इसी बैठक में एक रणनीति तैयार होती है कि आर्थिक संकट पर लम्बे लंबे भाषण तैयार किये जायें । टीवी पर पाँच पाँच मिनट के स्पाट ख़रीदें जायें । जिसे एक साथ टीवी और इंटरनेट पर चलाया जाए । बार बार दिखाया जाए ताकि लोग उसके बारे में बात करने लगे । ओबामा के कैंपेन मैनेजर डेविड प्लाफ कहते हैं कि बोलने की शैली ओवल आफिस के अभिभाषण जैसी होनी चाहिए । इस संकट के बहाने हम समाधान और अपने नेतृत्व का लंबा लंबा बखान करेंगे । तय होता है कि टीवी पर तीस सेकेंड के विज्ञापन का कोई मतलब नहीं है । जितने भी ऐसे विज्ञापन चल रहे हैं सब नकारात्मकता से भरे पड़े हैं । डेविड कहते है कि हमारे विज्ञापन में राहत की बात होगी । ( अच्छे दिन आने वाले हैं टाइप) । हम उम्मीद जतायेंगे ।
लेकिन उस वक्त टीवी पर कोई स्पेस खाली नहीं था । रणनीतिकारों ने समझा कि कम ही नेता हैं जो लंबे भाषणों से माहौल रच सकते हैं । उस वक्त मैक्केन टीवी इंटरव्यू और टाउन हाल में दक्ष माने जा रहे थे । डेविड लिखते हैं कि मैक्केन डायरेक्ट टू कैमरा वाले भाषणों में उतने माहिर नहीं थे । कैमरे में आँख मिलाकर भाषण देने में ओबामा माहिर लगते हैं ।
आप इसे प्रसंग को राहुल गांधी की तुलना करते हुए समझिये । इंटरव्यू देने में अरविंद केजरीवाल आगेसनिकल चुके थे । मोदी इंटरव्यू के इस रास्ते को बाद के लिए छोड़ देते हैं । लंबे लंबे भाषण देने लगते हैं । कैमरा क्लोज़ में होता है । वे पूरे देश की यात्रा पर निकल जाते हैं । यहाँ भाषण वहाँ भाषण । विरोधी घर बैठे रह जाते हैं । अगस्त से जनवरी तक बिना किसी ठोस चुनौती का सामना किये हुए उनका भाषण एकतरफ़ा लोगों के बीच पहुँचने लगता है । विरोधी गंभीरता से नहीं लेते हैं । घटिया प्रवक्ता भेजते हैं विरोध के लिए । मोदी ज़बरदस्त बढ़त हासिल कर लेते हैं । खैर आगे सुनिये ।
ओबामा कहते हैं कि यह रणनीति अच्छी है । चलो करते हैं । " लोग आर्थिक संकट को लेकर भ्रमित हैं, डरे हुए हैं और निराश हैं । इस तरह के लंबे विज्ञापन से यह सब तो नहीं बदल सकता लेकिन मैं उन्हें यह भरोसा जताते हुए दिखना चाहता हूँ कि मेरे पास इस संकट से उबरने की योजना है, कम से कम इस संकट से निकाल कर मैं उन्हें कुछ राहत तो दे ही सकता हूँ ।"
इसके बाद लंबे विज्ञापनों को चलाने के लिए पैसे जुटाये जाते हैं । ओबामा की टीम इतने पैसे जमा कर लेती है कि डेविड अपनी टीम को कहते हैं कि तुम सब बिगड़ जाओगे । चुनाव प्रचार में इतना पैसा कभी नहीं लगा होगा । ओबामा के लंबे भाषणों को टीवी पर बार बार चलाया जाता है । किस्से कहानियों को मिक्स किया जाने लगता है । हर तरफ़ ओबामा नज़र आने लगते हैं । उम्मीद बेचते हुए ओबामा । पहले कार्यकाल में अमरीका की अर्थव्यवस्था संकट में ही घिसटती रहती है । ओबामा नहीं सँभाल पाते हैं । दूसरा कार्यकाल ख़त्म होने जा रहा है । अमरीकी अर्थव्यवस्था अभी तक सँभल ही रही है ( इसके बारे में कम जानता हूँ ) । ओबामा ने अपनी टीम से ठीक कहा था । भरोसा बेचो ।
