आज बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं
दोस्तों, आप चाहें तो मुझे जितनी गालियां दे लें, पर ये सच है कि इस बार की रवीश की रिपोर्ट करते वक्त अपने किरदारों की कहानी पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था। ये हैरानी तब हो रही थी जब मैं हर हफ्ते ऐसी बस्तियों और लोगों के बीच होता हूं। सहबा फ़ारूक़ी को मैं कई सालों से जानता हूं। वो पिछले तीन महीने से इस बारे में बता रही थीं। कुछ व्यस्तता और कुछ हैरानी की वजह से उनकी बताई कहानी की तरफ नहीं मुड़ सका। हम पत्रकारों का चरित्र वाकई बदल गया है। महंगाई का असर तो हो रहा है इस बात पर यकीन करने में हैरानी बिल्कुल नहीं थी। महंगाई के कारण औरतें अब प्याज़ की जगह ज़ीरे में सब्ज़ी पका रही हैं यह भी मैं जानता था और उनकी तक़लीफ़ को महसूस कर रहा था। मगर कोई दो रुपये के लिए आठ घंटा काम करे,इस पर तभी यकीन हुआ जब जाकर कई ऐसी औरतों से मुलाकात की। दो दिनों तक जब दिल्ली न्यूनतम तापमान की गिरफ्त में थी, मैं दिल्ली की तमाम बस्तियों में इनकी ज़िंदगी के संघर्ष की गर्माहट से कांपता रहा।
पहले गया फिल्मिस्तान के पास के मानकपुरा, फिर गया बादली गांव के पास की जे जे क्लस्टर कालोनी, फिर गया बवाना औद्योगिक क्षेत्र, फिर गया पूर्वी दिल्ली स्थित सोनिया विहार, फिर गया पुरानी दिल्ली के भीतर की गलियों में, कई औरतों से मिला। जो बड़ी-बड़ी कंपनियों का काम कर रही हैं। इनके हर काम की कीमत १४४ पीस के हिसाब से तय होती है। पचीस पैसे से लेकर एक रुपये सत्तर पैसे तक। ये वो औरतें हैं, जिनमें से ज्यादातर महंगाई के बाद मज़दूरी करने के लिए विवश हुई हैं। कहीं कोई साठ किलो रद्दी काग़ज़ से एक किलो गत्ता निकालता है तो साठ पैसे मिलते हैं तो पूनम बारह ज़ुराबों को सीधी करती है तो पचीस पैसे मिलते हैं। एक औरत ने बताया कि सलवार सूट और कूशन कवर पर लगने वाले गोल शीशों की छंटाई से उनकी उंगलियां कट जाती हैं। एक बोरी में दस किलो शीशे होते हैं। पहले उन्हें पांव से तोड़ते हैं, फिर गोल-गोल शीशे छांटते हैं। पांच किलो के पांच रुपये मिलते हैं। अगर सौ ग्राम कम हो गया तो ठेकेदार कोई पैसे नहीं देता।
ये तस्वीर दिल्ली के बवाना की है। यहां गली गली में औरतें चून को डिब्बियों में भरती हैं। दस किलो चूने को डिब्बी में भरने के लिए पूरे दिन लग जाते हैं। एक किलो भरने के बाद एक रुपये सत्तर पैसे मिलते हैं। सर्दी में यह काम करने से चूने से इनके हाथ कट जाते हैं। घाव हो जाते हैं। बहुत सारे मसले हैं जिनके बारे में आप रवीश की रिपोर्ट में देख सकते हैं। इस बार एक निवेदन है, ज़रूर देखियेगा और दोस्तों को ज़रूर बताइये कि वे भी इस रिपोर्ट को देंखें
यह तस्वीर साजिदा के घर की है। उसने चूने से अपने घर को व्हाईट हाउस बना दिया है। बोली कि बस्ती भी गंदी है। चूना हाथ काट लेता है तो क्या हुआ कम से कम सफेद तो है। मैं उसके इस जवाब से हिल गया हूं। पिछले एक साल से दिल्ली और आस-पास की शहरी ज़िंदगी के अंतर्विरोधों में भटक रहा हूं,शायद इसीलिए पत्थर सा हो गया था,लेकिन इस बार भीतर तक हिल गया हूं। ईश्वर की दुआ से सब कुछ है मेरे पास। इनकी कहानी के बाद लगा कि कितना कम है। हम वीकली ऑफ के लिए मरते हैं, वे हर उस पल के लिए मरती हैं जिसमें वो जागती रहें और पचीस पैसे कमाती रहें। समय याद रखिएगा शुक्रवार रात 9:28,शनिवार सुबह 10:28,रात 10:28,रविवार रात 11:28,सोमवार सुबह 11:28
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58 comments:
भयावह है ये.. बहुत बहुत खतरनाक.. :(
Durbhagyapurna hai.....Baat sirf Dilli ki hi nahi...aise bahutere jagah hain aur isase bhi bure halaat....
