रिपोर्ट में कुछ प्रसंग है कि कैसे इन अस्सी लोगों को भुला दिया गया । इनके परपोते परनाती प्रयास करते रहे कि किसी तरह इनकी स्मृति बची रह जाए । ऐसे ही एक शख़्स धर्मवीर पालीवाल जी की याद आ गई । सोनीपत से मिलने आए थे । आँखों में आँसू लिये कि राष्ट्र अपने सेनानियों के प्रति कितना कृतध्न हो सकता है । पालीवाली जी हरियाणा के कई स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार को हक़ दिलाने के लिए प्रयासरत हैं ।
पालीवाल जी ने बताया कि पंजाब जब हरियाणा के साथ बँटा तो बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम नई हरियाणा सरकार ने शामिल नहीं किये । कइयों के नाम संयुक्त पंजाब की सूची में हैं मगर नए राज्य के ज़िलाधिकारियों ने उनके नाम काट दिये । कहा कि इनके नाम नहीं है । नतीजा यह हुआ कि उन्हें पेंशन नहीं मिली । बंद हो गई । ये लोग जब देश के लिए जेल में जवानी काट रहे थे तब इनके बच्चे शिक्षा से दूर रह गए । कई आज ठेले पर सब्ज़ी फल बेचते हैं । पालीवाल जी ने बताया कि भूपेंद्र हुड्डा के पिता जी जो संविधान सभा के सदस्य थे एक स्वतंत्रता सेनानी ( नाम भूल गया ) के साथ काम करते थे । हुड्डा ने अपने पिता के नाम पर तो रोहतक में कोई स्मृति पार्क बनवा दिया है मगर उस स्वतंत्रता सेनानी का परिवार इसलिए बर्बाद और गुमनाम रह गया क्योंकि उन्होंने मंत्री बनने के नेहरू को प्रस्ताव को ठुकरा दिया । यहाँ तक कि जब उनके बेटे को बिड़ला ने नौकरी दी तो यह कह कर मना कर दिया कि इसलिए जेल नहीं गया था ।
धर्मवीर पालीवाल(94-16-105494) उन परिवारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं । दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना देते रहते हैं । इस धरने में कई बड़े नेता भी आते हैं । हमारे जैसे पत्रकार या मीडिया कभी नहीं जाता । उन्होंने एक और बात बताईँ जिसे सुनकर सन्न रह गया । उन्होंने बताया कि माउंटबेटन जाते जाते ब्रिटिश हुकूमत के वफ़ादारों को 'जंगी इनाम' देने का वायदा कर गए । तीन पीढ़ी तक । पालीवाल जी ने जंगी इनाम का काग़ज़ भी दिखाया और एक शख़्स का बैंक खाता भी जिसके परिवार को तीसरी पीढ़ी तक इनाम मिला । सुनकर सर शर्म से झुक गया ।
मैंने कहा कि आप ये बात फ़ोन पर बता सकते थे । पाँच मिनट की मुलाक़ात के लिए क्यों आए । इस बार वे रोने लगे । कहा कि बेटा मिलकर बताने का अपना फ़र्ज पूरा करने आया था । तुम मुंबई भी भेजोगे तो चला जाऊँगा । जिस शहर का हूँ वहाँ भी ये ख़बर नहीं छपती है । गृहमंत्री से लेकर नेता इधर से उधर घुमाते रहते हैं । पत्रकार चुप रह जाते हैं । पढ़ कर बहुत बुरा लगे तो धर्मवीर पालीवाल को फ़ोन कर लीजियेगा । इसीलिए कहता हूँ कि ये डिबेट टीवी दो नेताओं का थर्ड क्लास प्रोपैगैंडा पूरा करता है । ज़मीन की रिपोर्ट और समाज की सच्चाई छूट जाती है । यही नुक़सान है । टीवी ने ख़बरें दिखा कर नेताओं की बोलती बंद करना छोड़ अपना माइक उन्हें थमा दिया है कि जो बोलना है बोलो । माडल माडल बोलो । किसने देखा है । सुन लो बस । मूर्ख जनमत ।
20 comments:
Sir , Aaj Congress-BJP - Sardar ke nam ke liye ladate rahete hai lekin kisi ne bhi unki beti - Maniben kee Hal chal nahi lee
Woh bhi 1 Swatantra senani thi , woh saradr patel ke death ke bad sardar patel kee yaad aaane par woh Sardar patel memorial me jaya karati thi ..par rikshaw ke leye paise na hone se unhone kuch time bad waha nahi ja saki ( Read this story somewhere)
aakhir ki 4 line me aapki sari peeda likh di...iss mahaul me bhi apni baat majbooti se rakhna nishpakshta aur vishwashniyta banaye rakhna koi chhoti baat nahi hai...yahi karan hai ke log aapka itna samman karte hai kahi nahi kahi logo ko bhi yeh maloom hai...bas isko barkaraar rakhna...baki to jo ek ummeed ki kiran Dilli me dikhi thi us Abhimanyu ko jis tarah se khel ke niyam badal kar chakrvyuh me charo taraf se ghera gaya hai shayad hi hai us vyuh ko bheda ja sake.
