ओ से ओबामा और उ से उम्मीद

ओबामा ने अच्छा भाषण दिया। आजकल नेता लोग सच्चा भाषण देने पर ज़ोर दे रहे हैं। सब सच बोलना चाहते हैं। कुरआन शरीफ की तमाम खूबियों को गिनाते रहे और काइरो यूनिवर्सिटी के रिसेप्शन हॉल में तालियां बजती रहीं। तालियों का साउंड इफेक्ट शानदार था। ओबामा बोले जा रहे थे। इस्लाम से हमारा कोई युद्ध नहीं है। इस्लाम और अमेरिका सहचर हैं। इस्लाम ने अमेरिका की समृद्धि में योगदान दिया है। बात तो ठीक ही कह रहे थे। अफगानिस्तान, इराक और ईरान के चक्कर में अमेरिका के गरीब होने के कोई पुख्ता प्रमाण अभी तक तो नहीं मिले हैं। भाषणों की दुनिया में यह एक शानदार भाषण के रूप में याद किया जाएगा और तालियों की गड़गड़ाहट के लिए भी।

मुस्लिम देशों और जमात के साथ ओबामा नई शुरूआत करना चाहते हैं। कुरआन के हवाले से कह रहे थे कि कुरआन हमें भरोसा करना सीखाता है। वाह जिस पर शक करते रहे उसी का भरोसे पर इतना शानदार भाषण। किसी मौलाना की तरह ओबामा इस्लाम की खूबियां गिनाने लगें। यह एक बड़ा कदम तो है ही। ईसाई राष्ट्रपति लेकिन मुस्लिम नाम वाला यह शख्स बताने से नहीं चुका कि उसका नाम किस मज़हब की देन है। मेरे पिता मुसलमान थे। किसी निर्दोष की हत्या करना मानवता की हत्या है।

यह बात अमेरिकाधिपति ओबामा कहें तो मान लेना चाहिए कि उनका दम घुट रहा है। वो अब पेंटागन की पेंच में उलझने की बजाय कुछ नया बोलना चाहते हैं। नया करेंगे भी। २०१२ तक इराक से सेना हटा लेंगे। अभी क्यों नहीं हटा रहे हैं यह नहीं बताया। फिर यह क्यों कहा कि हम लाठी के दम पर लोकतंत्र नहीं थोप सकते,ये और बात है कि हम लोकतंत्र में भरोसा करते हैं।

लेकिन मानव सभ्यता में इस्लाम की देन को स्वीकार कर ओबामा ने इस विषय पर शोध कर ज़िंदगी गुज़ार देने वाले तमाम प्रोफेसरों का जीवन धन्य कर दिया। शुक्रिया। सभी धर्म एक हैं, के बाद इस्लाम की खूबियां विशेष हैं,ओबामा जी के मुखमंडल से सुन कर मन धन्य हो गया। मैं यह लेख किसी अमेरिका विरोध की मानसिकता से किसी यूपीए से अलग होने की गलती करने के इरादे से नहीं लिख रहा हूं। अमेरिका दुनिया का बॉस नहीं बल्कि प्रोफेसर भी है। लेक्चर भी दे सकता है। हम सब क्लास रूम में बैठकर सर के लेक्चर पर ताली बजाने के लिए मजबूर हैं। कई बार लेक्चर वाकई इतना बढ़िया होता है कि ताली बज जाती है।

ईरान की लोकतांत्रिक सरकार गिरा कर अमरीका ने गलती की। प्रायश्चित क्या है,नहीं बताया। ईरान को कह दिया कि अतीत में ही अटकें रहेंगे या भविष्य का कोई रास्ता बनायेंगे। एटमी प्रसार बर्दाश्त नहीं कर सकता। उत्तर कोरिया,पाकिस्तान और भारत को बर्दाश्त कर लिया सो कर लिया। बस अब लास्ट। प्यारे ईरान तुम नहीं। ईरान से यह भी कह देते कि अगर परमाणु परीक्षण करोगे तो हम प्रतिबंध लगायेंगे और फिर तुमको हमसे न्यूक्लियर डील करनी पड़ेगी। मनमोहन सिंह से पूछ लो कितना टेंशन है ये सब करने में। लेकिन एक बार टेंशन ले लोगे तो लाइफ टाइम के लिए विरोध करने वाले करात जैसे लोग टेंशन में रहेंगे।

