जागता हूँ कि उसकी नींद महफ़ूज़ रहे

नींद नहीं आ रही है । मेरे भीतर का पिता जाग रहा है । दोस्त बनकर फ़ैसला करना और पिता की तरह उस फ़ैसले को लेकर आशंकित होना अलग है । पर वो तो मुझे भाव ही नहीं दे रही है । उसे मतलब ही नहीं कि मैं ज़रा कमज़ोर हूँ । उसकी निगाह सिर्फ मौज मस्ती की संभावनाओं पर टिकी है । मेरी और नाॅयना की ग़ैर मौजूदगी में रात भर जागने और न जाने क्या क्या करने की सोच रही है । नाॅयना उसके सामान को इस तरीके से बाँध चुकी है कि जब वो खोलेगी तो लगेगा कि मम्मा पास में हैं । जैसे ही उसे किसी चीज़ की ज़रूरत होगी मम्मा लेकर हाज़िर । उसने उसके सामान के साथ अपना पूरा वक्त पैक कर दिया है । दवा कब लेनी है, कहाँ रूमाल है और भूख लगने पर क्या खाना है । क्या करें पहली बार बेटी दूर जा रही है । स्कूल ट्रिप पर । 

दस साल में यह पहला मौक़ा है जब बेटी दो दिनों के लिए हमारे घर से बाहर जा रही है । घर और शहर दोनों से । मैंने  इजाज़त दी या उसने ले ली कुछ याद नहीं आ रहा । पाँच दिनों से उसे छेड़ रहा था कि मैंने भी उसी होटल में कमरा ले लिया है । चुपचाप देखता रहूँगा । वो उलझती रही कि पापा मेरी लाइफ़ में मत घुसो । तुम बिल्कुल ब्वाय की तरह विहेव मत करो । हा हा । मैं अपनी चिन्ताओं को क्यों साये की तरह पीछा करने को कह रहा हूँ । 

स्पेस हम भी माँगते थे अपने माता पिता से । हमारे बच्चे भी हमसे माँगते हैं । उन्हें मिलना भी चाहिए और मिलता भी है । बल्कि वे ले लेते हैं । बात वो नहीं है । बात इतनी है कि नींद नहीं आ रही है । नज़र वहाँ तक जा रही है कि कैसे सबकुछ अकेले करेगी । अपना ध्यान रखेगी कि नहीं । कहीं चोट न लग जाए । मैं हर जगह मौजूद हूँ जबकि वो अभी गई भी नहीं है । मैं ब्वाय की तरह विहेव कर रहा हूँ या बाप की तरह । पर मैं तो किसी अधिकार के खोने से नहीं जाग रहा । मैं उसकी ग़ैर मौजूदगी के आईने में ख़ुद को नहीं देख पाने के कारण जाग रहा हूँ । मैं खुद ख़ाली हो जाने के डर से जाग रहा हूँ । नाॅयना भी तो जाग रही है । क्यों ? किसी गर्ल की तरह या मम्मी की तरह बिहेव कर रही है । इतनी कमज़ोरियों और घबराहटों के बीच मैं कैसे जी लेता हूँ पता नहीं । बेटी तो कहती है वो अपनी ज़िंदगी जीना चाहती है । इस उम्र में ऐसी बातें । और हम जो उसकी ज़िंदगी जीना चाहते हैं ! उसकी ज़िंदगी ही तो जी रहे हैं । बेटियाँ कभी बाप को बड़ा नहीं होने देती हैं । ख़ुद बड़ी हो जाती हैं । हम बच्चे रह जाते हैं । मैं चुपचाप ब्लाग लिख रहा हूँ । लेकिन नाॅयना क्यों जाग रही हैं । ये स्कूल वाले भी न । 

38 comments:

Roshan said...

fikra mat kijiye ravish ji. Hume lagta hai aap kaafi pahle se akele rahne lage hain ya kaafi mushkilon ka samna kiye hain apne jeevan me aur chahte nahin hain ki aapke bachche koi bhi struggle karen isliye itne ashankit ho jaate hain. Lekin ye baat to maan lijiye aap abhi jitne strong aur deterministic aur stable hain wo aapke struggle ne hi sikhaya hoga. Struggle aur musibat bure nahin hote, bura hota hai musibat se darna ya bhagna. So let her enjoy her life and learn from this great opportunity and have wonderful experiences. Hum to aapke Hum Log ka wait kar rahen hain, bahut dinon se aap nahin aaye na :P

dharmendra kumar said...

