"दो पक्षपाती नेटवर्क के बीच तटस्थ रेफ़री बनने में अब कोई चमक नहीं रही । कोई रेफ़री को देखने नहीं जाता । " । सीएनएन के चीफ़ जेफ्फ ज़कर के इस बयान का हिन्दी तर्जुमा किया है । उनकी ये बात पत्रकारिता में तटस्थता की मौत की घोषणा जैसी लगी । द इकोनोमिस्ट और आज के इंडियन एक्सप्रेस में छपा है । बाज़ार की वास्तविकता ही किसी पेशे की सैद्धांतिकता होने वाली है । रेटिंग गिरने से सारा विश्वास जड़ से हिल जाता है । टीवी का कारोबार इसी रेटिंग पर निर्भर करता है जिससे विज्ञापन आता है । कई लोग बिना जानकारी के कह देते हैं कि क्या रेटिंग ही सबकुछ है । दरअसल टीवी जैसा महँगा माध्यम इसी पर टिका होता है । जब तक दर्शक दस रुपये प्रति चैनल की जगह पाँच सौ रुपये नहीं देंगे विज्ञापन की निर्भरता समाप्त नहीं होगी । लेकिन रेटिंग तब भी होगी । इसकी क्या गारंटी कि दर्शक एक तटस्थ चैनल को छोड़ फौक्स जैसे पक्षपाती चैनल नहीं देखेंगे । तटस्थ चैनल या एंकर का बाज़ार से बेदख़ल होने का ख़तरा तब भी रहेगा । अगर ऐसे दर्शक तटस्थ चैनल का सब्सक्रिप्सन नहीं लेंगे तब भी तटस्थता के लिए ख़तरा है । तो क्या जेफ्फ ज़कर की भविष्यवाणी सही होगी ?
चंद दर्शकों के लिए कोई चैनल नहीं चल सकता । चैनलों के लिए भी यह आसान रास्ता हो गया है । किसी की साइड लेकर बहस की उत्तेजना उभारो । मेरा खुद का अनुभव रहा है कि दर्शक तटस्थता को महत्व देता है । वह लगातार इस पैमाने पर परखता है । तीन साल की एंकरिंग में लोगों से यही अनुभव हासिल किया है । मगर मैं इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं रह सकता कि जो मुझे देखते हैं या मुझ तक अपनी प्रतिक्रिया पहुँचाते हैं क्या वे दर्शकों का उतना बड़ा हिस्सा हैं जो टीवी को चाहिए । वही दर्शक जो मुझ तक पहुँचते हैं दूसरे चैनल भी देखते हैं । क्या वहाँ भी तटस्थता का पैमाना अपनाते हैं ? कुछ भी बिना आँकड़े के कहना मुश्किल है और आँकड़े जमा करने की टी आर पी प्रणाली की विश्वसनीयता भी तो संदिग्ध है ।
बहरहाल तटस्थता की समाप्ति की घोषणा से थोड़ा झटका तो लगा है । दुनिया भर से आँकड़े आ रहे हैं कि टीवी के दर्शकों में गिरावट आ रही है । लोग सोशल मीडिया से ख़बर हासिल कर रहे हैं मगर वहाँ अभी राजस्व पर्याप्त नहीं है । मैं नहीं मानता कि कोई समाज बिना ख़बरों के रह सकता है । ख़बर तो चाहिए लेकिन ख़बर ला कौन रहा है । कम से कम हिन्दी टेलीविजन ने तो यह काम बंद कर दिया है । अंग्रेजी चैनलों के रिपोर्टर भी भटकने की जगह वैसी बाइट ला रहे हैं विवाद पैदा कर सके । इंटरव्यू में टफ सवाल करना कलाबाज़ी से ज़्यादा कुछ नहीं । सारी लड़ाई सवाल पूछ कर नहीं जीती जा सकती है । ज़मीन से लाई गई रिपोर्ट आइना होती है । इसलिए कहता हूँ कि टीवी में एंकर मत ढूंढिये, रिपोर्टर ढूंढिये । अधकचरी जानकारी और सवालों से लैस बहस जनमत का कचरा बना देती है । इसमें मैं खुद को भी शामिल मानता हूँ । जैसे मैं दूसरी बातों पर ग़ौर करता हूँ और लिखता हूँ उसी तरह न्यूज़ चैनलों का विद्यार्थी होने के नाते लिखता हूँ ।
