सेवा में,
सचिव,
कार्मिक विभाग
भारत सरकार,
(सितंबर १९४७)
मैं,सफ़दर अली ख़ान भारत की सेवा करना चाहता हूं। मैंने पाकिस्तान जाने का फ़ैसला किया था क्योंकि मेरे दोस्तों और सह कर्मचारियों ने दबाव डाला था लेकिन अब मुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस हो रहा है। मेरी बूढ़ी मां बहुत बीमार है। वह भी मुझे पाकिस्तान जाने नहीं देना चाहती। मैंने पाकिस्तान का पक्ष लेकर एक बड़ी भूल की है। मैं सच कह रहा हूं। मेरा अपना फ़ैसला नहीं था। दबाव में फ़ैसला किया था। मैं पहले भारतीय हूं और आखिर में भी भारतीय हूं। मैं भारत में रहना चाहता हूं।भारत में ही मरना चाहता हूं। इसलिए मुझे अनुमति दी जाए कि भारत में रहूं।
मुरादाबाद में तैनात गार्ड सफ़दर अली ख़ान भारत में रहना चाहते थे। उनकी इस चिट्ठी की सिफ़ारिश शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद ने की थी। मगर गृह मंत्रालय ने कलाम की इस चिट्ठी को अस्वीकार कर दिया। जवाब मिला कि पार्टिश काउंसिल का फ़ैसला है कि जब एक बार फ़ैसला कर लिया तो उस पर कायम रहना चाहिए। गृहमंत्री सरदार पटेल आज़ाद को लिखते हैं कि आपने जिसकी व्यक्ति की बात की है, मुझे नहीं लगता है कि उसे फैसला बदलने की अनुमति मिल पाएगी।
नवंबर १९४७। ठीक ऐसा ही मौसम रहा होगा। थोड़ी सर्दी अधिक होगी। सफ़दर अली ख़ान उन पांच हज़ार रेलवे कर्मचारियों में शामिल थे,जिन्होंने पाकिस्तान जाने का अपना फ़ैसला बदल दिया था। वो अब वहीं रहना चाहते थे जहां वो रहते आए थे। लेकिन सांप्रदायिक हो रही राजनीति ने इन पर पाकिस्तान के एजेंट होने का लेबल लगा दिया। लखनऊ रेलवे स्टेशन पर हिंदू कर्मचारियों ने हड़ताल की धमकी दे दी। कहा कि अगर इन्हें अब भारत में रहने दिया गया तो ठीक नहीं होगा। नतीजा रेलवे के अफसर भी इन कर्मचारियों पर दबाव डालने लगे कि वो पाकिस्तान जाने का अपना फ़ैसला न बदलें।
फॉल्टलाइन्स ऑफ नेशनहुड (रोली बुक्स)। इस किताब में विभाजन और राष्ट्रवाद पर शोध करने वाले इतिहासकार प्रोफेसर ज्ञानेंद्र पांडे सफ़दर अली ख़ान की इस कहानी के बहाने बता रहे हैं कि कैसे एक भ्रम की स्थिति बन गई थी। हर कोई एक दूसरे को हम और वो की ज़ुबान में पुकारने लगा था। यहां तक कि नेहरू भी कहते हैं कि सिर्फ उन्हीं हिंदू मुसलमान को यहां रहना चाहिए जो इसे अपना मुल्क समझते हैं। पांडे बता रहे हैं कि कैसे हिंदू और मुसलमान होने को राष्ट्रवाद की कैटगरी से जोड़ दिया जाने लगता है।
जब दिल्ली में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने कहा कि हर पाकिस्तानी में थोड़ा हिंदुस्तानी रहता है तो मुझे सफ़दर अली की बहुत याद आई। सोचता रहा कि कितना बेमन से सफ़दर पाकिस्तान गए होंगे। कितना रोया होगा। कितना कोसा होगा खुद को। क्यों किया दोस्तों के दबाव में पाकिस्तान जाने का फ़ैसला। कितना दिल टूटा होगा उस भारत सरकार से जिसने सफ़दर को उसके पुराने मोहल्ले में रहने का मौका नहीं दिया। कहीं सफ़दर अली ख़ान और आसिफ़ अली ज़रदारी के बीच कोई रिश्ता तो नहीं है। वो एक दूसरे को जानते तो नहीं होंगे। उम्र का काफी फ़ासला रहा होगा। फिर भी क्या पता सफ़दर के मोहल्ले में ही आसिफ ने अपना बचपन बिताया हो और सफ़दर की बातें उसके दिलों में उतर गईं हों।