अमेरिकाधिपति ने कहा कि कुरआन कहता है कि सच बोलो। बाइबल,गीता सभी धर्म ग्रंथों का सार यही हैं। फिलिस्तिन का दुख देखा नहीं जाता। इज़राइल हमारा पुराना दोस्त है मगर मनमानी नहीं करने देंगे। दोनों की अपनी जायज़ मांगे हैं लेकिन हिंसा से क्या मिला। एक दूसरे के अस्तित्व को सम्मान करना पड़ेगा। बस इतनी सी तो बात थी अभी तक फिलिस्तिन और इज़राइल को यही समझ नहीं आ रही थी। ओबामा के इस भाषण को हमें दोनों मुल्कों में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि सब पढ़ लिख कर समझ जाएं कि इस प्रोब्लेम का कोई भविष्य नहीं है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि इराक में जाने को लेकर अलग अलग सोच थी। अफगानिस्तान के संसाधनों पर हमारा कोई हक नहीं है।

खोज कर लाइये उन चौम्स्कियों और प्रोफसरों को, जो लिखते रहे कि अमेरिका अपने हित यानी तेल के संसाधनों पर एकाधिकार के लिए मध्य पूर्व में विनाश लीला करता रहा है। ओबामा ने खंडन कर दिया है। कृष्ण की तरह गीता सार वाले अंदाज़ में ओबामा जी भाषण दे रहे थे। क्या लेकर आए थे,जिसके लिए अमेरिका का इतना विरोध कर रहे हो। ओबामा सार सुनो और नया सोचो।


फिर भी यह एक बेहतर भाषण तो था ही। मंदी के इस टाइम में उम्मीद अब भाषणों से ही पैदा की जा रही है। ओबामा भी सौ दिन की कार्ययोजना बनाते हैं और मनमोहन सिंह भी बनायेंगे। चलो कुछ मत करो लेकिन अच्छी बात तो करो। क्या पता ये लोग कर ही गुज़रे। तब आलोचना में इतनी जगह बचा कर रखो कि कह सको कि वाह इसकी उम्मीद तो थी है।

गुरुवार के दिन हिंदुस्तान में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल मनमोहन सरकार की नीतियों पर अच्छा अच्छा बोल रही थीं और इसी दिन अमेरिकाधिपति काहिरा में बोल रहे थे। दोनों उम्मीद जगाने में सफल रहे हैं। जिस दिन में सौ दिन में एक फाइल नहीं घूमती, उस देश का पीएम अगर सौ दिन की कार्ययोजना बनाने की बात करें तो आप कर भी क्या सकते हैं? जब तक सौ दिन नहीं गुज़र जाते,उम्मीद कीजिए।

खैर कहां से इंडिया पर आ गए। इंटरनेशनल पर ही टिके रहते हैं। ओबामा के भाषण में प्रगतिशीलता के पूरे तत्व हैं। इसी तरह के भाषण हम लोग सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहसों में दिया करते थे। एक बार तो लगा कि ओबामा वीएचपी के प्रेस कांफ्रेस की प्रतिक्रिया में बोल रहे हैं। कम से कम ओबामा ने खुलकर बोलने की शूरूआत तो की। इतना तो कहा कि एक दूसरे पर शक करने का काम बंद करो। मुसलमान और अमेरिका एक दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह न पालें। हां ये सही है कि अच्छा भाषण देने से दुनिया नहीं बदल जाती। इसी लाइन पर मुझे ओबामा से उम्मीद हो गई है। उम्मीद करना एक फैशन है। निगेटिव बात कीजिएगा तो लोग बीच बहस में ही लतियाने लगते हैं। इसलिए समूह में बने रहने के लिए पोज़िटिव बोलते रहिए। तब तक जब तक पोज़िटिव का ग्लोबल कारोबार निगेटिव न हो जाए। ओबामा जी के लिए तालियां।

16 comments:

anil yadav said...

मेरी ओर से भी तालियां....

मधुकर राजपूत said...

