दाम्पत्य का समानार्थी हो सकता है ब्लागपत्य । अब मुझे ब्लाग का जेंडर नहीं मालूम । अब सर्वसेक्सुअल ज़माने में जेंडर का जानना ज़रूरी भी नहीं । पता चल रहा है कि ब्लाग से हिंदी जगत के परिवारों में तनाव उभर रहे हैं । परिवारों में झगड़े बढ़ गए हैं । दफ्तर में ताने मिलने शुरू हो गए हैं । पीठ पीछे बातें होने लगी हैं । मोहल्ला वाले अविनाश ने कहा दाम्पत्य संकट में आ सकता है । मैंने कहा नहीं इससे ब्लागपत्य संकट में आ जाएगा । हम सबने ब्लाग से एक वादा किया है । कई फेरे पूरे होने तक लिखते रहने का । यह कोई लिज़ की शादी नहीं है । अपने ब्लाग से एकांत में किया हुआ वादा है । निभाना पड़ेगा । लिखना पड़ेगा ।
अगर आप ब्लागपत्य के तनावों से गुज़र रहे हों तो किसी ब्लागचिकित्सक से मिलें । दफ़्तर में ज्वलनशील सहयोगियों को लगने लगा है कि हम कोई काम नहीं करते । ब्लाग करते हैं । क्या आप कोलगेट करते हैं ? इस विज्ञापन को बदल कर हम पूछते हैं क्या आप ब्लाग करते हैं ? अगर नहीं तो आपको क्या मालूम कि हम सिर्फ ब्लाग ही करते हैं । ब्लाग-वक्त दफ्तर और रोमांस के बाद के बचे हुए समय का एक हिस्सा भर है । यह किसी की कीमत पर नहीं है । ब्लाग-वक्त से दाम्पत्य को समझना होगा कि कम से कम कोई घर से बाहर नहीं गया है । लिखना छोड़ कर ब्लागक (लेखक का समानार्थी शब्द) दरवाज़ा तो खोल सकता है न । और न ही ब्लागक या ब्लागिका सास बहू देखकर शाम ख़राब करने में लगे हैं । रही बात दफ्तर की तो बेवजह चुगली और अपनी वाहवाही में सालों गुज़ारने से क्या फायदा । काम में कोताही न हो और ब्लाग-वक्त का सदुपयोग हो इससे किसको तकलीफ हो रही है । मेरे दफ्तर में एक सज्जन ने कह दिया ये सब डॉट कॉम वाले हैं । यानी बेकार लोगों के लिए अब उस डॉट कॉम का इस्तमाल हो रहा है जिसका उपयोग हम क्रांति के तौर पर भारत की प्रगति के लिए किया करते थे । बताइये । डॉट कॉम दुनिया के लिए क्रांति है और हमारे लिए लानत । हम विरोध करते हैं । सभी ब्लागक इसका विरोध करें । इसमें ब्लागमेंट्स करने वाले भी शामिल हों । ब्लागमेंट्स कमेंट्स का समानार्थी हो सकता है । उनकी टिप्पणियों से ब्लागकों को ताकत मिलेगी । रही बात दाम्पत्य संकट की तो वो अन्य संकटों के साथ तब से है जब ब्लाग नहीं था । और तब तक रहेगा जब तक ब्लाग रहेगा । ब्लागक लिखते रहें । ब्लागमेंट्स टिप्पणी करें । इससे ब्लागपत्य का विकास होगा । यह एक नया रिश्ता है । बनने दिया जाए ।
10 comments:
ये लीजिये, पहला ब्लागमेंट्स मेरी ओर से। भई पिछले दो-ढाई साल से जो अनुभव हमने किया है उसे आपने शब्द दिया है।
वैसे शुरुआती दौर में मैं इस मामले खुशकिस्मत रहा, मेरी बॉस ये कहतीं थीं कि मैं ऑफिस का काम निपटाने के बाद अगर ब्लॉगिंग करता हूं तो उससे मेरी रचनात्मकता को विस्तार मिलेगा जो अंतत: संस्थान के हित में होगा... भगवान सभी ब्लॉगरों को ऐसी रहमदिल बॉस दें।
ब्लॉगपत्य का धर्म आपने बखूबी समझाया है, अच्छा लगा। स्वीकारें एक ब्लॉगमेण्ट हमारी ओर से भी :-)
ऐसा है, साथी, मैं आपके दफ्त्री सहकर्मियों की तो नहीं जानता, लेकिन ब्लागजगत में आपकी भाषाई कलाबाजियां जिस तरह की हममें ग्रंथियां उपजा रही हैं, इच्छा तो यही होती है कि आपको किसी गडही में बुडो-बुडो के कूटा जाये!
-प्रमोद सिंह
मैं तो फ़िलहाल कमेंटबाज़ ही बन पाया हूं। हर बात कहने में कंजूसी कर जाता हूं। ऐसा नहीं कि अपना अलग ब्लॉग बनाना फिज़ूलख़र्ची मानता हूं। दरअसल अपनी चादर ही छोटी है। बस आप कहते जाइए और जो बातें मेरी समझदानी में फंस गई उस पर कुछ बक दूंगा। लेकिन कहते ज़रूर रहिए। क्योंकि मैं कमेंटबाज़ हूं। और इसके लिए आपकी ब्लॉगबाज़ी निहायत ज़रूरी है।
प्रमोद जी गड़ही कहां खोद रखे हैं । मुझे अधमरा करके क्या मिलेगा । हिंदी को दैनिक कालजयी रचनाओं से क्यों वंचित करना चाहते हैं ? मैं अब लेखक के साथ प्रकाशक भी हुआ जा रहा हूं । कभी राजकमल तो कभी वाणी तो कभी सारांश हुआ जा रहा हूं । आप मुझे मत मारें । गड़ही को बचा कर रखिये । कभी किसी व्यक्ति पर हम दोनों की सहमति बन गई तो मिल के कूटा जाएगा । रवीश
आपके ब्लॉगपत्य जीवन के लिए हमारी ओर से भी ब्लॉगकामनाएं स्वीकार कीजिए। :)
ह्म्म, ब्लॉगपत्य,ब्लॉगक,ब्लॉगसास,ब्लॉगबहू सही शब्द गढ रहे हो।
टिप्पणी तो ब्लॉग के माथे पर लगी सिंदूर की रेखा की तरह होती है (इसका मतलब होता है रिस्क नही है, चले आओ)
बकौल शुकुल बिना टिप्पणी पोस्ट उजड़ी मांग की तरह होती है। बाकी इधर पढो
तीन साल पहले ब्लॉग-टिप्पणी पर हमने भी एक थीसिस लिखा था, नोश फरमाएं ।
Aap yunhi likhte rahen.hum blogment karte rahenge.waise hamare yahan bhi aapka blog kafi famous hota ja raha hai.badhayiyan...muh mitha kab kara rahe hain...batase se.
दूबे जी
ब्लाग प्रसिद्ध अब जगत प्रसिद्ध की जगह ले चुका है । ब्लाग लिखने का मकसद ही है कि अधिक से अधिक लोग पढ़ें । मिठाई की जगह हम आपको ब्लागिठाई खिलायेंगे । पढ़ने के लिए शुक्रिया
रवीश
हम भी यहॉं होकर गए हैं
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