"कोई कितना भी चिल्लाता रहे अख़बार वाले सुधरते नहीं । लोगों को भड़काकर इस प्रकार अख़बार कि बिक्री बढ़ाकर कमाई करना, यह पापी तरीक़ा अख़बार वालों का है । ऐसी झूठी बातों से पन्ना भरने की अपेक्षा अख़बार बंद हो जायें या संपादक ऐसे काम करने के बजाय पेट भरने का कोई और धंधा खोज लें तो अच्छा है । "
12.2.1947- महात्मा गांधी( सौजन्य: वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत)
10 comments:
अभी भी कहाँ सुधरे हैं.....आप तो सब जानते हैं !
kabhi bhi nahi sudharange lekin ek seema khud har media person ko sochna chahiye
To the point >> !
मर्ज पुराना है. लगता है manufacturing diffect है.
तब ये हाल था अगर आज गांधी होते तो गोडसे कि गोलियो पर उनकी निर्भरता ख़त्म हो जाती
Anshumanji ke comment dil per lagne jaisee hai.
कितने साल बीत गये
पर भाव न बीता,
सब कुछ रीता।
मिडिया को भी जिम्मेदार होना चाहिए। भारत में मिडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता था। लेकिन पर्तिसप्र्ध copmtition ने इसका क्या हाल कर दिया है। ये सबके सामने है। कुछ लोग हैं जिन्हें पत्रकार कहा जा सकता है। बाकी जो है वो है ही है।
शायद इसी लिये सोशल मिडिया पर कुछ लोगो को काफी गालिया मिल रही है
Prime time pe kab darshan doge gurudev
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