विवेकानंद-जीवन के अनजाने सच
शंकर की लिखी हुई किताब है। काफी शोधपरक है। एक महान सन्यासी कैसे अपने गृहस्थ जीवन के झमेलों से जूझ रहा है और किस तरह से उसकी मां तमाम झंझावातों के बावजूद अपने बेटे को सन्यास पथ की ओर जाने देती रहती है। विवेकानंद के विचारों, मूर्तियों और भंगिमाओं से हम कभी न कभी प्रभावित रहे हैं। लेकिन उनके जीवन के इन तमाम मामूली पलों से गुज़रना और एक शख्स को निरंतर अपने होने की प्रक्रिया में सधते रहना,दुखद और सुखद दोनों हैं। यह पुस्तक समीक्षा नहीं है। आपसे एक अच्छी पुस्तक के बारे में साझा कर रहा हूं।
सच ही मां बेहद अभागी थी। तीनों बेटों ने उन्हें अशेष दर्द दिया। उस समय भुवनेश्वरी रामतनु बोस लेन में गंभीर शोक में डूबी रो रही थी। बाबूराम महाराज खुद भी दुखी हो आए और जोगेन महाराज मां को सान्तवना देने लगे। रात नौ बजे, संन्यासी द्वय बाग़बाज़ार लौट आए। योगींद्रबाला का मृत्यु-समाचार स्वामी सारदानंद के मार्फत अल्मोड़ा में विवेकानंद को मिला। विवेकानंद भी काफी दुखी हुए। लेकिन,संसार से अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़ने के लिए,संन्यासी का कैसा दर्द भरा संग्राम था।
ऐसे तमाम किस्से हैं विवेकानंद की ज़िदगी के। वो दुनिया के सामने एक आदर्श रच रहे हैं लेकिन पिछले दरवाज़े से अपने पीछे की गृहस्थी से मुकाबला भी कर रहे हैं। वो संसार में हैं। सच और शून्य को परिभाषित करने वाला यह संन्यासी अपने अतीत के सामाजिक जीवन के तमाम फरेबों से भी भिड़ा जा रहा है। यात्रा बुक्स और पेंगुइन बुक्स ने इस किताब का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद छापा है। बांग्ला में इस किताब की एक लाख कॉपी बिक चुकी है।
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6 comments:
विवेकानन्द के बारे में पढ़ना अपने आप में एक अनुभव है।
कुछ लोग अलग मिटटी .अलग सोच के बने होते है
रामकृष्ण मिशन के ही एक सन्यासी (हंसी में) कहा करते थे- गृहस्थी की झंझटें आपलोगों से सुनता हूं तो लगता है कितना आसान है सन्यास का रास्ता.
खरीदूँगी...ज़रूर..
Kitab dhoodhne laga hoon. Jane anjane main bhi Vivekanandji se mutassir raha hoon. Do mahine pahle hee kaniyakumari Main Vivekanand rock hokar aaya hoon. Bahoot hee acha anubhav raha.
बहुत सुन्दर रवीश जी| यह पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा हृदय में तीव्र हो चुकी है| धन्यवाद इस जानकारी को साझा करने के लिए,
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