अधूरी उदास नज़्में- सस्ती शायरी

बहुत दिनों से कोई हवा इधर से नहीं गुज़री है,
बाग में सर झुकाये खड़ा हूं दरख्तों की तरह,
बहुत इल्ज़ाम है मुझपर,उस माली के दोस्तों,
जिस माली ने मुझको बनाया फूल की तरह,
इज़हार ए मोहब्बत का एक ख़त अधूरा रह गया,
जिस खत में लिखा उसे महबूब की तरह।

9 comments:

Manjit Thakur said...

क्या तुमने कभी,
महबूब के इंतजार में धूप तापी है?
पार्क में बैठकर-
बोगनवेलिया के हरे पत्तो पर
अपने नाखूनों से उसका नाम लिखा है?
क्या अमलतास के पीले फूलों की तरह तुम,
प्रेम में उलटा लटके हो?
क्या गुलमोहर की तरह तुम्हारे दिल का खून
मुंह के रास्ते आया है कभी बाहर,
क्या मुहब्बत के आएला में,
सब्र का बांध टूटा है...
नहीं.. नहीं..नहीं
तो क्या हुआ जो-
इज़हार ए मोहब्बत का एक ख़त अधूरा रह गया,
जिस खत में लिखा उसे महबूब की तरह।

Aadarsh Rathore said...

संपूर्ण रोचक नज्में-उम्दा शायरी

admin said...

समझने की कोशिश कर रहा हूं कि आपने यह शेर किस मूड में लिखे होंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

JC said...

पानी के समान हवा भी
धो देती है यादों को खुशबु की तरह

स्वतंत्रता दिवस पर
वर्षों तक सलामी दी झंडे को

गुलाम की तरह बंधा पाया रस्सी से
फूल पत्तियां अच्छाई समान हृदय से लगाये

एक झटके में अचानक खुल गए बंधन
छूने लगा आकाश नेता समान

ऊँचाई पर पहुँच
हवा लगते ही फडफडा उठा गर्व से

गुलाब की पत्तियां पहले ही झड़ चुकि थीं
बची खुची खुशबु भी चुरा ले गयी पापी हवा...

शायद उसी माली के पास
और झंडा हवा रुकने पर लटक गया

शायद स्वतंत्रता का सही अर्थ जानने...

sushant jha said...

सस्ती शायरी एक मेरे तरफ से भी-

मैंने उससे प्यार किया अवला समझ के,
उसके भाई ने मुझे पीट दिया तबला समझ के...

रज़िया "राज़" said...

आपकी शायरी में कुछ अल्फ़ाज़ हमारे भी।
उन दिनों को बीते तो कंइ वक़्त गुज़र चला,
वहीं का वहीं ख़डा हुं एक दरख़्त की तरह।

रंजना said...

Sundar bhaav....

kaustubh said...

शायरी में गहराई है, वर्ना आजकल तो तुकबंदियों पर ही जोर है, छिछलापन ही ज्यादा नजर आता है ।

MANOJ said...

....जब आप ने पहली बार सस्ती शायरी करी, तो लगा की ठीक है ब्लॉग का जायका बदलने के लिए एक रचनात्मक प्रयोग होगा! पर अब यह आपके ब्लॉग की नियमित विधा में शामिल हो चली है इसलिए अब आप की "अधूरी उदास नज़्में- सस्ती शायरी" को 'टिप्पणी' के 'टी.र.पी' से नही मापा जाना चाहिए | कहीं पर देखा था की किसी साहित्यिक गोष्ठी में आपको ब्लॉग पाठ करना था यानि ब्लागिंग जिसे 'वर्चुअल लिटरेचर' कह सकते हैं का ठोस यथार्थ बन रहा है मतलब की हम सब जो अभिव्यक्त कर रहें है वह संप्रषित भी हो रहा है इसलिए हम जैसा लिखेगें उ़सका असर 'हिंदी पसंद' व 'तकनीक' से लैस मध्यवर्ग के मानस पर वैसा ही होगा इसलिए ब्लॉग की नज्मों की आलोचना का फलक भी व्यापक होना चाहिए..........मुझे आशंका है की आप की शायरी ....शायरी की विधा को हल्का बना सकती है हांलाकि कुछ चुनिंदा शायरों के आलावा बांकी शायरी भी प्रश्नेय है|