मेरे प्यारे फेसबुक के छह सौ दोस्तों

क्या किसी के ६०० दोस्त होते होंगे? फेसबुक में फ्रेंड्स की सूची में मेरे ६०० दोस्त हो गए हैं। कभी नहीं सोचा था कि एक दिन इतने सारे दोस्तों के बीच घिरा रहूंगा। दोस्ती और दोस्ताना जैसी फिल्मों को देखते हुए बड़ा हुआ तो लगा कि दोस्त ज़रूरी हैं। बालीवुड के गानों और नायकों ने दोस्ती के किरदार को इतना भावुक बना दिया कि सब कुछ न्योछावर कर देने वाले एक अदद दोस्त की तलाश ज़िंदगी भर रही। बड़ी मुश्किल से दुनिया में दोस्त मिलते हैं...दीये जलते हैं...दौलत और जवानी एक दिन खो जाती है....नमक हराम का यह गाना कई साल तक कानों में गूंजता रहा। दोस्त ढूंढता रहा। बहुत मिले भी और बहुत ग़ायब हो गए।

मैं क्या करूं। इतराना शुरू कर दूं या शर्माना शुरू कर दूं। आज कल पांव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे,गाने लगूं या मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया, सुना है कि तू बेवफा हो गया टाइप के गाने गाते हुए दिल जलाता ही रहूं। कुछ कमियां तो ज़रूर रही होंगी कि मैं किसी का अच्छा दोस्त न हो सका। बहुत कोशिश की लेकिन बहुत कम मिले। वैसा जैसा फिल्मों और गानों ने ज़हन में दोस्त की एक छवि उतार दी थी। जिसके लिए सब छोड़ देना और किसी भी हालत में राज़दार बने रहना,ये सब गुणों का होना ज़रूरी था। अब दोस्त ऐसे मिलते हैं जिन्हें राज़ बता कर कहना पड़ता है कि किसी से मत कह देना। फिर भी डर लगता है कि मेरा राज़ सुरक्षित है या नहीं। मुकद्दर का सिकंदर की दोस्ती हो या संगम का वो दोस्त जो अपने दोस्त पर शक कर बैठता है और गाने लगता है दोस्त दोस्त न रहा,प्यार प्यार न रहा। अमानतें वो प्यार की,गया था जिस पर छोड़ कर,वो मेरे दोस्त तुम ही तो थे,तुम ही थे। बाद का म्यूज़िक कानों में देर तक गूंजता रहता है।


प्रेमिका के बाद या उससे पहले दोस्ती ही वो रिश्ता है जो खानदानी नहीं होता। ये वो रिश्ता है जिसे ढूंढना पड़ता है,हासिल करना पड़ता है। मिल जाता है तो संभाल कर रखना पड़ता है। इस रिश्ते में कुछ तो था कि सैंकड़ों गीतकारों ने हज़ारों नग़्में लिखें। मैं नहीं जानता कि जिस दोस्त को ढूंढता हूं वो मेरी अपनी कल्पनाओं का है या उन छवियों की मिट्टी से बना है जिसे फिल्मों,साहित्य और कविताओं ने मेरे मन में गढ़ दी।

दोस्तों को अग्निपरीक्षा देती रहनी पड़ती है। साबित करते रहना पड़ता है। फेसबुक के ६०० दोस्तों की उम्मीदों पर खरा उतर पाऊंगा या नहीं, कहना मुश्किल है। मोहल्ले में चंद दोस्त होते थे,जिनके बीच भी कभी कभी लड़ाई हो जाया करती थी। कालेज के दिनों में दोस्त हुए तो मंदिर मस्जिद और मंडल कमंडल के झगड़ों के कारण बहुत सारी दोस्ती इधर से उधर हो गई। दफ्तर में लगता था कि कोई दोस्त हो ही नहीं सकता। सब एक दूसरे के प्रतियोगी भी हो और दोस्त भी हो,मुमकिन नहीं। ठीक उसी तरह से कि हम विरोधी हैं मगर दुश्मन नहीं है टाइप वाली सेंटी लाइनें। फिर भी यहां कुछ दोस्त तो मिले हीं जो हमेशा खास लगते हैं। लेकिन एक डर के साथ कि कहीं कोई मुझसे मेरे दोस्तों को न छिन ले। इस पेशे में कुछ दोस्त और बने। मगर फिर भी कुल संख्या दस से ऊपर नहीं गई।

