हक़ से और गर्व से पलायन कीजिये । बाज़ार का सृजन ज़रूरतों के अंतर से होता है । गल्फ़ में किसी चीज़ की मांग बढ़ेगी तो उसकी पूर्ति के लिए कहीं न कहीं से लोग जायेंगे । एक राज्य के भीतर भी सीमित पलायन या सीमित विस्थापन होता रहता है । पलायन से सिर्फ आर्थिक ही नहीं सामाजिक राजनीतिक बदलाव भी आते हैं । गुजरात के लोगों ने ग़रीबी के कारण पलायन नहीं किया होगा । अवसरों के बेहतर इस्तमाल की क्षमता भी गुजरातियों को दुनिया के अलग अलग देशों में ले गई । मोदी कहते हैं कि युवाओं को यहां शिक्षा नहीं मिल रही है । वे बाहर जाने को मजबूर हैं । पंद्रह साल से गुजरात में ही कौन सा आक्सफोर्ड बन गया है । यह भी सही है कि हमारी शिक्षा की हालत खराब है । नब्बे फीसदी कालेजों की विश्वसनीयता खराब है । इसमें केंद्र की भी वही भूमिका है । क्या आप दिल्ली से मध्य प्रदेश के किसी विश्वविद्यालय में जा सकते हैं । बिहार जा सकते हैं । इस मामले में सबकी सरकार का एक ही ही हाल है ।
मोदी ने कहा कि आँध्र का युवा गल्फ़ जाने के लिए मजबूर है और फिर उसी भाषण में यह भी कहते हैं कि मेरे गुजरात के सूरत और अहमदाबाद में दस लाख तेलगू मज़े में रहते हैं । यही वक्त का तकाज़ा है । गुजरात को अलग अलग राज्यों से सस्ता श्रम मिलता है । जिस सूरत की बात मोदी करते हैं वहां की मज़दूर बस्तियों में घूम आइयेगा । दिल्ली की श्रम बस्तियों की तरह बदतर हैं । लेकिन नेता माइक पर ऐसे बोलते हैं जैसे सूरत और दिल्ली की इन बस्तियों में मज़दूर ठाठ से रह रहे हैं । हैदराबाद की साफ्टवेयर कंपनियों में देश भर से लोग नौकरी करने आते हैं । क्या मोदी उनकी तरफ़ इशारा कर रहे थे कि देखो आँध्र के युवाओं तुमको बाहर जाना पड़ रहा है ?
राज ठाकरे की मानसिकता विकास के नाम पर स्थानीयता को बढ़ा रही है । यही सोच पला़यन पर सवाल उठा रही है । ज़रूर आँध्र और बिहार का विकास होना चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन की क्षमता बढ़े लेकिन पलायन को एक अधिकार के रूप में देखने का वक्त आ गया है । पूरी दुनिया में पलायन हो रहा है । विकसित देशों में भी हो रहा है । कंपनियों का पलायन हो रहा है । कर्मचारियों का हो रहा है । पलायन से ज़िंदगी बेहतर होती है । इस मसले पर राहुल मोदी को छोड़ दीजिये सुनना । बाकवास करती है दोनों । कम से कम भाषणों में दोनों जिस तरह से पलायन को व्यक्त करते हैं वो या तो अधूरा है या राज ठाकरीय अवधारणा से प्रेरित है । मुझे गर्व है कि मैंने पलायन किया । आप भी कीजिये ।
35 comments:
आपकी बात सही है। खुद कई बार पलायन कर चुका हूँ, इसलिए इस विषय पर अधिकारिक रूप नहीं, तो कुछ अनुभवी तौर से कह ही सकता हूँ। मानव इतिहास का एक बड़ा हिस्सा पलायन पर टिका है। पलायन बहुआयामी है। मैंने ये भाषण नहीं सुने, पर आपका लेख पढ़कर लग रहा है, ये दोनों नेता इसके एक ही आयाम को बारम्बार प्रस्तुत कर, अपनी ही संकीर्ण सोच का परिचय दे रहे हैं। पलायन को हमेशा भुखमरी, ग़रीबी से देखना ठीक नहीं। ऐसा नहीं की पलायन की ये वजह नहीं होती। पर पलायन केवल इसी वजह से नहीं होता। ये ऐसे ही हल्ला करते रहेंगे। और इनकी संकीर्णता और मूर्खता लोगों के जयघोष में गूँजती रहेगी। ग़रीबी कहीं पलायन नहीं करती। वो सरकारी योजनायों की फ़ाइल में दबी पड़ी, अपना दम वहीं तोड़ देती है।
