भाषण की कला
न भी
आए लेकिन
भाषण में
बात तो
होनी चाहिए
कि लोग
बात करे।
ऐसा नहीं
कि राहुल
गांधी बोलने
की कला
में कमज़ोर
हैं मगर
उनके भाषणों
को सुनकर
लगता है
कि वे
लोगों से
कम ख़ुद
से ज़्यादा
बात कर
रहे हैं।
ऐसा लगता
है कि
इस चुनाव
में वो
अपनी पार्टी
के लिए
वोट नहीं
मांग रहे
बल्कि लोगों
को बता
रहे हैं
कि वे
अपनी पार्टी
को कैसे
बदलना चाहते
हैं। हर
चुनाव में
नेताओं के
भाषणों की
बात होती
है। चर्चा
होती है।
तुलना होती
है। कई
नेता होते
हैं जो
भाषणों में
उत्तरोत्तर विकास करते जाते हैं।
मगर राहुल
का भाषण
सुनकर लगता
है कि
वे कहीं
ठहर गए
हैं। वे
चुनाव को
अपने आगे
से जाने
देना चाहते
हैं।
जिन लोगों ने
टीवी पर
देहरादून रैली
लाइव देखी
होगी अगर
वे ध्यान
करें तो
बीच बीच
में लोगों
की तस्वीरें
भी आती
थीं। सुननेवालों
के चेहरे
थके से
नजर आ
रहे थे।
उनका राहुल
के भाषण
से कोई
जुड़ाव नहीं
बन पा
रहा था।
राहुल की
बातें इस
चुनाव की
तात्कालिक बातों से जुदा लग
रही थीं।
उनके भाषणों
को सुनकर
लगता है
कि वे
भी जनता
से कटे
हुए हैं।
वे लोगों
की आंख
में आंख
मिलाकर बात
नहीं करते
हैं। जैसे
मोदी करते
हैं। मोदी
अपनी आवाज़
में उतार
चढ़ाव का
भी इस्तमाल
करते हैं।
नाटकीयता किसी
भी भाषण
का अभिन्न
अंग हैं।
राहुल गांधी
की बातें
भले ही
अच्छी हों
लोगों तक
पहुंचने के
ज़रुरी तत्वों
से लैस
नहीं हैं।
मोदी लंबा
बोलते बोलते
अचानक धीमा
बोलने लगते
हैं। जब
धीमा बोलते
हैं तो
माइक के
करीब आ
जाते हैं।
राहुल एक
सुर में
ही एक
पिच में
ही बोलते
जाते हैं।
उनका माइक
इतना खराब
है कि
आवाज़ फटती
है। टीवी
पर गरजती
हुई फटने
लगती है।
मोदी मनोरंजन
भी करते
हैं। राहुल
सिर्फ भाषण
देते हैं।
अच्छा भाषण
वो है
जो देते
हुए बात
करे लोगो
से।
राहुल के भाषणों
के त्वरित
अध्ययन से
लगता है
कि वे
अपने विरोधी
का भाषण
नहीं सुनते
हैं। उन्हें
लगता है
कि वे
मोदी का
नाम ले
लेंगे तो
वे बड़ा
नेता बन
जायेंगे। जबकि
मोदी राहुल
की रैली
को सुनते
हैं। ऐसा
उनके जवाब
से लगता
है। अगर
मोदी की
रैली राहुल
के बाद
होती तो
वे उनके
बोले पर
टिप्पणी कर
मैच में
बदल देते।
राहुल की
रैली बाद
में हुई
उन्होंने मोदी
की रैली
पर कुछ
नहीं कहा।
इसलिए आज
के अखबारों
में
मोदी की रैली
की ही
बातें हैं
राहुल की
नहीं। एक
आरोप लग
सकता है
कि मीडिया
राहुल को
कम दिखाता
है या
मोदी के
साथ पक्षपात
करता है।
एक मिनट
के लिए
इस आरोप
को मान
भी लें
तो क्या
राहुल की
बातों में
ऐसा कुछ
है जो
भावनात्मक से लेकर तथ्यात्मक कलाबाज़ियों
की गुज़ाइश
पैदा करता
है। राहुल
यह सोचते
हैं कि
वे अपनी
बात कहेंगे।
अपनी सरकार
की उपलब्धि
गिनायेंगे। अधिकारों की बात करेंगे।
जो विरोधी
कहते हैं
उन पर
कमज़ोर हमले
करेंगे। यह
रणनीति मार्केटिंग
कंपनी की
