ब्लॉग और बरखा दत्त
NDTV 24x7 पर आज रात आठ बजे बरखा दत्त ब्लागिंग पर बहस कर रही हैं। अपने कार्यक्रम वी द पीपल में। बहस की शुरूआत में बरखा दत्त ब्लागिंग को लेकर आशंकित रहीं लेकिन अंत तक पहुंचते पहुंचते उन्होंने वादा किया है कि वे भी अपना एक ब्लाग शुरू करेंगी। इस बहस में दर्शकों के बीच मैं भी था। साथ काम करने का फायदा उठाते हुए मैंने बरखा से कहा कि मैं भी आना चाहता हूं तो मना नहीं किया। बहस ज़्यादातर अंग्रेजी के ब्लागर को लेकर ही रही क्योंकि उनका कार्यक्रम अंग्रेजी का है और हिंदी टीवी में ऐसे विषयों पर बहस नहीं होती। फिर भी आप देख सकते हैं। पता चलेगा कि मीडिया ब्लागर से कितना डरता है। कार्यक्रम देखने के बाद आप यहां जो भी प्रतिक्रिया देंगे उसे बरखा दत्त के पास पहुंचाने की कोशिश करूंगा। वी द पीपुल आज ही है। रविवार को भारतीय समय के अनुसार आठ बजे।
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53 comments:
मीडिया को डरना भी चाहिये.इतने लोगों तक बात पहुंचाने की ठेकेदारी जो इनके हाथ से निकल रहीं है.ब्लोगिंग एक सार्थक माध्यम के रूप मै तेजी से आगे बढ रही है
हाँ जब आइवरी टॉवरों में बैठे लोग आज भी यह जान-सुन कर हैरत में वाओ कहते हैं कि क्या कोई ऐसा भी नागरिक हो सकता है जिसे मतदान का अधिकार न मिलता हो, तो ब्लॉगरों के अनुभव और अभिव्यक्तियाँ उन्हें डराने और चकित करने वाली ही लगेंगी. बेलाग ब्लॉग किसी टीआरपी या 'जइसन रोगिया के भावे वइसन बैदवा बतावे'वाली बीमारी से मुक्त हैं.
बरखा को डॉ. लोहिया का contact no. दिया?
Ravishjee ko ram ram... Maithili mein bhee ek blog hai http://hellomithilaa.blogspot.com us par bhee ek nazar daaliyega...aage kise charcha ke liye...
हिंदी ब्लॉग पर जब भी बहस होगी तो उसमें कुछ महत्वपूर्ण बातों के बाद ये सवाल जरूर उठेगा कि ब्लॉग में बिहारवाद क्यों फैला हुआ है
माननीय अपराजिता जी,
आपके सवाल में दम है। जवाब भी आपको ही ढ़ूंढ़ना होगा। मैं मदद कर सकता हूं। दरअसल व्यक्ति उसी जगह की बात करता हैं जहाँ वह पला-बढ़ा होता है। 'Proximity' कहते हैं इसे। क्या आपको लोक सभा चुनाव अमरीकी चुनाव से ज्यादा आकर्षित नहीं करते है? आपके कथनानुसार अगर ब्लॉग पर बिहारवाद फैला हुआ है तो इसका स्पष्ट मतलब है कि अधिसंख्य ब्लॉगर्स बिहारी हैं। मुझे नहीं लगता है कि अधिक बहस कि गुंजाईश है यहाँ पर। ऐसे सवाल तो कई हो सकते हैं....
आईआईटी में बिहारी क्यों हैं?
आईएएस में बिहारी क्यों हैं?
मीडिया में बिहारी क्यों हैं?
दिल्ली और मुंबई में बिहारी क्यों हैं?
और हिंदुस्तान में बिहारी क्यों हैं?