फेसबुक तो सेंसेक्स की तरह उछाल मार गया। छह सौ दोस्त। कई लोगों के दोस्त बनने के रिक्वेस्ट पड़े रहते हैं। दोस्ती के लिए आवेदन करना। मुझसे कोई क्यों दोस्ती करने के लिए आवेदन करना चाहता है? वो भी जिससे मेरी कोई मुलाकात नहीं। जिसकी गर्माहट को मैंने करीब से नहीं देखा। जिसकी धड़कनों को मैंने महसूस नहीं किया। खुद को समझता रहा कि दोस्त होने के लिए जो चीज़ होनी चाहिए, वो मुझमें नहीं हैं। आखिर ये कैसे होता रहा कि जिन लोगों ने मुझे अच्छा समझा, वो अन्य कारणों से शक करने लगे और मैं खुद को यकीन दिलाता रहा कि नहीं मैं सही हूं। कुछ ग़लत नहीं किया। वो भरोसा क्यों नहीं करता। फिर हिंदी फिल्मों ने जो दर्शन गढ़े हैं,वो बैकग्राउंड में चलने लगते हैं। कभी यह नहीं सोचा कि जो लोग मुझसे दूर गए उनमें भी कुछ कमियां होंगी। यह कमी भी बालीवुड की देन हैं। दो तरह के दोस्त बनाए। एक जो दोस्तों से अलग होकर बदला लेने लगता है और दूसरा जो दोस्तों से बिछड़ कर खुद को कसूरवार मानने लगता है। मैंने दूसरा वाला किरदार अपने लिए चुन लिया।

फेसबुक ने मेरा खालीपन भर दिया है या और खाली कर दिया है कहना मुश्किल है। सैंकडों की संख्या में मेरे दोस्त हो जायेंगे, कभी नहीं सोचा था।ऐसा क्या कर दिया है मैंने। दोस्ती हमेशा शक की नदी पार करती हुई डूबने की आशंकाओं से बना रिश्ता है। डूबने से बचने की संभावना में मज़बूती से कोई हाथ पकड़े रहता है तो कोई डूबने की आशंका में झटक देता है। कुछ लोग पार हो जाते हैं, कुछ लोग साथ डूब जाते हैं।

फेसबुक के छह सौ दोस्तों। आप सबका शुक्रिया। हर दिन स्टेटस में दिल की बात कह कर हल्का हो जाता हूं। कई बार लगता है कि स्टेटस में लिखना दरवाज़ा खटखटाने जैसा है, कि कोई है। कोई सुन भी रहा है। जवाब आता है तो लगता है कि किसी ने मेरे लिए अपना दरवाज़ा खोल दिया। छह सौ दोस्त बनने के बाद सुने जाने की बेकरारी और बढ़ गई है। एक ऐसी दोस्ती के लिए जिसमें मिलने के बाद के लिए कुछ बचा नहीं होता। मिलने से पहले ही हाल ए दिल बयां कर चुके होते हैं। हर दिन का हाल। पसंद और हाल चाल। ये दोस्त मिल भी गए तो क्या बात करेंगे पता नहीं। बिना मिले खुद को खोल कर सबके सामने रख देना, आसान नहीं होता।

यह रिश्ता बिल्कुल नया है। फेसबुक में वादा नहीं करना पड़ता है। राज़दार बने रहने की कसमें नहीं खानी पड़ती हैं। दोस्ती टूट भी जाए तो रिमूव करने का ऑप्शन बना रहता है। इसका तनाव नहीं रहता कि दोस्ती टूटने के बाद किसी दोस्त की पार्टी में मिल जायेंगे तो सामना कैसे करेंगे। फेसबुक बिना हाड़मांस की रिश्तेदारी है। चली भी जाए तो सीने में दर्द नहीं होता होगा। वैसे अभी फेसबुक में बने दोस्तों से बिछड़ने के दर्द का अनुभव नहीं हुआ है। इसलिए पक्के तौर पर नहीं कह सकता। छह सौ दोस्त। इतनी संख्या काफी है खुशियां मनाने के लिए। कम से कम पता तो चलता है कि आज कोई कनाडा में बैठा उदास है। आज कोई पटना से लौटा है। आज किसी ने साहिर लुधियानवी को सुना है तो आज किसी ने कांग्रेस पर गुस्सा निकाला है। रिश्ते ऐसे ही बनते रहते हैं और चलते रहते हैं। हर रिश्ते में यही तो होता है। फेसबुक में वही तो हो रहा है। कम से कम इतना तो लगता ही है मैं अकेला नहीं हूं।

26 comments:

Hari Joshi said...