पलायन यदि विकासोन्मुख उत्तम है इस पलायन से ही अमेरिका दुनिया का चौधरी बना । हा यदि रोजगार के अवसर तो मेहनतकस इन्सान को खाद्य सुरक्षा की जरूरत नहीं होती । कभी मालवीय ने चंदे से कशी हिन्दू विश्व विद्यालय बनाया था । आज की पतित होती राजनीति में नेता को सुनने के लिए कोई अपनी जेब ढीली करे ये सुखद जरूर है ।
कमेंट की आख़िरी लाइन में एक लाइन रह गयी। "अक्सर, ग़रीब पलायन करता है, पर ग़रीबी पलायन नहीं करती। वो सरकारी … "
मुझे लगा पलायन शब्द का प्रयोग भ्रामक है................................ बाकी लेखक की मर्जी................... लेख तो स्पष्ट है ...........
#गज्जब!!
#ठीक है ना #असरदार #सर!!??
#PPANDAY #JEE??
@IAMJPMISHRA??
#jayyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyyy HOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO
पलायन के बारे में आपने जो अपना दृष्टिकोण रखा है वो सिक्के का एक ही पहलु है. पलायन को हमेशा पॉजिटिव चीज़ नहीं माना जा सकता. आप तो खुद ही बिहार से आते हैं, आपको तो पता ही होगा जितना पलायन बिहार में होता है उतना और कही नहीं होता. मैं भी मुजफ्फरपुर, बिहार से हूँ और मैंने सब अपनी आखों से देखा है. अपने बिहार में पलायन कई स्टेजो में होता है.
१. जब बच्चे दसवी पास कर लेते हैं तो कई माता पिता अपने बच्चों दिल्ली, रांची, कोटा आदि जगह भेज देते हैं, क्योंकि बिहार में अच्छे स्कूल और कोचिंग की कमी है.
२. इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई के लिए तो बाहर जाना ही पड़ता है क्योंकि बिहार में कितने कॉलेज हैं यह सबको पता है.
३. यहाँ तक कि बाकी विषयों के पढ़ाई के लिए लोग दिल्ली या मुंबई जाना ही पसंद करते हैं.
४. पढ़ाई ख़त्म होने के बाद बिहार में नौकरी मिलना तो बहुत ही मुश्किल है.
अगर बिहार में अच्छे स्कूल, कॉलेज हो तो लोग क्या तब भी पलायन करेंगे? अगर टी सी एस, विप्रो, माइक्रोसॉफ्ट, आय बी एम, एचसीएल जैसी कंप्यूटर कम्पनियां बिहार में खुल जाएँ तो क्या फिर भी वहां से लोग बंगलोर पलायन करेंगे. पलायन में कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि नौकरी और पढ़ाई के चक्कर में पूरा का पूरा युवा वर्ग राज्य से पलायन कर जाए.
जल्द ही दिल्ली की आबादी दो करोड़ हो जायेगी. बंगलोर, मुंबई, कलकत्ता जैसे बड़े शहर फटने को आ गए हैं. ट्रैफिक जाम में लोगो के घंटो निकल जाते हैं. इसका कारण है बिहार और उत्तर प्रदेश से लोग इन बड़े शहरो में पलायन कर रहे हैं. बहुत ही कम लोग ख़ुशी ख़ुशी पलायन करते हैं (आई आई टी पास करने के बाद), अधिकतर लोग रोजगार की तलाश में अपना घर, परिवार छोड़ते हैं. जरा सोचिये अगर किसी को पटना में ही अच्छी नौकरी और पैसे मिले तो वो दिल्ली क्यों जाए. जहाँ पलायन होता है वो जगह और उन्नति करते जाता है और जहाँ से पलायन होता है वो और पिछड़ता जाता है.
