भारत एक स्थाई समस्याओं का देश है। यहां एक बार कोई समस्या अवतरित हो जाए तो वह अनंत काल तक रहती है। पांच हज़ार साल पुरानी इस सभ्यता में कई समस्याएं आदि काल से मौजूद हैं। उन समस्याओं पर विपुल साहित्य रचना पर्यन्त उन साहित्यों के कई विशेषज्ञ हो गए। कबीर हो गए कहीं दादू हो गए। वो आए और चले गए मगर स्थाई समस्याओं का बाल भी बांका न कर सके। भारत में अगर कोई समय का साक्षी है तो वो है समस्याएं। सभी समस्याएं हर काल खंड में मौजूद रही हैं। कई सरकारें आईं और चली गईं। उससे पहले अंग्रेज़ और उससे पहले मुग़ल,तुर्क,हूण,शक और मंगोल आ कर चले गए। कुछ स्थायी समस्याओं की तरह यहीं के हो कर रह गए। मगर समस्याएं दूर नहीं हुईं। भारत की हरेक समस्याओं ने लोगों के बीच बहस की असीम संभावनाएं पैदा की हैं। उन्हें चुनौतियां पेश कर दूर करने का इरादा दिया है। समस्याओं की स्थायी मौजूदगी के कारण संतों ने धीरज धरने की नसीहत दी है। वो कहते रहे हैं उतावला होने से कुछ नहीं होता। आपका कुछ हो जाएगा मगर समस्याओं का कुछ नहीं होगा। वाचक,प्रचारक और संहारक सब हुए यहां मगर समस्याएं दूर नहीं हुई।
समस्याओं की मौजूदगी ने देश में कई महान शख्स पैदा किये। वे सभी महान शख्स इन्हीं समस्याओं के इर्द गिर्द ही सोचते रहें। उन्हें मौलिक लेखन और सोचन का मौका ही नहीं मिला। फिल्मों की कहानियों की समस्या का भी स्थाई भाव है। बिना समस्या के हम कोई कहानी नहीं लिख पाते। हर कहानी समस्या प्रधान है। हर अभिनेता समस्या निदान किरदार है। समस्याएं नहीं होतीं तो भारत नहीं होता। इन्हीं स्थाई समस्याओं की वजह से ही भारत एक सभ्यता के रूप में निरंतर मौजूद है। आदि से अनंत काल तक समस्याओं की वजह से ही तमाम देवी देवता अवतरित हुए। मगर कोई भी स्थाई हल नहीं कर सके। सबने तात्कालिक समाधान कर संधान को महान बताया। दोस्तों, समस्या देखकर मत घबराना। समस्या अपने आप में संसाधन है। इनका दोहन करो। इन पर अध्ययन करो। इनके विशेषज्ञ बनो। दूर करने का दावा करो। समस्याओं का सार यही है। समस्या अचल है। भारत एक समस्याग्रस्त सनातन मुल्क है।
14 comments:
Bharat is prithvi ka ek ang-matra hai – dharati (Mahabharat) ka chehra…
Ghorde athva ashva ko manav dwara nirdharit marg per agrasar rakhne hetu chalak uski ankhon ke bagal mein pattiyan (‘blinkers’) laga deta hai. Yatra sampanna hone per chara khila aur malish ker, kintu marg mein chabuk aur ras dwara usko bata deta hai ki wo ghulam hai aur chalak uska malik…
Sanketik bhasha mein Gita mein gyani-dhyani yogi dwara darshaya gaya ki kaise teerandazi athva dhanush-shastra ke visheshagya Arjuna ko sampurna gyan nahin tha – unhein pakshi ki kewal ankh dikhti thi (patti lage ashva saman nirdharit marg hi kewal), na ki sampoorna pakshi, aur uska satva - Atma.