जो लोग भारत के इस चुनाव को समझना चाहते हैं उन्हें David plouffe की the audacity to win पढ़नी चाहिए । पेंग्विन ने छापी है । मुझे पढ़ते हुए लगा कि नरेंद्र मोदी का अभियान पूरी तरह से इस किताब से निर्देशित है । एक एक रणनीति मेल खाती है । संयोग भी हो सकता है मगर मैं पूरी तरह ग़लत भी नहीं हो सकता । जिस तरह मोदी के आने से पहले अन्ना और केजरीवाल टीवी के स्पेस में छाये हुए थे उसी तरह ओबामा के आने के पहले हिलेरी क्लिंटन छा गईं थीं । उनकी जीत का इंतज़ार हो रहा था मगर डेविड की टीम ने अपनी प्रचार रणनीति से सबकुछ बदल दिया । हिलेरी अरविंद की तरह हाशिये पर चली गईं और ओबामा अश्वेत, ईसाई, अफ़्रीकी और अमरीकी न जाने क्या क्या और किन किन क़िस्सों में ढाल कर उम्मीद बन गए । चाय वाला का क़िस्सा यू नहीं उभरा होगा । उस मित्र का शुक्रिया जिसने यह किताब भेजी थी । आप सबको पढ़नी चाहिए । एक टीवी क्या क्या कर सकता है । मोदी अकारण साल भर से टीवी पर लंबे लंबे भाषण नहीं दे रहे हैं । ओबामा दे चुके हैं ।
43 comments:
WHO IS THE BEST ? OBAMA OR NAMO OR TV MEDIA OR TIMING ?
रविशजी बहुत हो चुका या कुछ बाकी है ? पता नही,आपकी और नमो की चुनावी यात्रा भी बहुत हो चुकी है दोनो ही थकते नही है,शायद १६मई के बाद जो होगा वो किसी ने सोचा नही या समझा नही होगा,
किसी ने गुजरात को १२ साल के समय को ३ दिन मे समझ लिया लेकिन जन मानस को कोई समझ सकेगा ? नही मालुम,
भारत के चुनाव का जितना सटीक विवरण आज के लेख मे आपने दिया उसके लिये जय ओबामा
ओबामा और मोदी मे एक समानता हैं दोनो बोलते अच्छा हैं और उनके पिछले वाले इसमे कमजोर साबित हुए बाकी राजनीति हैं प्रेरित तो रहेगी किसी ना किसी से और राहुल भी तो ओबामा वाला आइडिया अपना रहे हैं सब प्रेरित हैं हमे बस अब समझ मे आ रहा हैं
Sahi hi h or iska mtlb to yhi niklta h sir ki ye neta janta ko bewkuf bnate h kyunki badlne kch ni wala ....maine ek kahani suni thi ek maa apne bhukhe bachhe se kehti h so ja khawabon m pariyan rotiyan leke aati h jo kbhi ho ni skta ......
Jai hind sir nd I hope ek din ye janta kahe ki hm bewkuf ni h
Hilary Clinton ki tulna kejriwal se karna thik nahi h..... Clinton ke pass resources ki kami nahi thi..... Agar kejriwal ke pass 100 crore ka donation bhi Jana ho jata to modi "PM in waiting "hi rah hate........
रवीश भाई, आपने इस किताब की इतनी बार चर्चा की है अब लगता है पढ़ना ही पड़ेगा, आर्डर करता हूँ !!
वैसे ओबामा का चुनाव एकमात्र देश के बहार का चुनाव था जो मैंने काफी फॉलो किया था, वो एक टाइम था जब मैं Newyork Times की वेबसाइट
रेगुलर विजिट करता था और मैं बिना ये किताब पढ़े कह सकता हूँ, मोदी का कैंपेन उससे काफी प्रभाभीत है।
एक बात और जब ओबामा जीते थे और भारत आये थे ये काफी न्यूज़ मे था की भारत का ओबामा कौन होगा(आपने उस विजिट के बारें मे ब्लॉग भी लिखे थे)?
तब मायावती का नाम सबसे आगे था !!! क्यों आगे थी और क्यों वो पीछे छूट गयी ये आपसे बेहतर शायद ही कोई जानता होगा।
Ravish ji, ak bat to manni padegi ki modi bahut accha bolte hai par ve kuch achha kar payege , isme sandeh hai. 16 may ke bad bhi sabkuch jaisa hai vaisa hi rahega. ye modi bhi jante hai aur janta bhi.