आप इक्छा पूर्वक करते है और हमारे जैसे को आदेश पूर्वक करना पड़ता है.……… क्या किया जाय ,लोग तथ्यों के नहीं बातो के गुलाम होते जा रहे है
अभिषेक,
आपके कमेंट दिलचस्प लगा , इसलिए उसपर कुछ टिपण्णी करना चाहूँगा।
१) जितना मेरी समझ में आया, लेख में साफ़ लिखा है कि पलायान के कारन बहुयामी हैं (जिनमें से भुखमरी भी एक है). यहाँ पलायन को "हमेशा पॉजिटिव चीज़" जैसा नहीं दर्शाया है। उसके एक और पहलू पर रौशनी डाली है (जिसे हमारे राजनेता बहुत ही सफ़ाई से नकार देते हैं, या जिसे एकनॉलेज नहीं करते)
२) और यही मेरी दूसरी टिपण्णी का पॉइंट है। ये लेख पलायन-उसके कारण और प्रभावों पर नहीं है। पलायन के राजनतिक (दूर)उपयोग पर है। कैसे नेताजी, हमारे-आपके सामने हमेशा पलायन की एक मार्मिक, दयनीय और अधूरी तस्वीर बनाकर, जनता को पूरी सच्चाई नहीं बताते (और इस भावुकता का फिर अपने फायदे के लिए इस्तमाल करते हैं)।
३) मैं आपकी आख़िर लाइन से सहमत नहीं हूँ। पलायन को केवल ("केवल" पर ज़ोर दे रहा हूँ), एक जगह की उन्नति और दूसरे जगह के पिछड़ेपन से नहीं देखा जा सकता। विकास को कोई मॉडल मुझे नहीं पता जो पलायन को रोक सकता है। या रोकना चाहता है। क्योंकि पलायन का मतलब किसी बेहतर विकल्प की तलाश भी है। अब एक ही चीज़ सबके लिए बेहतर/श्रेष्ठ नहीं हो सकती। आप एक ही शहर में क्या क्या ले आएँगे ? (मैं मूलभूत सुविधाओं की बात नहीं कर रहा)। इस हिसाब से तो अमेरिका में अंतर-राजीय पलायन कभी होगा ही नहीं।
४) इस विषय से ही जुड़ी एक बात यहाँ और कहना चाहूँगा। (ऐसा मेरा मानना है कि) ये ज़रूरी नहीं जो किसान, गाँव छोड़कर किसी शहर में दिहाड़ी मजदूरी करने जाए, उसकी और उसके परिवार की आर्थिक/सामाजिक/स्वास्थ की स्तिथि इससे बेहतर हो जाएगी। और इससे उस शहर पर क्या असर पड़ेगा ये भी जानना रोचक होगा। इस पर ज़रूर शोध होना चाहिए । हुआ भी होगा। पर मुझे जानकारी नहीं।
मोटा-मोटी मैं आपके बात से सहमत था। बस जो बात से मुत्ताफिक नहीं था उस पर, अपनी इस लेख की समझ के हिसाब से टिपण्णी की। ये बिलकुल मुमकिन है कि मेरी कोई बात सैधांतिक या तार्किक रूप से गलत हो.. मैं अपने तर्कों और व्यक्त विचारों में सुधार के लिए हमेशा तत्पर हूँ !
Andhra Pradesh sabse jyada IITians paida karta hai lagbhag 25%.Jabse Telangana ke aondolan ne jor pakda hai Bahoot se Companys ya unde headoffice Chennai, Banglore ya New Delhi main shift ho gaye hain.AP ke CMs ka sara jor Mines ko sell karne main hee raha hai. Jitna bech sako/Jo bech sake becho. Baad walon ke liye kuch mat chodo.Rahee baat palayan karne kee to yeh hamara right hai kee hum jahan chahe behtari(paise) ke liye palayan kare.Lekin yah palayan majdooree karne, juice , popcorn bechne ke liye nahi hona chahiye.