भाई रवीश अभी अभी आपकी बरखा से टीवी शो के दौरान हुई बातचीत सुन कर आ रहा हूँ। अच्छा लगा जब आपने कहा कि हिंदी चिट्ठाकार पर्सनल स्पेस से निकल कर बहुत ऍसी बातें भी कर रहे हैं जो अतीत से हमें जोड़ती है, हमारे समाजिक जीवन में आए बदलाव को झलकाती है। आपकी फ्रिज वाली पोस्ट के साथ फ़ैज और गुलज़ार का ज़िक्र भी अच्छा लगा। आपसे बातचीत के पहले बरखा ने extreme cases को छेड़ देने से ऍसा प्रतीत हो रहा था चिट्ठाकारी के एक स्वरूप को बिलकुल अछूता छोड़ दिया गया है। देखें कार्यक्रम का आगे का रुख क्या होता है।
राजीव
आप मेरी बात का मतलब नहीं समझे। मैंने बिहारी की नहीं ब्लॉग में फैले बिहारवाद की बात कही है। जब ब्लॉग के बारे में सिर्फ सुना था तो लगा था कि ब्लॉग में सब होगा, पर सब पढ़ना शुरु किया तो लगा हर रूप में बिहारवाद ही छाया है। मुझे तो आशा थी कि ब्लॉग से उड़ीसा के बारे में भी पता चलेगा, मीडिया में आ रहे छोटे-छोटे बदलाव जिनको हम फील करते है उनको भी कोई शब्द देगा.....
Well spoken on the NDTV "We The People" program. Frankly, you were the only person who spoke what exactly blogging meant in India.
Kul milaakar 'blog' ke topic par NDTV par ek achchhi bahas rahee.Bhai Raveesh ke 'Final words' hee pooree bahas par bhaaree paday.Kuchh bhi ho , aam insaan chaahe woh lekhak ho ya kavi - uske liye bhavnatmak sampreshan ka iss se behtar maadhyam aur kya ho sakta hai ? Jahaan tak gunvatta ka sawaal hai , har field mein achchha - buraa likha ja rahaa hai.Feed back hi sidh karega ki kaun kitni duur tak chalega...
रवीश को बहुत बहुत बधाई, मौके का सही फायदा उठाए हो। हम प्रोग्राम पूरा नही देख सके, शुरुवात मे तो लगा था कि बरखा को निगेटिव ब्रीफ़िंग की गयी है, इसलिए उसकी बॉडी लैंगुएज से सब कुछ निगेटिव निगेटिव सा दिख रहा था। बाद का प्रोग्राम हम मिस कर गए, अब रिकार्डिंग देखेंगे, जब मौका लगेगा तो।
मीडिया मे ब्लॉग की बात होना एक अच्छा संकेत है। उम्मीद है बाकी चैनल भी इस ब्लॉग बतियाने की बीमारी से ग्रसित होंगे और आगे भी हमे हर तरह ब्लॉगिंग की बाते सुनने को मिलेंगी।
हिन्दी ब्लॉगिंग के साथियों को जिस मंच पर भी मौका मिले, ब्लॉगिंग सम्बंधित अपने विचार खुल कर व्यक्त करने चाहिए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को ब्लॉगिंग से जोड़ना चाहिए।
Dear Rajeev ,
Maine aaj k program mein aapki baat suni.Jaan kar yeh accha laga k aap jaise kuch log apne vichron ko baatne k liye kaafi samay se blogs ka prayog kar rahen hain.Maine pehli bar hi blogs dekhe hain ,aur main bhi yahan apni baat rakhne ki iccha rakhta hoon
ravish kumar ji
main maafi chahoonga...
maine apka naam rajeev likh diya .
रवीश
मैंने भी कल बरखा की ब्लॉग बहस देखी। उसमें आपको देखकर भी अच्छा लगा। किसी दिन एनडीटीवी इंडिया पर करवाइए ना।
mujhe darr hai blog ke satyata ko lekar. ek vishaya par koi likhtaa hai to woh kahan tak sahi hai woh bhi dhyaan mein rakhna zaroori hai.
Ravishji,
You made a very valid point when you said "A Writer has a new competitor in a blogger". I guess, this itself, is the main reason why the mainstream media is raising apprehensions about this blogging phenomenon.
