प्रभात शुंगलू
लाल कृष्ण आडवाणी कहते हैं मनमोहन सिंह वीक प्राइम मिनिस्टर हैं। यूपीए की सत्ता का रिमोट कंट्रोल पांच साल 10 जनपथ यानि सोनिया गांधी के पास था। मान लिया। लेकिन आडवाणी जी वरूण के मामले पर आप क्यों चुप बैठे हैं। वरूण के जहरीले भाषण के बाद एक बार भी बयानों को कंडेम नहीं किया। एक बार भी उनकी तरफ से ये बयान नहीं आया कि पार्टी ऐसे लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती। एक बार भी पार्टी को नहीं कहा कि वरूण के खिलाफ कार्यवाई होनी चाहिये। अटल जी के रिटायरमेंट के बाद पार्टी में आप सबसे वरिष्ठ हैं, प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हैं। तो एक बार भी ये कहने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाये कि वरूण को टिकट देकर गल्ती हुयी। एक बार भी वरूण से ये नहीं कहा कि जनता से अपनी गल्ती की माफी मांगे। एक बार भी वरूण को नहीं समझाया कि माफी नहीं मांगी तो सीट जायेगी। एक बार भी क्या पार्टी अध्यक्ष या दूसरे वरिष्टठ नेताओं को समझाया कि मुझे वरूण जैसे नेताओं की बदौलत प्रधानमंत्री बनना स्वीकार नहीं। एक बार भी मंच पर खड़े होकर ये नहीं कहा पार्टी का कोई भी नेता अगर धर्म के नाम पर राजनीति करता है तो बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। ये सब कहते तो लोग आपको वीक कहते। इसलिये आप मौन रहे।
एक बार भी क्या सहयोगी दलों के दर्द को समझा कि वो क्या जवाब देंगे अपने वोटरों को। नीतिश ने तो समझाया भी। इशारा भी किया कि वरूण का टिकट काट दो। अब भी मौका है। लेकिन आडवाणी वरूण को ड्राप करने के लिये तैयार ही नहीं। उनकी वीकनेस तो बस इतनी है कि वरूण के भड़काऊ बयानों में वो अपने पुराने दिनों की मिरर इमेज देख रहे।
जब गुजरात दंगे हुये तब भी आडवाणी जी की वीकनेस नजर आयी। मोदी के खिलाफ चूं नहीं कर पाये। अहमदाबाद की सड़कों पर लाशे बिछा दी गयीं पर मोदी सरकार पर उंगली नहीं उठायी। सहयोगियों ने धिक्कारा मगर आडवाणी मोदी पर चुप्पी मारे बैठे रहे। देश के सबसे बड़े और लंबे दंगे गुजरात में हुये मगर पूर्व गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाये कि मोदी से इस्तीफा मांग लें। वाजपेयी ने भी मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया मगर आडवाणी के हिम्मत की दाद देनी होगी। मोदी के साथ और मोदी के लिये डटे रहे। बड़े हिम्मती उप प्रधानमंत्री थे। वीक होते तो इस्तीफा दे देते।
चलिये, अब तो गुजरात हाईकोर्ट कह रहा कि धर्म के नाम पर दंगे करवाना एक प्रकार का आतंकवाद है। आज अदालत मोदी की वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी और दंगों की मुख्य आरोपी माया कोडनानी की बेल ऐप्लीकेशन रिजेक्ट करके उन्हे जेल भेजता है। तो क्या आडवाणी मोदी को कहेंगे जो फरवरी 2002 में हुया उसके लिये आप गुजरात की जनता से माफी मांगिये। आडवाणी जी क्या ये हिम्मत जुटा पायेंगे। मोदी से पंगा ले पायेंगे। फिर वही वीकनेस।
आडवाणी जी अगर वीक न होते तो क्या नवीन पटनायक उन्हे छोड़ कर जाते। आडवाणी वीक न होते तो क्या कंधमाल में वीएचपी और संघ के लुम्पेन तत्वों का वो नंगा नाच होता। एक स्वामी की हत्या को राजनीतिक रंग दिया गया क्या वो रोका नहीं जा सकता था। इससे पहले भी ग्राहम स्टेन्स के मामले में भी आडवाणी चुप थे। तब भी तो वो देश के गृहमंत्री थे। मगर वीक थे। क्या करते।
जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरायी गयी तब भी उपद्रवियो को रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाये। शोक में चले गये। वीकनेस के कारण 'आंखे से आंसू छलक' आये थे।
