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आज २५ अक्तूबर २००९ है। नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इंग्लिश देवी अवतरित हो गईं। चंद्रभान प्रसाद की चार साल पुरानी परिकल्पना एक मूर्ति के रूप में साकार हुई है। चंद्रभान चाहते हैं कि दलित का हर बच्चा अंग्रेजी में पारंगत हो। अंग्रेजी जानेगा तो वो विश्व की तमाम मुख्यधाराओं से संवाद कर सकेगा। हिंदी भाषी चंद्रभान इस मूर्ति के ज़रिये हिंदी इंग्लिश का फरियौता नहीं करना चाहते। उनका मकसद है कि कम से कम समय में दलित साक्षरता को हासिल किया जाए और अंग्रेजी माध्यम में उनकी निपुणता उनके लिए दुनिया के दरवाज़े खोल देगी। इस मौके पर कुछ ऐसे दलित भी बुलाये गए थे जो उद्योगपति बन चुके हैं। जिनका कारोबार पचास से पांच सौ करोड़ रुपये का है। सिर्फ एक भाषा की कमी से वो दुनिया के सामने हीरो नहीं हैं। अंग्रेज़ी के कारण।
इस मौके पर नरेंद्र जाधव,दिग्विजय सिंह,चंदन मित्रा,निवेदिता मेनन,आशीष नंदी,बिबेक देबरॉय,ब्रिटिश काउंसिल के प्रमुख केविन सहित कई दलित अफसर मौजूद थे। प्रसिद्ध इतिहासकार गेल ओमवेत ने लार्ड मैकाले के जन्मदिन पर केक काटा। ऊपर तीन तस्वीरों में से एक गेल ओमवेत की है जो केक काट रही हैं। पहले की दो तस्वीरें इंग्लिश देवी की है। एक हाथ में कलम,दूसरे में किताब,पांव के नीचे कंप्यूटर और सर पर हैट। सबने इस मौके में मैकाले को आधुनिक भारत का जन्मदाता बताया। जिसे लोग क्लर्क पैदा करने की फैक्ट्री कह कर खारिज करते रहे उस शख्स की तारीफ की गई। वरना गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था आज भी एक खास जाति के लोगों के लिए रह जाती। मैकाले ने आधुनिक स्कूल कालेज की कल्पना की और तालीम के दरवाज़े सबके लिए खुले।
दलित शिक्षा आंदोलन में इंग्लिश की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जाता रहा है। अंबेडकर ने भी कहा था अंग्रेजी शेरनी का दूध है। दलित मध्यमवर्ग की अब अगली पहचान इंग्लिश से बनेगी। ऐसा दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद मानते हैं। इसीलिए वो कामयाब दलित उद्योगपतियों को पहली बार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर बुलाते हैं। पांच सौ करोड़ के उद्योगपतियों को आईआईसी का पता भी नहीं मालूम था। इंग्लिश देवी पर बहस और विवेचना होती रहेगी। मंत्र यह है कि कोई दलित बच्चा पैदा हो तो उसके एक कान में एबीसीडी और दूसरे कान में वन टू थ्री बोला जाए। आमीन।