In my personal opinion, we shouldn't regulate the content of a blog. After all Blogs are a matter of choice, as many people pointed out in the episode, and the bloggers don't charge the readers financially. So, the accountability thing is out of question. Its up to the readers to decide if they really like the content of a blog or not..and would like to continue checking that blog out regularly or not.
p.s: please let Barkha know tht I really liked her article on the launch of Tata Nano in the Hindustan Times. Fantastic!!
अपराजिता जी दरअसल ये अधूरी सोच है। पूरी तब होगी जब आप अपने परिवेश में चारो तरफ नज़र दौड़ाएगीं तो आपको दिखेगा कि हर तरफ बिहारी हैं। बड़ी झंडू कौम है आपको लगेगा। जहाँ देखो वहीं गंध फैला रहे हैं। भाप्रसे से भापूसे तक और नदिरे से पूदिरे तक। लेकिन क्या कीजिएगा आप जैसे औपनिवेशिक सोच वालों से तो हमारा कुछ बिगड़ेगा नहीं ... हम तो फैलेंगें ही ... सुरसा के मुँह की तरह नहीं बल्कि सुमन की खुशबु की तरह। हालांकि बिहारियों के इस फैलाव को समझने के लिए आपको थोड़ी और मेहनत करनी होगी। उस मानसिकता को समझना होगा जो अपनी माटी से कभी कभी सैंकड़ों तो कभी मीलों तो कभी सात समुद्दर पार भी जा कर मंजिल पाने की दौड़ में अपनी माटी को नहीं भूल पाता। एक प्रवासी होने का दर्द लिए अपने बेहतरी के लिए लड़ता है। हर पल... हर क्षण। यही भावना उसे अपनी छोटी छोटी पहचान के प्रति संवेदनशील बनाता है। इसलिए भी दिल्ली या बंबई जैसी कास्मोपोलिटन शहर में रहकर भी वह हमेशा अपने पहचान के प्रति अपनी संवेदनशीलता बनाए रखता है और इसी संवेदनशीलता को आप जैसे लोग बिहारीपना कहते हैं। इससे बिहारी आहत नहीं होता है.... और अक्खड़ होता जाता है.... क्योंकि उसे पता है नालेज इकोनामी में किसकी कीमत है। और अपराजिता जी ये बात हर उस व्यक्ति के लिए सही है जिसके लिए शहर कभी पुश्तैनी नहीं रहा। लेकिन सिर्फ इस बिना पर आप जैसे शहरी उस गँवार को शहर से बेदखल नहीं कर सकते। क्योंकि उसे पता है कि नालेज इकोनमी के लिए शहरी होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है।
अपराजिता जी, अंग्रेजी में एक पदांश होता है- जॉंन्डिश्ड आई। आप शायद उसी से पीडि़त हैं। अपराजिता जी, आपको खुशफहमी हो रही है कि आपने धांसू मुद्दा छेड़ दिया है। ब्लॉग की दुनिया में बिहारवाद इसलिए फैला हुआ है, क्यों कि बिहार के लोगों के पास पैसा हो न हो खुद को अभिव्यक्त करने की प्रहल इच्छा है। क्योकि बिहार के पास ऐसी समस्याएं हैं जिनपर कायदे से विचार करना ज़रूरी है। हमें भी लगता है कि ब्लाग भी विचार का सही माध्यम हैं। है कि नहीं? राजीव से सहमत हूं। अपराजिता जी ापकी मानसिकता तो महाराष्ट्र के सो-कॉल्ड राष्ट्रवादियों, असम के आतंकियों और हूजियों से मिलती जुलती हैँ। सफाई देना चाहेंगी..???
Ravish ji..kal ye programme dekha.Discussion achcha tha par kafi samay isi par nikal gaya ki kai log apni niji zindagi ya kuntha blog par vyakt karte hain. Keval isi ek bindu se shayad blog ki upoyogita ka nirnay nahi ho paayega.
Aapke is point se main bilkul sehmat tha ki blog ki sabse badi upoyogita ye hai ki ham lekhan kala ko zinda rakh paa rahe hain. Pehle kisi prakashak ya sampadak ke peeche bhagna padta tha aur ab blog ke zariye seedha paathak tak pahunch jaate hain. Jahan tak quality ki baat hai to dheere dheere pathak ka prabhav apne aap maturity aur quality dono laa dega.
