एक शहर में खेल की दुकान पर पहुँचा । भाई साहब इतना फ़ुटबॉल ? आपके शहर में फ़ुटबॉल क्रिकेट से लोकप्रिय है क्या ? अरे क्या बात करते हैं रवीश जी ( ये लगता है जी जायेगा नहीं मेरे नाम के पीछे से) । लोग बैट ही ख़रीदते हैं । फ़ुटबॉल तो गभमेंट में सप्लाई के लिए हैं । सरकार में कौन फ़ुटबॉल खेलता है ? अरे सर सरकार में कोई खेलता नहीं मगर सब फ़ुटबॉल ही ख़रीदते हैं । नीतियाँ हैं न । पैंतालीस साल पुरानी दुकान है । फ़ुटबॉल बेचा ही है किसी को खेलते नहीं देखा । सब क्रिकेट खेलते हैं ।
15 comments:
Lagta hai Meerut pahunch gaye hain. Kawal ja rahe hain kya,Sachin kee bahno se milne.
RajaBaabu फिल्म का नाम है शायद
गोवींदा हीरो है-उसमें एक रॉल है उसके लिए वो पूछता है-कौन?वो?जो देखता है दहीं वडे और मांगता है रसगुल्ले?
आप को 'जी' हटाना क्यूँ है वैसे?आदर देने का भी एक अधिकार होता है:) आप ही से सिखा :) very smart !
हाहा !
मेरे बड़े से स्कूल में एक छोटा सा कमरा था। जहाँ खेल-कूद का समान रखा होता था। ऐसा लोग कहते थे। जैसे लोग कहते थे कि प्रेयर ग्राउंड से लगी दीवार के पीछे वाले खाली घर में चुड़ैल रहती है। स्कूल के १२ साल न कभी चुड़ैल दिखी, न कभी उस कमरे में रखा खेल का सामान दिखा । जब किसी चीज़ की मांग होती तो पता चलता या तो वो ख़राब है/नया आर्डर दिया है/कोई ले गया है / घुम गया है और अब अगले साल ही आ पायेगा । वहीँ एक शेल्फ़ के ऊपर, जहाँ १०वीं का बच्चा भी मुश्किल से पहुँच पता - वहां २ फूटबाल पड़ी रहती थी । उसमें भी एक की हमेशा हवा ही निकली रहती थी। देखकर लगता था कि शेल्फ़ परमानेंटली काणा है.
यूँ तो अमूमन फ़ील्ड पर एक समय पर १ फुटबॉल के पीछे कुछ ही लोग भागते हैं, पर हमारे स्कूल में करीब ६००-७०० बच्चो की लातें बस एक फूटबाल को तरसती रहती थी । आवश्यकता, आविष्कार की जननी होती है…ये कहावत पहले अंग्रेजी में पढ़ी या हिंदी में, पता नहीं। पर इसका इस्तमाल सबसे पहले अपने स्कूल में ही देखा। प्लास्टिक बाल! इसको बानाने वाले को नोबेल अभी तक क्यों नहीं मिला पता नहीं ?! प्लास्टिक बैग के जितने नुक्सान है, प्लास्टिक बॉल उतने ही फ़ायदे, उतने ही इस्तमाल। खेल कूद से लेकर कूलर/फ्लश के वाल्व तक ये बहुआयामी है ! आपस में कुछ रूपये मिलकर ख़रीदी उस एक ही बॉल से हमने फुटबॉल/क्रिकेट/पिट्ठू/गधामार आदि आदि खेल खेलना सीख लिए.. इसी दौरान कुछ नए खेल इजाद भीकर लिए। उसका वृतान्त कभी और..