मोदी भी तो प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखते है और उनके इस ख्वाब को पूरा करने के लिए उन्हें भी तो गुजरात से दिल्ली पलायन करना पड़ेगा। उनका ये रैलियों का दौर उनके पलायन करने का पहला कदम ही तो है। तो फिर क्यो वो ऐसी बेहूदी बकवास कर लोगों में क्षेत्रवाद फैला रहे है। खैर हम ठहरे आम जनता हमारे पलायन से भले ही हमें रूखी सूखी रोटी मिले लेकिन राजनेता अपनी चुनावी रोटी बड़ी अच्छे से सेकने में माहिर है।
abhishek, mai puri tarah aapki baat se sahmat hoo.mai bhi bihar se hoo tatha palayan ka dard samjhati hoo.
जनमानस की चेतना बढे तो इन बाजीगरों को समझना मुश्किल नही
aap pappu aur feku ki baat na hi likho to accha hai coz ye dono hi bas dikhate kucch aur hia aur karte kucch aur hai...
नारे-रूपी फव्वारों के बीच,
बस चलते रहिए
http://chalte-rahiye.blogspot.in/2013/08/blog-post_12.html.
चलते-रहिए.
Gujju dispora is the one of the biggest in world ! why ? it does not mean that they can not get employnment in gujarat but all people migrate for batter opportunity !
Gujarat have worst university / college education and specially in last 15 years !
Gujrati ko naukari main kuch nahi poshata. Isliye unka higher education par koi jor nahi hai haan dusre states ke student ko padhane hon to alag baat. Agar achcha college kholna hai to faculty kahan se milegee unhe iske liye bahar se Proffesors karne honge. Faltu ka itna jhanjhat kaun kare.
Well said.makes the assesment quite holistic.
पलायन shabd ka upyog hi galat hua hai hindi me migration ke liye ..पलायन ka shabdarth bhagna hota hai aur ye neta usi sandarbh me use le rahe hain ..Migration means moving to get better opportunity and good life ..I agree completely with you ..I am an immigrant too!!
Apne home town mein agagr kuch karne ke mauke nahi milte hain aur baaher anya jaghon par zyada swatantrata se kaam karne ke chances mile to palayan karna achchha hai.
true...
रविश जी, जब पलायन मजबूरी मे करना पड़े तो वो एक त्रासदी हें। उदहारण के तौर पर, कश्मीर से पंडितों का पलायन दुखद और त्रासदी दायक हैं और हमारे सेक्युलर देश पे , एक काला धब्बा हैं और इससे विकास नहीं, बल्कि विनाश हुआ हैं, कभी इसके खिलाफ भी लिखे. और यदि पिछले दस सालों में यदि गुजरात में ऑक्सफ़ोर्ड नहीं खुला तो पिछले 37 वर्षो मे communist शासित प्रदेशों में भी कोई विकास नहीं हुआ, और ना ही कोई ऑक्सफ़ोर्ड और कैंब्रिज खुला . बल्कि जो ठीक ठाक कॉलेज थे, उनका भी कम्युनिस्ट सरकारों ने, विनाश कर दिया। कम से कम गुजरात में, आर्थिक व् सामाजिक विकास तो हुआ हैं, पर दिक्कत तो ये हैं, की, आप लोगो को ये विकास दिखाई नहीं पड़ता हैं।
आज किश्तवाड़ में दंगा हो रहा हैं, हिन्दुओं को मारा कटा जा रहा हैं, ये हाल हैं की घायल हिन्दुओं का इलाज तक सरकारी हॉस्पिटल में नहीं हो रहा हैं, और उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा हैं ये पुनीत कार्य एक सेक्युलर CM के राज में हो रहा हैं और इस पलायन के खिलाफ लिखने का कष्ट करे और एक CM आपके बिहार का, जो आज कल SECULARISM की ठेकदारी कर रहा हैं वो भी हिन्दुओं का नरसंहार, अपने मुस्लिम अधिकारीयों से करवा रहा हैं। पर ये दोनों CM सेक्युलर बने रहेंगे, पर एक CM जिसके शासन में दस सालो, से दंगा नहीं हुआ हैं, तो भी वो कम्युनल हैं, कृपया सेकुलरिज्म का ये सर्टिफिकेट हमें मंजूर नहीं हैं, ये फर्जी हैं। हम सभी लोगो को इसके खिलाफ आवाज, उठाना पड़ेगा क्योंकी रविश जी हिन्दुओं के नरसंहार और पलायन पे, खामोश रहेंगे।