कहीं ऐसा तो नहीं कि आडवाणी की पार्टी में चल ही नहीं रही हो। कहीं ऐसा तो नहीं उनके अपने ही उनकी न सुन रहे हों। भीष्म पितामह को मानते तो सब हैं कि उनसे बड़ा योद्धा कोई नहीं, लेकिन पितामह की सुनता कोई नहीं। सुधांशु मित्तल एपीसोड से तो आडवाणी के लाडले जेटली भी आडवाणी को मुंह बिचकाते दिखे। एक पल के लिये अगर ये मान भी लें कि आप प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो क्या आज शपथ ले कर कह पायेंगे सत्ता का कंट्रोल और रिमोट कंट्रोल दोनो आप के हाथ में ही होगा --- राजनाथ, जेटली, नरेन्द्र मोदी और वरूण गांधी के हाथ में नहीं। मोहन भागवत के हाथ में नहीं। प्रमोद मुथाल्लिक के हाथ में नहीं।
मध्य प्रदेश के अपने यंग लीडर से कुछ सीखिये। शिवराज सिंह चौहान ने दो टूक कह दिया प्रचार के लिये नहीं चाहिये वरूण। जिस दिन वरूण की सीडी का खुलासा हुया सुना उस दिन शिवराज कुछ मुस्लिम महिलायों से मिले थे। ये भरोसा जताने के लिये कि उनके खित्ते में वरूण जैसा मजहवी जहर घोलने की इजाजत किसी को नहीं दी जायेगी। क्योंकि मैं सर्वजन का मुख्यमंत्री हूं। शिवराज ने वीकनेस दरकिनार की और हिम्मत दिखायी। आडवाणी जी आप भी तो सर्वजन का प्रधानमंत्री बनने का दावा कर सकते हैं। तो छोड़िये वीकनेस और दिखाइये हिम्मत।
आडवाणी जब गृह मंत्री थे तब वीक दिखे,उप प्रधानमंत्री बने तो चेलों ने वीक कर दिया,और अब प्रधानमंत्री की दावेदारी कर रहे तो वरूण ने भी वीकनेस पर चोट कर दी। वीकनेस के इतने लंबे एक्सपीरियेंस वाले आडवाणी पहले ऐसे नेता होंगे जो कि ऐलानिया 7 रेस कोर्स की दौड़ में हैं।
6 comments:
आप जिसको वीक कह रहे हैं सरजी, वो हमें घाघ लगता है,है भी। ये वीक तो बहुत मामूली शब्द हैं,इससे निगेटिव छवि बनने के बाद भी लोगों के बीच सहानुभूति का भाव पैदा होने की गुंजाइश बन जाती है,जबकि भाव कुछ और ही पैदा होने चाहिए इस शख्स को लेकर
'Ek machhli sare talab ko ganda kar deti hai', aur 'Shrinkhala mein ek bhi kardi kamzor ho to jaldi toot jati hai', PM weak ho ya taqatvar. 26/11 ko sab bhool gaye kya??
Democracy mein her neta 'public' dwara chuna hua hota hai. Kintu jaise taze doodh se malai adhik moti nikalti hai, jise nikal lene per, aur doodh ko bar baar ubalne se malai patli hoti chali jati hai, vaise hi kaal ke prabhav se neta bhi uttarottar patle ya weak hi nazar aate hain. Sawal to atmabal ka hai kintu (Atom Bomb ka nahin)...
Prashna ka uttar TV mein uplabdha belmund/ nariyalmund jyotishiyon dwara kyun nahin karva lete????
Ya aapki drishti mein ve kewal darshakon ko hi moorkha banane ke liye pale hue hain - kuchh ek 'neta' ki 'mirror image' jaise???
'Bharat that was British India' ka 60 saal mein hi haal 'sapreta' (separated milk) jaisa ho gaya hai - shayad!
Her Cricket ka khilardi, bachcha bhi, jan-ta hai ki jab ball akash se dharti ki ore ati hai to uski gati, tivra se, tivratar ho jati hai aur catch pakardne wale ki ungli tak toot sakti hai. Aur yeh hi nahin, wo uchhal ker bahar bhi gir sakti hai aur catch chhoot sakta hai, sharam se matha jhuk jata hai tab!
भाजपा से क्या दुशमनी है आपको
भाजपा को कोई विकल्प है क्या आज के समय में
कांग्रेस और बीजेपी में एक सापनाथ है तो दूसरा नागनाथ. लेकिन कांग्रेस कम जहरीली है बीजेपी से इसलिए कांग्रेस का घूँट पीना देश के लिए ज्यादा मुफीद होगा....
Dear Prabhatji and all,
I have no doubt that we all educated people are aware of faults of our Political system. But we have no choice at all when we go to vote... And in small towns or village levels, people vote as per their cast, religion and family head... Let me say that the people of India should choose among these Parties only congress or BJP. otherwise...
So all the new age Politicians and these new election-NGOs should work outside the metros and big cities... PPI should think it... Voteindia etc. should go there...
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