चाय, फ़ेसबुक और सैमसंग
मोदी और साहू जी
मेरा ग़रीब तेरा ग़रीब
बड़की माई
ध्यानचंद के लिए कोई नहीं !
राजनीति का सम्मान किया जाए
बकरी घास खाती है
अपने गाँव से लौटकर
भाई साहब, रोज़ सौ दो सौ लोग मेरे साइबर कैफ़े में फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल खुलवाने आते हैं । फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल ? कौन लोग ? स्मार्ट फ़ोन वाले ? नहीं । साधारण साधारण लोग जिनके पास दो से पाँच हज़ार तक के फ़ोन होते हैं । फ़ेसबुक का एक प्रोफ़ाइल खोलने का दस रुपया लेते हैं ।
जल्दी में हुई इस बातचीत को लेकर देर तक सोचता रहा । साइबर कैफ़े वाले ने बताया कि वो ज़िले में कांग्रेस का कार्यकर्ता है । जबकि उसी की पार्टी सोशल मीडिया के इस्तमाल में पिछड़ गई । नरेद्र मोदी ने अपने प्रचार के रूप में सोशल मीडिया के इस प्रसार का सबसे पहले इस्तमाल कर लिया । तो राजनीति के अलावा अर्थशास्त्र भी दिमाग़ में घूम रहा था । मोबाइल फ़ोन पर फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल खोलकर कोई दिन में दो हज़ार रुपये से लेकर महीने में पचास हज़ार तक कमा सकता है ! लगता है हिन्दुस्तान ने बिज़नेस करने के संस्कार सीख लिये हैं । लोग तरह तरह के प्रयास कर रहे है । काश कि मेरे पास वक्त होता कि मैं उसके कैफे पर जाकर खुद देख आता लेकिन मोतिहारी स्टेशन पर सप्तक्रांति के आने का समय नज़दीक़ आता जा रहा था । उसने जल्दी में एक और बात बताई कि वो ज़िले के कई प्रमुख लोगों का प्रोफ़ाइल मेंटेन करता है । जानकर रोमांचित हुआ कि गूगल फ़ेसबुक और ट्विटर कमाई का ज़रिया बन रहे हैं । वैसे मुझे ट्विटर पर फोलो करने वाले कुछ लोग गाँव के भी मिले । जो गाँव में रहते हैं और कुछ शहर में । गांव के एक सुनसान से रास्ते पर बोलेरे से एक नौजवान उतरा था।उतरते ही हाथ मिलाया और ई मेल आईडी मांगा। मुझे लगा कि बंदा दिल्ली में रहता है । उसने बताया कि गाँव में ही रहता है मगर रात में फ़ेसबुक करता है । गाँव में भी कुछ युवा लोग मिले जो अपने मोबाइल से इंटरनेट का इस्तमाल जानते हैं । इन युवाओं का गाँव और शहरों के बीच आना जाना लगा रहता है । दिल्ली में रहने वाले कुछ युवाओं ने मिलकर मायअरेराज डाँट काम नाम की साइट बना ली है । ये लड़के कुष्ठ रोगियों के कल्याण के लिए काम करना चाहते हैं ।
मैं किसी स्वर्ण युग की तस्वीर नहीं खींच रहा बल्कि अपने गाँव में देख रहा था कि वहाँ क्या क्या हो रहा है । इसमें बिहार में आए राजनीतिक बदलाव की भूमिका देखी जा सकती है बल्कि एक सीमा तक ही । यह बदलाव किसी सरकार की प्रत्यक्ष भूमिका से संभव नहीं हुआ है । लोग नीतीश को श्रेय तो देते हैं मगर इस आर्थिक बदलाव में किसी एक सरकार की भूमिका नहीं है । मेरे गाँव में बिजली के खम्भे हैं मगर आज तक बिजली नहीं आई । स्कूल और पंचायत भवन की इमारत साधारण ही है । प्राथमिक अस्पताल की बात न करूँ तो वही ठीक रहेगा । मैं अपने ही गाँव को मेगास्थनीज़ या फाहियान की तरह देखता हुआ दर्ज करना चाहता था । महँगाई की सर्वदलीय हकीकत से हटकर ।
