सर मैं आई आई एम सी, (भारतीय जनसंचार संस्थान) से बोल रही हूँ । हमारा फ़ेस्ट है इक्कीस फ़रवरी को । हम सब चाहते हैं कि आप आयें । एक पैनल डिस्कशन है । नहीं मैं नहीं आ सकता । छुट्टी पर हूँ । सर हम बडिंग जर्नलिस्ट को अच्छा लगेगा । इक्कीस नहीं तो बाइस को आ जाइये । किसी पैनल में मत रखो न आफिशियल करो । मन किया तो ऐसे ही आ जायेंगे । शाम के वक्त प्राइम टाइम से जूझ रहा था ऐसे न जाने कितने फ़ोन रोज़ काट देता हूँ मगर पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा है ।
रास्ते भर सोचता रहा कि हाँ ही कर देते । वो क्या सोच रही होगी । फिर दुआ भी करने लगा कि एक दिन वो बहुत अच्छा करेगी । फिर सवाल उठा कि ऐसा विश्वास क्यों हो रहा है मुझे । पता नहीं । कहीं मैं खुद की सांत्वना के लिए उसे दुआ तो नहीं दे रहा । मैं दिखावे के लिए नहीं बल्कि प्रायश्चित्त के लिए लिख रहा हूँ । बुरा तो लगा ही है ।
लेकिन क्या करें । दस दिनों की छुट्टी ली है । लोगों ने हर तारीख़ पर बुलाया है । सब दोस्त और महत्वपूर्ण ही होते हैं । मैं पहले भी फ़ेसबुक पर लिख चुका हूँ कि मुझे मत बुलाइये । क्या ये संभव है कि मैं छुट्टी के दौरान हर दिन सेमिनार में जाता रहूँ । हैरानी होती है कि फ़ोन करने वाला ये क्यों नहीं कहता कि अरे फिर रहने दीजिये । विश्व पुस्तक मेले में जा तो रहा हूँ पर क्या ये ज़्यादती नहीं है । क्या मेरे लिए सम्भव है कि हर रोज़ कहीं भाषण देने जाऊँ । जहाँ जाता भी हूँ वहाँ से ख़ुश कभी नहीं लौटा । उससे पहले का दिन तैयारी में चला जाता है और वहाँ जाकर देखता हूँ तो लोग संस्मरणों का ठेला लिये जेब में हाथ डाले चले आ रहे हैं । मेरी पूरी छुट्टी इसी में जा रही है ।
मुझे लेकर छात्र कुछ ज़्यादा उदारता बरतते हैं । मुझसे मिलने कुरुक्षेत्र के पत्रकारिता के छात्र खुद से जीप भाड़ा या अपनी गाड़ी लेकर दफ्तर आ गए । हमलोग की रिकार्डिंग में शामिल होने के बहाने । जल्दी में निकल रहा था कि आवाज़ आई कि सर हम लोग चार बजे सुबह के निकले हैं । आपसे मिलने के लिए । इतनी शर्म आई कि बता नहीं सकता । फिर सबके साथ चाय पी लेकिन उनकी हैरान आँखों में खुद को नापता रहा । क्या सही में मैं ? ये बच्चे अपने टीचर से ख़त लिखवा कर आये थे कि कुरुक्षेत्र आइये । मैं मना करता रहा । कहाँ से वक्त निकालूँ । मैं ऐसा जीवन न जीना चाहता था न अब अच्छा लगता है । बस में होता तो हर जगह चला जाता ।
हिन्दी पत्रकारिता अपने किसी भी काल में औसत ही रही है । दो चार अपवादों को छोड़ कर । कम से कम मैं उसी औसत का प्रतिनिधित्व करता हूँ । यह बात किसी विनम्रता में नहीं बल्कि जहाँ है जैसा है के आधार पर कह रहा हूँ । मैं घिस चुका हूँ । मेरे पास कहने के लिए कुछ नया नहीं है । इतनी आत्म स्वीकृति की अनुमति तो मिलनी ही चाहिए । आप अगर मेरे किसी कार्यक्रम को ज़रा दूर से देखेंगे तो समझ पायेंगे कि मैं क्या कह रहा हूँ । छात्र को भी पता चल जाता है कि इम्तहान में चालीस नंबर की जगह पचहत्तर मिले हैं ।
हिन्दी मीडिया और भाषा बोली एक फ़ालतू विषय है बात करने के लिए । कम से कम जिस तरह से इस पर बात होती है । मुझे लगता है तो इसलिए नहीं कि दूसरों पर कह रहा हूँ बल्कि खुद इस सतही निरंतरता का सहयात्री हूँ । मुझे डर लगता है कि कोई मुझे विशिष्ठ नज़र से देखता है । शुरू में ज़रूर अच्छा लगा मगर जल्दी ही समझ गया कि ये मेरे लिए घातक है । यही मुझे जहाँ हूँ वहीं बाँध देगा । साल भर हो गया कुछ नया पढ़ें सोचे । क्या बोलेंगे । मुझे सही में बुलाना बंद कर दीजिये । जो लोग जाते हैं मैं उनकी सराहना करता हूँ । जाना चाहिए लेकिन मुझे छोड़ दीजिये प्लीज़ । कहाँ से समय निकालें । होता तो चला भी जाता । उफ्फ ।
