आश्रम जाम का राष्ट्रवाद-7

(दोस्तों,आश्राम जाम पर मेरा यह ब्लाग धारावाहिक अब रवानगी में लौट रहा है। आप पाठक ही बतायेंगे कि कहानी आगे बढ़ रही है या नहीं। मैं किसी छप चुके उपन्यास की तरह पाठकों पर बोझ नहीं बनना चाहता। जहां लगे कि कहानी में टिव्स्ट नहीं है बता दीजिए, हम नए मोड़ की तरफ मुड़ जाएंगे)

आश्रम जाम लंबा होने लगा था। इतना लंबा की आक्षम की लंबाई एयरपोर्ट से लेकर नोएडा तक नापी जाने लगी। जाम युग में यह आश्रम का विस्तार था।आश्रम अपने आप में एक शहर,उसके बाद राज्य बनने लगा।मूलचंद,साउथ एक्स,एम्स सब उसके ज़िले लगने लगे। आश्रम जाम को स्थाई रूप देने की सभी प्रशासनिक तैयारियां पूरी कर ली गईं थी। सोमदत्त शर्मा को उसी दिन रिटायर होना पड़ रहा था। बर्फी बांटी जा रही थी। शर्मा जी को मलाल था कि एक्ज़िक्यूटिव इंजीनियर के पद पर रहते हुए वो एक ऐसा नक्शा न बना सके जिससे आश्रम को जाम से मुक्ति मिलती। उनके हर नक्शे पर एक नया फ्लाईओवर बन जाता और जाम से मुक्ति का सपना अधूरा रह जाता।

उस शाम बर्फी के साथ बीयर भी ख़ूब पी ली शर्मा जी ने। वो खुल कर कहना चाहते थे। नीतियों से लेकर नीयत तक पर गालियों का महाकाव्य रचने लगे। चिल्लाने लगे अरे तुम नहीं जानते। आश्रम को जाम से मुक्त किया जा सकता था। मैं कहता रहा इस मुख्यमंत्री को, उस मुख्यमंत्री को, ये जाम अगर इसी तरह बढ़ता रहा तो लोग इन रास्तों पर अपना घर बना लेंगे। धीरे धीरे शहर से एक राज्य बन जाएगा। राष्ट्र भी बन सकता है। जाम एक विस्तारवादी योजना है। इसे उसी तरह रोकना चाहिए जैसे गांधी ने अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति को रोका था।

शर्मा जी की बाते सुनकर उनकी जगह पर नियुक्त हुए ईश्वरचंद बहल भयभीत हो गए। क्या कहते हैं शर्मा जी,क्या जाम से मुक्ति मिल सकती थी? बहल साहब के इस जवाब पर शर्मा जी ने आंखे दिखा दी। एक लार्ज बीयर गटकने के बाद बोले, मिलती अगर हम संघर्ष करते। लेकिन हम तो विदेशी सहायता की मानिंद फ्लाईओवर बनाते रहे। बहल साहब जून की तपती दोपहरी में कांप रहे थे। पसीने को पोंछने के लिए जिस अखबार को उठाया उसमें मुख्यमंत्री का बयान देख घबरा गए। सीएम ने प्रेस से कहा था कि आश्रम में लगने वाले जाम से बसे शहर को मिटा दिया जाएगा। जिन कारों में लोगों ने अपने घर बसा लिये हैं उनके पुनर्वास की योजना बनाई जाएगी।