दलालों और पाखंडियों से लबरेज यह सत्ता संरचना इनकी सुध लेगी?
Sar aap chutti se laut kar ek hum log to ban hi lijie paliwal ji k sath.. Hum log intezar karenge is kahani k ravishikaran ka.. :)
रवीश जी आप सिर्फ सवाल उठाइए, समाधान मत दीजियेगा। शायद समाधान सुझाने वालों के पास NDTV से भी बेहतर और असरदार प्लेटफार्म उपलब्ध होगा।
Mujhe aaj bhi lagta hai ki hamara desh ke liye prem tv janit hai warna hum statue se khush nahi hote ... kya prem h bhi ? Pata nahi ? Khed....
Kuch kijiye inke liye
सवाल उठाते चलो, जिम्मेदारियां निभाते चलो
पहली दो लाइन पढ़कर ही बीच में पोस्ट छोड़कर एक्सप्रेस कि साईट छानने लगा। गज़ब की कहानी लगी। कौन थे वो लोग ? किस परिस्थिति में छोड़कर आये होंगे सब ? क्या चल रहा होगा उनके भीतर ? राष्ट्र के भविष्य के लिए सब कुछ भूलकर, अपने लिए कैसा इतिहास सोचा होगा उन्होंने ? यात्रा के दौरान कुछ तो अनुभवों ने उन्हें छुआ होगा। बदला होगा। कहीं तो लिखा होगा ये सब। आज़ादी के बाद क्या कुछ गुज़रता होगा, जब कभी गुज़रते होंगे उस मार्च के उल्लेखों से ?
इन मूर्तियों की बात कोई अपने भाषण में कोई नहीं करेगा। ना ही उनके समर्थक। किया भी तो अपनी ही पीठ थपथपाने के लिए कि मैंने करवाया ये सब।
सूचक, ये अनेकडोट यहाँ शेयर करने के लिए शुक्रिया।
अपनों को सताने में हमारा कोई सानी नहीं। आगत पीढ़ियाँ यही बर्ताव हमारे साथ भी करेंगी।
आप को कुछ करना भी चाहिए। अगर आप चाहो तो कर सकते है। शौके दीदार गर है तो नजर पैदा कर
ये स्रिफ नौकरी पाने के लिए नहीं कही थी आपसे आपके मास्टर शाहब ने
मुझे पता है आप कर सकते है। अगर चाहो तो।
बाकि आपकी मर्जी।
पिछले कुछ ब्लॉग्स में आपने जो मुद्दे उठाये हैं उससे आप की इज्जत हमारी नज़र में और बढ़ गयी हैं। एहसास होता हैं है कि आशा की एक और किरण ज्वलितहो गयीं है
मायूसी रहती है कि आप कमेंट्स तो पढ़ते नहीं और न ही कोई कमेंट पर उत्तर देते है।
निराशा में " दूसरा शेर जिसे आपके उत्तर के बाद दूंगा ,सोचा था" पहले ही बक रहा हुँ
Suna tha kahin, aa raha hai akhlaq ka gadar
Shiriya barsengi, ja raha hai magroor sa badar
Dekh raha abhi, kam khayali ka naya seher
Khaksaro ka kya hum to dar badar dar badar
आप तो उन महान स्वतंत्रता सेनानियों की बात कर रहे हैं जिन्हें कोई नहीं जनता। लेकिन हमारे यहाँ तो भगत सिंह जैसे जानेमाने नाम को भी स्वतंत्रता सेनानी मनाने से इंकार कर दिया गया है। तो वाकियों की क्या बिसात।
दरअसल मैं आपका बहुत बड़ा प्रशंशक हूँ , मुझे ये भी पता है आप मुझे रिप्लाई नहीं करेंगे , लेकिन ये आप क्यूँ ढोल पिटते हैं की आप का दिल कहीं और हैं और शारीर कही और ! अगर आपको इतना ही शौक है तो क्यूँ नहीं ग्राउंड रिपोर्टिंग करते हैं ! क्या आप भी उन्ही एडिटर्स लोग में हैं जिनको पी साइनाथ गरियाते हैं ? कम से कम दूर से तो हमें ऐसा ही दीखता है ! व्यंग मार्के ९ बजे आप क्या ही उखड लोगे साब ! अपनी काबिलियत को उनका सहारा बनाओ आप उनके लिए जिनकी कोई नहीं सुनता ! आप का प्राइम टाइम वेदांत द्वारा प्रायोजित है , आप खाक कभी नियमगिरि का मुद्दा उठाएंगे ! रहने दीजिये सर ये ढोंग की आप बहुत जबरदस्त एंकर हैं , अगर होंगे भी तो किसके लिए ? जवाब नहीं देना हो ना दें मगर सोचिये तो सही ! इस बाज़ार में इतना भी क्या बिकना !