Kejru ki tulna Clinton ke sath nahi kar sakte ravish saab..:)
रविश जी, अमेरिका के एजेंडे पे चलने वाली कांग्रेस यहाँ क्यूँ नहीं कुछ सीखा. खैर, आगे की बात. MIT के एक कांफ्रेंस में एक श्रोता ने चोमस्की से पूछा की ओबामा की नीति, खासकर, विदेश निति, की व्याख्या कैसे करेंगे तो चोमस्की ने कहा -George W. Bush.
Ajay Maken ko ye kitab bheja jaay. xD
Ravish Ji Kuch badlne wala nahi hai. Sab Kuch aisa hi rahege jaisa ab hai.jeet kisi bhi party ki ho, kintu haar voter ki hi hogi.
Ravish, pehle lag rahaa thaa ki kejriwal is strongly influenced by Obama - wo kehte thhe - 'Yes we can', aur ye kehte thhe 'aam aaddmi ki laddai hai, aap thik karoge' aur usmein swaraaj ka spin.. Language and idiom similar thhaa.. funding ka crowdsourcing bhi similar thaa.. lekin bich mein thoda negativa ho gayaa sab kuchh.. ummeid bechne ki baat nahin samajh paaye ye. Aur idhar modi ne poora bomabrd kar diyaa. itna paisa thoos diya hai ki samajh mein nahin aata ki kyaa news hai kyaa advertisement.. mushkil hai samajhna ki kyaa bikta hai yanhan.
आपकी बात ठीक है ।
जब भी वीकेंड में फ्री होता हूँ तो लाइब्रेरी में चला जाता हूँ
और साइंस के अलावा कुछ पढ़ने की कोसिस करता हूँ
लेकिन कुछ चीजें मेरी समझ में नहीं आयीं
1 - मुलायम सिंह और इंदिरा गांधी की समाजवादी थ्योरी
2 - BJP की हिंदुत्वा की थ्योरी
3 - नितीश कुमार और राहुल गांधी का सेकुलरिज्म
मुझे लगता है इन लोगों को नयी थ्योरी देनी चाहिए जो सारे फिलोसोफर्स की थ्योरी से कही अच्छी साबित होगी और उस थ्योरी का नाम देना चाहिए
"इंक्लूसिव सोसिओ सेक्युलरिस्ट हिंदूइस्म ऑफ़ शाइनिंग इंडिया "
सर क्या ओबामा सर तथा महामहिम परम पूज्य श्री श्री श्री मोदी जी का तुलना भारत और अमेरिका की सड़को के जैसे संभव है ?
Similarities to Manish Tiwari bhi dhoond rahe the Hitler or modi main , ye wala blog unhe message kr dijiye unme confidence aa jayega. Shayad chunav ladne bhi taiyyar ho jayen......
Waise Aaj Kal bahar main modi hi modi hai chahe ?bata ho ya patrakar hr baat Ka blame un pe hi krte hain.bhawan n kre pr kisi ko agar loose -motion Bhi ho gaye to iska ilzam bhi modi pr dal denge
बेहतरीन
संभवतः यही सच है। कुछ और कहने की जरूरत नहीं ।इस लेख के लिए आप लम्बे समय तक याद किए जायेंगें।
लबरा कैमरा, विज्ञापन में खर्च पैसे ,चाय का प्रचार ,अब औदिसिटी ऑफ़ हॉप में उल्लेखित रणनीति , ............रवीस जी आप के प्रयास निरर्थक जायेगे. मुझे नहीं मालूम की आप कैसी व्यवस्था चाहते है.कांग्रेस और विरोधी दलों को नसीहत दे रहे है .....की आप लोगो की चुनाव रणनीति गलत है ....क्या चुनाव रणनीति ही सब कुछ निर्धारित कर रही है ...
Pta nhi q Media aur kai log MOdi ko ek aise vyakti k taur pr project kar rhe hain jiske ate hi sari problms INDIA se bhag jayengi... why dont v understand that problems jayengi to hm sab k joint efforts se.. ye baat sahi hai ki ek aj strong leader chahiye hme bt poori team k achhe performance se hi team victorious hoti hai....
in baato se ye n samjha jaye ki mai Namo virodhi ya Raga SUPPROTER HU, ALL I M SAYING IS THE FACT
AND LAST BT NOT THE LEAST Ravish ji,i love PRIME TIME,you r doing such a great job....
Mai bhi chahta Hu Ki ek baar modi as hi jaaye ..taki log sabak sikhe aur dubara tv media pe viswas nhi kare ..mai hard core socialist Hu .