पर आज सही में उस छात्रा के लिए अफ़सोस हो रहा है । लग रहा है कि कम से कम दो चार लाइन और बात कर लेता । नाम ही पूछ लेता । मिलेगी या नहीं पता नहीं लेकिन दिल से उससे माफ़ी माँगता हूँ । आय एम सारी मैम । आप जीवन में बहुत अच्छा करें । लीजिये एक मित्र का एस एम एस आ ग़या कि क्या मैं इक्कीस बाइस फ़रवरी को लखनऊ एक सेमिनार में जा सकता हूँ !! गुडनाइट ।
51 comments:
रवीश जी आप बहुत नया और बहुत रोचक लिखते हैं और कहते हैं ,आपका ह्यूमर का इस्तेमाल और उसकी टाइमिंग भी बेहतरीन हैं
हिंदी मीडिया को रोचक बनाने के लिए आपको धन्यवाद |
रवीश जी आप बहुत नया और बहुत रोचक लिखते हैं और कहते हैं ,आपका ह्यूमर का इस्तेमाल और उसकी टाइमिंग भी बेहतरीन हैं
हिंदी मीडिया को रोचक बनाने के लिए आपको धन्यवाद |
शायद आप इस दुविधा में फंसने वाले शायद पहले व्यक्ति नहीं हैं। एक ख़राब से ख़राब राजनितिक या सामाजिक प्रतिनिधि या पॉपुलर चेहरे के लिए भी यही समस्या रहती है। अच्छे वालों को तो छोड़ ही दीजिये। फर्क सिर्फ इतना रहता है कि ज्यादातर लोकप्रिय लोग इस तरह के न्योते को अपने ईगो में तेल लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। भले उस निमंत्रण पर जायें चाहे न जायें।
और वही स्तिथि लोकप्रिय लोगों को किसी कार्यक्रम में बुलाने वाले लोगों कि होती है। कॉलेज स्कूल से लेकर किसी संस्थान में आप अगर किसी के बुलावे पर चले गए तो आपको बुलाने वाला व्यक्ति दिनों तक अपने करीबियों से यही बात छाँटेगा कि देखो मैंने रवीश या फलना कुमार को बुला दिया अपने यहाँ। और उसके अलावा वह आपकी लोकप्रियता को कमर्शियल रूप में अलग भुनाएगा। कुछ अपवादों को छोड़कर।
दोनों परिस्थितियों में घाटा उन चंद साधारण लोगों का होता है जो सही में आपसे मिलकर आपको किसी बाबा रुपी भेस में देखना चाहते हैं। मूलतः आत्म बल के लिए या कहिये फील गुड फैक्टर के लिए। और यह भी एक बहस का विषय है क्योंकि निमंत्रण से पहले अमूमन इन लोगों को तो पता ही नहीं होता है कि रवीश कुमार फलना कार्यक्रम में प्रवचन देने के लिए आने वाले हैं। इसलिए बुलहटा भेजने वाले को छोड़कर किसी को निराश करने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
इस तरह के कार्यक्रमों में जाना तो सही में बंद करिये। क्योंकि इससे आप किसी को फायदा या कहिये अपने प्रवचनों से किसी को सही मायने में प्रेरित नहीं कर रहे हैं। बजाये एक आध दो लोगों के ईगो बूस्ट करने के अलावा। हाँ सलाह सिर्फ इतनी है कि ना कहते वक़्त भी ज्यादा से ज्यादा देर उनसे बात करिये या समझा दीजिये ताकि वह रोष में न आये।
यह बात इसलिए भी कर रहा हूँ कि जो आपके चाहने वाले सही में आपसे मंत्रमुग्ध है कई अन्य तरीकों से आपसे प्रेरित हो सकते हैं और होते भी हैं। आप खुद ऐसे सैकड़ो लोगों को जानते हैं जो आपके शो या ब्लॉग में लिखी बातों का अपने जीवन में अनुसरण करने के प्रयास करते हैं। वह आपसे प्रेरित होते रहते हैं बिना आपसे मिलने के लालसा पाले। बिना इस वजह कि चिंता किये हुए कि आप औसत
हैं या असाधारण हैं।
इन फ़िज़ूल के न्यौतों में जाने के बदले वहाँ जाना शुरू करिये जहाँ से कोई न्यौता नहीं आया। किसी सरकारी स्कूल, किसी झुग्गी या किसी कॉलोनी में। किसी भी शहर, कस्बों, या गॉव में। ऐसे ही घूमते फिरते। अपने सुविधा और समय के अनुसार। जैसे परिवार के साथ किसी शहर घूमने गए तो वहीँ बिना प्लान किये कुछ लोगों से बात चित करने चल दिए। और वहाँ जाकर लोगों से संवाद करिये जिस तरह से आप हमेशा करते भी हैं। वह प्रेरित होंगे। और यह सब के लिए अच्छा होगा।