तटस्थता पहले भी संदिग्ध रही है मगर इसकी अपेक्षा ही समाप्त कर दी जाये ये ख़तरनाक है । कोई इस एलान के साथ आ जाए कि मैं फ़लाँ एंकर भाजपाई या कांग्रेसी हूँ तो क्या होगा । बाक़ी दलों को जगह मिलेगी भी या नहीं । क्या हम वैचारिक पेड न्यूज़ का स्वागत करते हैं ? क्या चैनलों में होने वाली बहस छाती पीटने के लिए ही है ।
कुछ मूर्ख अपने कमेंट में यह ज़रूर लिखेंगे कि आप क्यों नहीं बदल देते । आप क्यों लाचार हैं । बात लाचारी की नहीं है । उस बाज़ार की है जो ये सब निर्धारित करता है । यह नहीं हो सकता है कि कमेंट लिखने वाला उसी बाज़ार से अपनी आजीविका चलाये और एक पत्रकार से कहे कि आप क्यों नहीं बदल देते । हमारी ज़िंदगी के बारे में आप क्या सोचते हैं । सोचना छोड़िये ये बताइये क्या कर सकते हैं । आर्थिक संरचना एक राजनीतिक निर्णय है जो जनमत के नाम पर खड़ी की जाती है । सवाल एक व्यक्ति के कारगर या लाचार होने का भी नहीं है सवाल मीडिया सिस्टम का है जिसमें दर्शक भी उसी लाचारी से शामिल है जिस लाचारी से पत्रकार ।
आप मेरे ब्लाग पर पुराने लेख देखेंगे तो पायेंगे कि मैंने हमेशा से बहस वाली पत्रकारिता को संदेह की निगाह से देखा है । रिपोर्टिंग तो ज़रूरी है । सोशल मीडिया पर जो रिपोर्टिंग का विकल्प अभी तक पेश किया गया है वो कुछेक अपवादों के बहुत प्रभावी नहीं है । वहाँ भी ख़बरों की बेतहाशा भीड़ है । असर के मामले में टीवी अब भी प्रभावशाली माध्यम है । इसीलिए न्यूज़ या तटस्थता के ख़ात्मे की किसी बात से तकलीफ़ होती है । उन लोगों का चेहरा सामने घूमने लगता है जो फ़ाइलें लेकर किसी रिपोर्टर को ढूँढते रहते हैं कि मेरी ख़बर कर देगा । लेकिन उसे पता ही नहीं कि रिपोर्टर कब का कुछ और हो गया है और दर्शक सोशल मीडिया पर सिर्फ अपनी पसंद या राजनीतिक निष्ठा से जुड़ी ख़बरों को साझा करने चला गया है । आने वाले कल में मैं क्या और कहाँ रहूँगा ये मसला नहीं है । मसला ये है कि वो लोग क्या करेंगे और कहाँ जाएँगे जिन्हें लगता है कि इस ख़बर को मीडिया के ज़रिये लोगों तक पहुँचाना चाहिए । कृत्रिम सूचनाओं से लैस लोकतंत्र भांडों के कथित जागरूक समूह से ज्यादा कुछ़नहीं होगा ।
40 comments:
तटस्थता सच में कठिन है, कमलपत्र सी। आपको साधते देखता हूँ तो देखकर कष्ट होता है।
सही कहा है। आपने रिपोटर को भी स्टूडियो में बेठा एंकर के हिसाब से बोलना पड़ता है।
baat to sir lachari ki hi hai..aap v is system ka hissa hai ye baat aap v mante hai...lekin phir v kuch kar nhi sakte... matlab kisi na kisi wajah se lachar to hai...
rhi baat murkhta ki to shayad aapki nazar me ho v sakta hu... but agar aapki tarah hi arvind kejriwal sochte to mai nhi samjhta ki nai rajniti suru ho pati..
bolane ka sahas to karna hi padhega.
''… धरती के विकासी द्वन्द क्रम में एक मेरा पक्ष निःसन्देह .... '' (मुक्तिबोध )
पत्रकारीय तटस्थता ठंडी नहीं होती , अगर असल है तो ! टीवी एंकर, पत्रकार , रिपोर्टर
वहाँ जनहित की जमीन पर , थर्ड पार्टी यानी दर्शकों , पाठकों की ओर से होता है।
पत्रकारिता निष्पक्ष होती है , पर यह निष्पक्षता अमूर्त नहीं होती !
