अपार्टमेंट के गेट को सज़ा कर जनाब ने अपने घर के दरवाज़े को बाहर से बढ़ा दिया । अपना घर को होता नहीं । एक के ऊपर एक सौ घर होते हैं । दरवाज़ा और गेट का फ़ासला और फ़र्क यहाँ पता नहीं चलता । अपनी कोठी होती तो गेट की सजावट करते ही । गेट से होकर ही दरवाज़े तक पहुँचते । पर
अपार्टमेंट में सिर्फ दरवाज़ा अपना होता है । गेट सबका अपना होता है । आज फूलों से सज़ा कर सज्जन ने एक दिन के लिए गेट को अपना बनाया है । ताकी गेट से ही अपनेपन का अहसास हो सके । शुक्रिया सोनल । यही नाम लिखा था फूलों से सजी कार पर । कोई मुंबई वाली आई हैं । स्वागत ।
19 comments:
ससुराल गेंदा फूल !
वाह पब्लिसिटी
आह पब्लिसिटी
:)
facebook account close (permanently/temporarily) kar diyaain ya humko apne friend list se dhakel bahar kiye hain? kripya kisi madhyam se bata jarur dijiega ... kumar.ramnish@gmail.com/09886087540
आज के भ्रष्ट्राचार से इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी अछुता नहीं है, आपने भले ही आज जनसंचार में PH.D क्यों न कर रखी हो लेकिन आज का इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो उसी फ्रेशर को नौकरी देता है जिसने जनसंचार में डिप्लोमा इनके द्वारा चालए जा रहे संस्थानों से कर रखा हो .. ऐसे में आप जनसंचार में PH.D करके भले ही कितने रेजिउम इनके ऑफिस में जमा कर दीजिये लेकिन आपका जमा रेजिउम तो इनके द्वारा कूड़ेदान में ही जायेगा क्यों की आपने इनके संस्थान से जनसंचार में डिप्लोमा जो नहीं किया है ..आखिर मीडिया क्यों दे बाहर वालों को नौकरी ? क्योंकि इन्हें तो आपनी जनसंचार की दुकान खोल कर पैसा जो कमाना है .आज यही कारण है की देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में योग्य पत्रकारों की कमी है. देश में कोई इलेक्ट्रोनिक मीडिया का संगठन पत्रकारों की भर्ती करने के लिए किसी परीक्षा तक का आयोजन भी नहीं करता जैसा की देश में अन्य नामी-गिरामी मल्टी नेशनल कंपनियाँ अपने कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करती है. यह महाबेशर्म इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सिर्फ अपनी पत्रकारिता संस्थान की दुकान चलाने के लिए ही लाखों की फीस लेकर सिर्फ पत्रकारिता के डिप्लोमा कोर्स के लिए ही परीक्षा का आयोजन कर रहा है. आज यही कारण है कि सिर्फ चेहरा देकर ही ऐसी-ऐसी महिला न्यूज़ रीडर बैठा दी जाती है जिन्हें हमारे देश के उपराष्ट्रपति के बारे में यह तक नहीं मालूम होता की उस पद के लिए देश में चुनाव कैसे होता है? आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के गिरते हुए स्तर पर प्रेस कौसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी काफी कुछ कह चुके है लेकिन ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुधरने का नाम ही नहीं लेता ….
देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
Shukra hai Bahuria ke aane kee khusi abhi bachi hue hai. Yeh silsila yun hee chalta rahe...
फेसबुक पर आपकी फ्रेंड लिस्ट में नहीं हूँ पर पिछले कुछ समय से फेसबुक पर आपकी सक्रियता का साक्षी रहा हूँ , भदेस नुकीले स्टेटस अपडेट , कमेंटों का मुरीद !
आपकी कमी खल रही है वंहा, लोगो के इनबॉक्स मैसेजेस,फ्रेंड रिक्वेस्ट आदि आदि से तंग हो तो चाहे अन्य सारे फंक्शन लाक कर दे वंहा पर अपने छोटे छोटे स्टेटस अप्डेट डालते रहे , पढ़ना अच्छा लगता है आपको, आप उन चंद शख्सियतों में शामिल है जिनसे कोई नाता न होने के बाद भी जिनके पेज पर जाकर रोज एक नजर मारना अच्छा लगता है !
बाकि तो जो है सो हइये है !
इससे याद आया, बचपन में दादी के साथ जानकी मंदिर जाती थी तब लम्बे घूँघट में नयी दुल्हन को देखकर मेरा मन मचल जाता था। एक-एक कर सारी दुल्हनों के घूँघट में झांककर देखती थी। और मैं इतनी प्यारी बच्ची थी कि ऐसी शरारत पर कोई मना भी नहीं करता था। :P
नयकी कनिया को देखने का क्रेज़ आज भी वैसा ही है, इसलिए मुझे सजावट से ज्यादा आपकी सोसाइटी की नयी दुल्हन सोनल को देखने का मन कर रहा है.. बम्बई वाली :))
Congratulations, Sonal. :) May you live a peaceful and happy life.
नवागन्तुका का स्वागत करें।
कभी अमरीका आएँ और Dallas का चक्कर लगे तो बताइएगा औटोगृाफ लेना है । बस।
mumbai ki sonal ka to swagat par hum delhi walon ko kejriwal ne to HAWA BAN HARDE bata kar CHUHA KI LERHI khila diya re dipua
Anath Kar gaye hume Facebook pe? Chodhh gaye hume. :'(
Anath Kar gaye hume Facebook pe? Chodhh gaye hume. :'(
कभी कभी मेरे ज़ेहन में ये बात क्यूँ खटकती है कि सरल होना भी अपने आप में कितना कठिन है, यदि किसी के व्यक्तित्व में सरलपन आजाये तो कितना बेहतर होगा,
ये बात मेरे ज़ेहन में आती है कि रवीश जी आपमें मुझे वो सरलता का बोध जान पड़ता है किन्तु ये तो मेरा अपना अनुभव मुझे आपके व्यक्तित्व के बारे में बतलाता है लेकिन इस बात कि सत्यता को तो आप ही सिद्ध कर सकते हैं कि इस बात में कितने प्रतिशत सच्चाई है ?
आशावादी इंसान होने के नाते मै आपसे उत्तर कि आशा करता हूँ।
नई नवेली घूँघट में लजाती शर्माती दुल्हन !
नई नवेली घूँघट में लजाती शर्माती दुल्हन !
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