रवीश जी सबसे पहले तो मेरा नमस्कार!
मुझे आपके दो लेखो ''जंगी इनाम दे दिया पर स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन नहीं'' तथा '' ताकि याद रहे कि सोमेश को किसने मारा'' को पढ़ कर ऐसा लगा कि आप केवल ब्लॉग ही नहीं लिखते और आप न्यूज़ एंकर ही नहीं हैं बल्कि आप का समाज के प्रति सच्चा सरोकार हैं।
आप के लेखक परिचय का टैग लाइन'' हर वक्त कई चीज़ें करने का मन करता है।'' और ''शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर।'' भी सोचने पे मजबूर करता हैं कि शायद समाज के लिए बहुत कुछ करने कि आप कि इक्का हैं।पता नहीं मैं कितना सही हूँ फिर भी आप से मिलना चाहता हूँ।मैं भी पश्चिमी चम्पारण बेतिया का हूँ और मैंने भी जे एन यु में पढ़ाई किया हैं। संजय कुमार सिंह
मुझे आप के लेख'' जंगी इनाम दे दिया पर स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन नहीं'' और'' ताकि याद रहे कि सोमेश को किसने मारा'' पढ़ के ऐसा लगा कि आप केवल न्यूज़ एंकर ही नहीं हैं और आप केवल बलोग ही नहीं लिखते बल्कि आप का समाज के पार्टी एक सच्चा सरोकार हैं।
लेखक परिचय में टैग लाइन'' हर वक्त कई चीज़ें करने का मन करता है।,, तथा ''शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर।'' भी सोचने पे मजबूर करता हैं कि आप समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं.।
पता नहीं में कितना सही हूँ फिर भी पता चला कि आप भी जे एन यु से हैं तब तो आप से मिलने कि इक्छा और बलवती हो गयी।मैं भी बेतिया का हूँ और पेरियार में था आशा करता हूँ कि मिलने का मौका देंगे ।
संजय कुमार सिंह
कितना आसान है न २-४ करोड़ खर्च कर के जरा याद उन्हें भी कर लो ..कुर्बानी ..पटेल जिंदाबाद करना ..और कितना आसान है हमारे लिए खद को देश भक्त कहना ..जब भी किसी सेनानी से या फौजी की विर्रंगना या परिवार से मिलता हूँ शर्म से नजरें झुक जाती है ..और सोचता हूँ क्या कहूँ .. की जो बलिदान आपने दिया था उसे आपका निजी स्वार्थ बताकर साइड कर दिया गया है और अब हर १५ अगस्त २६ जनवरी को सलामी दे ले के इतिश्री हो जाती है ...पर करें भी तो क्या समझ ये नहीं आता ..बिडला की नौकरी न लेने के पीछे जो भाव था वो शायद ही कोई समझ पाए ..इतनी खुद्दारी और फ़र्ज़ अदायगी की हिम्मत कहाँ से लायें इस अर्थशास्त्र में ...उफ़
कितना आसान है न २-४ करोड़ खर्च कर के जरा याद उन्हें भी कर लो ..कुर्बानी ..पटेल जिंदाबाद करना ..और कितना आसान है हमारे लिए खद को देश भक्त कहना ..जब भी किसी सेनानी से या फौजी की विर्रंगना या परिवार से मिलता हूँ शर्म से नजरें झुक जाती है ..और सोचता हूँ क्या कहूँ .. की जो बलिदान आपने दिया था उसे आपका निजी स्वार्थ बताकर साइड कर दिया गया है और अब हर १५ अगस्त २६ जनवरी को सलामी दे ले के इतिश्री हो जाती है ...पर करें भी तो क्या समझ ये नहीं आता ..बिडला की नौकरी न लेने के पीछे जो भाव था वो शायद ही कोई समझ पाए ..इतनी खुद्दारी और फ़र्ज़ अदायगी की हिम्मत कहाँ से लायें इस अर्थशास्त्र में ...उफ़
Ravish Ji, Aap jis bat ko apni peeda ki tarah jahir kar rahe hai, us peeda ko kam karne ke liye kya kar rahe hai? Kuchh nahi. Bahut sare log aapke is reporting se bhavuk hue honge, mai bhi. Lekin sochata koi matalub nahi hai, hamari is kori bhavukta ka. Na to hum kuchh karte, na hi kuchh karana chahte hai.
Hum keval apni farzi samajhdari ya insaniyat dikhane ki koshish karne wale log hai. mai bhi abhi yahi kar raha hoon.
Aap Bazar ka rona rote hi rahte ho, mera bhi yahi dukh hai.
Neta ko, Rajniti ko, System ko gaali hum isliye dete hai ki ye aaj ka fashion hai. Aakhir bazar ke niyam un par bhi to lagoo honge. Hum unse seva ki ummid kyo karte hai?
ख्वाब टूटें या कि बिक जायें....
कीमतें कब वसूल होती हैं....
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