बहल साहब रोने लगे। कहने लगे शर्मा जी मेरे साथ घोखा हुआ है। मैंने कभी सुना ही नहीं कि जाम से परेशान लोगों ने कार में अपना घर बसा लिया है। वो लंबी कारों में अकेले ड्राइविंग से उकता गए थे। बाद में फैमिली रखने लगे। बीबी बच्चे भी उनके साथ कार में ही रहते थे। तभी तो रियल इस्टेट वाले प्रोपर्टी का कारोबार छोड़ ओटोमोबिल डीलर बनने लगे हैं। शर्मा जी ने कहा बहल अभी तो पेशा बदल रहा है। कल को जाम में फंसे ये लोग ख़ुद को हिंदुस्तान से आज़ाद होने का एलान कर दें तो क्या करोगे। जानते हो इन्हें जो कुछ भी मिल रहा है उसमें हिंदुस्तान का कुछ नहीं। इनकी कारें जर्मनी की हैं। तेल अरब देशों से आता है। इन्होंने अरब देशों से आश्रम जाम में फंसे लोगों के लिए सस्ता तेल आयात किया है। पहली बार किसी मुल्क ने इस तरह के मुल्क से राजनयिक और व्यापारिक करार किये हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस बात पर बहस चल रही है कि सड़क पर बने एक मोबाइल मुल्क को मान्यता दे या नहीं।इस बीच आश्रम जाम के कारनागरिकों ने अमरीका से पैक्ड फूड का आयात शुरू कर दिया है। वो ईंधन बचाना चाहते हैं। जब से सड़क पर उनका घर बना है उन्हें घर जाने की जल्दी ही नहीं रही।

बहल साहब चिल्लाने लगे। मुझे लार्ज बीयर दो। यह तो अलगाव वाद है।एक तरह का नक्सलवाद है। गृहमंत्री को ख़त लिखूंगा। शर्मा जी आपने एक्ज़िक्यूटिव इंजनीयर के पद पर रहते हुए भारत सरकार को नहीं लिखा। शर्मा जी गुस्से में आ गए। बोले मिस्टर बहल हज़ार बार लिखा लेकिन दिल्ली सरकार को। और यह सरकार वोट की खातिर आश्रम जाम पर चुप्पी साधती रही। दिल्ली को नहीं बताने के लिए मेरा मुंह बंद किया गया। मेरा तबादला बुराड़ी करने की धमकी दी जाती थी। जहां न पब्लिक थी न पब्लिक स्कूल। क्या मैं अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाता। साउथ दिल्ली के स्कूलों के कारण मैंने राज्य सरकार की हर बात मानी। लेकिन मैं भूल गया कि मैं अपने मुल्क के साथ गद्दारी कर रहा हूं। बहल कहने लगे..हां हां शर्मा तुमने गद्दारी की है।

शर्मा जी रोने लगे। सच कहता हूं बहल मैं बुज़दिल हो गया था। कभी नहीं सोचा कि एक दिन जाम से उकताए लोग कारों में अपना घर बसा लेंगे और फिर एक दिन शहर और राज्य। मुझे नहीं मालूम था कि वो अलगाववादी रास्ते पर जा सकते हैं। मुझसे ग़लती हो गई। अच्छा हुआ मैं रिटायर हो रहा हूं। भगत सिंह की आत्मा मुझे माफ करे और तुम्हें ताकत दे कि तुम जाम में फंसे इस शहर के खिलाफ मोर्चा खोल सको। भारत सरकार की मदद कर सको।

बहल ने एक पत्रकार को फोन किया। बताने के लिए कि आप ही इस ख़बर को कर सकते हैं। फोन उठाते ही बहल का पहला सवाल था कि आप कहां हैं? अभी आइये? जवाब था हम तो आपके दफ्तर के पास ही हैं। यहीं रहते हैं और यहां से कहीं जाते नहीं। मैं अपने राज्य को छोड़ कर नहीं जाता। बहल को लगा कि पत्रकार भविष्य कुमार मज़ाक कर रहा है।शायद अब वह बीस साल दिल्ली में रहने के बाद इस शहर से अपनी वफादारी निभा रहा है। लेकिन भविष्य कुमार ने भी गुस्से में कह दिया, मिस्टर बहल,मैं अपने राज्य,जो जल्दी ही एक मुल्क बनने वाला है,का ज़िम्मेदार नागरिक हूं। जिसका नाम है आश्रम जाम। इससे पहले न तो दिल्ली न तो भारत सरकार ने हमारे दुखों को समझा। झूठे वादे करते रहे। सरकारों को लगा कि अलगाववाद सिर्फ कम सुविधा संपन्न इलाकों और लोगों के बीच पनपता है,लेकिन वो ग़लत निकले। इस बार अलगाववाद का रास्ता उन लोगों ने इख्तियार किया है जो आश्रम जाम में फंसे रहने से उकता गए थे,जो सुविधा संपन्न थे,जो गाढ़ी कमाई से टैक्स देते थे,जिनके पास बड़ी बड़ी कारें थीं,लेकिन घर पहुंचने का रास्ता नहीं था। अब हमारा राष्ट्र बनेगा तो इस जाम से मुक्ति मिलेगी। हम इस रास्ते को अपना राष्ट्र बना देंगे। दिल्ली को दिखा देंगे कि आश्रम जाम में फंसे रहने वाले लोग शर्मा और बहल की तरह बुज़दिल नहीं हैं। बहल अब फोन काट दो। मेरे स्वयंभू वित्तमंत्री का फोन आ रहा है। मैं अपने कैबिनेट का मुखिया हूं। लेकिन एक फर्क है। दिल्ली की तरह लोग मुझे प्रधानमंत्री नहीं कहते, बल्कि मैं जामपति कहलाता हूं। आश्रम जाम के इस नए राष्ट्रवाद से डरो बहल, इसकी आंधी में तुम्हारे सारे फ़र्ज़ी फ्लाईओवर उड़ जाएंगे।