सच में ऐसा लगता है कि अकेला नहीं है हम। हम तो फिलहाल यही कहेंगे कि सलामत रहे फेसबुक। मेरा लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्‍शन।

Unknown said...

bahut khoob!
lage raho_____________aur bhi badhenge

delhiastrology said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

We are happy and proud of being your facebook friends, We will celebrate when you will cross 6000 friends ( that day is not far off)

Yours

Rahul Verma

शैलन्द्र झा said...

dastan hui rakam baba
ungliyan ho gayi kalam baba
ab to tanhaiyan bhi puchti hain
hai tera bhi koi sanam baba?
- badra sahab

आशुतोष उपाध्याय said...

ये आपका स्टारडम है ज़नाब. जितने बड़े सेलिब्रटी उतने ज्यादा 'बिन मांगे' दोस्त. सुना है राहुल गाँधी के हजारों में हैं. खुश होइए ये आपका प्रभामंडल है.

इरशाद अली said...

बहुत बार हमे बढ़िया-बढ़िया दावते खाने को मिली एक से एक लज़ीज व्यंजन। हम हमेशा ही सभी दावते खाते, लेकिन हमने आज तक भी किसी को भी ना बुलाया, कभी पानी के लिये भी ना पूछा।
अरे आज तो सभी दावते गिन भी ली, ये तो कुल मिलाकर 630 हो रही है।

prabhat gopal said...

congratulation sirji

शरद कोकास said...

"वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम

दगा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे" (शायद निदा साहब)

आपके 600 में है कोई ऐसा?

मधुकर राजपूत said...

रवीश जी 600 दोस्तों के लिए मुबारकबाद। हस्ती हो जाने के बाद सारी दुनिया दोस्ती के लिए मचलती है। इंटरनेटिया दोस्ती को खूब परिभाषित किया आपने। सही में आपके सुख-दुख में काम आने वाले दोस्त नहीं है फेसबुक वाले। बस मन की कहकर सुनकर ही दिल बहल जाता है। दिल बहलाने के लिए काफी हैं 600, और दिल्लगी के लिए केवल एक। दिल्लगी की उम्मीद तो मत रखिए कम से कम। साथ रहने और एक दूसरे को बेहतर ढंग से जानने समझने का नाम ही दोस्ती है।

Udan Tashtari said...

बड़े सारे दोस्त बना लिए..एकाध दिन सबको खाने पर बुलाओ न भाई-बस, यूँ ही दोस्ती में. :)

Gyan Darpan said...

600 दोस्तों के लिए मुबारकबाद।

प्रवीण त्रिवेदी said...

इंटरनेटिया दोस्ती को खूब परिभाषित किया आपने।
आपका स्टारडम है ज़नाब!!
600 दोस्तों के लिए मुबारकबाद।

JC said...

कहते हैं कृष्ण कि १६,००० पत्नियां थी और अनंत भक्त...लगे रहो, शायद आप भी कोई ऐसा ही नया रिकॉर्ड स्थापित कर पाएं, जैसे फेडरर ने कल टेनिस में French Open में बनाया...

ravishndtv said...

उड़न तश्तरी जी

अगर ६०० लोगों को खाने पर बुलाया तो तश्तरियां टूटने लगेंगी। अच्छी प्रतिक्रिया है। लेकिन स्टारडम वाली बात मुझ तीन नंबर के कलाकार पत्रकार को शोभा नहीं देती। बड़े बड़े लोग है इस फील्ड में।

कृष्ण की सोलह हज़ार गोपियों की तरह दोस्त हो गए तो पता नहीं कितनी लीलाएं करनी पड़ जायेंगी।
सब से छल कर सबको यकीन दिलाने का कोई नया तरीका ढूंढना होगा।

आप दोस्तों के दोनों ही शेर लाजवाब हैं। दिलचस्प टिप्पणियां

Aadarsh Rathore said...

कुछ कमियां तो ज़रूर रही होंगी कि मैं किसी का अच्छा दोस्त न हो सका,
ये कमी नहीं है प्रभु.... विशिष्टता है... आप किसी के अच्छे मित्र नहीं हो सके शायद आपको ऐसा लगता है। लेकिन याद कीजिए... बहुत से लोग ऐसे होंगे जो आपको अपना अच्छा मित्र मानते होंगे....।

admin said...

