सेतु का हेतु

आस्था का प्रमाण नहीं होता। लेकिन आस्था की राजनीति के प्रमाण होते हैं। कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद का ताला खोला और संघ परिवार के राम जन्म भूमि आंदोलन ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। आस्था वहीं रह गई। दोनों ढांचे को भूल गए। सरयू किनारे राम का नाम लेकर आने वाले लोगों ने अयोध्या से किनारा कर लिया। और अपने भीतर राम की तलाश कर एक अयोध्या बसा ली। वो कभी तिरुपति जाते हैं तो कभी साईं बाबा के दर्शन करने जाते हैं। उनके भगवान सिर्फ राम नहीं बल्कि सिद्धिविनायक भी हैं। अयोध्या में दुकानदार पुजारी कहते हैं अब पहले जैसा मेला नहीं लगता। चहलपहल नहीं रही अयोध्या जी में। हिंदू सनातन धर्म में एक भगवान का वर्चस्व नहीं है। लेकिन हिंदू सनातन के सियासत में एक ही भगवान का वर्चस्व है। राम का।

इसीलिए कांग्रेस यह बता कर डर गई कि राम का ऐतिहासिक अस्तित्व नहीं है। इतना डर गई कि सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा वापस ले लिया। दो मंत्री आपस में लड़ गए। दो अफसर निलंबित हो गए। बीजेपी ने कहा कि आस्था का प्रमाण कहां होता है। ठीक कहा। कहीं नहीं होता।

आप ज़िंदगी में तय करते हैं। किस चीज़ का प्रमाण चाहिए और किस चीज़ का नहीं। प्रमाण मिलता भी है तो सिर्फ प्रमाण से फैसला नहीं होता। अदालतें प्रमाण के साथ इरादे को भी तौलती हैं। हिंदुस्तान की राजनीति में आस्था एक प्रमाण है लेकिन इसके इरादे पर बहस हो सकती है। होती रही है। कांग्रेस में वो हिम्मत नहीं थी कि वो बहस करने पर उतरे। इसलिए इस बार उसने ताला खोल कर शिलान्यास करने की गलती नहीं की। बल्कि स्थगित कर दिया।

ऐसी बात नहीं है कि बीजेपी वाले आस्था के आगे प्रमाण को नहीं मानते। बाबरी मस्जिद मामले में पार्टी की तय नीति है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही सर्वमान्य होगा। यानी सुप्रीम कोर्ट यह कह दे कि जिस जगह पर बाबरी मस्जिद गिराई गई वहां राम का जन्म नहीं होगा तो बीजेपी मान लेगी। अगर अदालत यह कहे कि राम का जन्म हुआ था तो इसे कांग्रेस भी मानेगी। हमारी राजनीति अदालत का सम्मान करती है। सिर्फ अदालत में हलफनामा देते वक्त झूठ बोल देती है। कार सेवा के वक्त सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कानून व्यवस्था का हलफनामा दिया था। बाद में मस्जिद गिरते ही उसके श्रेय लेने लगे। फिर राम को छोड़ वाजपेयी से भिड़ गए तो पार्टी से ही निकाल दिए गए। वापस बीजेपी में आए हैं तो राम की बात कर रहे हैं। मगर बीजेपी से जितने दिन बाहर रहे राम को बनवास दे दिया। खैर इसी तरह का हलफनामा कांग्रेस सरकार ने दिया। उन्हें लगा कि बीजेपी वाले राम को भूल गए हैं। वो अदालत की ही बात मानते हैं। तो अदालत से कह दिया जाए कि राम का प्रमाण नहीं।