जानते जानते है आप बहस के पक्ष में नहीं है परन्तु बहस कि भी अब ब्रांडिंग हो गयी है। जो जितना जोर से चिल्लाएगा वो उतना अच्छा पत्रकार कहलाएगा। ५०० रुपये प्रति चैनल देना तो मुश्किल लग रहा है परन्तु कुछ तो करना पड़ेगा ताकि न्यूज़ चैनलो को विज्ञापन पर ना निर्भर रहना पड़े।
मूर्खता की भी हद है । बात साहस की कहाँ है । फौक्स और एम एस एन बी सी जैसे चैनल पार्टियों की साइड लेकर खुलेआम प्रोग्राम करते हैं । बात बाज़ार की रणनीति की है । जो नहीं बनेगा वो बाहर जाएगा । मुद्दा तो समझिये पहले । साहस करना पड़ेग जैसे आप बोलने आते हैं हमारे लिए या जैसे पत्रकार नहीं साहस करता है तो आप करते हैं । इतनी ख़बरें जो सरकारों के ख़िलाफ़ छपती है वो कौन लाता है । कोई न कोई रिपोर्टर ही न ।
Ravishji,
Mai ek TV ka mamuli darshak hun...jo mujhe ab tak samajh aya hai vo mai apko simple shabd me samjhata hun...
1)Log hamesha nishpaksh ANCHOR ko samman dete hain...vo sukh darshak ko NDTV me milta hai...log dono paksho ko samajhna chahte hain...apna knowledge badhane ke liye darshak NDTV dekhta hai.
2) Log dusre news channel bhi dekhte hain maje lene ke liye....remote se channel palatate hue...agar hangama sunai de bhi deta hai to kuch der ruk kar mahool le lete hain...gambheerta se koi nahi dekhta hai.
3) Log ab Arnab jaise news ANCHOR se bhi thakane lage hain...TIMES NOW dekhne ke liye mansik rup se bahut hi majbut hona jaruri hai...mujhe to depression ho jata hai ARNAB ki debate ki shaili dekh kar
4) Log NDTV ke break me bhi bane rehte hain kyoki koi important hissa break ke turant baad ka chhodna nahi chahte
5) NDTV dekh kar logo ko lagta hai ki shayad parde ke piche ki khabar saamne aa rahi hai...shayad jo koi nahi dhund paa raha hai vo Ravish bata rahe hain...prime time me
6) Darshak NDTV vastavik jaankari haasil karne ke liye dekhta tha dekhta hai dekhta rahega....
I like ndtv because it is better than others . Jab tak aap jaise patrakar hai tab tak chinta ki koi baat nahi hai.
Mai FAN ya prashansak ki tarah thoda sunai dunga sir...magar baat sach hi likh raha hun
Mujhe nahi lagata ki raneeti badalne koi jarurat hai...
Raneeti bakiyon ko badalne jarurat hai...shayad badal bhi rahe hain...
Sab NDTV ki tarah banna chahte hain...
Mai Govindpuri me rehta hun shaam ko jab chai peene jata hun to chhoti si chhoti dukan me NDTV chal raha hota hai...aisa pehle nahi hota tha...Log khule aam side lene wale channel se duri bana rahen hain....logo ko asal mudda janne ki iksha hai.....sab NDTV ki taraf rukh kar rahen hain...
Mast raho sir kahan kahan aap bhi load le rahe ho...
:D ;D
Agar aap ranneeti nahi badalne ki baat NDTV oofice me jaake management se karoge to shayad baat nahi banegi....tarreef koi nahi sunna chahta hai feedback me khaaskar apne hi ANCHORS se....
Kuch to feedback kuch to sudhaar apko batana hi hoga....shayad aap logo ke comments me yahi khojna chah rahe honge...(Aur mai chela type tarreef kiye pada hun...kya karun sir naya fan bana hun ...naya naya darshak hun...kuch jyada hi utsaahit hun NDTV ko lekar)
Waise ANCHOR ka kaam naav ko istthir rakhna hota hai...samhaale rakhna hota hai...bina ANCHOR ke naav to ludhak legi samundar me....