गाँव में बहुत कुछ बदला है । बाहर मज़दूरी करने वाले और अच्छी नौकरी करने वालों के भेजे गए सीमित पैसे से गाँव की अपनी अर्थव्यवस्था में तरलता आई है । इस तरलता से उपभोग का स्वरूप बदला है और तरह तरह के धंधों का विस्तार हुआ है । छठ के मौक़े पर अतिरिक्त क्रयशक्ति का प्रदर्शन हो सकता है लेकिन इसके बावजूद गाँव में दो दो सलून देखकर हैरान हो गया । नाई से सामाजिक पारंपरिक रिश्ता समाप्त हो चुका है । वो घर आकर बाल नहीं बनाता बल्कि आपको सलून में जाना होगा । छठ के दिन तो नज़ारा देखने लायक था,अतिरिक्त कुर्सियाँ लगी थीं और लोग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे । सलून में नंबर लगा रहे थे । सलून में इतनी भीड़ तो दिल्ली में नहीं दिखती है । वो भी सिर्फ दाढ़ी बनाने को लिए ।
मैं इस लेख को सूची बनाने की तरह लिख रहा हूँ । आप इसे संपूर्ण तस्वीर मानने की जगह इस तरह से देखिये कि क्या क्या हो रहा है । गाँव के भीतर मुर्ग़ा और मीट की दुकान हैरान करने वाली थी । दिल्ली की तरह का स्टैंड बन गया है और बकरा टाँग दिया गया है । पहले ऐसा नहीं था । साइकिल पर मीट या मछली बेचने वाला फेरी लगाता था या लोग नदी से मछली मार कर लौट रहे मछुआरे से ख़रीद रहे थे । छठ के सुबह वाले दिन मछली खाने की होड़ लग जाती है । लोग घाट से लौटते ही मछली ख़रीदने लौटते हैं । मेरे घर के लोग भी गाड़ी लेकर गए और दो घंटे बाद लौटे तो ख़ाली हाथ । मछली नहीं मिली । मेरे लिए यह सूचना किसी सदमे से कम नहीं थी । क्या भीड़ थी या इतनी जल्दी बिक गई पूछने पर जवाब मिला कि थोड़ी सी मछली थी वो भी जल्दी ख़त्म हो गई । एक सज्जन में बताया कि पहले मल्लाह जाति के लोग छठ समाप्ति की सुबह मछली मार कर रखते थे कि अधिक दाम में मछली बिकेगी । लेकिन अब मल्लाहों के पास पैसा आ गया है इसलिए वे भी छठ करने लगे हैं । छठ के आयोजन में काफी पैसा लगता है । तो सज्जन बता रहे थे कि मल्लाह भी दो तीन दिन के बाद ही मछली मारेंगे । इस बदलाव को छठ की बढ़ती लोकप्रियता के संदर्भ में भी देखा जा सकता है ।
विषयांतर हो रहा है लेकिन वक्त आ गया है कि छठ का आर्थिक सामाजिक अध्ययन किया जाए । लोगों के कपड़े, दौरे में प्रसाद और सामग्रियों की गुणवत्ता और मात्रा तक का अध्ययन । शारदा सिन्हा के गीतों की जगह घटिया गाने बज रहे थे । छठ की सामूहिकता भी गुटबाज़ी को कारण टूटती नज़र आई । कई घाट बन गए हैं । एक विशालकाय घाट पर साथ गए सज्जन ने बताया कि ये एरिया हरिजनों का है । मैं चौंक गया । छठ में ? उसने तड़ से एक बच्चे का नाम पूछ लिया जो अपने घर की व्रती माँ या भाभी के लिए घाट की सफ़ाई कर रहा था । लड़के ने अपना नाम बताया इक़बाल पासवान । इक़बाल और पासवान ? इस पर भी चौंक सकते हैं । सज्जन अपने इस लैब टेस्ट से काफी ख़ुश नज़र आए और कहा कि ज़रूर लिखियेगा ।
