किरण-ओरहान को देखने के लिए


जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में लेखकों के प्रति लोगों की दीवानगी देखते बनी। सुनने वालों की एकाग्रता भी हैरान कर रही थी। हर बैठक में कोई न कोई किसी न किसी विषय पर बोल रहा था मगर कहीं भी बैठने की जगह नहीं मिल पा रही थी। ओरहान पामुक और मदनगोपाल सिंह, अली सेठी जैसों को सुनने के लिए लोग एक घंटा पहले से जगह छेक कर घूम रहे थे। कुर्सी पर अपना बैग और किताब छोड़ कर। पामुक और किरण देसाई पर खास नज़रें रहीं। लोग एक घंटा खड़े-खड़े उन्हें सुनते और देखते रहे। निहारते भी।


एक अंग्रेज़ी अख़बार को उनकी अंतरंगता में बन रहे या बन चुके एक रिश्ते की झलक दिख रही थी। किस्से चल निकले थे। किरण और ओरहान जब भी एक दूसरे को देखकर मुस्कियाते,लोगों को लगता देखा अंग्रेजी अखबार ने ठीक लिखा है। कुछ तो है। पर जो भी था या जो भी नहीं था वो सबके सामने था। इतनी भीड़ में दोनों अपने लिए स्पेस बना ले रहे थे।







मदन गोपाल सिंह को सुनने के लिए भीड़ बावली हो उठती थी। सभी भाषाओं और तबके के लोग थे। वो बता रहे थे कि कैसे बुल्ले शाह को गाते-गाते आप जब कहीं किसी शब्द पर अटक जाएं तो वहां से आप खुसरों पर चले जाइये, वहां लूप बनाते हुए लौटकर उस शब्द पर आ जाइये। उनके साथ पाकिस्तान से आए अली सेठी का भी अपना जलवा रहा।

14 comments:

नीरज गोस्वामी said...

मन में कसक थी के जयपुर का बाशिंदा और किताबों का घनघोर प्रेमी होने के बावजूद मैं इस फेस्टिवल से दूर हूँ...आपके ब्लॉग पर आ कर ये कसर पूरी हो गयी...आँखों देखा हाल लिखा हो जैसे आपने...कमाल का लेखन...बधाई

नीरज

संतोष कुमार said...

अच्छी लग रही है साहित्य प्रेमियों की यारी ....

प्रवीण पाण्डेय said...

लेखकों और पुस्तकों के प्रति प्रेम, अच्छा लग रहा है।

Samdarshi Pali said...

क्या आप टीवी के लिए भी जयपुर फेस्टिवल को रिपोर्ट कर रहे है? किस दिन और समय पर प्रसारण है? मुझे उत्सुकता से आपकी रिपोर्ट का इंतज़ार है.

समदर्शी

Satish Chandra Satyarthi said...

चित्रों से तो लिटरेचर का ही फेस्टीवल लग रहा है.. साहित्य का नहीं ... ;)
असगर वजाहत की कहानी सरगम-कोला यद् आ रही हैं

डॉ. मोनिका शर्मा said...

किताबों के प्रति रुझान..... अच्छा लगा देखकर ...

कुमार राधारमण said...

हर अच्छा लेखक एक गंभीर पाठक होता है। जब पाठक गंभीरता से सुनने लगें,समझना चाहिए कि लेखक कहीं आसपास ही है।

Harshvardhan said...

ravish sir, kya is baar aapi ravish kii report ka aakarshan yahi jaipur literature festival hai kya?

Yashwant R. B. Mathur said...

आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
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गणतंत्र को नमन करें

Manoj Kumar said...

वाह! बहुत ही अच्छी जानकारी. घर बैठे-बैठे लिटरेचर फेस्टिवल की सैर हो गई. बहुत-बहुत धन्यवाद.

डॉ .अनुराग said...

ऐसे मेले भी अपनी आवाज दूर तक सुना रहे है ...अच्छा लगता है ...संवाद का एक जरिया होने के साथ...अगली पीढ़ी में किताबो की बाबत दिलचस्पी..भी बढ़ेगी.....

मनोज पटेल said...

किताबों में दिलचस्पी बढ़ाते हैं ऐसे मेले, हम दूर- दराज के लोग मेले की रपटों और तस्वीरों से ही संतोष कर ले रहे हैं... आभार आपका !!

Amitabh Singh said...

interesting hai waha bhi sab dekhne hi aate hai hum dekhne ke aadi jo ho gaye hai

Unknown said...

aaj mai aap biog pahli bar pad raha hoon.''accha likten hain aap.