हो सकती
है राजनीतिक
दल की
नहीं होनी
चाहिए। आपको
जवाब देना
पड़ता है
और सवाल
करना होता
है।
चुनाव में हार
जीत के
लिहाज़ से
नहीं कह
रहा। लेकिन
अच्छा भाषण
चुनावी चर्चाओं
को दिलचस्प
तो बना
ही देता
है। राहुल
के भाषणों
में विविधता
नहीं है।
एकरसता है।
हो सकता
है कि
यह राहुल
की अपनी
राजनीति हो
लेकिन वे
अपनी बात
भी जोरदार
और मनोरंजक
तरीके से
नहीं कहते।
स्वास्थ्य का अधिकार की बात
की। यही
बात मोदी
कहते तो
खबर बन
जाती। मोदी
इसे किस्से
में बदल
देते। ऐसे
पेश करते
जैसे उन्होने
पहली बार
सोचा हो।
इसलिए राहुल
गांधी की
रैली में
बैठे लोग
उदास दिखते
हैं। इनकी
हताशा से
लगता है
कि वे
राहुल गांधी
की अधिकार
योजनाओं के
कभी लाभार्थी
ही नहीं
रहे। मोदी
होते तो
अपनी रैली
में उन
लोगों को
बुलवाते जिन्हे
मनरेगा से
लाभ मिला
हो। सूचना
अधिकार कार्यकर्ताओं
को बुलाते।
शायद इसी
वजह से
लगता है
कि राहुल
चुनाव नहीं
लड़ रहे।
वे चुनाव
में चुनाव
सुधारों का
प्रचार कर
रहे हैं
जो एक
आम दिनों
में टीवी
का एंकर
या सेमिनारवादी
करता है।
वे सामने
से नहीं
लड़ते। अपने
भाषणों में
जोखिम नहीं
उठाते। मोदी
ने कितनी
गलतियां की
लेकिन उन्होंने
भाषण देना
बंद नहीं
किया। नीतीश
कुमार ने
उनके इतिहासबोध
को तुर्की
वा तुर्की
धज्जी उड़ा
कर रख
दी लेकिन
मोदी रूके
नहीं। वे
बोलते रहे
हैं। तभी
मैंने पिछले
लेख में
कहा था
कि राहुल
जीतने के
लिए चुनाव
नहीं लड़
रहे हैं।
उनकी बातें
सही हो
सकती हैं
मगर वे
चुनाव का
मुद्दा नहीं
हैं। मैं
अक्सर इन
रैलियों के
प्रसारण के
बाद सोशल
मीडिया पर
चेक करता
हूं। मोदी
की रैलियों
पर मज़ाक
ही सही
बात होती
है। आलोचना
ही सही
बात होती
है। आप
आलोचना करें
नहीं कि
उनके समर्थक
तुरंत जाकर
आपके सवालों
को दलाल
वगैरह कह
कर चुप
कराने की
कोशिश करते
हैं। आप
राहुल गांधी
को कुछ
भी बोल
दीजिये उनके
बचाव में
कोई नहीं
आता।
अगर राहुल ने
अपने भाषणों
का अंदाज़
नहीं बदला,
उसमें विविधता
नहीं ला
पाते हैं
तो वे
बस खानापूर्ति
करते हुए
ही नज़र
आएंगे। रैलियां
चुनाव को
मनोरंजक बनाती
हैं। चर्चाओं
का बाज़ार
गरम होता
है। मोदी
हर दिन
नए आइडिया
के साथ
मैदान में
उतर रहे
हैं। पैसा
तो कांग्रेस
भी खर्च
कर रही
है। एक
बात और
है। जब
हवा साथ
नहीं होती
है तो
चर्चा तब
भी नहीं
होती जब
आपकी बात
में दम
हो लेकिन
नेता वो
होता है
जो लड़ते
हुए दिखता
है। अपनी
बात को
चर्चा लायक
बना देता
है भले
ही उसकी
हार तय
हो। कम
से कम
सीधे वार
करने का
साहस तो
होना ही
चाहिए ताकि
कार्यकर्ता तो कम से कम
जोश में
आ जाये।
देहरादून की
रैली में
बैठे कांग्रेस
नेताओं की
उदासीनता और
लुधियाना की
रैली में
मंच बैठे
नेताओं के
चेहरे की
सक्रियता से
आप अंदाज़ा
लगा सकते
हैं। राहुल
गांधी को
अपना वीडियो
चलाकर देखना