मिस्टर बहल लार्ज बीयर का एक और पैग लगा कर अपनी मेज़ पर लुढ़क चुके थे। रिटायर शर्मा जी को कर्मचारियों ने आटो में डालकर डिफेन्स कालोनी के रास्ते विनय मार्ग होते हुए मुनिरका पहुंचा दिया था।

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

अभी तक तो दिलचस्पी बनी हुई है...लगे रहिये...

Avinash Das said...

मैंने बाद में काफी सोचा कि एक जगह के जाम को लेकर महाकाव्‍य कैसे रचा जा सकता है। एक लंबी कविता के कुछ शेड्स बन सकते हैं, या कहानी के कुछ सीक्‍वेंस। औपन्‍यासिक गाथा कैसे रची जाएगी। पर आपने जिस तरह से शुरुआत की है - और काल्‍पनिकता, सच्‍चाई, विसंगति, सस्‍पेंस का जैसा कोलाज आप रचते जा रहे हैं, उससे अपने सोचे हुए की सीमा भी समझ रहा हूं। बहल साहब और शर्मा जी के संवाद में ये गति बनी रही - तो आश्रम जाम पर ये राजनीतिक-रचनात्‍मक-सामाजिक संवाद के रूप में लोगों को याद रहेगा। मज़ा आ रहा है... आप लिखते रहें...

उमाशंकर सिंह said...

प्रिय अविनाश, जाम में फंसे लोगों की विवशता पर मज़ा लेना छोड़ो। ये बस एक 'मोहल्ला' भर नहीं... पूरा का पूरा 'कस्बा' है जो 'राष्ट्र' बनाने की अभिकल्पना मूर्त करने पर तुला है। बन गया को उसका नाम 'जामाबाद' रखा जाएगा... जहां हमारा 'कार-ओ-बार' चलता रहेगा... मतलब 'जाम से जाम' टकराता रहेगा... असल मज़ा लेना है तो तुम भी नागरिकता ले लो... मतलब जामाबाद में फंस सकने का बहाना...हम भी वहीं मिलेंगे...8 से 10!

Raag said...

Looks like some people reported your blog for offensive content. That's shameful.

CHANDAN said...

सर,दिक्कत होने लगी है ।इस महाकाब्य के भागों के बीच में दूसरी पोस्ट के आ जाने के कारण फिर से पीछले भाग को पढ़ना पड़ता है ।इसलिए जामकाब्य के सभी हिस्से को अलग जगह एक साथ रखने का इंतजाम किजीए ।

Unknown said...

do saal ho gaye hn aapko yah upnyas ko likhe. Maine aaj padha h. kaaljayee rachna karne ki zimmedari se khud ko mukt karte hue bhi kaljaye rachna kar dalne ki himakat sirf aap hi kar sakte hn. ASHRAM ka JAM ki tarah aapki rachna bhi Kaljayee hi h sir!! Sadhuwad!!