पत्रकारिता का बकरीवाद


बकरी में में करती है । पत्रकार मैं मैं करने लगे हैं । हमारे एक पूर्व वरिष्ठ सहयोगी शेष नारायण सिंह कहा करते थे । कहते थे पत्रकारिता में जो इस बकरीवाद से बच गया वो महान हो गया और जो फंस गया वो दुकान हो गया । मुझे तब यह बात अजीब लगती थी । शेष जी क्या क्या बोलते रहते हैं ।

अब उनकी बात समझ में आने लगी है । जिससे मिलता हूं उसके पास टीवी की बीमारी दूर करने का फार्मूला है । किसी वरिष्ठ से मिलता हूं तो कहता है कि मैं दस साल पहले फलाने मैगज़ीन में यह कवर कर चुका हूं । सर इसमें मेरी क्या ग़लती है । हिंदुस्तान में समस्याएं और घटनाएं दस साल में नहीं बदलतीं । तो क्या करें । आपने किया होगा कवर । हम नहीं करें । दोस्तों पत्रकार बकरी हो रहे हैं । उन्हें अपने आगे कुछ नहीं दिख रहा है । हर किसी को लगता है उसके नहीं रहने के बाद पत्रकारिता का क्या होगा ।

हर कोई इस प्रोफेशनल अवसाद का शिकार हो गया है । कहता चलता रहता है ये खबर मैंने ब्रेक की है । जब कोई नहीं कहता तो गाली दे देता है कि कोई मेरे काम की तारीफ ही नहीं करता । देखों मैंने ही सारा किया है । देखा मेरा आने से कितना फर्क पड़ गया है । देखा मुझे अवार्ड मिला है । एक ऐसे वक्त में जब टीवी पत्रकारिता को खूब गरिया जा रहा है टीवी पत्रकारों को खूब अवार्ड मिल रहे हैं । पत्रकार बकरीवाद के शिकार नहीं होंगे तो क्या होंगे ।

मेरे पत्रकार दोस्तों । अगर आप भी बकरीवाद ग्रंथी के शिकार हैं तो मुझसे संपर्क करें । क्योंकि मैं भी शिकार होने जा रहा हूं । शायद हम लोग साथ साथ मिमिया कर एक दूसरे का भला कर सकें । मैं आप सबसे यह जानना चाहता हूं कि आप दिन में कितनी बार दूसरों की तारीफ करते हैं और कितनी बार अपनी । इसकी एक सूची बनाए । उसमें यह भी शामिल करें कि आप दिन में कितनी बार अपने सहयोगी को गरियाते हैं । चू...प्रिफिक्स के साथ । इससे आपकी बीमारी का अंदाज़ा मिल जाएगा । कुछ हो सकेगा । नाम न छापने की शर्त के साथ मैं चाहता हूं कि पत्रकार पाठक इस बहस को आगे बढ़ायें । कुछ सच बोलें । कुछ न बोल पाते हों तो इशारे में बोलने की छूट होगी । कोई मानदेय नहीं दिया जाएगा । क्योंकि सच की कोई कीमत नहीं होती है । तो अब जवाब देना शुरू कर दीजिए कि क्या आप बकरीवाद के शिकार हैं ?

9 comments:

amitabh tripathi said...

आज दोपहर में एक बैठक में अविनाशजी ने आपकी चर्चा करते हुये बताया था कि आप चिट्ठा के प्रति अत्यन्त गम्भीर हैं और अब आपके लेख इस बात को पुष्ट कर रहे हैं। आपके लेखन में पत्रकारिता के मूल्य और व्यवसाय की विवशता का अन्तर्संघर्ष स्पष्ट रूप से परिलक्षित है। यदि आप पत्रकारिता में ऐसी बहस चला सकें तो इससे देश का बड़ा कल्याण होगा।

Jitendra Chaudhary said...