चाहिए। रैली
का और
जब वे
किसानों युवाओं
से बुलाकर
बात करते
हैं उसका
भी। आज
जब किसानों
के बीच
उन्हें अनौपचारिक
तरीके से
बोलते देखा
तो लगा
कि यह
दूसरे तरह
का नेता
है। राहुल
को इसे
ही अपनी
ताकत में
बदल देना
चाहिए। मंच
की औपचारिकता
अगर उनका
आत्मविश्वास कमज़ोर करती है तो
उन्हें रैलियों
का रास्ता
छोड़ देना
चाहिए। सड़क
पर घूमते
चलते लोगों
से बात
करना चाहिए।
मंच पर
भी ऐसे
ही पेश
आना चाहिए।
मगर इन
सब बातों
के लिए
देर हो
चुका है।
वे विधानसभा
चुनावों के
दौरान अपनी
भाषण की
कापी ही
पढ़े जा
रहे हैं।
उनका भाषण
बता रहा
है कि
उन्होंने हार
मान ली
है। मोदी
का भाषण
बताता है
कि सबने
उनकी जीत
को स्वीकार
कर लिया
है। भाषण
ज़रूरी रणनीति
नहीं होता
तो कोई
नेता महीनों
गांव गांव
जाकर भाषण
ही क्यों
देता। नतीजा
चाहे कुछ
भी हो
मगर बात
तो याद
करने लायक।
अटल जी
जमाने तक
हारते रहे
मगर अपनी
बातों से
वे हमेशा
विजयी रहे।
कभी कभी
अपने विरोधी
से सीखने
में हर्ज़
नहीं है।
28 comments:
अच्छे वक्ताओं की कमी कोंग्रेस को बहुत दिनों से खल रही हैं , मीडिया savvy प्रवक्ता भी कम है , ये आप जैसे पत्रकार पर हमसे ज्यादा विदित है। तथाकथित नयी पीढ़ी में भी वह भाषा की प्रवाह नहीं दिखती है। ये भी एक कारण हो सकता है ऐसी दुर्दशा का।
Suna tha kahin, aa raha hai akhlaq ka gadar;
Shiriya barsengi, ja raha hai magroor sa badar;
Dekh raha abhi, kam khayali ka naya seher;
Khaksaro ka kya hum to dar badar dar badar;
मुझे पूरा विस्वाश है कि आप हमारे कमेन्ट पढ़ते नहीं हैं , खैर कोई बात नहीं ,लगे रहिए निस्पक्छ होकर,निडर होकर। पूछते रहिए , अपरंपार घाग है ये राजनीतिज्ञ।
सबके अन्दर संवाद की मौलिकता है, उसे ही अपनाना चाहिये।
जो भी हो लेकिन मुझे तो अटलजी के बाद आप के ३ लोग ही अच्छे लगते है बोलते हुए...वो कड़क अरविन्दजी हो, सकुचाये मुस्कराते हुए मनीषजी हो या शालीन गम्भीर योगेन्द्रजी ..मोदी अंकल अटल जी कि नाकामयाब नक़ल करते है..और राहुल ये कौन है भाई...अच्छा अच्छा हम देखेंगे हम देखेगे वाले राजीव अंकल की इटली वाली संतान ...उसे कौन सुनेगा भाई..कोनु और काम नहीं है का
Aaj ka prime time achcha tha....
rashan to modi ji ke bhashan me bhi nahi hota...unke bhashan ka lehja natkiya hota hai jisee logo ki dilchaspi badhti hai...vote badhte hai ya nahi ye to waqt btayega!!!
Rahul Gandhi ke bhashan mein sirf ek hi kami hai woh yeh ki, unhe jhoot ko sach banana nahi aata, Jo rajneeti mein sabse zaruri hota hai.
Ravish ji ..NDTV Prime time chod diyen kya ? ..kya hua ? NDTV se kuch issue ..:)
अल्ला मेहरबान मोदी पहलवान . जे बासे के बीच में बाकि जो है सो तो हईये है.