Aur krishnapaksha mein utpanna Yogiraja Krishna ‘siddha purush’ the – unhe bhoot, vartman, bhavishya teenon kal ka gyan tha, we Vishnu ke pratinidhi the - unke tathakathit vahan Garud saman netra wale…
Aj manav sampoorna ‘Gangadghar’ prithvi ko (jiske mastak per ‘Chandrashekhar’ saman Chandrama hai…) usi prakar pattiyon ke karan nahin dekh pata (kal ke prabhav se – Kaliyuga mein)…Wo hi sarva samasya ka samadhan hein – Bhootnath Shiva athva Neelkantha Mahadev jo Visha dharan karne ki kshamta rakhte hein aur is karan anant hein!
Manav kewal unka bhoot hai – kewal ek madhyam, jis prakar lekhak ke shabda…kale akshar jo sambhavtah adhikansh ko bhains barabar dikh sakte hein – kintu kisi ek do ke manas patal ko prakashman bhi kar sakte hein, yadi Shiv ki marzi ho!
Bharat is prithvi ka ek ang-matra hai – dharati (Mahabharat) ka chehra…
Ghorde athva ashva ko manav dwara nirdharit marg per agrasar rakhne hetu chalak uski ankhon ke bagal mein pattiyan (‘blinkers’) laga deta hai. Yatra sampanna hone per chara khila aur malish ker, kintu marg mein chabuk aur ras dwara usko bata deta hai ki wo ghulam hai aur chalak uska malik…
Sanketik bhasha mein Gita mein gyani-dhyani yogi dwara darshaya gaya ki kaise teerandazi athva dhanush-shastra ke visheshagya Arjuna ko sampurna gyan nahin tha – unhein pakshi ki kewal ankh dikhti thi (patti lage ashva saman nirdharit marg hi kewal), na ki sampoorna pakshi, aur uska satva - Atma.
Aur krishnapaksha mein utpanna Yogiraja Krishna ‘siddha purush’ the – unhe bhoot, vartman, bhavishya teenon kal ka gyan tha, we Vishnu ke pratinidhi the - unke tathakathit vahan Garud saman netra wale…
Aj manav sampoorna ‘Gangadghar’ prithvi ko (jiske mastak per ‘Chandrashekhar’ saman Chandrama hai…) usi prakar pattiyon ke karan nahin dekh pata (kal ke prabhav se – Kaliyuga mein)…Wo hi sarva samasya ka samadhan hein – Bhootnath Shiva athva Neelkantha Mahadev jo Visha dharan karne ki kshamta rakhte hein aur is karan anant hein!
Manav kewal unka bhoot hai – kewal ek madhyam, jis prakar lekhak ke shabda…kale akshar jo sambhavtah adhikansh ko bhains barabar dikh sakte hein – kintu kisi ek do ke manas patal ko prakashman bhi kar sakte hein, yadi Shiv ki marzi ho!
I am fail to understand the reason behind this write up ? Is it sarcastic article or the writer wants to inform the reader which no more a new . Can anybody let me know the name of single 'living thing' with no problem , what you say 'samsya'to solve .
I can not expect anybody to be so prejudice .
हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?
हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?
यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?
दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।
घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,
समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है।
जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,
उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,
यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।
चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,
जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;
यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,
भारत अपने घर में ही हार गया है।
है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ?
किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ?
जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है,
दैहिक बल को रहता यह देश ग़लत है।
नेता निमग्न दिन-रात शान्ति-चिन्तन में,
कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में।
यज्ञाग्नि हिन्द में समिध नहीं पाती है,
पौरुष की ज्वाला रोज बुझी जाती है।
ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ?
अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।
वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,
जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।
जब तक प्रसन्न यह अनल, सुगुण हँसते है;
है जहाँ खड्ग, सब पुण्य वहीं बसते हैं।
वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,
वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।
तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,
लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।
असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,
पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।
तलवारें सोतीं जहाँ बन्द म्यानों में,
किस्मतें वहाँ सड़ती है तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियाँ-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर, नहीं कढ़ती हैं।
पूछो कुबेर से, कब सुवर्ण वे देंगे ?
यदि आज नहीं तो सुयश और कब लेंगे ?