बहुत सही बात उठायी है आपने।
शेष नारायण सिंह की बात काफी हद तक सही है। एक बात मुझे ये नही समझ आयी, ब्रेकिंग न्यूज। अमां अगर तुमने नही किसी और ने न्यूज ब्रेक की तो कौन सा तीर मार लिया? क्या "उसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद कैसे?" वाला मसला है। खबर है कार थोड़े ही कि तेरी तेज चलती है तो ज्यादा अच्छी। जो कहता है कि मैने दस साल पहले करी थी तो उसके कानपुरी भाषा मे पूछो "अबे (यहाँ प्रिफ़िक्स लगा लेना) टोपीलाल, तूने सतही कवरेज किया था, मैने पूरा कवर किया, अब तेरे पेट मे दर्द क्यों?" ब्रेकिंग ब्रेकिंग के चक्कर मे खबरों का कचूमर निकाल दिए हो सब लोग।

वैसे एक बात बताओ, तुम लोग प्रिफ़िक्स कब लगाते होगे, न्यूज रुम से बाहर निकलते ही, अंग्रेजी मे ही तो शुरु हो जाते हो, हिन्दी मे बतिआते हो क्या?

कमेन्ट्स का भी जवाब देते रहा करो, अच्छा लगेगा। तभी दो तरफ़ा, कम्यूनिकेशन रहेगा।

अनूप शुक्ल said...

भैया रवीश, ये है अपनी तारीफ़ में आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त। किसी को किसी पर भरोसा नहीं कि वह उसके बारे में कुछ कहेगा। इसका सूत्र भी है-व्यक्ति द्वारा अपने अपनी तारीफ़ करने की मात्रा उसकी कार्य क्षमता की विलोमानुपाती होती है। जैसे-जैसे आदमी नाकारा होता जाता है, अपनी तारीफ़ में ज्यादा आत्मनिर्भर होता जाता है।

Anil Dubey said...

RAVISH BHAIYA MAIN EK DIN SUBAH MAIN JAGA.WAISE TO 9 BAJE JAGTA HUN AUR 10 BAJE TAK OFFICE.LEKIN PATA NAHI US DIN KYON SUBAH MEIN JAGA.T.V.KHOLA TO GOOD MORNING INDIA DEKHNE LAGA.AUR TABHI BLOG BABA KI PUAKR HUI AUR AAPKI AAWAZ GUNJNE LAGI.TO PEHLI BAR KAL AAPKE BLOG PAR GAYA.DEKHA AAPKI KAI DAINIK KALJAYI RACHNAYEN.PADHA AUR MAST HO GAYA .BAHAS PE AAPKI KAVITA BADI NIRALI HAI.CHALIYE KAM SE KAM AAPKA PROGRAM NAHI DEKH PANE KA DUKH AB NAHI RAHEGA.MUJHE BLOG BABA JO MIL GAYE HAIN.AAP YUNHI LIKHTE RAHIYE.AUR HUM T.V. PATRAKARITA ki bakariyon ko ghas khilate rahen.is ummid mein mein ki ek din hume bhi bakari banne ka saubhagya prapt hoga.

ravish kumar said...

जितेंद्र जी
हम प्रीफिक्स बाहर जा कर नहीं , गरियाये जाने वाले व्यक्ति से थोड़ी दूर जाकर तत्काल लगाते हैं । बातचीत हिंदी में होती है । अधिकतर को अंग्रेज़ी नहीं आती । अब वक्त बदल रहा है । पहले सरकारी स्कूल के बच्चे हिंदी पत्रकारिता करते थे । और संपादक लंदन से अंग्रेजी में बीए पास होता था । अब पत्रकार अंग्रेजी स्कूलों के आने लगे हैं । जो हिंदी जानते हैं या जिन्हें अंग्रेजी की जानकारी है ।

रही बात ब्रेकिंग न्यूजड की तो इसका क्या करें । न्यूज़ सौ मीटर की दौड़ हो गया है । अगर आप अच्छे पत्रकार हैं और गठिया के कारण दौड़ नहीं सकते तो आपकी ज़रूरत नहीं है । ये हकीकत है । और इसकी सिंचाई सब पत्रकार कर रहे हैं । अपनी कब्र खोदने के लिए...

कमेंट्स का जवाब न देने के लिए माफी । आगे से हम दुधारी तलवार हुआ करेंगे

Unknown said...