ANCHOR tathast rakhne ke liye hi hota hai.....ye uski fitarat hoti hai...
Mana ki andhera ghana hai par deepak jalana kaha mana hai....there where is a will there is a way! sir sach batau to kuch anchor ko dekh ke news se intrest hatne laga hai, hum samajhte hai bazar ki majboori ko tabhi to kabhi record nhi hia ki aapke pt ke alawa kisi show ko seriously ya continue dekha ho, ha ndtv ke baare me itna to hai ki frustrate nhi karta hai dono angel se baat batata hai, sir kya bolu kucch samajh nhi aata but sahi me bahut gambhir position hai chorasia arnab jaise dalal milke news ko badnam kar rahe hai, kya sirf trp ke liye ye log apne profession ke ethics bhi bech denge..kabhi kabhar rona aa jata hai, thak gya hu mai ye nhi kehta hu ki aap dharti utha lo but koi rashta to nikal ke lao sir...all the best!!
कुछ मूर्ख अपने कमेंट में यह ज़रूर लिखेंगे कि आप क्यों नहीं बदल देते ? आप ye kyo nahi mante ki आप क्यों नहीं बदल देते bola tha netaon ne,uske jawab me hi aaj आप ban gayi..himmat sab ke liye nahi banayi gayi..
मूर्खता की भी हद है । बात साहस की कहाँ है? to jao tum,bane raho robot...ghode ki tarah dimag ki aankh par cover laga kar post likh rahe ho..logo se comment karwane ki aasha bhi aur such bolne wale ko मूर्ख bhi kahna hai...मूर्खता की भी हद है । SIKHO KUCH KEJARIWAL SE...
जैसे पत्रकार नहीं साहस करता है तो आप करते हैं । इतनी ख़बरें जो सरकारों के ख़िलाफ़ छपती है वो कौन लाता है । कोई न कोई रिपोर्टर ही न ।
to aap kam se kam un कोई न कोई रिपोर्टर me se ek hi bane rahiyr...kahe itna chatpataye rahe hain, ab itna to karna hi parega Mr Ravish Kumar :)
very nice article sir,great.
कृत्रिम सूचनाओं से लैस लोकतंत्र भांडों के कथित जागरूक समूह से ज्यादा कुछ़नहीं होगा ।.... sir, i could't understand this line deeply.Who is this group? U r talking about Media corporate,Civil society or both. Open it,little bit sir. Thanx
tatasthata bhi aajkal kuch bhramak aur misused avdharnao me se ek ho gai hai.phir bhi iski ummid hamesha ki jani chahiye aur koshish bhi.iske khatron se jujhte hue.
तटस्थता के नाम पर सिर्फ दावे बच गए हैं. आक्रामकता ही चैनलों की पहचान है. अब आपसे यह उम्मीद नहीं है कि जमाने को दोष देकर खुद पल्ला झाड़ लें. ऐसा तो फ़िल्म वाले कब से कह रहे हैं कि हम वही दिखाते हैं जो पब्लिक देखना चाहती है. तो क्या श्याम बेनेगल ग्रैंड मस्ती बनाने पर मजबूर हो गए.
अब जबकि आप ने जवाब दे दिया हैं , मुझे मुर्ख भी लिखा आपने ! मैं इतना ही कहना चाहता हूँ की आदमी उसी से अपील करता है जिससे कुछ उम्मीद हो , इसीलिए मैंने आपको लिखा | मैं तो ये चाहता था की आप हमारे और समाचार के बिच का माध्यम बने , हमारे और राजनेताओ के बिच का नहीं ! उनकी भो भो सुन के थक चुके हैं जी | फिर भी मैं आपको ही देखता हूँ | माफ़ कीजियेगा |
अब जबकि आप ने जवाब दे दिया हैं , मुझे मुर्ख भी लिखा आपने ! मैं इतना ही कहना चाहता हूँ की आदमी उसी से अपील करता है जिससे कुछ उम्मीद हो , इसीलिए मैंने आपको लिखा | मैं तो ये चाहता था की आप हमारे और समाचार के बिच का माध्यम बने , हमारे और राजनेताओ के बिच का नहीं ! उनकी भो भो सुन के थक चुके हैं जी | फिर भी मैं आपको ही देखता हूँ | माफ़ कीजियेगा |
Ravishji mere comment ko aap personally mat lijiyega. Paksh ur Nispaksh to nahi pata par aap sach jarur bolte hi.
