ब्लाग ने कालजयी रचनाओं को फिर से परिभाषित करने की मांग की है । ब्लाग कहता है वक्त अब सदियों के हिसाब से नहीं चलता है । इस दौर में तो इतिहास भी दस साल पहले तक का लिखा जाने लगा है । मॉडर्न हिस्ट्री । इसलिए समय अब पलछीन है । तो मैं कह रहा हूं कि महीनों तक लिखी जाने वाली रचनाएं अब से कालजयी नहीं कहलायेंगी । वो तो पूरे काल को खा पीकर रची जाती हैं । ब्लाग के दौर में दैनिक लेखन ही कालजयी हैं । इसलिए रोज़ के लिखे हुए को आप कमतर न मानें । जितनी देर में राजकमल प्रकाशन वाले किसी कालजयी रचना का प्रूफ पढ़ेंगे उतनी देर में ब्लाग रचनाओं की प्रतिक्रिया आ जाती हैं । कमेंट्स कॉलम में ।
यह भूमिका क्यों ? भूमिका लेखन कला की पहली आदत हैं । जब तक आप भूमिका नहीं बांधेंगे लिखेंगे क्या । इनदिनों मैं हर दिन लिखने लगा हूं । बहुत लोग लिख रहे हैं । लिखते ही हमारी रचनाएं देश और काल की सभी सीमाएं झट से लांघ जाती हैं । बहरहाल रोज़ लिखने से लेखन का महत्व कम नहीं होता होगा । ऐसा मेरा नया आत्मविश्वास है । अविनाश जी कहते हैं प्रेमचंद के ज़माने में ब्लाग होता तो वो लाखों कहानियां लिख गए होते । ठीक बात है । लालटेन की रौशनी और स्याही के कारण हमारे महान रचनाकारों का काफी वक्त बर्बाद हुआ है । पर नो रिग्रेट्स । जो हुआ सो हुआ । उनके टाइम में बहुत कुछ नहीं था लेकिन यह क्या कम था कि महान रचनाकार थे । इधर तो कोई महान ही नहीं हो रहा है । वैक्यूम देख मैंने ट्राई किया है लेकिन हो नहीं पा रहा हूं । महान होने के बाद ही तो कालजयी होंगी मेरी रचनाएं । जाने दीजिए । लिखते रहिए । सांत्वना पुरस्कारों से भी वंचित यह लेखक रुकने वाला नहीं है । हम ब्लागकार पाठकों के लिए नई चुनौती बनने वाले हैं । हर दिन लिख लिख कर उनके चश्मे का पावर बढ़ा देंगे । हम लिखेंगे साथी । तुम पढ़ोगे न ।
क्या लिखा जाए यह एक बड़ा मसला है । विषय सभी पुराने हैं । मैं नए विषयों का इंतज़ार नहीं कर सकता । मौलिक होना मुश्किल काम है । मौलिकता से दुनिया नहीं बदली है । यह एक सत्य है । विज्ञान से लेकर विचार का प्रसार उसमें जोड़ घटाव करने के बाद ही हुआ है । एडीसन बल्ब बना कर गए थे । ट्यूब लाइट नहीं बनाया था । सीएफएल लैंप नहीं बनाया था । मार्क्स ने जो विचारधारा दिया उसमें रूस चीन और हिंदुस्तान में जोड़ घटा कर प्रयोग हुआ है । मौलिक सिर्फ क्रेडिट देने के लिए है । इसलिए मैं मौलिक नहीं हूं । आपको लगता है तो अच्छा है । मेरी दैनिक कालजयी रचनाओं के पाठकों के प्रति आभार ।