Ravish Sir,isthiti chintajanak hai....aap isko apni report k madhyam se saamne lane ja rahe hai ... jarur dekhunga......
ये कैसी विडंबना...............
जय हो भारत भाग्य विधाता...
महानगर मे डेली वेजेज का यहा न्यूनतमांक स्तब्ध करने वाला है..क्या कहूँ..हालाँकि आंचलिक इलाकों मे मैने स्वयं देखा है कि कैसे इम्ब्राइडरी और कालीन के काम मे ग्रामीण औरतें १०-२० रुपये प्रतिदिन पर १२-१२ घंटे रोज काम कर अपनी उंगलियाँ गला देती हैं..और फिर उन्ही आइटम्स के एक्स्पोर्ट से एजेंट्स और व्यावसाई रोज के दसियों हजार कमाते हैं..भयावह है यह..खैर उदासीनता के इस आत्ममुग्ध अंधेरे मे आप जैसी खोजी टार्चें हैं तो कभी सही रास्ता मिलेगा..ऐसी उम्मीद बनी रहती है..
रवीश जी , हमने तो आज ही टी वी पर न्यूज में ये सारी रिपोर्ट देख ली । बहुत हैरान कर देने वाली रिपोर्ट है । सच में यकीन नहीं हो रहा है । मानवता का ऐसा शोषण ! भयावह ।
दो रुपये के लिए 8 घंटे काम .....विश्वास तो नही होता....क्या खाते है और क्या बचाते है....जानकार अजीब लगा ऐसा भी होता है....:(
अच्छा लगता है यह देखकर की आपकी नज़रें इन्हें ढूंढ निकलती हैं. पर संवेदनाओं से भरे एक रिपोर्ट के अलावा इनके लिए और क्या किया जा सकता है? मंहगाई वक़्त के साथ इनके और आपके बीच की खाई को बढाता जायेगा.. और फिर शायद ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ती ठंढ से इनको एक दिन आपसे दूर ले जायेगा.. कुछ अच्छी यादों के साथ की कभी ये रविश की रिपोर्ट के ज़रिये NDTV पर आये थे..
आपकी कई अच्छी रिपोर्ट देखी है हमलोगों ने, और आगे भी देखते रहेंगे वादा है क्युंकि आप मृत हो चुकी मीडिया में जीवित पत्रकार हो.
बेहतर भारत के निर्माण में भी अपना योगदान दे नही तो ये लोग हमेशा सिर्फ रिपोर्ट मेंदिखते रहेंगे. ये उम्मीद आपसे इसलिए है क्युंकि आप नीतिनिर्धारकों के बीच रहते हैं :)
बस्ती की ये तस्वीरें और इनके बारे में वर्णन... वाकई में झुरझुरी सी आ गयी...यहाँ जिंदगी कितनी मजबूर और असहाय है...
when i came delhi.. a woman lived in frony of my room done same things.
हालांकि कई बार ऐसा खुद भी देखा लेकिन गरीबी के इतने सारे रूप देख सच में दिल दहल गया.. सोचता हूँ कि सिर्फ इन्हें देख कर आह कहने से काम नहीं चलेगा.. कुछ करना होगा हमें... वो कुछ क्या होगा वो भी जल्द ही समझना होगा. शुक्रिया रवीश जी. यह प्रसारण यू.के. में किस समय होगा कृपया बताने का कष्ट करें.