Mujhe ye nahi samajh me aata koi nispaksh kaise ho sakta Thai? Jo bhi dekh sakta hi , sun sakta hi ,mahsus karta hi , uska ek paksh ban hi jata hi.
Man lijiye humlog 50 patrakar me se 5 ke prati kyun jhukau hota hi.Uske dekhte sunte , padte hum usme vishwas karne lagte hi , fir wahi vishwas hamara paksh ban jata hi.
Patrakar ke dil dimag me hi ek paksh hota hi hoga ur us paksh ka tyag kar kuch samay ke liye nispaksh dikhna to ..................... Isse aacha to ye hi ki har patrakar jisko sahi samjhe uska paksh le. Nispaksh hone ki pida ur jaddojahad se mukti mil jayegi.
Bajar bhi sabse jyada kimat uski hi lagata hi jo bikau nahi hota
Ravishji mere comment ko aap personally mat lijiyega. Paksh ur Nispaksh to nahi pata par aap sach jarur bolte hi.
Mujhe ye nahi samajh me aata koi nispaksh kaise ho sakta Thai? Jo bhi dekh sakta hi , sun sakta hi ,mahsus karta hi , uska ek paksh ban hi jata hi.
Man lijiye humlog 50 patrakar me se 5 ke prati kyun jhukau hota hi.Uske dekhte sunte , padte hum usme vishwas karne lagte hi , fir wahi vishwas hamara paksh ban jata hi.
Patrakar ke dil dimag me hi ek paksh hota hi hoga ur us paksh ka tyag kar kuch samay ke liye nispaksh dikhna to ..................... Isse aacha to ye hi ki har patrakar jisko sahi samjhe uska paksh le. Nispaksh hone ki pida ur jaddojahad se mukti mil jayegi.
Bajar bhi sabse jyada kimat uski hi lagata hi jo bikau nahi hota
नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही. मेरे हिसाब से आज भी सवाल तटस्थता का नही है बल्कि जनपक्षता का है.आगे विस्तार की जरुरत नहीं समझता.
सवाल एक व्यक्ति के कारगर या लाचार होने का भी नहीं है सवाल मीडिया सिस्टम का है जिसमें दर्शक भी उसी लाचारी से शामिल है जिस लाचारी से पत्रकार ।
Looks like Ravish has caught the Rahul bug - blaming the system!!
On a serious note, if anyone wants to read the article referred in this blog, here's the link - http://www.economist.com/news/business/21595964-cnns-transformation-says-lot-about-what-working-today-television-news-you-can-lose
Yes, Fox and MSNBC take very clear party lines but they are US examples. What about every regional party in South India having a TV channel as their mouth piece. It wont take long before the concept spreads to the national level.
Also, one cant assume that CNN is neutral, don't they toe their country's line while reporting?
Sir,
I live in US and you can say that I am addicted to your prime time. You see in today's social network era, access to news is not an issue. No one can hide a news. It will come out through some medium or the other. That is the reason that the job of an anchor is very important. An anchor's job is to identify the relevant issue, sort out all the noise coming from different mediums and help his viewers make sense of the world. I think anchors are more like philosophers of ancient era. In ancient era the world in which people lived was small and people knew all news. And that is where philosophers came in to help them make sense of the news. In the past, world became large and the role of media was to bring news from the world to people's home. In this digital era, world has again become a small virtual community. People have access to all news. However, they need an impartial and unbiased philosopher who can help them make sense of all these news.