मैं इतिहास में साप्ताहिक कॉलम लिख कर अमर नहीं होना चाहता । मैं रोज़ लिख कर ठोंगा बनना चाहता हूं । मुझे पढ़ने के बाद मेरे लिखे में बादाम भर दें । खा कर फेंक दें । यानी कमेंट्स देने के बाद भूल जाएं । क्योंकि मैं दूसरी दैनिक कालजयी रचनाओं की जुगाड़ में लग जाता हूं । बिल्कुल फालतू नहीं हूं । रोज़ लिखना एक आसान और महान काम है ।
10 comments:
अमां तो लिखो ना! हम कहाँ टिप्पणी मे चूके जा रहे है, अब भूमिका ही इत्ती लम्बी बाँधोगे, तो लोग ज्यादा उम्मीदे करने लगेंगे।
इसलिए भूमिका को ज्यादा ना बाँधा जाए, तो तुरन्त फुरन्त लिखा जाए, पहली फुरसत मे, अगर ना भी हो तो तब भी, न्यूज पढते समय, कमर्शियल ब्रेक मे, एक पोस्ट तो हो ही जाएगी, है कि नही। तो अब कित्ते कमर्शियल ब्रेक होते है, तुम्हरे समाचारों मे, उत्ती पोस्ट तो हुइबे करी।
अच्छा है।आपकी बात परसाईजी कह गये हैं-जो आज प्रासंगिक नहीं है वह भला कालजयी कैसे होगा? इन्हीं ठोंगे वाले लेखों में से कुछ कालजयी लेख निकलेंगे। लिखते रहो, पढ़ने के लिये हम हैं न!
अरे दर्द का समां इतना बांधेंगे तो कैसे काम चलेगा
काल के साथ ही आपकी रचना भी लिखी गई और जो काल को जी कर लिखा हुआ न वह कालजयी…।
बहुत सुंदर प्रस्तुति…।उम्दा व्यंग!!
ओ बिंदास होके लिखो जी, सोचकर ब्लॉग लिखोगे तो फिर आप ब्लॉगिंए कहाँ से हुए। :)
लिखते रहिए। मुद्दों पर भी और आपबीती भी। कम से कम मुझ जैसों के लिए बहुत ज़रूरी है। कभी चुनाव आयोग की बिल्डिंग के पास आपसे अचानक हुई मुलाक़ात से लेकर कभी-कभी हुई आपसे बातचीत तक कसक रह जाती थी कुछ और जानने की। अब ब्लॉग महाराज की कृपा से आराम से वो बातें जानने का मौक़ा मिल रहा है।
"...मैं रोज़ लिख कर ठोंगा बनना चाहता हूं । मुझे पढ़ने के बाद मेरे लिखे में बादाम भर दें । खा कर फेंक दें । यानी कमेंट्स देने के बाद भूल जाएं । क्योंकि मैं दूसरी दैनिक कालजयी रचनाओं की जुगाड़ में लग जाता हूं । बिल्कुल फालतू नहीं हूं । रोज़ लिखना एक आसान और महान काम है ।..."
रंगा (रवि) खुश हुआ... अगर दर्जन भर लोग भी ये नारा अपना लें तो वे लोग इंटरनेटी हिन्दी की दशा व दिशा सब कुछ बदल कर रख देंगे. और, यह सुखद है कि आपने शुरुआत कर ही दी है...
"नेकी और पूछ पूछ"
इतने अच्छे कार्य के लिये देर किस बात की? आप लिखो हम पढ़ने के लिये तो तैयार बैठे हैं ही।
आप आसान और महान काम शुरू करें.
’काल’जयी, या ’आज’जयी कुछ भी लिखिये..
पढेन के लिये...
हम हैं ना...
:)
ठोंगा
अच्छा लगा यह शब्द पढ़कर. वैसे भी जो बात ठोंगा बनकर चार चिनिया बेदाम नहीं थाम सकते भला वो काल को क्या थामेंगे? मैं अनुप भाई से सहमत हूं ठोंगे से ही निकलेगी कालजयी रचनाएं... तो रवीश भाई बनाते रहो ठोंगा. हम हैं न उनमें चिनिया बेदाम खाने के लिए. - शशि सिंह
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