यह सब देख कर मैं भी हिल गया, रवीश जी...ये वो सच हैं जो शायद दुनिया के सामने ही न आते .... यूं ही सचddd को दिखाते रहिये, आप की रिपोर्ट सभी को अपने अंदर झांकने का अवसर देती हैं...
देख तेरे इस देश की हालत, क्या हो गयी भगवान......
यह शहरी चेहरे की झलक दिखाई आपने. कुछ तस्वीरें गांवों की हो सकती हैं, जहां पहली नजर में तो लोग ताश खेलते निठल्ले बैठे नजर आएंगे, लेकिन फिर कुछ देर में ही काम और खाली हाथों का असंतुलन दिखने लगता है, कारण शायद कुछ नहीं और कारक जाने-अनजाने पचीसों.
सही में बहुत भयावह है ये :(
ओफ्फ...
मुझे याद है ऐसा ही कुछ मैंने १९९७-९८ में बिहार में एक जगह देखा था.. उस छोटी सी फैक्टरी में गंदी शीशी-बोतलें आती थी. औरतें और बच्चे उनको कास्टिक सोडा के पानी से भरे ड्रमों में साफ़ करते थे.. फिर नए ढक्कन लगकर वो दवा, प्रसाधन और कोला कंपनियों की फैक्टरियों में जाती थी..
उस समय हाई-स्कूल में था.. ठीक से याद नहीं पर १०० बोतल को ठीक से धोने और पोंछने के २ या ४ रूपये मिलते थे....
आपकी रिपोर्ट का इंतज़ार है...
agar aapko maalum hai ki news channels kewal bakwaas dikhati hain....to kyoun jude hue hain...I appreciate your works but try to do something other then just complaining about the current system....garib india ke liye kewal 30 min our baki keliye dinbhar......kya yahi aapki patrakarita hai....amitabh bachan uske pote ke sath goa me masti karraha hai usko dekhaie front page par...lekin kisi garib ke pukaar sunna nahi hain......bas lageraho paisa kamaane mein...save tigers....save **** ...ye sab lekin pehle insaniyat ki kimat to samjho...kamse kam garibo ko dekhasakte ho unke haalat ke baare mein puchsalte ho......lekin esab se paisa thodina milega....ye sab mein isliye kehrahaan hun ki ap mein kuch insaniyat hai.....
रविश जी,
ये हकीकत है भारतीय समाज की, जहा पर पेट्रोल या बिजली के दाम जरा से बढ़ जाए तो राजनीतिक पार्टियां हाहाकार मचाने लगती है, मगर इन गरीबो की सुध लेने वाला कोई नहीं है .....
दामो मे जरा सी व्रद्धि होने पर एक कार वाला भी महंगाइ का रोना रोने लगता है लेकिन इन बे-कार (बेकार नहीं) लोगो से तो पूछिये इन पर महंगाइ का क्या असर हो रहा है ?
सरकार के मंत्री लोग भी महंगाई का रोना रो रहे है और मीडिया इसे Breaking News बना कर दिखा रहा है ... मीडिया प्याज का रोना रो रहा पर यहा ऐसे भी लोग है जिनको सुखी रोटी भी नसीब नहीं है
मेरा भारत महान ???
ravishji aapki report nahi miss karunga...aapne dilli ka ek aisa chehra dikhane ki koshish ki hai ..jo hum jaante hi nahin..yeh kaam ek baar nahi aap baar baar karte hain aur yahi aapki lekni or report ki jaadugiri hai...lagta hai aap har khabar apni sachai se jodte hain..aur isliye ravish ji bas ek hi hain is jagat mein...dhanyavad ndtv humein ravish ji se rubaru karvane ke liye aur is soch ko jagriti dene ke liye...........