रविश जी आपकी इस बात पे गांधीजी की एक बात याद आ गयी "जब आप कोई सत्य बात कहते हो या करते हो तो पहले लोग आपको दरकिनार करते है। थोडा समय देने पर लोग आपका विरोध करते है। और थोड़े समय बाद लोग आपकी बात को स्वीकार ते है।
तो आपको जो सत्य है उसपे कायम रहना चाहिए । भलेही कोई खबर किसी के विरोध की हो या किसी को साथ देने वाली किसी को अच्छा दीखा ने वालो या बुरा । पर सत्य होनी चाहिए ।
aap ho kahan sir.......2 din ho gaye ....monday and tuesday nikal gaya....ab to darshan do tv pe
Is pure week nahi ayenge 10 din ki chutti me hain
Hmmm ...Yani 10 din ke liye 1 hr ka sadupyog dusre kaamo me kiya ja sakta hai :)
Jab Akhilesh yadav bolte hain ki hame Bhi media manage karna seekhna hoga tab aisa kyun sunai deta hai aise hame Bhi kutton ko haddi dalne sikhna hoga taki Woh bhonkana band Karen ... Thodi strong language use kar raha hu par kya Karen satya to kadva hi Hota hai
apka blog bahut time se padh rha hu lekin likh pehli baar rha hu..baat hi kuch esi he..sir aap bilkul shi kah rhe he ki humein reporter ko jyada value deni chahiye lekin sir humari bhi toh majburi dekhiye. Hum darshak he, ghar par bethkar dekh sakte he,aur agar hum self critical hoker sochte he toh, humari awaj toh sirf acha anchor hi tv pe kah sakta he...
Aaj pahli baar laga ki aap bhi hamarte jaise kai logon ki tarah kamjor hain jo system ki khamiyon ko jante hain aur unhe apne vyaktigat taur pe door karne ki koshish karte hain lekin system se lad nahi sakte hain.. ham sabki majbooriyan hai ..chalo achchha hai aapne bhaanp liya ki kuchh moorkh aapko system badalne ke liye bolenge aur aapne likh diya warna aapka page comments se bhar jata.. Sir shuruat to kahin se karni hogi warna Media ki value TRP bhi nahi bacha payenge.. Darshak news dekhke thodi der ke liye vahak sakta hai lekin khabaron ke touch mein rahte rahte use pata chal hi jata hai ki kaun sachcha aur kaun jhoota..aapki log ijjat karte hain kyunki kahin na kahin aapne us tathasthata ko banaye rakha hai..warna kaun poochhta.. Sachchhai bani rahegi aur ghatne ki wajah badegi..hum ek saturation ko attain karne ke baad apne values ki value karna seekh jayenge aisi aasha hai.
http://www.youtube.com/watch?v=AbjsQ_dYuJQ&feature=youtu.be
Must see on Paid Media
Spread it
http://www.youtube.com/watch?v=NeWE5O38tCM
Shocking - Indian Paid Media exposed Completely - Must Watch for Indians!!!
spread this video my friends
ek aur behtarin article.
hm aapko bahut miss kr rahe hain........
रवीश जी ,में आपकी रिपोर्टिंग और एंकरिंग दोनों का बहुत बड़ा पंखा हूँ ,और बाज़ार और दर्शको के चक्कर में मत पड़िए ,इसी चक्कर ने हिंदी सिनेमा में सृजनात्मकता और रचनात्मकता ख़त्म कर दी हैं ,लोग में वैचारिक टॉलरेंस ख़त्म होता जा रहां हैं जो की तथ्य को उजागर करने में काफी सहायता करता हैं ,सब बाज़ार को लूटने में लगे हैं ,बाज़ार को शिक्षित बनाना भी तो कोई जिम्मेदारी हैं |
आपके इस लेख को बाजपाई जी की एक कविता से जोड़ना चाहूँगा
"हानि लाभ के पलड़े में तुलता जीवन
व्यापार हो गया ,मोल लगा बिकने वाले का ,
बिन बिका बेकार हो गया"
रवीश जी ,में आपकी रिपोर्टिंग और एंकरिंग दोनों का बहुत बड़ा पंखा हूँ ,और बाज़ार और दर्शको के चक्कर में मत पड़िए ,इसी चक्कर ने हिंदी सिनेमा में सृजनात्मकता और रचनात्मकता ख़त्म कर दी हैं ,लोग में वैचारिक टॉलरेंस ख़त्म होता जा रहां हैं जो की तथ्य को उजागर करने में काफी सहायता करता हैं ,सब बाज़ार को लूटने में लगे हैं ,बाज़ार को शिक्षित बनाना भी तो कोई जिम्मेदारी हैं |
आपके इस लेख को बाजपाई जी की एक कविता से जोड़ना चाहूँगा
"हानि लाभ के पलड़े में तुलता जीवन
व्यापार हो गया ,मोल लगा बिकने वाले का ,
बिन बिका बेकार हो गया"
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