ख़ैर, मेरे गाँव की सीमा पर कुछ दुकानें जगमग हो गईं हैं । कई सालों तक हमने वहाँ सिर्फ चाय और पकौड़ी की एक दुकान देखी है । लोगों के पास पैसे भी नहीं होते थे दुकान पर पैसे ख़र्च करने को । आज वहाँ दो दो मिठाई की दुकानें हैं । दुकान में कई तरह के ताज़ा आइटम बन रहे हैं जो लगे हाथ बिक गए । चीनी मिठाई खाने वाले कम रह गए हैं । अब मेहमान के आने पर चाय के साथ दो तीन आइटम मिठाई भी पेश किया जा रहा है । तीन चार साल पहले तक आपको छह सात किमी दूर चलकर जाना पड़ता था मिठाई के लिए । यहाँ एक ठेला वाला भी आता है जो किसी शहर में लगने वाले अंडे के ठेले की तरह है । यह ठेलावाला दिन में ही मटन फ्राई ( तास मटन) तलने लगता है । लोग पव्वा को साथ चखना चखते हुए चट कर जाते हैं । शराब की लत के शिकार कई नौजवान दिख जाते हैं ।
इसी जगह पर दो चमकदार जनरल स्टोर्स भी दिखा, इसके अलावा दो तीन औसत किस्म के भी जनरल स्टोर भी । गाँव में बाज़ार का ये आलम । एक स्टोर में देखा कि मैगी,फ़ेयर एंड लवली, तरह तरह के बिस्कुट,तेल, शैम्पू, कापी किताब अनेक चीज़ें । गाँव के सीमान्त पर बिजली होने पर दुकान में फ्रिज भी था । जिसमें कोक, पेप्सी स्प्राइट की बोतलें नज़र आईं । दुकानदार ने बताया कि लोग खूब पी रहे हैं । दुकान में दो या तीन फोटोकोपियर मशीनें भी दिखीं । जैसी हम घरों में रखते हैं । दुकानदार ने बताया कि लोग फ़ेयर एंड लवली चाव से लगा रहे हैं । माँ ने किसी बुज़ुर्ग महिला का क़िस्सा बताया कि तीन चार ट्यूब लगा है गोरा होने के लिए । नहीं हुईं गोरी । मैगी बच्चे खूब खा रहे हैं । लोगों को दतवन करते नहीं देखा । बबूल बिक रहा है क्योंकि यह बोलने में आसान है । महिलाएँ मिट्टी या साबुन की जगह शैम्पू के पाउच खूब लगा रही हैं ।
बच्चे चिप्स खा रहे हैं और जन्मदिन मन रहे हैं । ब्रिटानिया का केक जो कभी स्पेशल आइटम हुआ करता था अब जनरल हो चुका है । अरेराज में गिफ़्ट सेंटर भी खुल गया है । अरेराज हमारे इलाक़े का तहसील है और सौ दो सौ से ज़्यादा दुकानें हैं यहाँ । यह बाज़ार भी पूरी तरह से अतीत को छोड़ चुका है ।
हमने गाँवों के भीतर बाज़ार की इस सरकार के बारे में राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के नतीजों के संदर्भ पढ़ा तो था मगर यह नहीं सोचा था कि तस्वीर इतनी बदल जाएगी । ये और बात है िक आप गाँव के लोगों से पूछेंगे तो वे यही कहेंगे कि कुछ नहीं बदला है । पैसा नहीं हैं । अगर कुछ नहीं बदला तो साढ़े छह हज़ार की आबादी वाले पंचायत में बीस बोलेरो, स्कार्पियो कहाँ से आ गईं हैं । ठेकेदारी के पैसे से ? ये गाड़ियाँ हर पाँच मिनट में आती जाती दिख जाती हैं । एक पूर्व मुखिया ने अंदाज़ के आधार पर कहा कि बीस बोलेरो और एक हज़ार बाइक तो होगा ही । पहले एक आदमी के पास बाइक होती थी ।