लम्बा चौड़ा लिखने के लिए माफ़ी।
हिन्दी मीडीया और पत्रकारिता का स्टेटस ठीक है, इतना बुरा नही कि औसत कहा जाए, बस हिन्दी लिखने और पढ़नेवाले हिन्न भावना से ग्रस्त है. आप के इस स्टेट्मेंट से कुछ और लोग हिन्दी पढ़ना त्याग कर सकते हैं. मुझे लगता है कि आप कई अँग्रेज़ी पत्रकारों से बहुत बेहतर लिखते है.जो मिट्टी की खुस्बु आप के लेखन मैं है वह अँग्रेज़ी लेखन मैं कहाँ?
सुरेश मदान
यू.एस.ए
Ravish, You have mentioned about Hindi Journalism being mediocre.
I would go a step further and say that we as Indians are heading towards a mediocre society in every sphere of life, very rarely do we strive for excellence. We blame lack of time, circumstances and a variety of reasons, but dont strive to overcome these hurdles to achieve excellence.
वक्त समंदर के झाग की मानिंद है,ना वजूद कायम करने में देर लगाता है और न वजूद खोने में....वक्त चुपके से गुज़र जाता है, ज़िदगी के सारे साज़ और तराने अपने पहलू में समेटे....
I am big fan of yours. I get strength from you. Your confidence, strong hold on our mother tongue and most of all you enjoy what you do hence we enjoy your show. But when you say "this show is off-record" or Hindi is not popular as english then it really hurts. One side you are strong face of Hindi journalism and other side you feel and make us feel inferior. I love your honesty and thought but this is not acceptable.
I know your really think a lot before any comment. But I will really appreciate if please think over this.
I could not find Hindi font hence posting it in English.
मैं सबके जवाब पढ़ता हूँ । एक बात कहना चाहूँगा कि हिन्दी पर कमेंट करने का मतलब यह नहीं कि मैं किसी हीन भावना से ग्रस्त हूँ । हिन्दी के बारे में जो बात कहता हूँ उसे ठीक से सुनिये । शान से हिन्दी बोलता हूँ । ह
कही आप आत्मश्लाघा के शिकार तो नहीं हो रहें....
कौशल जी उसकी चिन्ता मत कीजिये । जो लिखा है ठीक से पढ़ लीजिये ।
chalo khushi hui yeh jaankar ki aap sare jawab padhte hain...Hindi ka new generations me acceptance badhane ke liye aur agrezzi ke badhte encroachment ko rokne ke liye abhi solid pahal ki jarurat hai...before its too late.
gyan hi samajh lijiye. Kabhi kabhar society aur jis peshe ke hum hain usko kuch wapas karna padta hain. Bhukt bhogi hu bahut duwidha hoti hai. sabko gujrana padta hain aur samay nikalna padta hain.
aap no to duniya dekhi hain ,der saber santulan bana hi lenge.
Chaloo rahiye ,nirbhik hokar ,nispakch hokar, bus ek hi guzarish hain ki halke muddon ko tarjeeh na dijiye..
hum subhkamnayon ke saath
I have no words to say " itna down to earth "! Anyways , keep doing good work . Jitna ban parta hai utna to aap karate hee honge , you can not please everyone ... Sabkee apni limitations hoti hain ,aapki bhi hain , aur sab is baat ko samjhte bhi hain ..... Aapne itna Socha ...and fir is Bare main likha bhi ki man halka ho jaye ....now just chill ( Hindi ka font nahi hai otherwise aapka vala chill likhti) ☺️
Looks like Ravish is missing twitter and replying to the Blog comments which he rarely does!! Twitter followers loss, blog followers gain?