600 का आंकडा। हमारी दुआ है कि एक दिन आपके दोस्तों की संख्या एक हजार को भी पार कर जाए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Anonymous said...

आपने यह पोस्ट अपने दोस्तों को संबोधित की है -मेरे प्यारे फेसबुक के छह सौ दोस्तों

अब हम आपके दोस्त हैं नहीं। क्या टिप्पणी करें? :-)

सुशील छौक्कर said...

रवीश जी चलो इसी खुशी में एक दावत कर दो जी।

डॉ .अनुराग said...

इस पोस्ट को लिखने का कारण समझ नहीं आया रविश जी ????

RAJ SINH said...

बड़े मियां बड़ी छाती न फुलाओ . ये फेसबुक ' बाज़ार ' की बाजारू दोस्तियाँ हैं .

आप की समझदारी की तारीफ करूंगा .कमसे कम खुद को सही तो समझा .......तीन नंबर के कलाकार , पत्रकार . अब आपको कैसे बताऊँ की तीन नंबर वालों के ' स्टारडम ' , के भी तीसरे दर्जे के प्रसंसक होते हैं . देश में वही काफी हैं . hit फिल्मों का अस्तर देख लें . राजनीती का भी टीवी चैनलों के भी अख़बारों के भी . देश भरा पड़ा है . आजकल ज़माना भी उन्हीं का है .( कब नहीं था ? )

लालू की बात तो आप भी करते रहते हो .

वैसे खुशी है की ये सब तीन नम्बरी मामला है . देश को खतरा तो दो नंबरियों से है ......संसद भर गयी है .काफी दस नम्बरी भी हैं !

जय हो !


पुनश्च: फिल्मे देख कर ऐसी ही काल्पनिक दोस्तियों में मन भ्रमित होता है ......बने रहो दोस्त . वैसे इस मुल्क की फिल्मों में चम्चा ' दोस्त ' का पूरा किरदार ही हुआ करता है हमेशा से, समझदार हो समझते भी हो .

यहीं पर किसी ने कहा की राहुल बाबा के २००० दोस्त हैं फेसबुक पे .लगता है उन्होंने अदमीसन बंद कर दिया है ......न जाने कितने लालू सालू कतार में हैं . वक़्त वक़्त की बात !

६३० दोस्त ?

न जाने कहाँ कहाँ से आ जाते हैं .....


वैसे दिख रहा है की आप लेखन तो सही सोच की करते हो पर आँख सिर्फ एक ही और लगातार देखती है .यहाँ तो टीवी वाला मामला नहीं है ? प्रायोजित होने का दर्द ?
वैसे आपके टीवी का मुखौटों वाला प्रोग्राम सही है .
मेरी तरह सिर्फ मजाक में ही गंभीर बात करने की थोड़ी हिम्मत दिखती है .


भैय्या बड़े बड़े उड़ न्बाजों को दावत देना तो हमें न भूल जाना . भले ६३१ वें नंबर पर ही .'तश्तरी ' फूटने की चिंता न करना , अपनी खुद की लावेंगे . पुराने अछूत हैं .आजकल फोकट का माल खा हज़म करने की फुल टाइम प्रक्टिस भी कर रहे हैं . चमचागीरी की भी . आपको तकलीफ न होगी .इरशाद भाई ने कहा की बड़ी फोकट की खाते हो खिलाते भर नहीं. ( नहीं नहीं टिप्पणी की बात नहीं कर रहा )



irshad bhayee se pata chala ki aap blog chalate ho tv bhee to dekhne aa gaya ....ki ye ndtv kaun chalata hai.
film bana raha hoon ....desh kee halat pe .teesare darje ke patrkar dikhane ke liye avval darze ke kalakaron kee jaroorat hai .....aapke ndtv kee pooree team invited hai !

buddhu baxe kee .....


jai ho !
guru .

बीच में थोड़ी हिन्दी नुमा अंगरेजी लिख दी , आपकी NDTV की तरह , ताकि ये न समझ लो की अंगरेजी नहीं आती .
साथ ही झूठ अंगरेजी में लिखो तो विस्वास करना भी आसान हो जाता है .
शायद ज्यादा ठेल गए . पहली बार का मामला था .माफ़ करना तकलीफ हुयी हो तो .

ravishndtv said...

