चीरहरण टॉयलेट पेपर












हम आइडिया काल में जी रहे हैं। www.designtemplestore.com क्लिक किया तो चीरहरण टॉयलेट पेपर दिखा। लिखा है कि यह हैंड ग्रैबिंग टॉयलेट पेपर दुष्ट राजा दुर्योधन से प्रेरित है जिसने चीरहरण यानी साड़ी उतारने का आदेश दिया। यह घटना 4.B.C की है। वो साड़ी कभी खुल नहीं सकी। उसका कोई अंत नहीं था। ये टॉयलेट पेपर भी कभी खत्म नहीं होगा। आप देख ही रहे हैं कि दुर्योधन जी मूंछ ताने किसी मॉडल टाइप खड़े हैं। इस साइट पर तमाम चीज़ों को अलग नज़रिये से पेश किया गया है। काफी दिलचस्प है। दुकान दिल्ली में है।

13 comments:

Shambhu kumar said...

बेतार के तार का सही फायदा उठा रहे हैं रवीश सर... खैर बड़े चैनल में बड़े जगह पर है... उसके बाद भी रोज हजारों सेकेंड काम भी करते हैं... उसके अलावा कैसे देश दुनिया में भी विचरन करने का समय मिल जाता है... लगता है जीजीविषा के धनी आप ही हैं... तभी तो सब गुण संपन्न है सर... इसे बटरिंग न समझे आपके लिए मन में सम्मान है... जो प्रकृति और चंद मानवों के लिए ही मेरे मन में है...

शशांक शुक्ला said...

हाहाह कमाल की खबर लाये है रवीश जी आप भी, कहां से मिला ये मुद्दा, यार अपने इंडिया में टायलेट पेपर का इस्तेमाल से वैसे भी लोग बचते है, तो लोगों को रिझाने के लिये ये फार्मूला गलत नहीं है, लेकिन इतिहास को सामने रखकर आइडिया कमाल का है,..वाट एन आइडिया सर जी, इसकी तारीफ तो ज़रुर करुंगा। कहीं ये खबर किसी हिंदु संगठन को न लग जाये...अरे ये क्या यार मै तो यूं ही डर रहा था...ये तो दुर्योधन औऱ द्रौपदी, और दुशासन का मामला है कोई नही आयेगा बीच में हाहाहहाहा

Unknown said...

This is something unique,but i guess the paper would end eventually.But was quite interesting piece of news.

Regards,
Pragya

राजीव जैन said...

nice news

Aadarsh Rathore said...

रचनात्मकता :)

ankurbanarasi said...

must say u have a unique style of criticising and also the way u use the characters of hindu mythology in many of ur reports to criticise current issues is wonderful.

JC said...

संक्षिप्त में, जीव का शरीर अस्थायी निवास-स्थान समझा गया है स्थायी किन्तु काल-चक्र में डाली गयी आत्मा, शम्भू यानि स्वयम्भू, अनंत परमात्मा के ही अंश का...भू यानि पृथ्वी की मिटटी से रचित, पार्थिव, अथवा भू पर ही उबलब्ध की गयी नौ ग्रहों के रसों से निर्मित... इसलिए यद्यपि शरीर नश्वर है, विभिन्न शरीर अनंत काल-चक्र में होने के कारण लीला चालू रहती है...
यह
कमल

मानव
महाकाभारत हैयानि यासंसार कृष्ण की क काथा, आत्मा (कृष्ण) यानि शक्ति और शरीर ('पांच पांडव', यानि पंचभूत) के योग द्वारा विभिन्न रूपों को मनोरंजक कहानी द्वारा आम आदमी तक पहुंचाने का प्रयास है प्राचीन किन्तु ज्ञानी योगियों का जिन्होंने सत्य के मूल, परमात्मा, तक पहुँचने के लिए गहराई में उतरने की गहन इच्छा जताई...सब जान पाए बस यही नहीं कि काल-चक्र की रचना में स्वयं परमात्मा का स्वार्थ क्या है...

रवीशजी, यह कमाल कलियुगी मानव का है कि कृष्ण का जो डंके की चोट पर बोल गए कि वे ही सब प्राणियों के भीतर विराजमान लगते हैं यद्यपि सर्व सृष्टि उनके भीतर ही समायी है?!

'अनत साडी' का अर्थ कृष्ण-लीला का अनंत होना भी संभव है...वैसे इशारा चाँद के पृथ्वी से सदैव केवल एक ही चेहरा दिखाई पड़ने की ओर भी है, यानि 'द्रौपदी को निर्वस्त्र न होने देना कृष्ण का', द्वापरयुग में, और त्रेता युग में लक्षमण का सीता के चन्द्रहार को नहीं पहचान पाना क्यूंकि उन्होंने 'सीता माता' के केवल 'चरण' ही देखे थे :)

विवेक रस्तोगी said...

दुर्योधन को विज्ञापन में देखकर विचित्र लगा, परंतु ये एड एजेंसी वाले कुछ भी कर सकते हैं।

अमिताभ मीत said...

Good one, Boss.

Sanjay Grover said...

विवाद का आयडिया लगता है जम गया आपको। पर दुर (योधन/शासन) पर कोई विवाद नहीं होता यहां। डर जाते हैं लोग। विवाद करना है तो किसी सु/र (योधन/शासन ) को पकड़िए। कहते भी हैं न ‘बद अच्छा बदनाम बुरा’।

Arshia Ali said...

Raveesh jee, aap bhi....
{ Treasurer-T & S }

khushboo said...

bananewale kya kya banate rehete hai aur aap bhi khabaro ko sung kar nikaal late hai hamare liye, thank you...

khushboo said...

bananewale kya kya banate rehete hai aur aap bhi khabaro ko sung kar nikaal late hai hamare liye, thank you...