न्यूज़ रूम की चर्चा का प्रिफिक्स एक अहम हिस्सा है। यहां सुबह से शाम तक सभी एक दूसरे को इसी नाम से पुकारते हैं। लेकिन मैं थोड़ा परहेज़ करता हूं। अपने किसी और ख्याल को किसी भाई की क़ाबिलियत से जोड़ कर प्रिफिक्स नहीं लगाता। कुलांचा मारता अपने फ्रस्ट्रेशन को तुरंत भाप लेता हूं। हां, लोग मेरे काम को लेकर मेरे नाम के आगे प्रिफिक्स न लगाएं इसकी कोशिश में जुटा रहता हूं। वैसे कोई किसी को रोक नहीं सकता है। वैसे एक सच्चा प्रिफिक्सधारी की उस्तादी में ही कई ऐसे प्रिफिक्सधारी तैयार होते हैं। जिनकी नज़र में हर दुरुस्त आदमी प्रिफिक्सधारी होता होगा।

SHASHI SINGH said...

कमेंट्स का जवाब न देने के लिए माफी। चलो भाई हो अपने... माफ किया :) आगे से हम दुधारी तलवार हुआ करेंगे गांवें तजिया भा रामनवमी में लोग के गदका खेलत देखले बाड़ न? दू धरिये में मज़ा बा.

manas mishra said...

Ravish Bhaiya patrkarita men ji tarha ka bakarivad chal raha hai uska mai shikar ho gaya hu.kuch patrakaro ne milkar ek school khola.phir hum jaise berojgaro ke pass aaker kahane lage ki aaja beeta tughe media proffeionels bana denge.Pitaji ne khet bencha aur bhej diya hame media proffeionels banae ke liye.Ab bhaiya schooll men vo lambe lambe angreje me bhasan. aisa lag raha tha ki bakariya memeya rahe hai.Ravish bhaiya ye pakka bakarivd patrakarita ke product hai.jara aap dateye to.

कुमार सौवीर said...

मैं भी बकरीवादी बनना चाहता हूं। इच्छुतक हूं, मगर कुछ प्रश्ने हैं जो पूरी शिद.दत के साथ जवाब चाहते हैं।
कृपया स्परष्टथ करने के बाद ही मेरा सदस्य्ता निवेदन स्वीधकार करें।
प्रश्नस एक- इस बकरीवादी समूह में शामिल होने के लिए कुल कितनी देर तक मिमियाना पडेगा।
प्रश्नि दो- भोजन में क्याम मिलेगा। छुट्टा घूमते हुए भोजन तलाशना पडेगा या हरी-हरी घास-चारा नियमित रूप से सहज सुलभ होगा।
प्रश्नय तीन- दिन में कितनी देर तक रस्सी से बंधना पडेगा।
प्रश्नय-चार बकरी बनने पर कहीं अस्मिता पर तो खतरा नहीं होगा। मसलन, कोई बकरा तो ध्यासनभंग नहीं करेगा इस गरीब की बकरियाना नमाज अदा करते समय।
प्रश्नद पांच- प्राण रक्षा की क्याप व्यंवस्थार है।
प्रश्नद छह- यदि प्राण गंवाना पडे तो क्याय व्यसवस्था है। मसलन, हलाल किया जाता है या झटका।
प्रश्ना सात- कसाई या चिकवे कितने होंगे और जिबह की प्रक्रिया क्या‍ होगी।
प्रश्ना आठ- नश्व र देह से मुक्ति के बाद किसका भोजन बनूंगा।
प्रश्ना नौ- मृत्युा के बाद मोक्ष होगा, मुक्ति होगी या निरंतर आवागमन की जैविक वस्तुै बनता रहूंगा।
प्रश्नव दस- स्व्र्गारोहण के बाद वहां व्य वस्था क्यात होगी। क्यांज मैं भी श्रेष्ठैतम भोज्य् और पेय पदार्थों का सेवन करने का अधिकारी होऊंगा जिसका ब्योठरा इस्लाजम में दिया गया है।
प्रश्नब ग्याररह- सच्च रित्र पाये जाने पर सम्मा न, उपाधि आदि की क्याा व्यशवस्थार है।
रवीश भाई, बस कृपया इन्हीं क्षुद्र प्रश्नों का उत्तमर मिल जाता तो मैं भी मिमियाना शुरू कर देता।
कुमार सौवीर, महुआ न्यूज, लखनऊ
kumarsauvir@yahoo.com