नवंबर की इस सर्दी में सफ़दर अली ख़ान, गार्ड मुरादाबाद, की बहुत याद आ रही है। मज़हब के चश्मे से राष्ट्रवाद को देखते देखते हमने शक की तमाम इमारतें खड़ी की हैँ। जहां एक साधु स्वाभाविक रुप से राष्ट्रभक्त होता है और एक मुसलमान देशद्रोही हो जाता है। सुदर्शन कहते हैं आतंकवाद का मज़हब नहीं होता, तो फिर आडवाणी क्यों विदिशा की रैली में कहते हैं कि साध्वी को फंसाया जा रहा है। पुलिस सबको फंसाती है। आडवाणी जानते हैं। कश्मीर टाइम्स के पत्रकार गिलानी को भी आतंकवादी बना दिया गया था। मेरे शो में जेल ले जाते हुए अपनी पुरानी तस्वीर देख कर गिलानी की आंखें भर आईं थीं। तब आडवाणी ने क्यों नहीं कहा था कि गिलानी को फंसाया जा रहा है। वो गृहमंत्री थे।
बहरहाल आप प्रोफेसर ज्ञानेंद्र पांडे की इस किताब को ज़रूर पढ़ियेगा। दस्तावेज़ों के साथ पांडे बताते हैं कि कैसे पाकिस्तान का मतलब कोई मुल्क नहीं था। सभी तरफ एक भ्रम की स्थिति थी। अलग पाकिस्तान को अलग मुल्क समझा गया। पंजाब और बंगाल में लीग के कई समर्थकों और नेताओं में इस बात को लेकर आपत्ति थी कि पूरे महाद्वीप के हिंदुओं और मुसलमानों को अलग कर दिया जाएगा। बंगाल मुस्लिम लीग के सचिव अबुल हाशिम कहते हैं कि आज़ाद भारत में यहां रह रहे सभी मुल्कों को रहने की पूरी आज़ादी मिलनी चाहिए। अप्रैल १९४७ में जिन्ना ने माउंटबेटन से गुज़ारिश की थी कि बंगाल और पंजाब की एकता से खिलवाड़ मत कीजिए। इनका चरित्र,संस्कृति सब साझा है। बंगाल मुस्लिम लीग के नेता हुसैन सुहरावर्दी ने वायसराय ने कहा था कि वो नवंबर १९४७ तक विभाजन के फैसले को रोक दें। फ़ज़्लुल हक़ ने १९४० में लाहौर में पाकिस्तान घोषणा पढ़ा था। फ़ज़्लुल हक़ ने भी कहा था कि देश को बांटने से तो अच्छा है कि अंग्रेज़ थोड़ा और रुक जाएं।
नवंबर में ही आसिफ अली ज़रदारी ने क्यों कहा कि हर पाकिस्तानी में थोड़ा हिंदुस्तानी और हर हिंदुस्तानी में थोड़ा पाकिस्तानी रहता है। क्यों मुस्लिम लीग के नेता नवंबर तक ठहरने की बात कर रहे थे। क्यों रेलवे के पांच हज़ार लोग नवंबर में ही पाकिस्तान जाने के फ़ैसले को बदलना चाहते थे। क्यों हिंदू कर्मचारी इनके रुकने के फ़ैसले का विरोध करने लगे। आडवाणी, सुदर्शन और प्रज्ञा का राष्ट्रवाद धर्म की इन गलियों से क्यों गुज़रता है? गेरुआ राष्ट्रवाद गेरुआ आतंकवाद का विरोध क्यों कर रहा है? एक बेकसूर साध्वी का बचाव हो रहा है या फिर किसी सफ़दर अली ख़ान को धमकाया जा रहा है।
सफ़दर अली ख़ान। अपनी कब्र में न जाने किस मुल्क में होने का ख़्वाब देखते होंगे। ऐसे बहुत से सफ़दर थे जो डर से, दबाव में इधर से उधर हो गए। सफ़दर अली ख़ान को कोई लौटा लाता। मुरादाबाद के उस घर में...जहां वो अपनी बूढ़ी मां की तीमारदारी कर लेता और दिल्ली जाने वाली रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखा देता। कोई है हिंदुस्तान में जो उठ कर कह दे कि मेरे भीतर भी थोड़ा पाकिस्तानी रहता है। सुना है सिंध से आए हैं आडवाणी जी।