Achha hai...Modi ji se savinay nivedan yahi karunga...ki jaise Audacity se prerit hi kar apni chunavi ranniti banaye hai...waise hi america ko dekh kar apne desh ki niti v banaye....shayd agle chunav mein audacity ki jarurat nai padegi....aur dhyan mein ye v rakhe ki ye america nai hai....ya pura hindustan sirf akela gujrat nai hai....jo baar baar audacity ki chapet mein aa jaye...yahan bihar v hai...tamilnadu v hai....aur haryana v hai...to jara soch samjh ke...rajniti mein Modi ji naye hi mane jayenge...
जैसे मैंने यहीं आपके ब्लॉग के किसी पोस्ट पर लिखा था ,मुझे यकीन है कोई (बुद्धिजीवी) इस समय चुपचाप कहीं एक किताब लिख रहा होगा - "मेनिफेक्चरिंग कंसेंट-इंडियन स्टाईल"। मज़ाक कि बात अलग, सही में कितना रोचक प्रोजेक्ट होगा इसको सिलसिलेवार समझना और समझाना (इंडियन कॉन्टेक्स्ट में) ये भी देखना मज़ेदार होगा कि ये चुनाव आगे आने वालों चुनावों को कैसे प्रभावित करता है ? (मीडिया मैनेजमेंट , आदि के हिसाब से )
Dear ravish,
I have told earlier too and i m telling you again that in your analysis...you are underestimating an IIT Graduate called arvind kejriwal...he is a disruptive innovator & a force multiplier...he can checkmate modi at varanasi in a single move....and all those big speeches ,media campaigns, AUDACITY TO WIN Type ideas will go in vain...isn't it.pls write your next blog to answer
Thanks for sharing this :)
Mazaa aa jayega... Sach me. ;)
Limited truth to your post. Obama had no administrative experience hence could only sell hope. Modi has 12 years worth of solid work to sell.Modi doesn't tire of talking about his experience in Gujrat. Obama had NO experience.
The use of social media and information technology and involvement of young volunteers is where the similarity in the campaigns is striking.
True Analysis Ravish...Elections/Political system also should be like USA in India...Governors will rule the states not Chief Ministers, not so much importance to state MLAs...President style elections where people will chose between two candidates...3 debates between two PM candidates before elections on crucial issues (moderated by persons like Ravish Kumar)...Election will be more interesting and people's participation will increase...
True Analysis Ravish...Elections/Political system also should be like USA in India...Governors will rule the states not Chief Ministers, not so much importance to state MLAs...President style elections where people will chose between two candidates...3 debates between two PM candidates before elections on crucial issues (moderated by persons like Ravish Kumar)...Election will be more interesting and people's participation will increase...
mujhe aa;pki baat mein dam nazar aa raha hai.Tajjubb hai yah vipaksha dwara lagai gai mahangi agency na hi pakad pai na hi koi tod prastut kar saki.
Aaj aapka azamgarh se prasarit karyakram bahut pasand aaya.kash sabhi rajnitik dal ke shirsha neta ise dekhte aur manan karte.
mujhe aa;pki baat mein dam nazar aa raha hai.Tajjubb hai yah vipaksha dwara lagai gai mahangi agency na hi pakad pai na hi koi tod prastut kar saki.
Aaj aapka azamgarh se prasarit karyakram bahut pasand aaya.kash sabhi rajnitik dal ke shirsha neta ise dekhte aur manan karte.
SIR JI really unique,never thought in that manner.
रविश जी
अरविन्द को कम मत आको
कलाकार अरविन्द भी कम नहीं है
उसने भी ऐसे सारे ग्रन्थ पढ़ रखे है
हो सकता है बनारस में कोई चमत्कार न हो लेकिन टककर तो देगा
इक बात और
आज मीडिया में इक खबर फैली की चुनावो के बाद आनंदी पटेल गुजरात की मुख्यमंत्री बनेगी और अमित शाह पीएमओ में
ये रास्ता बनारस से जायेगा
मोदी बनारस छोड़ देंगे और शाह समलेंगे
भैया जी मुझे तो ये अरविंद का खौफ लग रहा ही
ये थेओरी ऐसे ही न फैलाई जा रही है
लेख हमेशा की तरह बढ़िया ही था लेकिन एगो नया बात समझ में आया की " रवीश जी अंग्रेजी की किताब भी अब (समझ -समझ के ) पढ़ने लगे हैं । । उनका Twitter account का परिचय देख कर मैं थोड़ा confuse था ... Anyway अच्छा लगा - जमाने के साथ साथ चलना है ...हाहाहाहाहाहा
लेख हमेशा की तरह बढ़िया ही था लेकिन एगो नया बात समझ में आया की " रवीश जी अंग्रेजी की किताब भी अब (समझ -समझ के ) पढ़ने लगे हैं । । उनका Twitter account का परिचय देख कर मैं थोड़ा confuse था ... Anyway अच्छा लगा - जमाने के साथ साथ चलना है ...हाहाहाहाहाहा
सच है!
