गूंठा, छाय और रुपट्टा- क्या मतलब है

इस बार स्पेशल रिपोर्ट की जगह मेरा गांव मेरा बजट कार्यक्रम बनाने सहारनपुर,मुज़फ्फरनगर औऱ मेरठ गया था। नए नए शब्दों से पाला पड़ा। सहारनपुर की एक बस के पीछे लिखा था- हवा में उड़ता जाए मेरा लाल रूपट्टा मलमल का। दुपट्टा पढ़ा था रुपट्टा नहीं जानता था। साथ बैठे एक सज्जन से पूछा तो कहां कि सहारनपुर वाले रुपट्टा बोलते हैं। आप लोग दुपट्टा बोलते हैं। जैसे आप अंगूठा बोलते हैं। और हम अ चबा जाते हैं। गूंठा बोलते हैं। हमारे यहां अनपढ़ को गूंठा छाप बोला जाता है।
अभी यही बात हजम नहीं हुई थी कि मेरठ के एक गांव में एक सज्जन छाछ ले आए। कहा कि लीजिए छाय पीजिए। मैंने कहा चाय कह रहे हैं या छाय। तो उन्होंने कहा कि छाय कह रहा हूं। छाछ कहते कहते बोर हो गए थे। हमलोग चाय नहीं पीते हैं। इसलिए छाछ को छाय कहने लगे। तो आप लोग भी गूंठा छाप लगाकर रुपट्टा उड़ाते हुए छाय पी सकते हैं। इसके लिए आपको सहारनपुर, मुज़फ्फरनगर और मेरठ जाना होगा।

16 comments:

अजित वडनेरकर said...

आप चाहे शब्दों के सफर पर कभी न आए हों मगर जो आपने लिखा है यही है शब्दों का सफर । ऐसे ही बनते हैं शब्द।

अजय रोहिला said...

कुछ और नये शब्द....
आपके यहां बकलौल...वहां बकचौद।
बौरा गया मतलब..बावला होग्या।
चिरौरी...लौल्लो चप्पो।
इत्यादि...इलाके या राज्य के हिसाब से भाषाई विविधता मिलना कोई इतने अचरज की बात नही है की ब्लांग पर लिखने लायक हो।

Dipti said...

कोस कोस पर बदले पानी तीन कोस पर वाणी। भाषा के ये बदलाव हर जगह मौजूद हैं। कभी मालवा जाएं तो आपको आपका कमरा व्यवस्थित, नहीं जमाना पड़ेगा और कपड़ों को फ़ोल्ड करके नहीं, घड़ी करके रखना पड़ेगा।
दीप्ति।

Ashish Maharishi said...

यह पढ़कर मुझे राजस्‍थान की याद आ गई, जहां बरसात के बाद जब बांधों पर से पानी बहने लगता है तो उसे चादर चढ़ना कहते हैं, रविश जी तीन नए शब्‍दों से रुबरु कराने के लिए शुक्रिया

Bhuwan said...

je ha...jagho k badalne se shabdo me bhi badlav aata hai. gujrat me bachcho ko pyar se chkku kahte hai jabki bihar me kiife ko chakku kahte hai. mp me kahi maa ko bai kahte hai to kahi ghar me kaam karne wali ko. wahi up bihar me bai shabd kothe pcr kam kare waliyo ko kaha jata hai. is tarah ki bhashayee vividhta hamare desh ko anek rango me rangti hai.
Bhuwan

gautam yadav said...

chaliye aapko kuch aur rajasthani words se parichit karwate hai.
hindi rajasthani
halwa sira
dhoop tawda
dalna(put) melna
bangan battau

मयंक said...

सब दे रहे हैं मैं भी दे ही दूं
कभी उत्तर प्रदेश के हरदोई जाएं वहाँ र का प्रयोग नहीं होता मतलब कई लोग नहीं करते
तो धरती को धत्ति और मिर्चा को मिच्चा बोलते हैं
भोपाल में छुटिया हो गयी है को कहते हैं छुटिया लग गयी हैं
इंदौर में रास्ता बताएँगे तो यह नहीं कहेंगे कि आगे जाएं तो सिनेमा हाल पड़ेगा
कहेंगे कि आगे सिनेमा हाल गिरेगा
अब गिरेगा तो भैया !!!!

यही है भाषा के रंग !!!

Unknown said...

ravis ji kabhi bundelkhand k lalitpur aaiye,,yahha aapko ha shabd kam sunai dega jaise ;rahe; ko rae bolenge,,lekin abhi to bookh ke mare bundelkhand k logo k muh se shabd bhi muskil se nikalte hain..
by..
nitin sharma
student of journalism

वनमानुष said...