अगर देखा जाए तो अमेरिकी प्रशासन में मध्य और दक्षिण एशिया के लिए कोई खासा बदलाव नहीं आया है। पाकिस्तान अफगानिस्तान के विशेष दूत तब भी था और आज भी। पाकिस्तान को सहायता राशि तब भी दिल खोलकर दी जाती थी और आज भी। इजरायल का समर्थन वैसा ही है। शांति स्थापित करने के लिए कदम तो उठाए जा रहे हैं, रंग लाते हुए नज़र भी आ रहे हैं। एक विचार का बदलाव नज़र आ रहा है। एक तरीके का उदारवाद और ग्लोबज विलेज में भाग्य-प्रगति की सहभागिता का अहसास अमेरिका की तरफ से नज़र आ रहा है। जूनियर बुश डांटते थे, ओबामा समझाते हैं। लक्ष्य वही थे वही हैं। अपने साथ समायोजन की अपील कर रहे हैं। प्यार और फुसलन की फिसलन भरी कूटनीति है। उम्मीद और बदलाव का ग्लोबल ब्रांड बन चुके हैं ओबामा। इसे ही तो कहते हैं सिर पर ऊस्तरा बांधकर पेट में उतर जाना। अब देखो उम्मीद और बदलाव की ब्रांड विज्ञापन है या फिर कारगर होगी।

हरिओम तिवारी said...

सच उगलता शानदार लेख !

डा. अमर कुमार said...


बन्द दिमाग से किया गया तँग नज़रिये से लबरेज़ विश्लेषण !
रवीश कुमार को अलग दिखने का ’ पैशन’ जो है ।

Unknown said...

अमेरिका मुसलमानों से और मुसलमान अमेरिका से पीड़ित हैं। अमेरिकन्स जिस विलाशी जीवन शैली के अभ्यस्त हो चुके हैं वह धन के बिना चलनें वाली नहीं है। फ्री सेक्स जैसी अवधारणाओं के चलते स्त्रियों की एक बड़ी आबादी धर्म जैसी फालतू चीज को तुरंत बदलनें को तैयार बैठी है। अमेरिकी शासनतंत्र इस बात को जान समझ रहा है। लेकिन जनता इन खतरों को दरकिनार कर सुख से रहनें के अपनें तौर तरीके फिलहाल बदलनें को तैयार नहीं है। बराक हुसैन ओबामा का हुसैन एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। कितना कारगर होगा यह समय बतायेगा। विलाशी जनता के लोकतंत्र में नेता की भूमिका नट जैसी हो जाती है? हाँलाकि इस स्थिति के लिए नेता ही दोषी भी हैं।

तेल उत्पादक देशों की अतिरिक्त कमाई बीसियों साल से अमेरिका और योरोप में लगती रही है। घातक हथियारों,अंतरिक्षीय कलाबाजियॊं में लगनें वाले पैसे और उसकी आमदनी के उद्दाम विलाशी प्रयोग नें अमेरिका को जहाँ अन्दर से खोखला कर दिया वहीं अपनें ही निवेशित धन के उत्पाद महँगे हथियारों और वैभव सामग्री की चपत को मुस्लिम देश भी समझनें लगे। वह पैसा अब मलेसिया और इण्डोनेशिया के रास्ते चीन,भारत जैसे एशियाई देशों में अपनीं शर्तो पर जा रहा है। इस्लामिक बैंकिग तथा शरिया आधारित व्यवसायिक क्रिया कलापों को प्रोत्साहित या कम से कम पैर जमानें देने के अवसर यह देश दे रहे हैं। इन देशों के लोभी व्यापारी इसके खतरों से अनजान पलक पावड़े बिछा रहे हैं। क्या भविष्य होगा यहाँ कि जनता का?

जन्न्त की हूरों का आकर्षण ज़ेहाद के रास्ते की बाधा नहीं बल्कि प्रेरक बनता है। हुसैन पुत्र बराक ओबामा का भ्रम जल्द टूटेगा। अमेरिका और योरोप की जनता अपनें देश के नेताओं का जुलूस तो निकलवायेगी ही स्वयं को भी विपत्तियों से बचा नहीं पायेगी। वस्तुतः यह तैलीय पूंजी का जेहाद है। बराक हुसैन ओबामा स्पीड़ ब्रेकर भी क्या बन पाऎगे?

admin said...