कोई सपना बेच रहा है और कोई भय बेच रहा है.
मीडिया की हालत तो और भी बुरी है. वो तो खरीद भी रहा है-बेच भी रहा है. खबरों में जिनसे ऐतराज़ है उनके ही विज्ञापन बजा रहे हैं. खैर, जब "नैतिकता से पेट नहीं भरता" का सिद्धांत ही अपनाये बैठे हैं सब तो इतना ढोल पीट के क्या फायदा.
और भले अमेरिकी-ओबामा ने अपना प्रचार करके झूठ फैलाया होगा किन्तु क्या भारत में जो समस्याएँ (बेरोज़गारी,भ्रष्टाचार,महंगाई....) हैं वो सिर्फ हवाबाज़ी है? कुछ तो ज़रूर है ना जो लोगो दे दिलों में सुलग रहा है? सब कुछ एयरय में ही नहीं न होता है! :-)
और हाँ, हम हिंदी वालों के लिए ये किताब हिंदी में है उपलब्ध है क्या? कब तक चाणक्य-निति से काम चलाएंगे! खैर, ज़वाब नहीं देंगे तब भी.... ज़वाब का इंतज़ार रहेगा!
आपका-
दर्शक
मित्रो,नदियो को जोड़ा जाने वाला है,अब आप नौकायान करेंगे मित्रो,हम आपके घर तक गंगा को लाएँगे और आपको नौका मे उठाकर बैठाने के लिए सेना की मदद भी लेंगे|मित्रो आपको जानकर् आपको खुशी होगी कि यही काम हम पिछले पंद्रह वर्षो से करते आ रहे है|
मित्रो, हम बुलेट ट्रेन चलाएँगे जो की आपको चंद्रमा पर तीन घंटो मे पहुँचाएगी| चंद्रमा पर आपको दो दिन और तीन रात बिताने की मुफ़्त सेवा सुरू की जाएगी| सोचो मित्रो सोचो...........
मित्रो अब किसी को किसान बनने की ज़रूरत नही है हम सबको इंजिनियर और डॉक्टर बनाएँगे और सारा समान लैब और फैक्टरी मे तैयार होगा मित्रो और आपको इसी बुलेट ट्रेन से डिलीवेरी दी जाएगी|
मित्रो हम आपकी बात सीधे पाकिस्तान,चीन और अमेरिका से कराने के लिए संकल्पित है| आप कश्मीर के साथ साथ लाहौर भी माँग लेना, हम उधर नौकायान पर चलेंगे|
हम आपको वाइ फ़ाई से बिजली देंगे मित्रो आपके मोबाइल, कंप्यूटर को बिना तार के बिजली पहुचाएँगे| आप जाए जहाँ, बिजली पहुचे वहाँ...........
मित्रो हमने रोबोट जापान से आयात कर लिया है आपका सारा कम वही कर दिया करेगा| उसके बाद हम और आप बैठकर 3D मे बाते करेंगे|
मित्रो सोच रहा हूँ कि कुछ दिनो के बाद देश का कमान अंबानी जैसे लोगो को दे देगे इससे दो फ़ायदे है कि उपर वाले सारे काम भी हो जाएगा और हम और आप चाय पर बैठकर दिनभर चर्चा करेंगे|
लेकिन उससे पहले आपसे दो चीज़ माँगता हूँ| १- लोहा २. वोट
अबकी बार ............ सरकार| हर हर.............. हर हर...................... हर हर............................
रवीश जी ,हमारी राजनीतिक पार्टीयाँ जब विपक्ष में होती हैं तो डराती हैं और जब सत्ता में आ जाती हैं तो सब जो थोडा बहुत करेंगी उसी को अहसान जता कर अगले पांच साल चिलाती रहती हैं
सब कुछ उन डॉक्टरों की तरह कर रहीं हैं जो मरीज को उतना ही ठीक करेंगी की उसका भी काम चले और उन्कभी नुक्सान न हो ।:(
उत्तम अति उत्तम...
कोई कमेंट न करने की सोचे था लेकिन मन की बात पढ़कर रोक नहीं सका
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