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियम-कायदे उस समय बदल जाते है जब यह खुद गलती करता है. अगर देश का कोई भी मंत्री भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ये चीख-चीख कर उसके इस्तीफे की मांग करता है लेकिन जब किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया का कोई पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ना तो वह अपनी न्यूज़ एंकरिंग से इस्तीफा देता है और बड़ी बेशर्मी से खुद न्यूज़ रिपोर्टिंग में दूसरो के लिए नैतिकता की दुहाई देता रहता है. कमाल की बात तो यह है की जब कोई देश का पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो उस न्यूज़ रिपोर्टिंग भी बहुत कम मीडिया संगठन ही अपनी न्यूज़ में दिखाते है, क्या ये न्यूज़ की पारदर्शिता से अन्याय नहीं? हाल में ही जिंदल कम्पनी से १०० करोड़ की घूसखोरी कांड में दिल्ली पुलिस ने जी मीडिया के मालिक सहित इस संगठन के सम्पादक सुधीर चौधरी और समीर आहलूवालिया के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा ३८४, १२०बी,५११,४२०,२०१ के तहत कोर्ट में कानूनी कार्रवाई का आग्रह किया है. इतना ही नहीं इन बेशर्म दोषी संपादको ने तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटने के बाद सबूतों को मिटाने का भी भरपूर प्रयास किया है. गौरतलब है की कोर्ट किसी भी मुजरिम को दोष सिद्ध हो जाने तक उसको जीवनयापिका से नहीं रोकता है लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी है की जो पैमाना हमारे मुजरिम राजनेताओं पर लागू होता है तो क्या वो पैमाना इन मुजरिम संपादकों पर लागू नहीं होता? क्या मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं है ? क्या किसी मीडिया संगठन के सम्पादक की समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? अगर कोई संपादक खुद शक के दायरे में है तो वो एंकरिंग करके खुले आम नैतिकता की न्यूज़ समाज को कैसे पेश कर सकता है? आज इसी घूसखोरी का परिणाम है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया का एक-एक संपादक करोड़ो में सैलरी पाता है. आखिर कोई मीडिया संगठन कैसे एक सम्पादक को कैसे करोड़ो में सैलरी दे देता है ? जब कोई मीडिया संगठन किसी एक सम्पादक को करोड़ो की सैलरी देता होगा तो सोचिये वो संगठन अपने पूरे स्टाफ को कितना रुपया बाँटता होगा? इतना पैसा किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठन के पास सिर्फ विज्ञापन की कमाई से तो नहीं आता होगा यह बात तो पक्की है.. तो फिर कहाँ से आता है इतना पैसा इन इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठनो के पास? आज कल एक नई बात और निकल कर सामने आ रही है कि कुछ मीडिया संगठन युवा महिलाओं को नौकरी देने के नाम पर उनका यौन शोषण कर रहे है. अगर इन मीडिया संगठनों की एस.ई.टी. जाँच या सी.बी.आई. जाँच हो जाये तो सुब दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आज जो गोरखधंधा चल रहा है उसको सामने लाने का मेरा एक छोटा सा प्रयास था. में आशा करता हूँ कि मेरे इस लेख को पड़ने के बाद स्वयंसेवी संगठन, एनजीओ और बुद्धिजीवी लोग मेरी बात को आगे बढ़ाएंगे और महाबेशर्म इलेट्रोनिक मीडिया को आहिंसात्मक तरीकों से सुधार कर एक विशुद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान देंगे ताकि हमारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया विश्व के लिए एक उदहारण बन सके क्यों की अब तक हमारी सरकार इस बेशर्म मीडिया को सुधारने में नाकामयाब रही है. इसके साथ ही देश में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ किसी भी जांच के लिए न्यूज़ ब्राडकास्टिंग संगठन मौजूद है लेकिन आज तक इस संगठन ने ऐसा कोई निर्णय इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ नहीं लिया जो देश में न्यूज़ की सुर्खियाँ बनता. इस संगठन की कार्यशैली से तो यही मालूम पड़ता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तमाम घपलों के बाद भी ये संगठन जानभूझ कर चुप्पी रखना चाहता है.
