gaun me hi hui hai.
रविश जी, फिरोजाबाद तो फिर भी एन सी आर है, मैने तो कच्छ (जो कि एक तरफ पाकिस्तान बोर्डर से जुड़ा हुआ है) में मैथिल समाज देखा है और कहा जाता था कांडला पोर्ट में सत्तर हजार लोग काम करते है जो अधिकतर मैथिल है। और उसका एक नजारा सरस्वती पूजा के मूर्ति विसर्जन के समय देखा जा सकता था।
SIR JI safar jari rakhiyega abhi bahut kuch dekhna baki hai.
सर ये मैथिल का क्या चक्कर है। जरा हमको भी बताओ। ..........................
Ravish bhaiya jara CA sahab ko itihas ka basic bataiye.bechare ko maithil nhi pata
राजेश मिश्रा भाई, मैं तो कोटा राजस्थान से हूँ। और मुंबई में रहता हूँ। और इतिहास भी ज्यादा नहीं पढ़ा है। इसलिए मालूम कैसे होगा। अन्हि आपने बोला तो मैंने इंटरनेट पे देखा ये …………
Maithil Brahmins are a Hindu Brahmin community from the Mithila region of India and Nepal. They are one of the five Pancha-Gauda Brahmin communities.[1] In India, the Maithil Brahmins reside mainly in Bihar and the neighbouring states of Uttar Pradesh, Jharkhand and West Bengal. In Nepal, they mostly reside in the Terai region. They are noted for panjis, the extensive genealogical records maintained for the last twenty-four generations.
प्रिय रवीश भाय,
अहां के बहुतबहुत धन्यवाद. हंसियो आबि रहल अछि आ खुशियो
भेल. अहूं न अजबे गजबे काज करैत छी. मुदा बढिया लागल.
हमहूं मैथिल छी, लेकिन छुटपन सँ बाहरे पढाई कएल. हां, मैथिली
भाषा केर थोड़ बहोत जानकारी एखनो छै. एहि में बाबूजीक बहुत पैघ
योगदान छै. हम जे लिखि रहल छी, एहि मे बहुत गलती होएत, परंच
एहि ठाम बहुत भाईबंधुक जिग्यासा देखि मैथिली में लिखबाक साहस
कएल. गलती केर श्चमा करब. हमरो बहुत जानकारी भेटल.
धन्यवाद!
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