बाहर का पैसा गाँव को नचा रहा है । ट्रैक्टर पर राईस मशीन लेकर व्यापारी आता है और दरवाज़े पर ही धान कूट कर चला जाता है । अब धान कूटवाने के लिए बहुत श्रम की ज़रूरत नहीं है । कोई सरकार चाहे तो हर पंचायत को राइस मशीन देकर वोट लूट सकती है क्योंकि गाँव में अब मज़दूर बचे नहीं । लोगों के कपड़े बदल गए हैं । जीन्स गाँव गाँव में घुस गया है । अरेराज मेन मार्केट पड़ता है । वहाँ मैंने देखा कि कम से कम दस पंद्रह जीन्स सेंटर और कार्नर खुल गए हैं । कारोलबाग का माल खूब खप रहा है । गाँव के लोग भी जीन्स में अड़स अड़स कर चलने लगे हैं । अब अरेराज के कपड़ों की दुकानों का नाम वस्त्रालय नहीं रहा ।
अब आइये गाँव में । रौशन नाम के दर्ज़ी को मैं सालों से देख रहा हूँ । इस बार रौशन के घर के बाहर बड़ा सा सोलर पैनल देखा तो पूछने लगा । रौशन ने बारह हज़ार का सोलर पैनल लगाया है जिससे वो पाँच छह बल्ब जलाता है । उसने मांग के अनुकूल उत्पादकता बढ़ा ली है । साथ में उसकी पत्नी ने बिस्कुट और पान की दुकान खोल ली है । कई अन्य जगहों पर भी दुकानदारी के धंधे में औरतों को बेझिझक काम करते देखा और लड़कियों के स्कूल कोचिंग जाते हुए । लेकिन रौशन का अपने धंधे में निवेश कुछ नई कहानी तो कहता ही है जो आपको सच्चर की रिपोर्ट में नहीं मिलेगा । इस शांति काल ने मुस्लिम समाज को भी नए किस्म का आत्मविश्वास दिया है ।
मास्टर ह्रदय कुमार गाँव में कोचिंग चलाते हैं । ढाई सौ बच्चों पढ़ रहे हैं । प्रतिस्पर्धा के लिए अतिरिक्त पढ़ाई की चाह गाँव में पनप गई है । इसका नतीजा दस साल बाद दिखेगा । ह्रदय कुमार ने बताया सब जाति के बच्चे पढ़ रहे हैं । लोग पैसे ख़र्च कर रहे हैं । उनके साथ घूमते हुए महसूस हुआ कि हर बच्चा प्रणाम सर कहने की परंपरा आज भी ढो रहा है । आख़िर उसके ज्ञान का अंतिम ज़रिया मास्टर साहब ही तो हैं । मास्टर ने बताया कि वे नियमित प्राइम टाइम देखते हैं । सोलर पावर से या जनरेटर जला कर अब ठीक से याद नहीं है । ख़ैर ।
कोई समय जड़ नहीं हो सकता । कुछ न कुछ बदलता ही है । लोगों ने बिजली का इंतज़ार छोड़ दिया है । हालाँकि जहाँ बिजली है वहाँ लोगों ने बताया कि छह से दस घंटे की बिजली मिल जाती है । बिजली को कारण भी कई तरह के बदलाव आ रहे हैं जो मीडिया में दर्ज नहीं किये जा रहे हैं । फिर भी एल ई डी लाइट ने मिट्टी तेल वाले लालटेन को प्राय समाप्त कर दिया है । एवरेडी का एल ई डी वाला लालटेन नुमा टार्च लोकप्रिय है । सोलर से चलने वाले कई तरह के डिजी लाइट गाँवों में दिखेंगे । गाँव के लोगों ने अपने आप सौर ऊर्जा की ताक़त समझ ली है । शहरों से ज़्यादा गाँव के लोग सोलर ब्रांड के बारे में जानते हैं । टाटा का अच्छा है भारत का नहीं । एक ने कहा ।