धन्यवाद.
राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. जनसंचार
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com और Rahul Vaish Moradabad
Kishtwad ki ghatna itihas ko ghumane jaisa hai. Mufti Md sayeed ka waqt ko wapas lane kee koshishe ho rahi hain.Lekin who waqt phir nahi aane wala. Ravee aur vyas main paani bahoot bah chucka hai. Paresh ji ka rosh natural hai.Haan is ghatna ke bare main kesee kee awaj nahi niklegee.Shayad kasmeere pandit tagde votebank nahi hain. Bihar ke CM sahib MDM se beemar bachon ko dekhne nahi gaye kyon unke pair main chot nahee the. Punch main Bihar ke paanch sapoot mare gaye who us samay Delhi main Pichda state ke muttalik meeting karne gaye the unke ministers ke paas time nahi tha they are too busy Lekin CM sahib Eid ke din Gandhi maidan main Topee(Raja Murad wali)pahne sabse Eid mil rahe the.
देश ब्राउनियन मोशन में घूम रहा है, बेचारा पार्टिकल जहाँ तहाँ घूम रहा है।
मानव सदियों से पलायन वादी रहा है ... मज़बूरी से या मर्ज़ी से ..नेता लोग नेता गिरी करते हैं पर जिस स्तर पे पलायन हो रहा है ये वाकई चिंता का विषय है ..बाड़मेर,जैसलमेर से लोग इसलिए पलायन कर गए क्यूँ के वहाँ पीने का पानी नहीं है ..और ६० सालों से किसी सरकार ने इस्सका हल निकलने की कोसिस भी नहीं की ..बजाय इसके हर सरकार जयपुर और जोधपुर को डेवलप करने में लगी है.लेकिन दूसरी तरफ लाखो मारवाड़ी ऐसे भी हैं जो व्यापार करने के मकसद से पलायन करते हैं..पलायन के दो पहलु हैं एक दुखद एक सुखद ..लेकिन दोनों स्थितियों में उन् शहरों की हालत खराब है जिनमे ये पलायन होता है..एक तरफ सिमित संसाधन होने और सिमित क्षेत्र में जनसँख्या बढ़ने के कारन उनकी हालत बिगड रही है दूसरी तरफ वो इलाके जहाँ से पलायन हो रहा है वो खाली हो रहे हैं जिससे उन् इलाको में उदासी सी छाई है अगर समय रहते कोई कारगर योजना न बनाई गई तो अजीब स्थिति में देश पहुँच जायेगा ..
एक समय था जब घर में चार भाइयों में से एक या दो भाई पलायन करते थे बाकी सब लोग गाँव में ही रह के जिंदगी गुजरते थे ...पर आज हालत अलग है ..बच्चो की पढाई के नाम पे ,बीवी की खटपट मिताने को .. और अन्य व्यावहारिक से लगने वाले कारणों से पलायन हॉ रहा है.. पीछे बचते हैं तो सिर्फ बूढ़े माँ और बाप .. मैं शत प्रतिशत तो नहीं कह सकता पर सामन्य बुध्धि यही कहती है गांधी के "स्वराज" मोडल इस समस्या का हल है ..पर पता नहीं क्यूँ हमने उसे आज़ादी के बाद से व्यावहारिक नहीं माना हो सकता है १००% वो व्यावहारिक न लगे लेकिन अगर उसका ५०% भी अपनाया जाये और उसपे काम किया जाये तो दुखद पलायन को रोका जा सकत है ..!!