neend kaise aayegi....ek Ahikar aur kartavy me fans gye hain......kisi ko Adhikar de rahe hain to kartvy pura nahi kar pa rahe aur kartvy kar rahe hain to Adhikar nahi de pa rahe......aap se sehmat hoon SIR Ji aapka ek Fan mai bhi uljhan me reh ta hoon....pata nahi aap mera ye comment pad payenge ya nahi....so jaiye is raat ka savera bhi aa jayega

विजय रणवीर सिंह said...
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Shashank dalela said...

Ravish Ji, Aap se kabh mulaqat ka mauka to nh mila hai naa aap ko kabhi TV k alwa dekha hai.. lekin jitna aap ko TV par dekha hai us se yahi lagta hai ki aap ek bht samvedansheel insaan hain.. Bacche bade ho jaate hain.. but parents k lie wo hamesha utne hi rehte hain jab 1st day wo is dunia main aate hain... mai bh aap hi ki tarah ek bht chote se city (bharatpur, rajasthan) se hu.. Hindi medium wala.. Parents ne bas apne jeevan mai ham 2 bhai 1 behan ko acchi educatioaan n sanskaar dene mai hi invest kia.. Bansi wale ki kripa se aaj hum 3 no acche settle hain.. ( MAin USA mai INdian IT comp ki taraf se client side aaya hua hun), chota bhai Gurgaon mai Accha kaam kar rh ahi.. dono Delhi University se Engineering Gradutae hain.. sister bh jaipur mai theek-thaak hai.. ek chote kasbe ya shehar aue specially Hindi Medium se aa kar in English Medium walon ki dunia mai ladna padta hai.. but aaj bh hindi nai jo maza aata hai wo kabh Eng channels ya Magezine padne mai nh aata... US mai rehte hue bh hamesha Sirf aur sirf NDTV India hi dekhta hu.. specially Prime Time... ek baar aap se milne ki bht tammna hai.. plz apna Mobile number share kar di jie.. Wats APP par aapse baat kar sakte hai... aap ka prashansak.. Shashank Dalela , shashankdalela@gmail.com. kam se kam E-mail ID hi de diyega.. us par mail karenge to aap kabh na kabh to use padhenge hi...

विजय रणवीर सिंह said...

बेटियाँ कभी बाप को बड़ा नहीं होने देती हैं । ख़ुद बड़ी हो जाती हैं । हम बच्चे रह जाते हैं।
लाजवाब।
वैसे अभी मैं पिता होने के अहसास को जीने क़ी
अवस्था में नहीं आया लेकिन इस मर्म को महसूस जरुर कर रहा हूँ।
उसके उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें।

Adil Khan said...

बे़टियां इत्र की ख़ुशबू हैं- महकती हैं घर के आंगन में...
बेटियां हर्फे उर्दू हैं- पलती हैं तहज़ीब और अदबो सुख़न में...
बेटियां नाजुख़ चिड़ियां हैं- चहकती हैं बाबुल के मन में....
बस इतना ही जानता हूं बेटियों के बारे में, शादीशुदा नहीं हूं ना...अब्बू और भाई को जितना प्यार करते देखा है अपनी बेटियों से- बस उसी के आईने में आपकी बेटी से आपके लगाव को समझने की कोशिश की है अपनी इन पंक्तियों के ज़रिए....

shubham anand said...

आधुनिकता ने बचपन की परिभाषा बदल के रख दी है। मैं अभी छोटा हूँ पर अपना बचपन याद करके अभी भी मजा आ जाता है। संकीर्ण मानसिकता वाले लोगो में भी लिंगभेद को लेकर कितना खुलापन था उसको सोच सोच कर अभी भी अचम्भा होता है। क्या लड़के और क्या लड़कियां, 90 के दशक का लड़कपन 21वीं सदी की आधुनिकता से कही ज्यादा स्वछन्द था। ' माता-पिता की इजाज़त ' आज के आधुनिक समाज का ' SPACE ' हो गया है। ' SPACE ' हर व्यक्ति का वैधानिक अधिकार है।

Unknown said...

बहुत खूब

Unknown said...
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sachin said...