तूफान उठेगा, प्रलय-वाण छूटेगा,
है जहाँ स्वर्ण, बम वहीं, स्यात्, फूटेगा।
जो करें, किन्तु, कंचन यह नहीं बचेगा,
शायद, सुवर्ण पर ही संहार मचेगा।
हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,
कह दो सब से, अपना दायित्व सँभालें।
कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से,
आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से,
सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें,
हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।
हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,
दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।
हों खड़े लोग कटिबद्ध वहाँ यदि घर में,
है कौन हमें जीते जो यहाँ समर में ?
हो जहाँ कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करें पाप शशि-सूर्य, उन्हें टोको रे !
जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में;
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि मिला नहीं प्रतिभा को,
रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।
मुझे कदम कदम पर..
मुझे कदम कदम पर
चौराहे मिलते हैं
बाहें फैलाये!!
एक पैर रखता हूँ
कि सौ राहें फूटती हैं,
व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ;
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तजुर्बे और अपने सपने...
सब सच्चे लगते हैं।
अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ
जाने क्या मिल जाए!!
-- मुक्तिबोध
(आपकी बात का जवाब मैं कुछ यूं देना चाहती हूँ। वैसे, समस्याओ के इस देश में मुझ जैसे कई भटक रहे हैं, अपनी समस्याओ को ठिकाने लगाने के लिए, पर आप का लिखा पढ़ कर लगता है कि अगर ये समस्याये ठिकाने लग गई तो नई गढ़ने पड़ेंगी। खैर, इस समस्या पूर्ति के लिए धन्यवाद)
समस्याए अगर ना हो तो जीवट जिंदगी जीने का मजा जाता रहेगा। समस्याओं से प्रताडित होने का दुख और फिर उसपर विजय पा लेने का सुख दोनो एक दूसरे के पूरक है। जिसने कष्ट महसूस नही किया हो उसे सुख की अनुभूती उतनी सुहानी नही लगेगी जितनी कि समस्याओं से लडने वाले इंसान को मिलती है।आजादी से पहले और बाद में देश में कुछ स्थायी समस्याए ज्यों की त्यों रह गयी ...जातिवाद , संप्रदायवाद , क्षेत्रवाद , और भ्रष्टाचार इन चारों स्थायी समस्याओं पर जिस दिन हमलोगों ने विजय प्राप्त कर ली उस दिन हमारा मुल्क पूरे विश्व पर राज्य करेगा।
कुछ भी हो समस्याओं पर लिखना खुद में एक समस्या है क्यूंकि इस मुल्क में एक ही चीज की बहुतायत है जिसका नाम प्राब्लम है।
Wo Raja netraheen tha, magar Surdas na tha -
Ek Krishna ka dushman, doosra Krishna bhakta!
Wo janma se andhi nahin thi -
Pratishodh ki bhavana se andhi hui thi
Ashva-netra mein patti bandhe jaise!
Samasya ke karan gyani kaha gaye –
Panchbhoota athva Panchtatva janak jaise - kintu vipareet:
Kam, krodh, mud, lobh, irshya
Nivaran?
In sabka Tyag, aur ‘madhya marg’ ka acharan Buddha jaise!
Ravis Jee namaskar ....kabir,nanak,dadu sabhi ko ek lapete me lapet kar aapane apne samasyagrast vivek ka achha namuna post kiya h.mool samasya ye rahi h ki samasyayo se ladane wale alpsankhyak rhe aur samasyayo ke chiryauan ki ghosada karne wale jyade rahe h. reformer ke marte hi destoyer sar uthane lagte h ki ye samasye kbhi khatm nhi hgi. bahut hi negative post h aap ki, samasya rhi h to unse lane wale bhi rhe h
It is a nice write up.