मास्टर ह्रदय कुमार ने एक और मुस्लिम लड़के से मिलाया जो सोलर पैनल से मोबाइल फ़ोन की बैटरी चार्ज कर कमाता है । दुकान में वो अन्य चीज़ें भी रखता है और नाटक वग़ैरह में कामेडी भी करता है ।
गांव या पंचायत के अब सत्तर फ़ीसदी घर पक्के हो गए हैं । इस सत्तर फ़ीसदी पक्के मकानों में आधे से ज़्यादा अभी अभी बने लगते हैं । जिनकी दीवारों पर सीमेंट नहीं लगा है । रंग रोगन नहीं हुआ है । ऐसे घर पिछड़ी और दलित जातियों के ज़्यादा हैं ।
एक सज्जन ने बताया कि अब लोग पंजाब नहीं गुजरात कमाने जाता है । वहाँ राज मिस्त्री को सात सौ रुपये दिन के मिलते हैं । इसी तरह से गाँवों में पैसे आ रहे हैं । जो पैसे आते हैं वे खर्चे के होते हैं । गुजरात से कमाकर आने वाला मालामाल मज़दूर नरेंद्र मोदी के ब्रांड एंबेसडर हैं । मोदी ने इन्हें तारीफ़ करने के तर्क और शैली दोनों थमा दिये है । गाँव से लेकर मोतिहारी और ट्रेन में जिससे भी मिला सबने नरेंद्र मोदी की बात की । खूब बात की । इसमें कई जाति और तबके के लोग थे । बल्कि कुछ चिन्हित कांग्रेसी परिवारों में भी गया तो वहाँ भी लोगों ने नरेंद्र मोदी के बारे में ही पूछा । ट्रेन में जब इन बातों की सूची बना रहा था लिखने के लिए तो ध्यान आया कि किसी ने भी राहुल गांधी के बारे में एक लाइन नहीं पूछा । एक आदमी ने नहीं पूछा कि सोनिया क्या करेंगी या राहुल क्या कर रहे हैं । गाँव गाँव में मोदी के पोस्टर हैं । नीतीश कुमार के भी नहीं । अगर आप झंडा बैनर को एक पैमाना माने तो लगता ही नहीं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं । नीतीश को मोदी से सीखना होगा कि कैसे प्रचार किया जाता है । भले इतिहास सीखने की ज़रूरत न पड़े । राहुल गांधी के भी पोस्टर नहीं दिखे । दूर दूर घूमा । कई लोगों से मिला तब भी ।
बिहार बदल रहा है । इसमें मनोवैज्ञानिक और ढाँचागत योगदान राज्य सरकार का ही है लेकिन बिहार को दस साल और शांति के मिल गए तो यह राज्य अपना रास्ता खुद बना लेगा । ज़मीन पर जो राजनीति बदल रही है उसे देख कर कैसे न लिखें । नरेंद्र मोदी शहर तक सीमित नहीं हैं । वे पसर चुके हैं । कांग्रेस में वो नज़रिया नहीं है कि महँगाई के इस दौर में गाँवों की इन तस्वीरों को कैसे पेश करे ।
मोदी ने खाली स्लेट पर अपना नाम सबसे ऊपर और सबसे पहले लिख दिया है ।
नोट- इस लेख में तस्वीरें नहीं लगी हैं । वक्त मिलते ही लगाऊँगा । दूसरा इसमें बदलाव भी कर सकता हूँ । तीसरा कि ये पूरे बिहार की तस्वीर नहीं है । तीन चार दिनों में जो देखा सुना उतना ही लिखा है ।