रवीश जी, मोदी का हमेशा से जनता से प्रत्यक्ष जुड़ाव रहा है। स्वयंसवेक रहे है। लम्बे अरसे से राजनीति में है लोगो की नब्ज पर पकड़ है। सबसे बड़ी बात सीखने की ललक आज भी दिखती है उनमे। दूसरी तरफ राहुल भाई है। जीवन भर उन्ही लोगो से मिले जो केवल और केवल उनकी तारीफ करने वाले थे। अधिकतर शिक्षा-दीक्षा भी घर पर ही हुयी। मुझे लगता है कि शायद ही भारत में उनका कोई ऐसा मित्र हो जो उनके सामने खुल कर बोल पाता होगा। सो मौलिकता कैसे आयेगी ? मोदी का मुकाबला तो दूर की बात है।
नेता की जान व पहचान होता है भाषण । सही कहा आपने रवीश जी, राहुल अपने भाषण में बहुत कच्चे हैं । पर ये कला आपको समय के साथ आती है, आप बैठी जनता को कैसे अपनी तरफ खींचते हैं, सब आपकी कही हुई बात पर और बात भी कैसे कहते हैं, इस पर निर्भर करता है । अगर स्कूल में बच्चों को बिना लय के पढ़ाएगें, वे आपको नहीं सुनेंगे, ताल में ताल मिलाएं, फिर देखें ।
भाजपा वाले तो वैसे भी बहुत अच्छे वक्ता हैं ।
यही भाषण व आपकी भाषा
Ravish ji, Mujhe aapki yeh baat 100% satya lagee ki Rahul Gandhi Modi jike bhashan ka follow up nahi leta aur saara news Modi ke jhholi mein hi aata hai. Rahul ko yeh to adopt karna hi padega warna RaGa koi bajayega nahi..
Merse puchiega to rahul kam se kam genuine to h. Apna ullu to nahi sadh raha dunia bhar ki natkiyta se. Shuru shuru m bada maza ata tha modi ko sun kar.. Dheere dheeree ub sa gya hu.. Gujrat gujrat gujrat..!! Bharat to side term h..
uppar kinhi sahab ne likha tha ki rahul yatharth se dur hain. Main nhi manta ki is desh ki samasyao ko janne samajhne ke lie kisi ke batane ki koi jarurat hai. Har koi apne aap me helpless mehsus karta hai... Kitna bhi kiya jaye kam sa lagta hai.jan jagriti ke bagair kuch na hone ka. Hum baatein banane wale log hain.. Jo dusre ko updesh denge par apne par aaye to side se kat lete hain. Kon padi le wali bat ho jati h. Rajneeti k nam ka to alag hi bhay dikhta hai or agar modi ji jaese do char or bhadkau rajneta ho jayein to ho gya desh ka banta dhar..!! Congress mukt bharat k le to congressiyo ko khtm karna padega na?? Kyuki vichardhara to vichardhara hoti h.. Modi ji ne acha kia hai ki gujrat ki kursi nhi chodi h.. Kam se kam kahin to baithne ke lie hona chahie na 2014 k bad.. Jitna media modi ko jitaya hua h utne sure to wo khud bhi nhi lagte.. Behtar hota gujraat ka hi kaaj sambhalte ache tarike se.. Hum log dogulepan se rubaroo to nhi hote.. Par humse kya hota h vote to is desh ka aam admi vote bank deta hai.. Dekhne wali baat to h ki AAP konsi rajneeti karke vote bank ko rijhati h..
Rahi bat rahul ki to mjhe nahi lagta wo badtameezi wali aarop pratyarop ki rajneeti ko taiyar hai. Wo to apni galtiyan jaan rahe hain ab jakar..!! Apna daman saaf ho tab na kichad uchalein? Par tajjub ki baat hai dusra kaese kichad uchaal ra jab sab ek thali k chatte batte hain...!! Namo namah..
मोदी कहीं न कहीं भाजपा और आरएसएस की प्रस्ठभूमि से सम्बंधित हैं अतैव उन पर इन सब कि झलक है। उनके भाषणों में बाजपेयी जी कि भी झलक इसीलिए दिखाई देती है। उन्होंने संघर्सपूर्ण जीवन व्यतीत किया है और वे इस जगह कठिन परिश्रम से पहुंचे हैं। जबकि राहुल जी को जो मिला है विरासत में मिला है हालांकि परिश्रम वो भी करने मै लगे हैं। अपने व्यक्तित्व कि भी छवि मनुस्य के भाषणों में दिखाई देती है वो इसे किसी से सीखता नहीं है बस स्वभाविक् ही उसमें आती जाती है।
भाषणो से देश का विकास नहीं होने वाला है अपनी देश के प्रति प्रतिस्ठा को अपने आचरण और कर्मो में लाने से ही देश के विकास की घोर सम्भावना की सकती है।
शायद आपने राहुल की कल मैनिफेस्टो के लिए की गयी नौटंकी देखी होगी जिसमें जयराम भी एक पात्र हैं.
