ये क्या माजरा

रोटी भी गोल
धरती भी गोल
ज़रूर कोई चक्कर है

6 comments:

Unknown said...

कोई चक्कर नहीं. गोल वस्तु हाथ मैं पकड़ने में अच्छी लगती है.

Rajiv K Mishra said...

आनंद बख्शी के बातों का कुछ ज्यादा ही असर दिख रहा है। ऐसे भी पत्रकारिता का स्कोप सिमटता जा रहा है। बढ़िया दौड़ आएगा तो फिर लौट आया जाएगा। फिलहाल गीतकार बनने में ही फ्यूचर ब्राइट दिख रहा है। ऐसे IIMC के छात्र काफ़ी जीनियस होते हैं। अभी हाल ही में पता चला कि प्रकाश झा की फ़िल्म दिल, दोस्ती, ऐकसेकट्रा के पटकाथा लेखक मनीष तिवारी भी IIMC के छात्र रह चुके हैं। लिखते रहिए। कौन जानता है...शत्रुध्न सिन्हा, शेखर सुमन, प्रकाश झा के साथ रवीश कुमार का भी नाम लोगों के जुबान पर चढ़ जाए...शुभकामनाएं। ऐसे भी सब शब्दों का हेर-फेर ही तो है। फिर चाहे वो टेलीविजन न्यूज़ का स्क्रिप्ट हो या फिर गीत। थोड़ी-बहुत उर्दू शब्दों को हिंदी के साथ फेंट कर सचमुच जादू किया जा सकता है।

Shambhu kumar said...

वाह रवीश भईया छा गये। क्या बात है! आप भी आईआईएमसी के निकले। बड़ा फख्र होता है। इन दिल्ली और न जाने कई बड़े शहरों से आये अंग्रेजों के वंशजों को क्या पता की आईआईएमसी नहीं होती तो हम बिहार, यूपी के गंवई भाई कैसे पत्रकार बन पाते। अब तो वहां भी ये लोग लाखों की संख्या में इंट्रेंस देने बैठते है। वो अलग बात है कि आजकल इंग्लिश जर्नलिज्म में भी बिहारी और यूपी वालों ने ही पकड़ बना ली है। वरना ये तो पैदायशी पेशा हो गया था। आईआईएमसी में आने वाले लोग जीनियस होते है कि नहीं ये तो नहीं पता लेकिन देश दुनिया से रुबरु जरूर होते है। एक टीवी चैनल में ट्रेनी हूं। एक दिन एक एंकर आई और बोली की चंपारण क्यों फेमस है। मैंने कहा.. गांधी जी ने सत्याग्रह की शुरुआत वहीं से की थी। फिर मैने पूछ लिया की नील की खेती के बारे में जानती है आप.. बोली नहीं ये नील क्या होता है... खैर मैं और ज्यादा नहीं कुछ कहना चाहता। गीतकार क्या पूरी की पूरी स्क्रिप्ट राइटर बनिए। क्या किसी की बपौती है यह धंधा। लेकिन किसानों वाली खबर करना मत भूलिएगा। चंपारण और दरभंगा के पंडित जी तो प्रोर्नोग्राफी से लेकर साहित्य तक रचते है। शुक्र हो बाढ़ का जिसने सभी लोगों को रोजी रोटी के लिए कड़ी मेहनत करना सीखा दिया। आखिर फूल भी तो वहीं भगवान पर चढ़ता हो अपने पेड़ की टहनी से अलग होता है। और आपको क्या दिक्कत है। भाभी जी अंग्रीज पट्टी की है हीं। बस सेकेण्ड हैंड अंग्रेजी लिटरेचर चाट जाईये उनकी मदद से। और खूब लीखिये गाना। हिंदी में अंग्रीजी में। वैसे भी एनडीटीवी में कमी किस बात की है। हिरो मत बनियेगा। मनोज वाजपेयी भाई भी फेल है। एक गुजारिश है आपसे। आईआईएमसी का है तो कुछ लीखिये न उसके यादों के बारे में। क्या उमा शंकर भाई और प्रियदर्शन जी भी वहीं डिप्लोमा ले के निकले हैं क्या। मनोरंजन भारती को तो जानता हूं. वो वहीं से है. प्लीज कुछ लीखिए वहां के बारे में। मैं भी काफी कुछ जानना चाहता हूं। मैं तो कुछ भी नहीं कर पाया वहां से निकलकर। दरअसल अपनी मार्केटिंग ही नहीं कर पाय़ा।

Prabin Barot said...

रवीश भाई,(जी और सर से आप को परहेज है ना.)

छोटी पोस्ट लेकिन कुछ लेख्नने को मजबुर करती है.

सुरज गोल,चंदा गोल मम्मी बनाये रोटी गोल,
पैया गोल, रुपया गोल, भैया खाये लड़ु गोल,

प्रबीनअवलंब बारोट

Raag said...

Roti is eaten daily and fills our stomach. Earth is being eaten daily as well, but it will leave nothing for our stomach.

JC said...

Krishna mitti khate hain aur shahastra surya ka prakash kahlaye!