इतने साल हो गए हैं घर से अलग रहते हुए । पर घर मुझसे आग नहीं ही रह पाता। अधूरा सा , कहीं टूटा फूटा ही सही। आज भी अक्सर , जागते समय लगता है माँ यहीं थी। यहीं है । फिर चंद सेकंड में मीलों का सफ़र तय कर खुद को गोल धरती के एक नुकीली कोने में पता हूँ। आँखें खुलने के बाद भी उसके होने का एहसास वहीं बगल में लेटा रहता है। कितनी ही बार अनजाने में, आज तक बाथरूम से खुद को आवाज़ देता हुआ सुनता हूँ -अरे ! ज़रा तौलिया दे देना अंदर। मैं भूल गया। " नहीं, मैं नहीं भूला। कोई कुछ नहीं भूलता है। इसलिए कभी ये मुँह से बाहर नहीं निकलता। कभी तो जान भूझकर अनजान बनता हूँ। ये सच होगा कि 'बेटियाँ कभी बाप को बड़ा नहीं होने देती हैं । ख़ुद बड़ी हो जाती हैं ।' पर ये भी सच है कि बड़े न होने देना का कारण खुद को उनकी आँखों में हमेशा बच्चा बना देखना भी है। हाँ, एक उम्र ज़रूर आती है - सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम टाइप- जब सारे खून के रिश्ते, अपने ही खून के प्यासे लगते हैं। पर 'टीन' के टप्पर से ज़िन्दगी जैसे ही उड़ाकर ले जाती है, माँ बाप का सहारा बहुत याद आता है। मुझे हमेशा लगता है हम सबके अंदर एक एक माँ,पिता पुत्र, पुत्री सब एक साथ रहते हैं। हम जब जो नहीं होते उस समय उसे खोजते हैं। उससा होना चाहते हैं।

और हाँ , पिता पुत्री के ऊपर लिखे गए तमाम गानों, पत्रों, निबंधों के ऊपर चढ़कर, आपको एक *tight hug* ।

Ajeet Kumar said...

मोबाइल ले जाने की इजाजत है या नहीं ट्रिप पर ?

amrita said...

क्यूंकि बेटी है न, इसलिए जिंदगी है.......
आप ही ने लिखा था एकबार....

Unknown said...

meri beti 12 year ki hai .ghar par mai use kitchen me simple works like pani garam karna ya bread sekna aadi nhi karane deti ,khud hi mai kar deti hu .man me dar bna rahata hai .aise hi silne v katne ke kam dangerous lagta hai . lekin jab school me craft me stiching karna hua to wah aaram me kar leti hai .niddle kai bar chubha bhi .ghar par mai usako me ye sab karne hi nhi deti .man aakanshao se ghir jata hai .bachche bade to ho jate hai ,par humari najaro me wo hamesha chhote hi rahte hai .picnic par bhejte huye mobile silent karake bag me rakh dete thi ,school ki taraf se manahi hote huye bhi.beti choti thi aur humdono ki chintit cheharo ko dekh kar wo mobile rakh leti thi .itna risk to humlog le hi lete the ,ye us dar se kam tha .par ab saph mna kar deti hai ."mummy, maim manage kar lungi"kahati to hai ,par lagta hai jaise kuchh btana chahti hai .jab KG me school me jate samay wo rone lagti thi .wapas ghar aate samay behad kush ,tab wo dhire dhire 2-3 hours ko manage karna sikha .phir full day (picnic)aur 2-5 days(school trip).aur badi hogi tab apni jindgi ,bad me meri bhi

Atulavach said...

बहुत भाग्यवान है वो जिनकी बेटियाँ है। ज्यादा लगाव रहता है उनका माँ पिता से।मेरे मुस्टंडे तो कब परमिशन लेते है पता ही नहीं। पूछने पर "बाबा -दादी " वाला चेक एनकैश कर लेते है। हम दम्पति-द्वव अपना मुँह लेकर बैठ जाते हैं। आज कल बेटियाँ ज्यादा ख्याल रखती है।

Unknown said...