आज के भ्रष्ट्राचार से इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी अछुता नहीं है, आपने भले ही आज जनसंचार में PH.D क्यों न कर रखी हो लेकिन आज का इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो उसी फ्रेशर को नौकरी देता है जिसने जनसंचार में डिप्लोमा इनके द्वारा चालए जा रहे संस्थानों से कर रखा हो .. ऐसे में आप जनसंचार में PH.D करके भले ही कितने रेजिउम इनके ऑफिस में जमा कर दीजिये लेकिन आपका जमा रेजिउम तो इनके द्वारा कूड़ेदान में ही जायेगा क्यों की आपने इनके संस्थान से जनसंचार में डिप्लोमा जो नहीं किया है ..आखिर मीडिया क्यों दे बाहर वालों को नौकरी ? क्योंकि इन्हें तो आपनी जनसंचार की दुकान खोल कर पैसा जो कमाना है .आज यही कारण है की देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में योग्य पत्रकारों की कमी है. देश में कोई इलेक्ट्रोनिक मीडिया का संगठन पत्रकारों की भर्ती करने के लिए किसी परीक्षा तक का आयोजन भी नहीं करता जैसा की देश में अन्य नामी-गिरामी मल्टी नेशनल कंपनियाँ अपने कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करती है. यह महाबेशर्म इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सिर्फ अपनी पत्रकारिता संस्थान की दुकान चलाने के लिए ही लाखों की फीस लेकर सिर्फ पत्रकारिता के डिप्लोमा कोर्स के लिए ही परीक्षा का आयोजन कर रहा है. आज यही कारण है कि सिर्फ चेहरा देकर ही ऐसी-ऐसी महिला न्यूज़ रीडर बैठा दी जाती है जिन्हें हमारे देश के उपराष्ट्रपति के बारे में यह तक नहीं मालूम होता की उस पद के लिए देश में चुनाव कैसे होता है? आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के गिरते हुए स्तर पर प्रेस कौसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी काफी कुछ कह चुके है लेकिन ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुधरने का नाम ही नहीं लेता ….इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो पैसों से खेलने वाला वो बिगड़ा बच्चा बन चुका है जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है
आज के भ्रष्ट्राचार से इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी अछुता नहीं है, आपने भले ही आज जनसंचार में PH.D क्यों न कर रखी हो लेकिन आज का इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो उसी फ्रेशर को नौकरी देता है जिसने जनसंचार में डिप्लोमा इनके द्वारा चालए जा रहे संस्थानों से कर रखा हो .. ऐसे में आप जनसंचार में PH.D करके भले ही कितने रेजिउम इनके ऑफिस में जमा कर दीजिये लेकिन आपका जमा रेजिउम तो इनके द्वारा कूड़ेदान में ही जायेगा क्यों की आपने इनके संस्थान से जनसंचार में डिप्लोमा जो नहीं किया है ..आखिर मीडिया क्यों दे बाहर वालों को नौकरी ? क्योंकि इन्हें तो आपनी जनसंचार की दुकान खोल कर पैसा जो कमाना है .आज यही कारण है की देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में योग्य पत्रकारों की कमी है. देश में कोई इलेक्ट्रोनिक मीडिया का संगठन पत्रकारों की भर्ती करने के लिए किसी परीक्षा तक का आयोजन भी नहीं करता जैसा की देश में अन्य नामी-गिरामी मल्टी नेशनल कंपनियाँ अपने कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करती है. यह महाबेशर्म इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सिर्फ अपनी पत्रकारिता संस्थान की दुकान चलाने के लिए ही लाखों की फीस लेकर सिर्फ पत्रकारिता के डिप्लोमा कोर्स के लिए ही परीक्षा का आयोजन कर रहा है. आज यही कारण है कि सिर्फ चेहरा देकर ही ऐसी-ऐसी महिला न्यूज़ रीडर बैठा दी जाती है जिन्हें हमारे देश के उपराष्ट्रपति के बारे में यह तक नहीं मालूम होता की उस पद के लिए देश में चुनाव कैसे होता है? आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के गिरते हुए स्तर पर प्रेस कौसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी काफी कुछ कह चुके है लेकिन ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुधरने का नाम ही नहीं लेता ….इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो पैसों से खेलने वाला वो बिगड़ा बच्चा बन चुका है जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है
आज के भ्रष्ट्राचार से इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी अछुता नहीं है, आपने भले ही आज जनसंचार में PH.D क्यों न कर रखी हो लेकिन आज का इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो उसी फ्रेशर को नौकरी देता है जिसने जनसंचार में डिप्लोमा इनके द्वारा चालए जा रहे संस्थानों से कर रखा हो .. ऐसे में आप जनसंचार में PH.D करके भले ही कितने रेजिउम इनके ऑफिस में जमा कर दीजिये लेकिन आपका जमा रेजिउम तो इनके द्वारा कूड़ेदान में ही जायेगा क्यों की आपने इनके संस्थान से जनसंचार में डिप्लोमा जो नहीं किया है ..आखिर मीडिया क्यों दे बाहर वालों को नौकरी ? क्योंकि इन्हें तो आपनी जनसंचार की दुकान खोल कर पैसा जो कमाना है .आज यही कारण है की देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में योग्य पत्रकारों की कमी है. देश में कोई इलेक्ट्रोनिक मीडिया का संगठन पत्रकारों की भर्ती करने के लिए किसी परीक्षा तक का आयोजन भी नहीं करता जैसा की देश में अन्य नामी-गिरामी मल्टी नेशनल कंपनियाँ अपने कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करती है. यह महाबेशर्म इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सिर्फ अपनी पत्रकारिता संस्थान की दुकान चलाने के लिए ही लाखों की फीस लेकर सिर्फ पत्रकारिता के डिप्लोमा कोर्स के लिए ही परीक्षा का आयोजन कर रहा है. आज यही कारण है कि सिर्फ चेहरा देकर ही ऐसी-ऐसी महिला न्यूज़ रीडर बैठा दी जाती है जिन्हें हमारे देश के उपराष्ट्रपति के बारे में यह तक नहीं मालूम होता की उस पद के लिए देश में चुनाव कैसे होता है? आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के गिरते हुए स्तर पर प्रेस कौसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी काफी कुछ कह चुके है लेकिन ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुधरने का नाम ही नहीं लेता ….इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो पैसों से खेलने वाला वो बिगड़ा बच्चा बन चुका है जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है
ठीक कह रहें रविशजी। चलिए "पलायन" बुरा लगे तो "प्रवास" कर लीजये। अनुकूलता के लिए पलायन होता आया है और होता रहेगा। क्या हमारे देश के विकसित राज्यों ने अपने निवासियों को सब कुछ शत प्रतिशत दे दिया है? अगर नहीं तो उप्र और बिहार की बात रहने दें। हमारे देश के अन्य हिस्सों में गुजराती बसते है? मोदीजी तो "गुजराती थाली" का स्वाद ही कसैला किये दे रहे है। राहुलजी को अभी बहुत कुछ जानना शेष है।
SIR MAI PALAYAN KO TO SAHI MANTA HU, LEKIN KYA WO PALAYAN SAHI HAI JO HUMARE DESH ME DOCTOR ENGINEER SCIENTIST KI GHOR KAMI HONE KE BABJUD PALAYAN HOTA HIA ABROAD KE LIYE. AMERICA KA NASA MICROSOFT ZEROX AUR PATA NHI KITNI COMPANY KO HUMARE DESH SE HONE WALE PALAYAN SE CHALAYA JAA RAHA HAI AUR HUM EK BHI MULTINATIONAL BRAND CREAT NHI KAR PAA RAHE HAI..?
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