Many a time, criticizing is not about showing something in bad light. When one is passionate about something, you hope that criticism will trigger introspection and improvement.
विद्या जी मैं मन का हूँ । मेरे न होने से आलोचनाओं का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा ऐसा नहीं है । मैं इस कारण से ट्वीटर और फ़ेसबुक बंद नहीं करता । मूल बात है मैं चट जाता हूँ । आलोचना से डर लगता तो लौट कर क्यों आता । यह बात भी अधूरी है कि वहाँ सिर्फ आलोचनाओं का आदान प्रदान होता है । अन्य बातें भी होती है जो मुझे जानकारीप्रद लगती हैं । मैं कोई काम साबित करने के लिए नहीं करता । आप भी बोर होती होंगी । कहीं लिखा है कि ट्वीटर फ़ेसबुक ये बोर होना मना है ।
सर क्या ravishndtv के रूप मे आप जवाब दे रहे हैं या यहाँ भी ट्विटर की तरह parody वाले ravisndtv हैं?
क्योंकि इस नाम से तो मैं भी कमेंट कर सकता हूँ-manthan
लोगों की चाहत इसलिये भी अधिक है कि उन्हें आप में कोई अपने जैसा दिखता है, जो थोड़ा विशिष्ट भी है।
मेरे विचार से आप को इन सभाओ मे जाना चाहिये. आपने कई वर्ष पत्रकारिता को दिये है. इस मे काम किया है. आप को इसका अनुभव है. एक विशिष्ट व्यक्ति न सही, एक पत्रकार के रूप मे आप जा ही सकते है ना जाने कितने भावी पत्रकार को आपके अनुभवो से कुछ सीखने मिल जाए.
Ravishji yeh to jyaditee hai. Kuch samay aise prorammes ke liye to nikalna hi chahiye rahi baat padhne likhne ke samay kee din ke 24 hours main ooske liye bhi waqt nikaliye.waise aajkal main India ke partition ke samay kee ghatnaon ke baren me padh raha hoon. Abhi do kitab pakdi hai "India wins freedom" aur Kuldeep naiyeer kee"Beyond the lines".Hindustan aur Pakistan ke bantware me 15 lakh aur Banladesh ke banne me 10 lakh log mare gaye voh bhi bina karan aur saath me diye na bharne wale nasoor. Phir bhi log kahte hai Bharat ko ajaadi aninsa ke palan se milee. Itihas samajh me nahi aa raha hai.
aapka interview can you take it ravish online dekh news laundry wala, bahut pehlle dekha tha us din se aapko jyada jaan ne laga hu aur samajhne laga hu kayi baar aapki baton se pehli nazar me sehmati nhi ban pati hai lekin jab dubara padhta hu aur khud ko aapke jagah pe rakh ke dekhta hu tab aapse 100% agree ho jata hu karib 2 saal se aapko follow kar raha hu( onpt, fb, qasba and tiwtter) ye to nhi bol sakta ki aapka sabse bada fan hu but itna jarur hai ki jitna aapka padhta hu sunta hu aur samajhta hu utna aapke najdik chala jata hu aur fir khud apni feelings kuch ajeeb lagti hai..ha itna hai ki aapki soch down to earth hone ke sath aapko apne culture and society se bahut lagav hai aap dil ki mante ho and jitna ho sakta hai apna best humesha dete ho....aap humesha aise hi rehna ye to nhi keh sakta kkyuki change is lot of fortune but ha aapki honesty, simplicity and knowledge bahut impress karta hai aur motivate karta hai...best regards
ye angrejo ka dala gaya bojh cote utaro,prime time ko 2-3 baar in a month karo (taki bangali babu salary me katouti na kare)aur wapas ravish ki report ki duniya me aa jao...sab thik ho jayega...baba raaychand
सर , आप जितना अच्छा काम करेंगे तो लोगो कि अपेक्सा भी बढ़ेगी साथ साथ , यह तो अच्छा ही है की आप इतने बिजी रहने के बाद भी कॉल रेसिव करते है , मेसेज पढते है। बाकी कही लोग तो स्किप ही कर जाते है , सब समजते है की १ बंदा तो सभी जगह नहीं जा सकत न। ।चिल्ल करिये। ।मे भी अब "कोशिश" करूँगा की मेसेज न करू/कम करू !
padh kr laga sach me aap prayashchit k liye likh rahe hain ..........
bulane aur milne walon ka aapke liye pyaar hai jo........aisa karte hain......aur aapki apni pareshaniyan.
ummid hai o sabhi aapko samjhenge aur unhen aapse koi shikwa n hoga.
sir,aap pustak mele me kb jaenge ye kaise pata chalega.aajkal aap fb pe bhi nhi hain.