दोस्तों

मैंने यह लेख अहंकार जताने के लिए नहीं लिखा है। बस फेसबुक से बने रिश्तों को समझने के लिखा था। इसे कत्तई न समझिये कि हम कुछ हांकने का एलान कर रहे हैं।

इंटरनेट हमारा गांव हैं। इस गांव में एक से एक रिश्ते हैं। कोई पूछ कर आता है तो कोई बिना पूछे आता है। गांव में भी ऐसा ही होता है। मुझे लगा था कि इस लेख की प्रतिक्रिया में आप लोग भी अपनी बातें सामने रखेंगे। कई लोगों ने रखी भी हैं मगर कुछ को पता नहीं कैसे लग गया कि मैं जता रहाह हूं कि देखो मेरे इतने दोस्त हैं।

यह एक छोटी सी सफाई है जिसकी छपाई ज़रूरी लगती है। राज सिंह की बातें मज़ेदार लगीं। आप फिल्म बनाइये। और उसमें एक किरदार फेसबुक वाले फूफा का रख दीजिए तो कभी नहीं आते लेकिन उनका दबदबा उस घर में बना रहता है। यह घर हीरो का भी हो सकता है और हीरोईन का भी।

RAJ SINH said...

प्रिय रवीश जी ,

यहाँ अमेरिका में आप जैसे व्यक्ति के लिए एक उद्गार व्यक्त किया जाता है . ' ये जेंतालमन एंड स्कोलर '

आप हैं !

विद्वान् और सज्जन !

आपने मेरी असज्जनता को भी मज़ेदार पाया . आप विनोद प्रिय भी हैं यह आनद है . एक्स्ट्रा !

जिसे अपनी एक टिप्पणी में डा. अनुराग ने सिर्फ एक वाक्य में कह दिया सिर्फ कुछ प्रन्स्चिंह लगाके उसी को संभवतः व्यंग विस्तार दे दिया .


निश्चित रूप से मेरा अभिप्राय आपके प्रति व्यक्तिगत कुछ था नहीं . शायद NDTV से था .और विश्वास करिए की उसे भी मैं सब से छोटी पायदान पर नहीं देखता .कितने तो ऐसे भी हैं की किसी से यह भी न कह सकूंगा की वहां गया भी था .बहरहाल उसपे काफी कहा सुना जा रहा है .

पता नहीं फूफा जी के बारे में . कभी फेसबुक पर जुड़ने का प्रयास नहीं किया .
अपने यहाँ 'ताऊ' से सब काम निपट जाते हैं .:)
अगर उन्हें मना पाया तो ' पहला ' किरदार ' तो वही होगे .बाकी के ' रिश्तेदार ' भी वही सूझा देंगे ( जरूरत पडी तो ) .



तमन्ना तो सब की होती है की दुनिया में सब को बड़े अच्छे दोस्त मिलें . मिलते भी हैं .लेकिन निभाया कितना जा सकता है ? यही बात.

आप ने जो कहा है उसे फिल्म के प्रति शुभकामना ही मानता हूँ .

सादर और सस्नेह .

पुनश्च :

इरशाद भाई ने आप की सज्जनता उदारता और सौजन्यता की , व्यक्तिगत संवाद में ,बड़ी ही तारीफ की है .मुझे पता है की आप जैसे व्यक्ति से दोस्ती करने के लिए ६३० के पार भी लोग खड़े होंगे ................मैं ( भी तो ) हूँ ना !

इरशाद अली said...

अरे राज जी ये रविश बाबू बहुत मस्त आदमी है, किसी के दबाव या झुकाव में आकर कहां लिखते है। आपने सही पहचाना मेरा भी जब भी रविश जी से संवाद हुआ है तो बहुत ही सज्जनतापूर्ण। बहुत सहज विषयों पर लिखते है आमतौर पर ऐसी-ऐसी बातों पर पूरा का पूरा लेख लिख बैठते है जिस पर हमारा ध्यान भी नहीं जाता। मेरी तरफ से रविश जी को शुभकामनाएं और आपके तो कहने ही क्या। मौज सबको कहां नसीब हैं।
जय हो!

Tara Singh said...

kya is godam ko aur badayege? bahut acha lagta hai.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

facebook profile ka link den..Hum bhi aapko join kerna chahenge wahan :P