Hi Ravish sir. Main aaj pahli baar aapke blog par aayi aur yeh report padh kar wakai dil dahal gaya ki bharat ki rajdhani ka bhi yah haal hai????? NDTV ke darsakon ke liye aap ek jana mana chehra honge maine to kabhi dekha nai Hindustan akhbar ke sampadakiye pristh par aapka naam aur blog charcha padhi hai bas
रवीश जी आपने लेंस से तो देख लिया कालोनियों में जा कर उनकी खस्ता हाल , कितनी मेहनत का कितना पारिश्रमिक ! किन्तु मुझे बिलकुल अचरज नहीं हुआ. क्योंकि ये तो असंगठित क्षेत्र है किन्तु आप छोटी छोटी एवं मझोली फक्ट्रियों में यदि जाये तो इससे भी बुरी दशा आपको मिलगी जिसे सरकारी भाषा में संगठित क्षेत्र कहा जाता है हर संभव है कि आपका गेट के अन्दर प्रवेश वर्जित हो और जिन्हें सवाल जबाब करें वे शायद मुनाशिब जबाब ना दे सकें क्योंकि उनके नियोक्ता आपके साथ में होंगे . यही है आज का उदित भारत .
कैसी बात कर रहे हैं सर
भारत विकास की राह पर है
और आप ऐसी तस्वीरें पेश कर रहे हैं
मंहगाई है कहां...
झारखंड में 100 करोड़ की शराब पी गई
दिवाली में कारों की अद्वितीय खरीददारी की गई...
मरा होगा कोई ठंड से...
भूख से...
या फिर बीमारी से...
जवाब मिलेंगे तो होंगे आपको, सरकारी से...
सरकार तो कर रही है
रोबोट पीएम ने कहा है
कृषि मंत्री ने जपा है
लगता है आप सरकार से व्यक्तिगत रूप से खफा हैं
तभी तो ये तस्वीर दिखा रहे हैं...
ये तो इन लोगों की स्याह तकदीर है
और आप इसे इनडायरेक्टली या डायरेक्टली
सरकार का फैल्योर बता रहे हैं...
Yeh duniya kaunsi sadi mein hai??? RBI is getting rid of 25 paise & what the hell is happening here... Shouldn't that Mahajan asshole be screwed??? Me & my hubby appreciate u & ur works a lot.... That is a different thing all together, I would love to see something happening through this report.... Just reporting & no reaction is of no use right?
Ash...
(http://hastkala-oceanichope.blogspot.com/)
अच्छी रिपोर्ट है. इस प्रकार की बातें मिडिया के जरिये सामने आती रहनी चाहिए. व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई आह उफ्फ नहीं हुई क्योंकि मेरे चारों ओर इसी तरह के लोग फैले पड़े है या यूँ कहें मैं भी उनमे से ही एक हूँ.
Wakai, Aaj Bahut Sharminda mehsus kar raha hoon. Kaash inka dard aur sangharsh hamare un netaon ko dikhta, jo Bhrastachar ke nit naye record bana rahe hain.
may god give them power to survive in such horriffic conditions, because so called sarkar of Aam Aadmi is busy in covering up their corruput politicians
ये रिपोर्ट को देख कर विश्वास नहीं होता पर जैसा आप ही ने कहा की एक पाव दूध तो आ ही जाता है
सच तो ये है की नुनतम मजदूरी जैसा कुछ नहीं होता
आप बधाई के पात्र हैं
और पीड़ा के भी पात्र हैं आप खुद और हम जैसो को पीड़ित करते हैं क्यूंकि होने वाला कुछ है नहीं
सरकार ने कान में सीमेंट ड़ाल रखा है आखों में चर्बी है इनके कर्म विचार और वाणी में जब तक साम्यता नहीं आएगी कुछ भी नहीं होने वाला
साजिद उस्मानी
नमस्कार!
आपने यह स्थिति सामने लाई. ऐसा ही देश हमारा है. यहाँ चिदंबरम जी को सब कुछ पता है. विकास का सूचकांक देखिये .गलियों में क्यों जाते हैं. मनमोहन जी का राज है. अर्थशास्त्र नहीं जानते हैं क्या? अहलुवालिया जी से पूछ लीजिये?
खौफ़नाक! हौलनाक!! शर्मनाक!!!