बात ज़ीरो से शुरू हो कर ज़ीरो पर पहुंच गई। बीजेपी के लोगों ने कहा आस्था का सवाल है। राम के होने का प्रमाण मांगते हो। अल्लाह और ईसा का प्रमाण कौन देगा। किसी के पास है नहीं तो देगा कौन। खैर सवाल यह नहीं था। मगर सब ने हथियार डाल दिए। कभी कभी करना चाहिए। दुनिया में आस्था और विज्ञान के बीच बहस चल रही है। चलती रहेगी। राम के होने का प्रमाण महत्वपूर्ण नहीं है। राम के नाम पर आस्था का सवाल महत्वपूर्ण है। तोगड़िया ने कह दिया बीजेपी को राम का नाम लेने का हक नहीं। आडवाणी जी फुर्ती में आ गए। उनके नेतृत्व को दी जा रही चुनौती पर राम ने पानी डाल दिया। आडवाणी राम को भूल गए लेकिन ऐन वक्त पर राम ने आडवाणी को बचा लिया। कब तक बचाया यह पता नहीं।

हमने आस्था को हज़ार बार चुनौती दी है। आस्था से अंधविश्वास को अलग किया है। जाति व्यवस्था का उदगम तो ब्रह्मा के शरीर से है। उसे इतनी चुनौती दी कि ब्रह्मा के शरीर का पता नहीं। अब ब्रह्मा के मुख से निकले ब्राह्मण दलितों के साथ चल रहे हैं। हम गंगा यमुना में भी आस्था रखते हैं। उसका इतना बुरा हाल किया कि है किसी में मज़ाल जो इन नदियों को बचा ले। हम आस्था पर सवाल नहीं करना चाहते इसीलिए बार बार मना करने पर पूजा की सामग्री नदियों में डाल आते हैं। यह जानते हुए कि हमारी आस्था इन नदियों में है। हम आस्था पर सवाल भी उठाते हैं और आस्था का इस्तमाल भी करते हैं। बस समय और इरादा अलग अलग होता है। सेतु का हेतु सब जानते हैं। राम की भक्ति तो सब करते हैं मगर कोई आस्था के नाम पर राम का इस्तमाल करे तो सवाल होना चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे हम नदियों को आस्था के नाम पर मलिन कर रहे हैं। अपने छोटे छोटे स्वार्थों के लिए कराई गई पूजा से निकली सामग्री से प्रदूषित कर। इस पर सवाल उठता है तो लोग भाग जाते हैं। पता नहीं लगता है कि कोई है भी जो गंगा और यमुना के लिए रो रहा है। कांग्रेस और बीजेपी के बवाल में राम भी फंस गए हैं। राम की भक्ति कीजिए। राम को लेकर हो रहे बवाल पर सवाल भी कीजिए। जय श्री राम का मतलब राम की पूजा भी है। जय श्री राम का मतलब राम को लेकर राजनीति भी है। क्या दोनों जगह पर आस्था एक समान है। इसका कोई प्रमाण है आपके पास।

3 comments:

अनामदास said...

सही है, बिल्कुल दुरुस्त.

कांग्रेस की अपनी तरह की धर्म की राजनीति है और भाजपा की अपनी तरह की. कांग्रेस विशुद्ध रूप से सत्ता की राजनीति करने वाली पार्टी है जिसका किसी सिद्धांत-नीति से ख़ास वास्ता नहीं है लेकिन सेकुलर दिखना और कहलाना राजनीति दृष्टि से उसके लिए मुफ़ीद है. कांग्रेस ने सेकुलर राजनीति को एक बड़ा धोखा दिया जब शंकर सिंह वाघेला जैसे पुराने संघी के नेतृत्व में गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ा, गुजरात दंगे के दोषियों को सज़ा तक दिलाने की बात तक नहीं कही.

रामसेतु के विवाद में अगर कांग्रेस इसी तरह मूर्खता करती रहेगी तो संघियों को राममंदिर के ढहे हुए मुद्दे के बाद, एक और कारगर मुद्दा मिल सकता है.

Unknown said...

जब से यह मुद्दा उठा है अजीब सा भय मन में उठता है...
आपने बात बहुत अच्छे तरीके से कही है।

Dr.Vimala said...

रवीश ,
बात तो बड़े कायदे से उठाई है पर एक बात आज कह ही देने को मन करता है .नफरत का बीज बोने में मीडियावाले सबसे आगे हैं .' श्रीराम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवादित परिसर ' वास्तव में राम मंदिर है या बाबरी मस्जिद ये बात सुप्रीम कोर्ट तय करेगा..... या आप मीडियावाले कर चुके हैं ?