meri beti 12 year ki hai .ghar par mai use kitchen me simple works like pani garam karna ya bread sekna aadi nhi karane deti ,khud hi mai kar deti hu .man me dar bna rahata hai .aise hi silne v katne ke kam dangerous lagta hai . lekin jab school me craft me stiching karna hua to wah aaram me kar leti hai .niddle kai bar chubha bhi .ghar par mai usako me ye sab karne hi nhi deti .man aakanshao se ghir jata hai .bachche bade to ho jate hai ,par humari najaro me wo hamesha chhote hi rahte hai .picnic par bhejte huye mobile silent karake bag me rakh dete thi ,school ki taraf se manahi hote huye bhi.beti choti thi aur humdono ki chintit cheharo ko dekh kar wo mobile rakh leti thi .itna risk to humlog le hi lete the ,ye us dar se kam tha .par ab saph mna kar deti hai ."mummy, maim manage kar lungi"kahati to hai ,par lagta hai jaise kuchh btana chahti hai .jab KG me school me jate samay wo rone lagti thi .wapas ghar aate samay behad kush ,tab wo dhire dhire 2-3 hours ko manage karna sikha .phir full day (picnic)aur 2-5 days(school trip).aur badi hogi tab apni jindgi ,bad me meri bhi

Unknown said...

बेटियाँ कभी बाप को बड़ा नहीं होने देती हैं । ख़ुद बड़ी हो जाती हैं । हम बच्चे रह जाते हैं ।very emotional..

Vikram Pratap Singh said...

Bahut umda!!! Sabhd shilpi hai aap chintaye jahir hai.

Vikram Pratap Singh said...

Sahi baat

Vidya said...

Its good see that fathers worry so much about their daughters. Wish all parents had the same affection towards their daughters, our country will be a better place for the girl child.
Your remark on prime time about politics-mistakes-girlfriends was in bad taste and was wondering whether you will still continue to have the same view when your daughter grows up. God forbid!

pragati sinha said...

मुझे याद है जब मैं स्कूल ट्रिप पर जा रही तो पापा कितने चिंतित थे. मुझे छोड़ने के लिए मेरा पूरा परिवार आया था स्टेशन पर. मेरा लगेज पापा ला रहे थे पर मैंने ज़िद कि के अपना सामान मैं खुद उठाऊंगी. पापा को ये दिखाना चाहती थी के मैं अपना ख्याल खुद रख सकती हूँ, आप बेकार में इतनी फ़िक्र कर रहे हैं. इस चक्कर में मेरा हाथ छिल गया. ट्रैन बस चलने ही वाली थी के पापा दवा लेने चले गए. मैं उनसे मिले बिना ट्रैन पर बैठ गयी. तभी देखा के पापा प्लेटफार्म पर दौड़ते हुए आ रहे हैं, मुझे दवा देने क लिए. मैं उसी वक़्त समझ गयी थी के पापा मुझे रोज़ फ़ोन करने वाले हैं.
पर हुआ ठीक उल्टा. मैं ही हर रोज़ पापा को फ़ोन करके परेशां करती थी. जब ट्रिप से सही सलामत लौटी तो पापा कि ख़ुशी देखने लायक थी.

Shashank dalela said...

Thanks Ravish ji. Betiyon hamesha mummy se jyada Papa se attach hoti hain.. Papa hamesha har bacche k Super Hero hote hain.. Aap ki chutki ab badi ho rh hain. bhagwaan hamesha aisa hi pyar hindustan k har ghar mai de..

Unknown said...

Kisi bhi situation ko itni khoobsurati se likhte hai aap ki wo special ho jati hain.Bacchon ko to pata bhi nahi hota ki hum parents ke andar kya kya feelings umar rahi hai.

You are just awesome.

Unknown said...

Lajawab Ravish Ji Bachay kitnay bhi bare ho jayn maa bap ki nazar may hamaysha chote hai rahte hain yad kijya apna bacpan jab hamre Abbi Ammi hum logon ko bachpan may kahi jane per isi tarah nasihat our pareshan rahte thay tu hum log irritating feel kartay thay tab yah samajh hi nahi tha ki yah unka peyar hai per ab is bat ka ehsas hota hai

Suchak said...

शायद मम्मी का यही लगाव था जिसने मुझे १५ मिनट भी डेल्ही रुकने नहीं दिया था

प्रवीण पाण्डेय said...

जाने दें, आकाश दें, उन्हें भी उड़ना है।

Pramod said...