Ravish Ji! Aapki report wakai kabile tareef aur such se rubaru karati hai lekin yeh tasveer ka sirf ek pahloo bhar hai. Pata nahi aapka kabhi pala pada hai ya nahi, gaaon mein aaj majduron ki bargaining ki wajah se koi kheti karna nahi chahta.ye log shahri dubbey wali jindgi ke bajai agar apne gaaon mein jakar mehnat karein to kahin jyada sukh se rah sakengey.
रविश जी...कल ही देखी थी आपकी पोस्ट कुछ कहना चाहती थी ..पर हमेशा की तरह खामोश रहना उचित लगा..लेकिन आज सुबह से हर जगह facebook ..buzz ..जहा भी नजर गयी...आपकी पोस्ट दोस्तों ने शेयर कर रखी थी..क्या कहू...आपके पोस्ट को पढने वालो की मासूमियत..उनका ये अफ़सोस जताने का तरीका...ये सभी सिलिकॉन velly के लोग..क्या वो भारत में नहीं रहते..क्या उन्हें यहाँ की सच्चाई नहीं मालूम..दिल्ली..की हकीक़त...कभी झारखण्ड जाइये...सिर्फ झारखण्ड ही क्यूँ...आधे भारत की आधी आबादी का यही हाल है...कहा कहा नहीं होता उनका शोषण...
बुरा मत मानियेगा...एक सवाल है..क्या इस रिपोर्ट के बाद उनकी हालत में कुछ बदलाव होगा...और भी कई बाते हैं पर छोडिये...और हा आज आपकी रिपोर्ट मैं ना देख पाऊ...क्यूंकि...फिर देखकर मैं खुद से शर्मिंदा ना हो जाऊ...
Bhaiya apka blog facebook pe share nahi ho pa rha hai.kaise karu?
मीडिया के चलते हम जानते हैं कि भारत में लगभग १.१२ अरब जनसँख्या में से २६% जनता (लगभग २९ करोड़?) गरीबी की रेखा के नीचे रह रही है,,,महाराष्ट्र में ही पिछले १३ वर्ष में लगभग २ लाख किसानों ने आत्म-हत्या कर ली, आदि आदि,,,किन्तु आम आदमी सहानुभति देने के अतिरिक्त क्या कर सकता है?
यही है आज का उदित भारत .
रवीश, आपके ब्लॉग से जब फेसबुक पर लिंक शेयर करते हैं, तो ब्लॉग के डिस्क्रिपशन में यह लिखा आता है-
दिनेश श्रीनेत... इंद्रजाल कामिक्स का स्वपनलोक
आपके ब्लॉग की सेट्टिंग में कुछ खराबी है. आप एक बार ट्राई कीजिएगा.
क्या बोलूँ...इसे ही दुर्दशा कहते हैं....
बेहद अफसोसजनक .....
रविश जी
सरकार को कौन बताए भारत का असली विकास दर
हम किस बात पर घमंड करते है,
लोग मंदिरों में भगवान को हजारों लाखों का चढावा
चढाते है - देश के तमाम N G O साल में करोड़ों रूपए
दान में लेते है, सब खेल है....................,
अपना हाथ जगन्नाथ ये काम करके पेट पालते है
इसलिए इनका कोई नहीं,
http://narayanmishra12.blogspot.com/
रवीश जी काफी हैरान कर देने वाली प्रस्तुति है आपकी........... सच इनका दर्द देख लगता है दर्द की कोई सीमा नहीं.
ये सच है..और यहीं हिंदुस्तान है हमारे आस-पास...कि तिनका-तिनका जोड़ते-जोड़ते ताउम्र हो जाती है...और शायद फिर भी उन तिनकों से सपनों की एक झोपड़ी
नहीं बन पाती....अफसोस होता है बहुत ये हालत देखकर...गुस्सा भी आता है व्यवस्था पर और सरकार पर....