:(
iss popularity ko enjoy kijiye.ye hamesha nahi rahegi,phir aap isse miss karenge
Aapne aapko sabhi jhamelo se bachaye rakhiye. Mi aapko TV par dekhti hu to itni khusi hoti hi lagta hi mare maike se koi mere yahan aa gaya ho.
Aapke swasthya or lambi umar ke liye aapko dher sari Subhkamnayen!
Ravishji, hindi patrakarita ke app ek stambh hain, chaahe aap yeh maane ya naa maane, chaaye yeh ek sthayi ausat ka pratinidhitava hi kyon na ho. Logon ka aap ko bulana, aapke vichar sunana swabhavik hai. College ke vidyarthiyon ko naa nahin kahein to accha hoga. Aapko ko sun kar unka manobal badhega, ek duniya jo ab tak sirf unke kalpanaon me hai, uska ka jharoka naseeb hoga. Shaayad ek-aadh aapse prerit ho kar kuch achcha kaam hi kar le. Samay tang hai aapke pass, aur bhi kaam hain, aur shaayad appka anubhav is prakar ke seminaron me anukool nahin raha hai, sare kaaram waajib hain. Aapka vyaktigat faisla hai, lekin zara sochein. Hindi me pehle comment kiya nahin kabhi, is liye bhasha doshon aur Roman lipi me likhne ke liye maaf kariye ga.
उप्पर किसी अज्ञात(unknown) ने सही लिखा है..कम से कम आईडिया पर तो गौर किया जा सकता है.. प्राइम टाइम और रवीश की रिपोर्ट को साथ साथ लेकर चलिए.. आप घिस चुके हैं.. :D
१० दिन की छुट्टी!!! देश कैसे चलेगा भई ?? :P
चलिए आनंद लीजिए.. शुभकामनाएं .
सर जी आपने अपना फ़ेसबुक वाला अकाउंट बंद कर दिया क्या ????
प्लीज़ स्टार्ट कीजिए .......
मैं आपका बहुत ही सम्मान करता हूँ|
धन्यवाद
मैं तो आपके कार्यक्रम दूर से ही देखती और सुनती हूँ... या तो साइड में खड़े रहकर या फिर एम्फीथिएटर में बिलकुल पीछे बैठकर :)
लग रहा है कि कम से कम दो चार लाइन और बात कर लेता such me hindi ka to bhagwaan hi malik hai..ya kahe hindi bani hi aisi hai...2-4 line likh leta ...2-4 bate aur kar leta...antar to banta hai na ?
Appriciate you.
kaha jata hai ki insaan jaise jaise tarakki ke raste pe aage badhta hai vaise vaise uski jimmedarian bhi badh jaati hai.
Jitna jaldi acha hoga, Aadat daal lijiye aisi life ki, aapke liye hi acha hoga. ya fir 2 hi options bache hai aapke paas ya toh syria jaise desh mein reporting kijiye jaake ya fir apne mein desh mein sanyasi banke Haridwar chale jayie.
"Hath jodo, kuch na chhodo"
देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
मतलब, दो हप्ते टीवी नहीं देखे तो भी चलेगा :) ऑन सीरियस नोट, रवीश भाई, कोई इंसान किस बात पे दुःख और प्रायश्चित्त करता है उससे उसकी महानता का पता चलता है। ये समस्या सभी बड़े लोगो को होती होगी, खासकर राजनीति और मीडिया से जुड़े लोगो को। वैसे छुट्टी लेकर अच्छा किये, अगले ३-४ महीने काफी व्यस्त होने वाले है।
सर
छूट्टी लेकर देश घूम आइए और किसी चीज की तह में मत जाइए क्योकि यदि किसी चीज की तह मे जाइयेगा तो दुख ही पाइएगा यही हिंदुस्तान का नियम है।
Ravishji mast chutti manao....
Aap ko chutti ki jarurat hai....
Jinse mil ke achcha lagta hai milo..