जहाँ तक रही फुटबॉल की बात तो उससे साल में एक दिन देखने, उसकी चिकनी त्वचा को छूने और उससे खेलने का मौका मिल जाता था। चिल्ड्रेन डे पर। १४ नवम्बर वाला बेतुका बिना बात का सरकारी बाल दिवस नहीं। हमारे स्पोर्ट्स टीचर का अपना - बाल दिवस। बालचन्द्र उनके बच्चे का नाम था। और बाल दिवस उसका जन्मदिवस के रूप में, सर के घर में मनाया जाता था । उसी दिन मालूम पड़ता था, कि सर स्कूल के स्पोर्ट्स रूम में सामान रखने से पहले सभी खेल उपकरणों की जाँच, खुद अपने घर पर कैसे करते हैं। जब तक एक एक उपकरण को ठोक पीट कर एक न कर दें, तब तक वो स्कूल के शेल्फ़ पर नहीं आता था.. बच्चों के प्रति उनकी इतनी सजकता आज जाकर समझ आई ! आज जाकर समझ आया की वो चुड़ैल, प्रेयर ग्राउंड से लगी दीवार के पीछे नहीं, दरसलर कहीं और ही रहती थी!
सब जगह यही हाल है..
आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि धोनी का शहर होने के बावजूद राँची में फुटबाल क्रिकेट से ज्यादा लोकप्रिय है ।अगर कहीं पर क्लब मैच भी फुटबाल का हो रहा हो तो दर्शकों की भारी भीड़ के कारण पुलिस की व्यवस्था करनी पड़ जाती है ।
ये अलग बात है कि प्रशासन में नेताओं की दखलंदाजी के कारण देशभर में आज हाकी और फुटबाल की स्थिति इतनी ख़राब हो चुकी है कि इसका सम्हलना अब मुश्किल ही लगता है । दूसरी तरफ इस बीच क्रिकेट ने अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर किया है ।लेकिन अब क्रिकेट में भी नेता घुस ही गए हैं...तभी ये आये दिन का बखेड़ा दीखता है ।
बढ़िया...हम सबके स्कूलों का भी प्रायः ऐसा ही हाल रहता था...स्कूल के शेल्फ में खेल का हर सामान मौजूद रहता था, बस उसे बच्चों की पहुँच से दूर रखा जाता था वार्निंग के साथ" पंद्रह साल से कम उम्र के बच्चों की पहुँच से दूर रखें"..
एक शहर ? kaun se shahar me the aap sir?
wah sir bilkul sahi likha hia aapne....sach me football to humare neta log hi khelte hai aur khel rahe hai nitiyon ke saath.....
फुटबाँल के कई मायने हैं, भारतीय नेतागिरी का एक उच्च उदाहरण हैं फुटबाँल!!
हमारे यहाँ भले ही काका रोनाल्डो,बेकहम,मेसी ना हो लेकिन हमारे राजनेता हर देश के नेताओ को अपनी राजनीति से बुरी तरह से हरा सकते हैं ,ऐसे ऐसे तरीके से दुलत्ती(माफ कीजिए गा किक का हिन्दी कुछ और नही मिला )मारेंगे कि विरोधी पस्त हो जाएँगे,
और क्रिकेट मे दुलत्ती नही होता जी
बाप रे ! जितना बड़ा ब्लॉग पोस्ट नहीं... उससे बड़ा और सनसनीखेज़ तो कमेंट कर दिए आप :P
@Aanchal
सनसनिखेज तो हैं लेकिन सच भी हैं
@RanjitKumar
haan! yahi haal humari library ka bhi tha. Uski kahani kisi aur blogpost ke comment mein ;)
@Aanchal
haha ! haan mujhe bhi likhne ke baad laga. Aisa hi raha to Ravish'ji' jaldi hi comment par world-limit na set den (laghu-uttariy prashn jaise ) ;)
are sir dekh lijiye...sab "@" karke coments likh rahe hai..isase accha hai ke aap ....................
Haha...suchak, ye sir ka "@" post ho gaya hai..Super Hit ;)
Sir ji aap pura nahi puchhe nahi to pata chalta wo shopkeeper kaha se football kharidta hai....... wo bhi jinko bechta hai unhi se kharidta bhi hai bas sarkari mahakma aise hi hai ekdam tatastha bas football hai jo ghumte rahta hai..
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