''....नींद नहीं आ रही है । मेरे भीतर का पिता जाग रहा है ।....पहली बार बेटी दूर जा रही है । स्कूल ट्रिप पर . मैंने इजाज़त दी या उसने ले ली कुछ याद नहीं आ रहा । स्पेस हम भी माँगते थे अपने माता पिता से । हमारे बच्चे भी हमसे माँगते हैं । …मैं ब्वाय की तरह विहेव कर रहा हूँ या बाप की तरह । .... बेटियाँ कभी बाप को बड़ा नहीं होने देती हैं । ''
...काहे बिन सून अंगनवा ए बाबा
काहे बिन सून दुअरवा ए बाबा ,
काहे बिन पोखरा तोहार ?
तुहरे बिन सून अंगनवा ए बेटी
सिर्फ दो दिन के लिए बेटी जा रही है .... और आँखों में नींद नहीं !
पापा आते हैं , घर भर जाता है ! बेटी बिना आँगन सूना लगता है। मेरी भी ''दो बेटियां '' हैं। जी, उन्हें अभी ही अहसास हो गया है -कि वे 'दो बेटियाँ' हैं। दो बेटे नहीं। हर जगह हमें मिलने वाली ''सहानुभूति '' --दोनों बेटी हैं ? ने उन्हें बचपने में बोध करा दिया है कि वे दो बेटियां हैं! ढाई साल की बेटी चिढ़ाने लगी है .... पापा मैं छोटी से बड़ी हो गयी , क्यों?
साढ़े पांच साल की बेटी आर्या मैं बेटा नहीं , बेटी हूँ। लड़कवा नहीं लड़की हूँ। कहती है। या दिन भर दुनिया भर के अनोखे सवाल करती है। बेटे अच्छे होते हैं या बेटी ?
बेटी ऐसे ही बड़ी होती जाती है , पापा छोटे होते जाते हैं !

Unknown said...

mai to pichhe pichhe trip per chali bhi gai thi bhopal se agra,lekin dusare hotel me ruki aur beta ko pata bhi nahi tha.lekin jane ka koi fayda nahi hua.beta ko waha fever ho gai aur school wale hame bataye bhi nahi.tab se mai kabhi beta ko trip per nahi bheji.

Arti said...

sir apke jaise pita hi apni betiyo ki sbse bdi TAAKAT hote h..mere papa mere hero h aur mera vishwas h ki unka sath ho to wo sb kuch sambhav h jo man chahta h...hr pal surakshit mehsus krti h betiya apne pita k saanidhya me..:) tahe dil se shukriya.. apke is lekh k dwara apki bhawnaye jankr apke prati samman aur bdh gya..:)

Unknown said...

यकीन मानिए न केवल आप और भाभी जी जाग रहे हैं लेकिन बिटिया भी जाग रही है । वो सजग है खातिर रखिये ।

Anonymous said...

Ravishiji meri bhi 3.5 sal ki beti hai, har kam karte hue us par nazar rakhni padti hai .Mujhse kahti hai" Mi koi TV nahi hu ki sala din mujhe dekhte rahti ho. Uska vidrohi tewar aacha lagta hai par man hi man ghabrati bhi hu

jitendra pandey said...

Aapo to khub chhutti mare hain ... chaliye ab ladli ki baari hai... SNEH

Unknown said...

वाह!ना जाने कितने माँ बाप के दिल की भावनाओं को कह डाला, आपने । हमें अपनी बिटिया का स्कूल का पहला दिन आज तक याद है । फिर जब पहली बार दिल्ली पी. जी.में छोड़ा था । लेकिन, हमारा कसूर नहीं, हमारे माता पिता हर रोज़ फोन पर हमारी ख़ैरियत पूछते हैं । यही जीवन है ।

Unknown said...

So emotional sir....

Unknown said...

So emotional sir....

Unknown said...

Damn good

Unknown said...

Damn good

Unknown said...

wooow..ravish ji me her roj apke show dekhta hun..pehli bar apke blogs padh raha hun..wo vi facebook pe kisi aap k supporter ne share kiya tha....me a story mere doston ko sunane wala hun...ab unke response me vi mujhe wooow sun na hai..,

Avnish Chandra Suman said...

बेटियाँ कभी बाप को बड़ा नहीं होने देती हैं । ख़ुद बड़ी हो जाती हैं । हम बच्चे रह जाते हैं..
yeh line padh kar..pata nhi kyu daddy se sorry bolne ka man krta hai.... thank you ravish ji