एक कविता वाया व्हाट्स अप

सुख का दुःख

जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, 
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है, 
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, 
बड़े सुख आ जाएं घर में 
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं। 

यहां एक बात 
इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि, 
बड़े सुखों को देखकर 
मेरे बच्चे सहम जाते हैं, 
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें 
सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है। 

मगर नहीं 
मैंने देखा है कि जब कभी 
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में 
बाजार में या किसी के घर, 
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है, 
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है। 

बल्कि कहना चाहिये 
खुशी झलकी है, डर छा गया है, 
उनका उठना उनका बैठना 
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता, 
और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर 
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता। 

मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है, 
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो। 
इस झूले के पेंग निराले हैं 
बेशक इस पर झूलो, 
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते 
खड़े खड़े ताकते हैं, 
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ। 

तो चीख मार कर भागते हैं, 
बड़े बड़े सुखों की इच्छा 
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है, 
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था 
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है। 

भवानीप्रसाद मिश्र

8 comments:

sachin said...

वाह ! एकदम अलग अंदाज़। कुछ नया (नए तरीक़े का ) पढ़कर मज़ा आ गया। साथ ही आज एक और नाम जानने को मिल गया - भवानीप्रसाद मिश्र। आपका , व्हॉट्स ऐप का , और जिसने भेझी सबका शुक्रिया !

Atulavach said...

अति उत्तम रवीश बाबु। सुखों कोसमेटने या फिर खर्च करने की अदा अपनी -अपनी निराली हैं। सुख की परिभाषा में ही उलझा हुँ। अच्छा ये लगा कि अपने भवानी प्रसाद मिश्र के कविता का प्रशार किया। और भी चाँद लग जाते अगर महानुभाव के बारे में एक पंक्ति जोड़ देते। पुनः उनका सुख और आपकी बंधुत्व की कामना।

एक सुख खोजी

Akhilesh Jain said...

इसी कड़ी में:-
तू अचानक से मिल गयी तो पहचानूंगा कैसे, ऐ ख़ुशी, मुझे अपनी एक तस्वीर भेज दे.

Unknown said...

bhavani ji ki khasiyat yehi hai ki behad saralta se badi gambhir bat kah jate hai. unki ak aur kavita " kathputali" hai, use bhi kabhi apne blog me jagha dijiye. choti aur achhi kavita hai.

Unknown said...

awsome...kuch alag tha isme i swear...

Anita Jha said...

खुशी कि मजबूरी ...


आपने दुःख को सुख का नाम दिया
जिससे आपके बच्चे डर जाये वो सुख नहीं दुःख है
बच्चो कि मनोदशा जानिए
प्लीज उन्ही का कहना मानिये |

सुख तो कोइ घर खोज लेगी
क्योकि आपने कहा न कमरा छोटा है
वैसे गलती आप भी कर रहे
ध्यान से देखिये ये सुख नहीं दुःख है |

लोगो को वो हसाती है गाती है
पर अपने से वो खुद घबराती है
वो क्या ख़ुशी दे पायेगी
जो खुद बड़ी मुश्किल से आती है |

जिससे आपके बच्चे डरे
वो ख़ुशी बर्दाश नहीं कर पायेगी |
एक बार रो कर देखिये
खुशी बहुत दूर भाग जायेगी |

वो तो बच्चो कि जिंदगी में ही
बसना चाहती है
उनकी नन्ही नन्ही किलकारियो
में खुद को पाती है |

ख़ुशी का रोना भी
आपका दिल न छू पाया
पर खुशी है कि दुःख ने
आपका दिल दहलाया |

शुक्र है किसी की बात
तो आपने रक्खी
खुशी नहीं दुःख ही सही |

पर एक बात कहु
हम क्यों ये भूल जाते है
दुःख के बात ही हम
खुशी को गले लगाते है |

हा हा हा . मिस्टर ब्लाकबाज़ आपको क्या लगा आपके पास ही व्हाट्सप्प है ..हमारे फ़ोन में भी है ...है राइटर का नाम नहीं था .....

हमेशा खुश रहिये !!!!!!!!!

प्रवीण पाण्डेय said...

सुख दुख खिचड़ी जैसे मिले हैं।

Mahendra Singh said...

ise avadhi me sukhdukhva kahte hai.