ye bahut hi bhayavah hai
sach mai 2 roti ke liye insan kya kya karta hai
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
रवीश जी,
मन में कड़वाहट और बढ़ गई जब NDTV.com और IBN पर एक तरफ क्रिकेट के खिलाड़ी करोड़ों रुपयों में बिकने को लाईव देखा और दूसरी तरफ आपकी रिपोर्ट NDTV.com के विडियो सेक्शन में देखी ।
आप India और भारत के अंतर को हर रिपोर्ट में दिखाते हैं। कभी इन विडियो को प्रधानमंत्री जी को भी भेज दें ताकि उन्हें भी पता चले कि आम आदमी की सरकार में आम आदमियों की क्या हालत है।
साहेबान ये सब जानने की वजह से ही IPL जी नीलामी, देश में बढ़ते अरबपतियो की संख्या , विश्व मंच में भारत की बढती ताकत जैसी खबरे दिल में कोई ख़ुशी नहीं भरती.
एनडीटीवी डॉट कॉम पर मैंने भी कडुवा सच (जो वैसे तो सभी को मालूम है!) आपकी आँखों के माध्यम से भी देख लिया,,,और सब शायद जानते हों एक और उलझा हुआ सत्य भी होता है सरकार को चलाने का, या कहलो एक मजबूरी निरंतर बढ़ते मुखों की और उससे जुड़े पापी पेटों को भरने के लिए निरंतर बढती संख्या के कारण कमजोर होती प्रणाली की,,,क्यूंकि एक मछली ही काफी होती है एक बड़े से तालाब को भी दूषित करने में...
और दूसरी ओर, मानो या न मानो, प्राचीन ज्ञानियों ने इसे काल का प्रभाव जाना - समय के साथ- साथ कमजोर होती ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा भी प्रदर्शित युग जो, सतयुग से आरम्भ कर, त्रेता से द्वापर होते कलियुग पहुँचता है, जबकि असल में उत्पत्ति तो कलियुग से आरंभ हो सतयुग में पूरी हुई थी,,,यानि परमेश्वर का प्रतिरूप होते हुए भी मानव उलटी तस्वीर देखने को मजबूर, किन्तु समर्थ होते हुए भी असमर्थ (केवल अहसास, काल के कारण!)...
united nation ke definition ko agar apply karein on d whole population to bpl ka fig. (numbers mein) bharat mein congo & haiti se bhi zyada hai.......
sir maine jo kal dekha apne gaon mein zara use bhi sun lein ...bihar ke bhagalpur ke chote gaon ki...ek mahila jo sabji bechne hatia aayi thi...nange paon kehne ko ek patli si chadar ,,is karake ki thand mein maathe par 20 kg ka bhaar liye jaa rahi hai......
sir is tarah ki mahila 5 km dur se mere gaon aati hain kyunki hatia(village sabji market) mere gaon hi lagta hai........aap ko bata du sir ye zamin gade ol bechne aati han aur kabhi kabhi inhein khali hi lautna hota hai.....kabhi aisi reporting par prakash dalein to shayyad ek do binayak sen do janm le hi lenge.......
बहुत दुख हो रहा है ।
हमारी बैंकें क्यों नहीं इन्हें कुछ उदार हो कर कर्ज देतीं कि
ये अपना कोई रोजगार कर सकें !!
खरबपतियों को 'जी साहब' करते दिया जाता है और वे डकार जाते हैं आराम से !
जब तक आपकी दिखाई ये तस्वीरें नहीं बदलतीं देश का कोई भी विकास बेमानी है ।
एक शेर याद आता है,
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेचीं, हम गरीबों ने बेकसी बेचीं,
चन्द साँसे खरीदने के लिए, रोज थोड़ी सी ज़िन्दगी बेचीं.
Tejas Vaidya, Mumbai
एक शेर याद आता है,
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेचीं, हम गरीबों ने बेकसी बेचीं,
चन्द साँसे खरीदने के लिए, रोज थोड़ी सी ज़िन्दगी बेचीं.
Tejas Vaidya, Mumbai
एक शेर याद आता है,
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेचीं, हम गरीबों ने बेकसी बेचीं,
चन्द साँसे खरीदने के लिए, रोज थोड़ी सी ज़िन्दगी बेचीं.