भीड से अलग साबित होने के लिए अब इतना तो करना ही पडेगा।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

sudo.inttelecual said...

मुस्लिम और क्रिस्तान तो भाई भाई ही है
हिन्दू का का होगा !!!

Unknown said...

Obama ka bhasan humne bhai suna sun k itna to samajh aa he gya ke Obama kuch kare ya na kaye bolange to accha accha, kher koi nahi abhi tak to unhone kuch aise kaer k nahi dikhya jis ke taarif ke jye. Lakin kahi padha tha kuch log mahan paida hote hain kuch log ise hasil karte hain aur kuch logo p ise thop diya jata hai shyad Obama bhi un me se ek hai ab to aane wala time he batyega ke woh kitne musalmano ko apna bna bye aur kitno ne unahe apna bnya.

SACHIN KUMAR said...

SACHIN KUMAR

MR OBAMA KA SALAM. HARDLY OTHER US PRESIDENT COULD HAVE COURAGE TO SAY WHAT HE SAID IN CAIRO. AT START I COULD NOT BELIEVE THIS THAT US HAS IN FACT CHANGED SO MUCH. BUT WHEN HEARED AGAIN “ DIL CHAHA KI TALIYA BAJATE HI RAHE.” A GREAT START AND MANY STEP FORWARD. IN FACT HE WAS TALIKING LIKE A PROFESSOR OF ISLAM. AND SENDING MESSAGE TO ISLAMIC COUNTRY A PEACE MESSAGE. ENOGH IS ENOUGH NOW. MORE BLOODS HAVE BEEN WASTED, MORE ENERGY HAS BEEN LOST, MUCH MONEY HAS BEEN LOST AND SO ON. SO NOW TIME TO GO FORWARD. MOVE WITH ME AND I PROMISE TO GIVE A WORLD A PEACEFUL STATE. THAT MR. OBAMA. ISLAM AND US ARE NOT OPPOSITE TO EACH OTHER. IN FACT THEY ARE SIMILAR.ALTHOGH SOME MAY DOUBT WHY US HAS CHANGED THE WAY. AND THEY HAVE THEIR OWN ARGUMENTS. RIGHT. BUT NOT TO FORGET SOME ONE WANTS A NEW START. NOW WHAT MUSLIM COUNTRY IS GOING TO DO. THAT’S A MILLION DOLLOR QUEESTION. NO DOUBT ON GOOD LECTUR AND WITH HEART TOUCHING WORDS AND CLAPPING THIS WORLD IS NOT GOING TO BE A SAFE WORLD AND TERROR COULD NOT BE WIN BY THIS. BUT YES THIS IS ALSO THE METHOD. GOOD START AND SOME SAYS WORLD IS ON EDGE OF HOPES. THAT IS ONE BETTER HOPE. LET IT BE. HARD TO COME TRUE THOUGH BUT WHAT WRONG IN LIVING FOR QUIET SOME TIME IN DREAM WORLD. WELL DONE MR OBAMA YOU HAVE MADE MANY MORE SUPPORTERS NOW IN ISLAM WORLD BEYOND A FRACTION DOUBT.

Aadarsh Rathore said...

100% ========>

शैलन्द्र झा said...

ravish ji aap par astitvavadi chetna havi ho gayi hai.sartra kki 1 kitab hai "nausea". uske nayak ko duniya ki har chiz sadti galti malum hoti thi.mujhe aap k lekh me bhi nakkarvad koot-koot kar bhara dikhayi diya.pehle obama kharab,phir upa kharab ab ravish ki ummmed bhi kharab.abhivyakti k khatre uthaye jane chahiye lekin math aur gadh todne k liye unhe zalil karne k liye nahi,nahi to aadmi vahin pahunch jaata hai jahan aap pahunch jate hain

Pratibha Katiyar said...

बिलकुल ठीक कहा आपने रवीश जी. अमेरिका अब प्रोफेसर भी हो गया है. हम तो क्लास के बच्चों की तरह ही होकर रह गये हैं. भाषण सुनें और तालियां बजायें. अच्छा बोलने और अच्छा करने में अंतर होता है. यह अंतर भी ताली बजाने वालों को दिखना अकसर बंद हो जाता है.

