मुर्गियों का गणतंत्र


















मुर्गियों का यह रिपब्लिक दिल्ली के चित्तरंजन पार्क के मार्केट नंबर टू में है। पता नहीं इस गणतंत्र का संविधान और प्रावधान क्या है। परन्तु दुकानदारी कलाकारी का ही विस्तार है इसी की पुष्टि करता हुआ यह साइन बोर्ड दिलचस्प लगा। आज तक किसी ने इस आइडिया से मुर्गी नहीं बेची।

मैं कह रहा हूं यह समय कुछ और नहीं बल्कि आइडिया काल है। आइडिया युग। तरह तरह के आइडिया अवतरित हो रहे हैं। कमाल के टाइम में हम लोग रह रहे हैं। ऐश कीजिए। आइडिया दीजिए।

11 comments:

Unknown said...

Ravishji,

Ideas have been there for ages,but its precisely "age of selling ideas".Even the 'truth " sells on TV these days for 1,5,10 lakh packages in "Sach ka samna".Everything is saleable these days!!

regards,
Pragya

Unknown said...

achha laga baanch kar..........

vikram said...

इसी गणतंत्र की शाखा मैंने साउथ एक्स और सफदरजँग इँक्लेव मेँ भी देखी है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो जल्दी ही दिल्ली में गणतंत्रोँ का गणतंत्र भी दिखेगा।

आइडिया कितने भी आ जाएँ, मैं तो आज भी समूह में पत्तों पर भोजन करनें को तरजीह दूँगा।

JC said...

छोटा सा मानव मस्तिष्क भगवान के हाथ में एक झुनझुने समान है...सुना हुआ एक शब्द केवल आपको पूरी फीचर फिल्म समान विचार देने में सक्षम है - किसी जादूगर के छोटे से hat से एक के बाद एक अनेक छोटी-बड़ी वस्तुओं को निकाल कर दिखाने समान...

रेपुब्लीक ऑफ़ चाइना से रेपुब्लीक ऑफ़ चिक्केन का आईडिया किसी एक के दिमाग में आ गया लगता है - अब चालाक चीन, लोमडी समान, भारत को चिक्केन समान हड़प कर जाये वो दूसरी बात होगी, किन्तु अभी तो किसी का चिक्केन बिक ही रहा होगा...और किसी शाकाहारी का दिल भी जल रहा होगा...

कोई शाकाहारी शायद इसका उत्तर दे सकें कि 'चाकू और कद्दू' वाली कहावत पता नहीं क्यूँ और कैसे भारत पर सदैव लागू होती दिखती है भले ही दूसरा देश कोई छोटा सा दिखने वाला ही क्यूँ न हो?...
क्लास ९ में एक पुस्तक का शीर्षक था 'Ideas That Moved The World'...आज मोबाइल ही हर मर्ज़ की दवा के रूप में एक 'उच्च विचार' समान प्रस्तुत किया जाता है और बिक भी रहा है...क्या यह एक संयोग ही है कि योगियों ने संसार को एक 'झूठा बाज़ार' कहा?...'हरि' को अनंत भी समझाया...और उनकी कथा को भी...

दिनेशराय द्विवेदी said...

गणतंत्र, का मजाक है।

Aadarsh Rathore said...

http://www.republicofchicken.com/about_roc.html

Sanjay Grover said...

ऐश कीजिए। आइडिया दीजिए।

kahaN bikte haiN IDEA, pata to bataayie.
yahaN to sasur kabhi direct deal hi nahiN na hua. beech vale hi bhakos jaate haiN pura idea bhi aur y-dea bhi.

मुनीश ( munish ) said...

Delhi can't claim to be original in this regard. Such ideas land here from Chandigarh where there is a large presence of Panjabi NRI kins.U will find many more interesting shop signboards there. I also have a keen interest in this genre' of expression and i have noticed that even wine shops have different individual names there instead of boring 'wine and beer shop' as we have here.
The chain of Fun Republik' cinemas started from there only and it is an extension of that expression.

ravishndtv said...

मुनीश

जानकर अच्छा लगा कि आपको भी इन बोलियों में दिलचस्पी है। ये वो लोग हैं जो भाषा को बदल रहे हैं। सीना तान कर। बिना किसी हिंदी के स्त्रीलिंग पुल्लिंग विशेषज्ञों से डरे हुए।

मैं अक्सर चलते रहता हूं और पढ़ते रहता हूं। मेरी कार में जितनी भी डेंट है सब इसी की वजह से।

Aadarsh Rathore said...

http://www.chicken-republic.com/flashintro.aspx

मधुकर राजपूत said...

मुर्गियों के गणतंत्र में गला रेतते हुए खूब गोंय गोंय करने की आज़ादी होगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ कुकड़ू कू गोंय गोंय में बदल जाती है। वही हाल है कि करो बेटा प्रदर्शन कटना आखिकार गण को ही है, तंत्र जमा रहेगा, वो अनंत है।