Tejas Vaidya, Mumbai
हम सब यह पढ़ते हैं औत देखते हैं कमेन्ट डाल कर अफ़सोस जाहिर कर देते हैं. शायद हमें अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार आगे आना चाहिए. क्या हमने कभी अपने आस पास इसे ढूंढने की जरुरत महसूस की है? क्या कम से कम हमने अपने घर में कम कर रही बाई के प्रॉब्लम के बारे में जानने की कोसिस की है? कम से कम वहां से तो शुरू कर सकता है. अपनी पत्नियों को तो समझा सकते हैं जो उनके एक दिन भी नहीं आने पर बिना सच्चाई जाने पगार काटने पर तुली रहती हैं...जबकि वो छोटा सा amount बेकार की चीजों पे यूँ ही उऱा देती हैं..
इसमें कुछ भी भयावह ,अजीव और खतरनाक नहीं है ,विकाशशील भारत की यही सच्ची तस्वीर है
हर शहर में एसे जीवन स्तर वाले लोग मिल जाते है दिखते इस लिए नही कि हम इन गलियो से गुजरना नहीं चाहते
"वो सड़क पर पड़ा था शायद भुख से मरा था कपड़ा हटा के देखा तो पेट पर लिखा था सारो जहां से अच्छा हिदोस्ता हमारा ".
कोरियाई समय के अनुसार तींन बजे आपकी रिपोर्ट देखी.. कई बार अपनी आँखों में नमी महसूस की देखते हुए... आपकी रिपोर्ट सरकार तक पहुंचे न पहुंचे बहुत सारे युवाओं को कुछ करने के लिए प्रेरित करती है... आपकी पत्रकारिता को सलाम........
शर्म की बात है देश की राजधानी दिल्ली में एक दिन की कमाई सिर्फ 20 से 30 रुपया। शर्म से मर जाएँ वो जो कहते हैं देश की हालत बेहतर हो रही है.
"Indians r poor but india is not a poor country"Says one of the swiss bank directors.he says that"280lac crore"of indian mony is deposited in swiss banks which can be used for 'taxless' budget for 30 years. can give 60 crore jobs to all indians.From any village to Delhi 4 lane roads.Forever free power supply to more than 500 social projects.Every citizen can get monthly 2000 for 60 yrs.No need of world bank & IMF loan.Think how our money is blocked by rich politicians.We have full right against corrupt politicians. Itna forward karo ki pura INDIA padhe.Take this seriously,You can forward jokes,then why not this?Be a responsible citizen!JAI HIND
"Indians r poor but india is not a poor country"Says one of the swiss bank directors.he says that"280lac crore"of indian mony is deposited in swiss banks which can be used for 'taxless' budget for 30 years. can give 60 crore jobs to all indians.From any village to Delhi 4 lane roads.Forever free power supply to more than 500 social projects.Every citizen can get monthly 2000 for 60 yrs.No need of world bank & IMF loan.Think how our money is blocked by rich politicians.We have full right against corrupt politicians. Itna forward karo ki pura INDIA padhe.Take this seriously,You can forward jokes,then why not this?Be a responsible citizen!JAI HIND
Sir,
i liked this report and always like ur way of telling the truth...u r a real fighter...hats off to u sir...
aap ke ye report maine kal ndtv pe dekhe... dekh ke dil dahalta hai.. gussa aata hai.. ma bhe saath me dekh rahe the.. ro padi .. maine pucha kya hua.. bole kuch nahe.. shayad report dekh ke koi baat yaad aa gaye hoge.. main fir nahe pucha.
.
sarkar ke liye pata nahe garibi ka limit kya hai..
2-3 kaam karke agar 5 rs. mil rahe ho to sahayad abhe bharat india nahe bana hai yar fir hum log kuch jaada he bedard ho gaye hain..
ya fir shayad kuch jaada he apne jindagi me kho gaye hai aur ab dusaron ke jindagi ke baare me sochne ka samay nahe hai ..
Ravish Jee,
Hum sabhi ku sarminda kar gai ye report.Kiya kaho kash sabdh se un garibo ka kalyan hu jata.
Sahi me "Atulaya Bharat !!!"
Shining to pehle hi hu chuka hai.......
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