Raag said...

एक ही समय में धनात्मक और ऋणात्मक लेख. दिल भविष्य के प्रति उम्मीद भी रखना चाहता है, मगर अतीत ने डरा के भी रखा है. देखिये क्या होता है आगे, लेकिन मेरे ख्याल से उम्मीद रखना ज्यादा फायदेमंद होगा, कम से कम खुद के लिए.

JC said...

रवीशजी आपके 'ओ' से ओबामा आदि से मुझे एक लगभग २४-२५ वर्ष पुरानी घटना याद आ गई...

हमारे पड़ोस में एक ३-४ साल की बच्ची रहती थी जो हमारे परिवार से घुल-मिल गई थी.

एक दिन 'संयोग से' वो उपर से उतरी और तभी में भी दरवाज़ा खोल बाहर निकला.

शायद वो अपनी माँ के साथ कोई हिंदी की पुस्तक पढ़ कर आ रही थी.

उसने मुझे देखते ही कहा, 'श' से शलगम.

उसकी समझ नहीं आ सकता था इस लिए मैंने अपने मन ही मन मिलता-जुलता शब्द कहा, 'ब' से बलगम,

में आश्चर्य चकित रह गया जब उसने कहा, 'ब' से तो बत्तख होता है!

में सोच में पड़ गया कि या तो अनजाने में किसी गुप्त शक्ति के कारण मैं बिन बोले ही उसको उस शब्द का बोध करा पाया, अथवा उसने मेरे मस्तिष्क में लिखा पढ़ लिया और पुस्तक में लिखे शब्द का मुझे बोध करा दिया!

"हरी अनंत, हरी कथा अनंता", और 'संयोग से' ही 'उ' से उम्मीद पर दुनिया कायम है ('उ', '३' के और ॐ के समान भी दिखता है, दुनिया हरी के शेषनाग के सर पर अनंत काल से स्थापित भी मानी जाती है :)

JC said...

'उ' से उल्लू भी होता है, जिसे 'भारत' में 'माता लक्ष्मी' का वाहन माना गया है - क्यूंकि ज्ञानियों ने विश्लेषण कर पाया कि संसार में 'मूर्ख' धन संचय में ही लगे रहते हैं और पंडित 'ज्ञान कि देवी सरस्वती' को ही अधिक महत्व देते रहे हैं, और इस कारण पोथी ही पढ़ने में. जबकि, जैसा इस शब्द से ही प्रतीत होता है, 'योगी' मानव जीवन में दोनों को समान महत्व देने का सुझाव देते रहे हैं. ऐसा ही इस कहावत से भी आभास होता है, "अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप..."

'उल्लू' नमक पक्षी को लेकिन पश्चिम में 'wise owl' कहते हैं, क्यूंकि संभवतः यह अँधेरे में साफ-साफ देख सकता है, यद्यपि सूरज की रौशनी में यह नहीं देख पाता. इस प्रकार जहाँ तक दृष्टि का प्रश्न है उल्लू मानव से १८० डिग्री विपरीत है...जैसे अमेरिका ग्लोब में भारत (पूर्व) के ठीक विपरीत दिशा (पश्चिम) में पाया जाता है...और इसी प्रकार अमेरिका अमीर है और सदा, येन केंन प्रकारेण, 'अपना उल्लू सीधा' करने में लगा रहता है. उसके विपरीत भारत गरीब देश है किन्तु माता सरस्वती की इस पर अधिक कृपा सदैव रही है...किसी ने शायद ठीक ही कहा, "East is east and west is west/ Never the twain shall meet."

अनुज शुक्ला said...

रबिश जी पुर्वाग्रह न तो अमेरिका मे है न तो मुसलमानो मे आप के लेखनी मे हमेसा ही हिन्दु निशाने पर रहते है. अच्छा ही है जो आप हिन्दु घर मे पैदा हुए ,हिन्दुस्तान मे सन्घ परिवार के अलावा भी कयी परिवार है उन पर भी कुछ लिखे अब चुनाव खत्म हो गया है ,प्रियन्का बाड्रा जी के बच्चे किस ब्रान्ड कि आइस्क्रिम खा रहे है खबर दिजीएगा .