राहुल कहते हैं (जयराम की ओर इशारा) "ये हमेशा कहते हैं कि मैं अपने कामों को ठीक से बता नहीं पाता। मैं क्यों बताऊँ?
जयराम- हाँ आपको उन कामों की चर्चा करनी चाहिए।
राहुल- चलो आप बोलते हैं तो कर देता हूँ.
इस पूरे एपिसोड में राहुल और जयराम पदचाप करते हुए जनता से बात कर रहे हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि सब पहले से रिहर्सल किया हुआ है.
बाबरी विध्वंश के समय साध्वी ऋतुम्भ्रा, उमा भारती, मोदी के भाषण के कैसेट कश्मीरी गेट में बिकते थे। लेकिन सबसे ज़्यादा हिट साध्वी ऋतुम्भ्रा के कैसेट थे। लेकिन महिला सशकितकारण का नाम लेने वाली भाजपा ने दोनों महिलाओ को भुला कर मोदी को गले लगाया। उस समय मोदी जी का कम हिट होना उनकी खूबी ही बन गया अन्यथा आज वो भी इन्ही महिलाओ की भांति नेपथ्य में होते।
रविश जी मोदी राजनीती के चेतन भगत हैं जबकि राहुल अरुंधती रॉय बनने की कोशिश कर रहे हैं.मेरे ख्याल से राहुल को अमिश त्रिपाठी वाली इन्निंग्स खेलनी चाहिए थी. किसी भी गंभीर राजनीतिक संवाद(discourse) के लिए आदमी का माज़ी सामने खड़ा होता है और राहुल गाँधी उससे पीछा कैसे छुड़ा सकते हैं.
sir ye aapka AIKIDO hai......yaad hai na aapko .....aapne us din prime time mein bataya tha........abhi tak chalu hai
राहुल गाँधी के नाम की घोषणा उपाध्यक्ष पद के लिए होने के बाद तो जैसे हिंदी और अंग्रेजी चैनलों को मन मांगी मुराद मिल गयी। छुट्टी मनाने गए चैनलो के एंकर तुरंत आपातकालीन स्तिथि में स्टूडियो में वापस आ गए हर कोई डिबेट में लग गए। राहुल गाँधी अब कांग्रेस रैंकिंग में 2 नंबर पर आ गए। क्या राहुल गाँधी अब 2014 के प्रधामंत्री दावेदार होंगे? राहुल गाँधी इस बड़ी भूमिका को कैसे निभाएंगे। कांग्रेस के खिलाफ लोगो के मन में जो एक आक्रोश है उसे कैसे बदलेंगे। हर चैनल का एंकर अपने तर्क से नया वितर्क दे रहा था।
राहुल गाँधी कौन है?
राहुल गाँधी, नेहरू - गाँधी परिवार की सबसे नयी पीढ़ी है। भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए राहुल गाँधी के पास क्या विशेषताए है तो जवाब में आपको मालूम होगा की वो श्री इंदिरा गाँधी के पोते है। नेहरु गाँधी परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही कांग्रेस का मुखिया बनने का क्वालिफिकेशन रखता है। सोनिया गाँधी के बाद राहुल गाँधी दूसरे नंबर के सबसे बड़े कांग्रेसी नेता है ये बात सभी आम आदमी जानते है और उपाध्यक्ष पद के लिए उनके नाम की घोषणा मात्र एक छलावा है।
राहुल गाँधी UP और बिहार में मूकी खा चुके है। यूपी के विधानसभा चुनाव में सोनिया और राहुल की क्षेत्र से कांग्रेस ने सिर्फ दो सीट पे विजय पायी और राहुल गाँधी को राष्ट्रीय नेता बताने वाले ये बात भूल गए की दक्षिण भारत में कई लोग तो राहुल इस नाम को भी नहीं जानते है। राहुल गाँधी कोई नया चमत्कार नहीं करने वाले है। कांग्रेस को फिर से जीत के आने के लिए मेहनत करनी होगी और आम आम आदमी को भरोसा दिलाना होगा की कांग्रेस का हाथ आम आदमी की मदत के लिए है ना की उनके पॉकेट में छेड़ करके पैसे निकलने के लिए।
कमल जी से पूरी तरह सहमत हू , दरसल कभी किसी भी चैनल ने ये मुद्दा उठाया ही नहीं कि क्या गांधी परिवार का सदस्य हो जाना ही भारत जैसे विशाल और विविध देश के प्रधानमंत्री बनने की योग्यता है ?