vinod
समस्या सुलझाने के लिए एक बहुत जरूरी बात है की उसका इमानदारी से विश्लेषण किया जाए. जैसे की आपके पसंदीदा विषय "जातिवाद " और दलित समस्या की बात करें तो इसके लिए हमेशा ही ब्रह्मणों को दोषी ठहरा दिया जाता है. कोई ये खुल कर क्युओं नही बोलता की इतने दिनों की गुलामी झेलने वाली जातियाँ शायद इसकी अधिकारी थीं. मैंने इतिहास का बहुत ज्यादा अध्ययन नही किया है , पर जितना भी किया है उसमे कंही भी "दलित जाति संघर्ष" की चर्चा नही सुनी. जैसा की कहते हैं - "Freedom is not free". इसके लिए लड़ना पड़ता है. मैं १-२ व्यक्तिओं के संघर्ष की बात नही कर रहा , बल्कि एक "mass movement" की बात कर रहा हूँ. क्या आप इतिहास की ऐसी किसी घटना से वाकिफ हैं? आपका एहसान होगा यदि हमें भी इसके बारे मे बताएं.
मनोज
‘Bura na mano’ - NDTV (jo shravan-dosh ke karan kuch-kuch Andhi TV sunai pardti hai!) per ‘Big Fight’ aur ‘We The People’, (Muqabla, Humlog bhi), jaise karyakramon mein samasyaon per charcha sunte sunte kan pak gaye. Kintu samadhan kisi ek samasya ka sun-ne ko nahin mila…aur ab to Channels ki line hi lag gayi hai samasyaon ko ubharne mein…Do taxi ke sheeshe toot-te scene ko sab channels per din bher dekh lagta hai ki Mumbai mein sara din Taxiyon ke sheeshe his toot-te rahe!
Fyodor Dosteyevsky ne ’Brothers Karamazov’ mein ek charitra se kahalvaya ki guili shit ko laat maroge to badbu tumhi ko milegui – use pehle hawa se sookh jane do!
Bhootnath ke panch bhoot bataye gaye hain: Nabha (akash); Mahi (Gangadhar prithvi athva sakar Shiva); Shikhi (agni); Vayu.
Aur Tripurari ko khush karne ke liye Om Namah Shivaya panchakshari mantra batlaya gaya hai: Om mahashakti ka sanketic akshar anadi kal se mana gaya hai, aur 'shesha' panchtatva ko darshate hein jis-se her tathakathit sakar drishtigochar hota hai is anant brahmand mein – athva Shakti aur Shiva (shareer) ka Yoga bataya gaya sampoorna anant brahmand ko, aur manav ko bhi uska model jaise…
Ravishji, uprokt sandharba mein kuch samaya pehle Myanmari Junta ne kitne Buddhist bhikshu mare the? Aur abhi abhi chakravat athva sudershan-chakra saman nachti Vayu (Natraj) ne kitten mare?
दरअसल यहाँ के बुद्धिजीवियों को आत्म मुग्धता का रोग जल्दी पकड़ लेता है ओर अब अमिताभ बच्हन हो या संजय लीला भंसाली अपनी आलोचना को स्वस्थ दृष्टि से नही देखते है...वैसे भी मीडिया भी अब टी.आर .पी कोदुहने के चक्कर मे खली ओर दूसरे मसलों से बाहर नही आ रहा है.....ओर बाकि बुद्धिजीवी .......हमे क्या लेना वाली मुद्रा मे खामोश बैठे है.....तो समस्या सुलझेगी कैसी.......एकता कपूर को आदर्श नारी के सम्मान से नवाजा जा रहा है.......जे हो भारत.......
BREAKING NEWS!
Mein pehle nahin likhna chahta tha, kintu Somvar 12 May ko, yani aj, Someshwar/ Natraj Shiva ke ab China mein bhi (bauddha-bhishuon ko stane per?) ‘ugra tandav-nritya’ ka pradarshan karne ke samachar a rahe hein TV per…
Uprokt sandarbh mein Mirabai pehle hi kah gayi thi Krishna, jinhein Vishnu ke pratinidhi, Brihaspati Graha athva Jupiter ke roop mein, ‘kshirsagar’ athva ‘samudra-manthan’ ka karya amrit panne hetu saunpa gaya tha, unke natkhatpan ko darshate, ki we raj moorkhon ko hi dete hain…
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