सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
--- पाश
अगर आपको लगे कि आपने दफ्तर की तमाम मजबूरियों को जीते हुए प्रमोशन, वेतन और मकान सब अर्जित कर लिया है और उनको भी सेट कर दिया है जो आपको पसंद नहीं थे । तो ऐसे कामयाब लोगों को यह कविता पढ़नी चाहिए ताकि अकेले में अहसास हो सके कि वाकई उनके सपने पूरे हो गए या इस कमज़र्दगी को हासिल करने के चक्कर में मार दिए गए ।
4 comments:
मैं सोच रहा था किसी को घुटना दिखाने के बाद, और हिंदी फिल्मों के साठ के दशक वाले नायकीय अंदाज़ में कमरे से बाहर जाने के बाद आप कुछ दी बग जैसा कोई धांसू सा पोस्ट करेंगे, और यहां देख रहा हूं कि आप अपनी बजाय औरों को याद करवाने के फेर में पड रहे हैं. बडा डिप्रेसिंग लग रहा है. दीवार में एक सीन था. फिल्म का नायक मदन पुरी को होटेल के उसके बिस्तरे से उठा कर खिडकी से बाहर नीचे फेंक देता है. मदन पुरी का तो वजन ज्यादा था, बग का नहीं है, कमसकम सपने में ही वह सीन खेल लीजिये.
sachmuch wichaar karne laayak panktiyan hain.. mujhe lagta hai jyadatar logon ko yahi lagegaa sapne mar gaye ya maar diye gaye is bhaag dod ki zindagi mein...
सपने हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद में पड़ी राख को सपने नहीं आते
शेल्फ पर पड़े इतिहास-ग्रंथों को सपने नहीं आते
....सपनों के लिए लाजमी है झेलने वाले दिलों का होना, इसलिए सपने हर किसी को नहीं आते।
खुद को बदलने से लेकर दुनिया बदलने तक के लिए जरुरी है सपनों का होना....
पूनम
पहले मंगलेश डबराल और अब पाश. मेरे दोनों पसंदीदा कवियों को फिर से पढ़ाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.
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