कभी किसी चैनल ने इस पर बहस नहीं की न ये करेंगे इसीलिये आज
सोशल मीडिया में इन चैनलों को इतनी गालिय मिलती हैं। रही बात मोदी और राहुल जी के तुलना की तो जमीन आसमान का अंतर मोदी के सामने राहुल कहीं नहीं टिकते हैं....अब चुकि मीडिया वाले भी ये ये जानते हैंपर ...चुप क्यों है ये भी जानते हैं
राहुल के भाषण में राशन कम है
राहुल के भाषण में राशन कम है
मेरे मित्र और सोशल मीडिया फॉलोवर हमेशा कहते हैँ कि रवीश कुमार बड़ी चतुराई से एंटी-काँग्रेस और प्रो-बीजेपी ऐजेँडा चला रहा हैँ, लेकिन इस बात पर हमेशा उनसे झगड़ा करता हूँ कि ऐसा नही हैँ। लेकिन कुछ दिन से आपके ब्लॉग्स पढकर लगने लगा हैँ कि वो सही हैँ और मैँ गलत। कुछ दिन से देख रहा हूँ कि आपके ब्लॉग मेँ सिर्फ मोदी का ही गुणगान होता है। खैर ये गलत भी नही हैँ, आपको अपनी निजी पसंद-नापसंद व्यक्त करने का अधिकार हैँ।
कोई बात नहीँ दो अलग अलग विरोधी नेताओँ के समर्थक होने के बावजूद मैँ आपका फैन रहुँगा।
अच्छी तुलना करी है ....मोदी तो मझे हुए (घाघ ) हुए नेता हैं .....झूठ भी विश्वास से बोलते हैं राहुल कच्चे नेता लगते है जिन्हें भाषण से पहले तयारी कराई लगती है .....इस तुलना में नए नेता अरविन्द केजरीवाल को भी शामिल करना करना चाहिए था मोदी और राहुल के बाद उनकी भी रैली थी ....
अच्छी तुलना करी है ....मोदी तो मझे हुए (घाघ ) हुए नेता हैं .....झूठ भी विश्वास से बोलते हैं राहुल कच्चे नेता लगते है जिन्हें भाषण से पहले तयारी कराई लगती है .....इस तुलना में नए नेता अरविन्द केजरीवाल को भी शामिल करना करना चाहिए था मोदी और राहुल के बाद उनकी भी रैली थी ....
राहुल 2014 की पारी हार चुके हैं !
राहुल गाँधी के साथ न जाने क्यों एक भाव्नात्मक जुड़ाव सा हो रहा है कुछ दिनों से। शायद लड़ाई में कमजोर के प्रति होने वाली स्वाभाविक मनोस्तिथि है। राहुल मुझे बड़े भाषणो में बोरिंग और छोटे सेमिनार और पब्लिक मीटिंग्स में ज्यादा प्रभावी लगते हैं। और उन्हें इसी खूबी को बड़े भाषणों में दिखाना होगा।
और हाँ प्राइम टाइम में कल उदित राज जी ने बड़ा निराश किया। इसलिए नहीं की वो बीजेपी में गए। इसलिए की उनको पास कोई ठोस तथ्य नहीं था।। खैर जो जहा जाये।
जो लोग गाँधी-नेहरू परिवार मेँ पैदा होने वाले राहुल की क्वालिफिकेशन की बात कर रहे हैं, वो जान ले कि राहुल गाँधी से ना काँग्रेस नेताओँ को और ना काँग्रेस काडर को कोई प्रॉब्लम हैँ।
देश मेँ राजशाही नही हैँ कि प्रधानमंत्री पद पर एक ही वंश बैठेगा। गाँधी-नेहरू परिवार के नेतृत्व वाली काँग्रेस मेँ देश ने बार बार अपना विश्वास जताया हैँ, इसलिये गाँधी नेहरु के वंशज पीएम बनते हैँ। वो चुनाव जीतकर पीएम बनते हैँ, जबरदस्ती नहीँ।
Post a Comment