मोदी बनाम अरविंद
मोदी की रैली में राजनाथ की शैली
क़िस्सा ए शपथ ग्रहण
आप का प्रधानमंत्री कौन ?
आप की सरकार से सरकार आपकी
तेज़ तो आइडिया वाले निकले । दिल्ली में सरकार बनानी है और पार्टी जनता से पूछ रही है । व्हाअट अन आइडिया सर जी । सलमान की फ़िल्म जय हो का संवाद है आम आदमी वो सोता हुआ शक है टाइप । तो बात गले से उतरी या सर के ऊपर से निकल गई । मीमांसा करते रहिए । जिस पार्टी का उदय ही अंत की भविष्यवाणियों से हुआ है उसे अपनी शुरूआत करने का मौक़ा मिल गया । नीली कार में जाते हुए अरविंद की तस्वीर शिव के गले की तरह लग रही थी । सब अरविंद को अपने हिसाब से देखना चाहते हैं । अंत होते हुए भी और सफल होते हुए भी । अरविंद ने क्या चुना है ज़रा ठहर कर देखते हैं । ओ डार्लिंग तू धुआँधार है दिल मेरा दिल्ली तू सरकार है । ये गाना भी अभी अभी दिखा उसी टीवी पर ।
दिल्ली में राजनीतिक परिवर्तन तो नहीं हुआ क्योंकि आप के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है मगर आप के प्रभाव से राजनीतिक परिवर्तन ज़रूर हुआ । चंदों की पारदर्शिता की बात हुई । बीजेपी को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा और तोड़ फोड़ से तौबा करना पड़ा । अब बीजेपी नैतिक होने का दावा कर रही है । भूल गई कि तीस प्रतिशत बिजली बिल कम करने का दावा उसने भी किया था । अगर अरविंद पचास की जगह तीस कर दें तो । अगर पचास प्रतिशत कम करने का दावा ग़लत था तो तीस प्रतिशत वाला क्या था । जिस तरह से कांग्रेस और बीजेपी आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र की पढ़ाई कर रही हैं वो एक शुभ संकेत हैं । अरविंद को भी कांग्रेस बीजेपी को सही साबित होने से रोकना पड़ेगा । अगर इसी दबाव में सरकार कुछ कर पाती है तो चीज़ें बदलेंगी । अरविंद के फ़ेल होने का ख़्वाब कांग्रेस बीजेपी के लिए सुनहरा है । बस साकार होने की देर है । और अगर अरविंद ने ग़लत साबित कर दिया तो ? इस संभावना पर कोई नहीं बोल रहा है । ज़्यादातर आश्वस्त हैं कि अरविंद फ़ेल होने जा रहे हैं । नौकरशाही जो कांग्रेस बीजेपी की संस्कृति की अभ्यस्त है वो पानी पिला देगी । आप को अब लड़ाई वहाँ लड़नी होगी । फ़ाइलों की कलाबाज़ी पर कांग्रेस बीजेपी को यूँ ही इतना भरोसा नहीं है । सब चाहते हैं कि अरविंद पहली गेंद में ही सौ बना दें । कांग्रेस बीजेपी की नाकामियों पर इन्हें इतना भरोसा है कि वे अदल बदल कर दोनों को आज़माने में कोई गुरेज़ नहीं महसूस करते । आलोचक अरविंद को दूसरा मौक़ा नहीं देना चाहते । चाहते हैं कि पहले दिन ही सारे वादे लागू कर दें । सरकार पाँच साल की होती है । मूल्याँकन पाँच साल में होगा कि छह महीने में । क्या छह महीने का पैमाना सभी सरकारों के लिए लागू होने जा रहा है । आलोचक कांग्रेस बीजेपी को पच्चीस मौक़े देना चाहते हैं । अरविंद की ओबिच़्ुअरी तैयार है बस उनके ही दस्तखत का इंतज़ार है ।
कांग्रेस से साथ लेना हर क़दम पर अरविंद को तकलीफ़ देगा । पहले से गरिया कर हमले कर समर्थन लेने की रणनीति पहले कभी नहीं देखी गई थी । यूपीए के मामले में सपा और बसपा का ऐसा उदाहरण दिखता है । दोनों मनमोहन सिंह को गरियाते हैं और मनमोहन उनका साथ लिये रहते हैं । अरविंद समर्थन नहीं ले रहे थे तो कांग्रेस बीजेपी ने भगोड़ा कहना शुरू कर दिया । जब ले लिया तो मौक़ा परस्त । चुनाव होता तब भी सब भगोड़ा कहने वाले थे । अरविंद पर ज़िम्मेदारी से भागने के लतीफ़े किसने फैलाये सब जानते हैं । जैसे विपक्ष में बैठने और सरकार बनाने के फ़ैसले में अरविंद को ही फंसना था । जैसे राजनीति में कांग्रेस बीजेपी की दलील ही अंतिम होती है । अरविंद ने हर समय चुनौती स्वीकार की है । ये चुनौती नहीं है । ज़हर का प्याला है । आलोचनायें तो हज़ार होती हैं । आपको अपनी बुनियाद पर टिके रहते हुए फ़ैसला लेना पड़ता है । कांग्रेस के सहारे सरकार बनाने का फ़ैसला बीजेपी के लिए मिसाइल है और कांग्रेस के लिए मौक़ा । अरविंद के लिए क्या है ? अगर आप ने कर के दिखा दिया तो ? राजनीति हाँ या ना में नहीं होती । कई सवालों जवाबों की परतों पर होती है । पहला दिन है इसलिए शुभकामनायें ।