भीषण गर्मी में लालू का दावा सर के ऊपर से गुज़र रहा था । कैमराकार मोहम्मद की हालत ख़राब होने लगी थी । मुझे भी लग रहा था कि कुछ गड़बड़ हो रहा है । लगा कि शुगर डाउन हो गया है । बीच इंटरव्यू में लालू यादव से पूछ दिया कि आपके साथ कुछ खाने को है । मेरी हालत ख़राब हो रही है । लालू सकपका गए । फिर किसी को कहने लगे कि खाने का इंतज़ाम हो सकता है । तब तक चाय आ गई । मुझे तो चाय से राहत मिल गई पर मोहम्मद की तबीयत ख़राब होने लगी । कैमरा बंद । इंटरव्यू हो चुका था मगर मोहम्मद पेट पकड़ कर बैठ गए । शूटिंग करते वक्त कब क्या हो जाए पता नहीं ।हालत ख़राब थी पर कैमरे के सामने सामान्य दिखने के लिए मुस्कुरा रहे थे । लालू भाषण दे रहे थे और मैं उनके ड्राईवर से पानी मांग रहा था । कहा साहब के लिए एक ही बोतल है । दे दिया । दोपहर की गर्मी कभी कभी मार देती है । बाद में स्थानीय पत्रकार बंधु के घर भोजन मिला और हम सामान्य हुए ।
नरेंद्र मोदी ने रैलियों का स्तर इतना भव्य कर दिया है कि लोग भूल चुके हैं कि चुनावी सभाएँ भी होती हैं । नरेंद्र मोदी की रैली की तरह कोई इंतज़ाम नहीं । मीडिया का कोई कैमरा नहीं । कोई ओबी वैन नहीं । जबकि आज ही मोदी की बिहार में हुई सभी रैलियों का कुछ न कुछ हिस्सा चैनलों पर ज़रूर चला होगा । लालू, मायावती, मुलायम और नीतीश की सिर्फ बाइट चलती है । मोदी, राहुल, सोनिया और प्रियंका ही लाइव होते हैं । लालू की सभा का इंतज़ाम ऐसा था जैसे रास्ते में बारात का इंतज़ाम हो । कोई चमक दमक नहीं । प्रेस को संभालने वाला कोई मैनेजर नहीं ।
लालू की सभा में हेलीकाप्टर दिखने से पहले कोई सौ लोग भी नहीं थे । जैसे ही हेलीकाप्टर दिखाई दिया पता नहीं कहाँ से पाँच मिनट के भीतर सभा स्थल भर गया । समझ ही नहीं कि कहाँ से इतने लोग आ गए । जबकि ठीक उसी वक्त छपरा में मोदी की रैली चल रही थी । लोगों ने बताया कि धूप के कारण भीड़ बाग़ीचे में इंतज़ार कर रही थी ।
बिहार में अचानक लोग लालू के उभार की बात करने लगे हैं । क्या सचमुच लालू ने मोदी लहर को रोक दिया है । लालू के दावे और उनके प्रति भीड़ के आकर्षण के कारण ऐसा लग सकता है । आज भी लोग लालू की बात को ध्यान से सुन रहे थे । जब बीजेपी के दावे विश्वसनीय बताये जा सकते हैं तो लालू के क्यों नहीं । अगर लालू ने ऐसा कर दिया तो वे मोदी के सामने बड़े नेता बन जायेंगे । सोलह मई के बाद देखा जाएगा ।
इस चुनाव में जनमत बदल रहा है । वह जातियों के बंधन में ज़रूर फँसा है मगर उससे निकल भी रहा है । यही निकले हुए लोग बीजेपी को ऊर्जा दे रहे हैं । उन्हें रास्ता दिखाने में कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन का भी योगदान है । रिज़ल्ट क्या होगा पता नहीं मगर बिहार में चर्चाओं का तराज़ू बराबर दिख रहा है एकतरफ़ा झुका हुआ नहीं । मोदी ने खुद को बदलाव के एजेंट के रूप में पेश कर दिया है । इस दावेदारी को चुनौती देने के लिए दूसरी तरफ कोई उम्मीदवार नहीं है । दूसरी तरफ़ से मोदी की तरह कोई सपना नहीं बेचा गया है । इसलिए जाति या क्षेत्रिय दलों के सहारे मोदी को रोकने की बात दमदार तो लगती है मगर सारे दलील पुराने फ़ार्मूले पर आधारित हैं । ये नरेंद्र मोदी के पक्ष में है या नहीं मगर इस चुनाव में राजनीतिक सामाजिक संबंधों में व्यापक बदलाव हो रहा है ।
भाजपा या संघ का एक कमाल यह भी है कि उसने हर चौक चौराहे पर अपने समर्थकों को आक्रामक दलीलों से लैस कर दिया है । किसी की रैली में जाता हूँ तो ये लोग कैमरे के पास आकर मोदी मोदी करने लगते हैं । दमदार बहस करते हैं । मुझे बीजेपी की रैली में कोई सपाई या कांग्रेसी नहीं मिलता मगर बाक़ियों की रैली में बदलाव या मोदी मोदी करने वाला युवा ज़रूर मिलता है । अब पूछने लगा हूँ तो पता चलता है कि स्वयंसेवक है या बीजेपी नेता के रिश्तेदार । वैसे ये काम तो दूसरे दल वाले भी कर सकते थे, किसने रोका है । इनके मोदी मोदी करने से पहले भीड़ कुछ और बात कर रही होती है लेकिन अचानक ऐसे तत्वों के आने से भीड़ छँटने लगती है । एक ही पोस्टर में लालू सोनिया और शहाबुद्दीन की तस्वीर है । जो बिहार की राजनीति को जानता है वो इस तस्वीर का मतलब अपने आप समझ जाएगा । इस पर लिखूँगा तो फिर बीजेपी के समर्थन से लोजपा के टिकट से लड़ रही रहे सूरजभान सिंह की पत्नी भी हैं । ऐसे विषय अब चुनाव के आख़िरी दौर में अकादमिक हो चले हैं । फ़िलहाल सवाल यह है कि क्या वाक़ई लालू बीजेपी को रोक देंगे ।