Fresh ho jaoge
अरे महाराज इतने परेशान मत होइए आपसे तो हमने सीखा है सहज रहना ... बिना सोचे समझे सहज रहने का प्रयास करते रहिये और चलते रहिये .... मेरे दद्दू कहते थे की जीवन में आप सबको खुश नहीं रख सकते इसलिए बेहतर है खुद को खुश रखने का प्रयास किया जाये .. .
सबको खुश रखना आसान नहीं फिर भी आप कोशिश करते है लोग आपको स्नेह करते है क्योकि आप में सब अपने आप को देखते है जो लोग बोलना चाहते है अपने विचार रखना चाहते है आप उनके लिए सशक्त माध्यम है और यही आपको विशिष्ट बनाती है हमारा तो पूरा परिवार अलग अलग शहरो में आपको सुनता है देखता और उस पर चर्चा भी करते है। राजनीती जिस पर कभी कोई पारिवारिक बहस नहीं होती थी आज वो परिवार का हिस्सा बन गई इस जागृति के लिए आप धन्यवाद के पत्र है। आराम से छुट्टिया बिताइए और फिर से तरोताजा होकर अपनी प्रतिभा का परचम फहराइये।
mere labzon pe sawal..
meri tasvir pe bawal..
meri khamoshi par sawal ..
meri har baat pe bawal.
khuda meri zindagi bhi kya bawale jaan bana rakhi hai.
khair .. sham tak mela hai pagal, ped panchi kiske meet... apni apni boliyan sab bol ke ud jaayenge...
क्या बात है सर , यही दिल के भावो को संतुलित रूप से ज्यो का त्यों रख देने कि कला के कारण ही तो आपके चाहने वालो का दायरा बढ़ता ही जा रहा है , अब सिर्फ पत्रकार नहीं सेलिब्रेटी है आप !
निजता मूल्यवान है उसका आदर किया जाना चाहिए , खासकर आप जैसे बार बार आत्मावलोकन करने वाले स्टारडम कि चाहत न रखने वाले के लिए, उम्मीद कि जानी चाहिए कि लोग आपकी निजता का सम्मान करेंगे !
पर सच यह है कि आपके इस आत्मकथन के बाद भी गर मुझे अवसर मिले तो में आपके साथ फोटो खिंचाने खिंचा चला आउंगा , भारतीय जनमानस ऐसा ही है !
शोहरत कि कुछ अपनी तकलीफे होती है उम्मीद है कि आप इनसे बेहतर सामंजस्य बैठा पाएंगे, शुभकामनाये !
एक नया चाहनेवाला...:)
sir chahat to hamari bhi thi apko apne college fest me bulane ki par apke is blog ko padh ke laga ke apko pareshan nahi kArna chaiye..
Sir, enjoy the holiday, all love u but I recollect one sadhu ji who wrote in Geeta Press he never given his photographs do you know why? Because he know when he give his photo then pupil/ people will never learning from his teachings but will start praying his photographs. In our country, we love a person first by his ideas and later love the person only and forget his teachings.
आपकी विवशता को समझाना चाहिए उन्हें जो आपको विशेष अतिथि के रूप में बुलाते हैं .
पर क्या करे लोग इसी उहा-पोह में रहते हैं कि एक बार पूछ लेते हैं कही आपके तरफ से हाँ में जवाब मिल जाय तो फिर क्या कहने शायद इसलिए ऐसा होता होगा ...
“सब मनाते रहे आप रूठा करो मज़ा जीने का और क्या होता है....
Missing You On Facebook Ravish BaBa.
मै बस यही चाहूँगा कि अपनी इंसानियत को जो संजो के ज़िन्दगी भर रख ले उससे बड़ा इन्सान कोई नहीं है वही एक सफल इंसान है और आपने अपने मन से उस महिला सी जो माफ़ी का बोध किया है यह वाकई आपमें इंसानियत के घ्योतक को दर्शाता है इंसान कितना तरक्क़ी और नाम क्यू न कमा ले यदि वो अपने ज़मीर और इंसानियत को ज़िन्दगी भर ज़िंदा रखे तो उससे महान कोई नहीं है। ।
Ravish sir hum bahut bhagyashali hai jo aap jaisi acchi soch wale vyakti Ka saath mila hai.
aapko bahut bahut dhanyawaad.
Ravish sir yeh aapka badapan hai jo aap aisa mehsus karte hai. Itna koi aur nahi sochta . Thanks for supporting us.
Aap ki inhi baaton ke log kayal hai sir ji........
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