रवीश जी आप बहुत मेहनत करते हैं,लोगों से interact करना बहुत मेहनत का काम है.
यही उपभाषाएँ तो हमारी संस्कृति को इतना अनोखा और रसीला बनती हैं.अगर हम बुंदेलखंड के आल्हा ऊदल को संस्कृत में सुनने की गुजारिश करेंगे तो फिर उसमे मजा ही क्या रह जायेगा.
कभी मध्यप्रदेश आइये,५०-५० किलोमीटर में दुभाषियों की जरूरत पड़ेगी.मालवी,निमाड़ी,बुन्देलखंडी,महाकौश्ली,गोंडी सब मिलेगा यहाँ.पर ध्यान रखियेगा, हर जगह हिंदी में ही बात कीजियेगा क्योंकि एक उपभाषा में जो साधारण संबोधन के शब्द हैं वो दूसरी उपभाषा में गाली की तरह देखे जाते हैं.

Anil Dubey said...

अभी रायगढ से लौटा हूं.हम नाश्ता करने एक ढाबे पर पहुंचे.तीन नंबर वाली टेबल पर बैठे. कहा भैया पानी लाना.मालिक चिल्लाया...तीन नंबर पर पानी मार.हम हडबडा गये. जाडे में यह सोच कर ही ठिठुरने लगे कि अब हमारे उपर पानी मारा जायेगा. लेकिन यह तो शुरुवात थी. कहा दो प्लट समोसा भिजवाना. मालिक चिल्लाया तीन नंबर पर दो प्लेट समोसा फ़ेंक. अब तो हद ही हो गयी. अंत में हमने चाय मांगी.मालिक चिल्लाया...तीन नंबर पर दो चाय दिखा...

JC said...

Bharat mein boli jane wali hazaron (sahastra) bhashaon ka nichord (saar) ek angrez ne ek vakya mein kaha, “What Ghosh writes/ Bose understands”. Yani, jo Ghose likhta hai usey Bose hi samajh sakta hai!

Bachpan mein ek joke suna tha ki ek Madrasi ne ek Punjabi se poocha, "Tamil terima?" (Tamil bhasha jante ho?) Punjabi ne uttar diya, "Punjabi tera baap!!!"

JC Joshi

kirti said...

apki special report "Mera gaon mera budget bohot achcha laga".
Ek alag hi hindustan ki jhalak dekne ko mili.
Jismein kisan ko ek nai ummeed bhi mili hogi

राजीव जैन said...

रवीशजी
बहूत अच्‍छा लिखा

भुवनजी राजस्‍थान में तो बाई बहन बेटियों को मतलब ननद के लिए बाईजी का इस्‍तेमाल किया जाता है।

वैसे कुल मिलाकर पोस्‍ट तो जानकारी परक है ही, उससे भी जबरदस्‍त हो गई हैं ये टिप्‍पणियां।
इन्‍हें ही देखकर लगता है न कि कमेंट के बिना ब्‍लॉग का मजा नहीं।
इसलिए अपन तो जितनी सीरियसली ब्‍लॉग पढते हैं उससे कही ज्‍यादा सीरियसली ये कमेंट।

वैसे जोशीजी का तमिल तेरी मां और पंजाबी तेरा बाप सबसे जबरदस्‍त था।

रवीशजी के साथ साथ सभी को अपने विचार उंडेलने के लिए साधुवाद ।

Rishi Bhatt said...

रवीश जी, मै मध्‍यप्रदेश के छोटे से शहर उमरि‍या से हूं। जनाब आप की ही तरह मेरा भी ऐसे कई शब्‍दों से पाला पडा। हमारे शहर के एक मुहल्‍ले में चढ.ना को चगना और ओढ.ना को होड.ना प्रयोग कि‍या जाता है। इस जबरन की हि‍न्‍दी से मै भी हैरत में हूं।

shyam parmar said...

janaab shaayad aap bhool rahe hai ki chhaay ke saath aapane gud ka bhi majaa liya tha... aur aap deshi mithaayi ke roop me kuchh gud saath le bhi gaye the... to jaraa bataaye ki kaisa lagaa hamaare gaanv ka gud aur chhaay...
fir vo bhi hariyaali, taazi aabohawaa ke beech aur motor ke engin aur horn ke shor-sharaabe se door...

ek graameen
pachgaanv
meerut

JC said...

Shri Rajeev Jainji, Bharat Desh aise hi mahan nahimn kahlaya gaya. Ek aur udaharan pesh hai.

Purane zamane ki baat hai. Kahte hain ki ek aadmi Indraprastha se Punjab ke kisi gaon mein (shayad TK ka ho) seedhe pahunch gaya.

Subzi wale se baingan ki ore ishara kar uska nam poocha. Subzi wala bola, “Bataoon”.

Dilli wala bola, “Bata”.

Subzi wala phir bola, “Bataoon”. Dilli wala phir bola, “Bata”…

Suna hai ajtak dono yehi duhraye ja rahe hain!

Shayad koi 'channel wala' abhi tak nahin pahuncha wahan!