Sabse ajab baat ye lagi ki sabne ispar to vichar kiya ki blog par koi pratibandh hona chahiye ki nahi par kisine ye mudda nahi uthaya ki ye pratibadh technically feasible hai ki nahi!!
Blog per hui is charcha par aapke aakhiri comments bahut hi sateek the. Jaisa ki angrezi me kehte hai..The Last word on the subject.
raveeshji,
kal raat NDTV par aapkey programme ko dekha.Usme aapki vicharon ko bhi suna. Puri ek nayi disha dee aapne, blogging ko. Jo log sayad angrezi jante hain hamare desh mein unke liye blogging kewal ''uchrinkhal'' vicharon ka aadan pradaan hi hai. Jo log yeh kehte hain ki woh anya karno se blogging karte hain unko hypocrite kehte hain, ek aur baat acchi lagi ki blogger ek individual hai par blogging toh public domain mein mein khuli kitab ki tarah hain, jiski possibilities koh aanka nahi gaya hai,
regards
ashutosh jha
अरे..............संदीप जी क्या हुआ ? च्च्च्चच्च्च्च्चच्च्च.... इतना गुस्सा क्यों ? बुरा लगा,चलो कोई बात नहीं, सच तो कड़वा होता है इसलिए बुरा तो लगेगा ही। आपको कुछ ज्यादा ही बुरा लगा इसका मतलब है जो मैने लिखा वो बुलकुल सच है। वैसे आप मेरे लिखे हुए का मतलब नहीं समझे पर जाने दीजिए। मेरी तो दुआ है सुमन की खुशबू की तरह नहीं हमसब आसमान की तरह विशाल और सीमाविहीन बनें
गुस्ताख जी
आपकी गुस्ताखी माफ,ये बताने के लिए थैंक्स कि मैं बीमार हूं।कल डॉक्टर के पास गई तो उसने वही लक्षण बताए जो आपने बताए हैं कहा राष्टवादी हूं,आतंकवादी हूं, ऐसे ही दो-तीन लक्षण और बताए। फिर मैंने इलाज पूछा तो कहा कलम छोड़ो ,कृपाण से काम करोगी तो शायद ठीक हो जाओगी। मैं तो फिलहाल बिहार जाने की सोच रही हूं तलवार लेकर, आप भी क्या कलम के चक्कर में पड़े हैं छोड़िये.... विचारों की क्रांति । चलकर तलवार से क्रांति करते हैं....पर तलवार उठाने से पहले कलम का मतलब भी समझ लेना
Namaskar Raveeshji, Mera apna blog nahin hai, phir bhi mein blogs mein panga leta hoon!
Ek 'angrez' ne aisa chakravyuha racha diya hai ki ab mera rasta hi band kar diya hai - mera comment accept nahin karta kyoonki usko pardhna chhord uske chahne wale mere sath interact karne lage thay! Usko dar laga ki uska mal bikna band ho jayega!
Mein teen saal se Indian Temples and Iconography namak blog mein comments likhta a raha hoon. Samaya mile tau pardh lijiyega...
Apne Barkha Datt ke programme mein achha bola. Badhai!
maine voh programme dekha ......us bahas ka mujh par kaafi asar hua aur aapko batame me mujhe behad khushi hai ki yeh mera pehla blog post hai...maine apne papa ko bhi is blog ki jaankari di.
sabse acchi baat toh yeh hai ki ise roz padhoongi toh hindi kaafi sudhar jaayegi jo "orkut" jaisi sites pe post karte karte raddad ho gayi hai.
blog ek acchi aur sarthak suruat hai.par ravishji muje lagta hai aapka news channal kafi congressi ho gaya hai,kya lagta hai aapko ??
सच तो ये है कि ब्लाग ने दुनिया बदल दी है...भाषाई स्तर पर कौन आगे है, ये बहस हो सकती है...लेकिन इसने विधा ने कमाल कर दिया है...लोग अपनी पर्सनल डायरी को लिख रहे है,य़ा उससे भी ज्यादा...नाम भी देखिये-भडास,गालिंया,चव्वनी छाप,रिजैक्ट माल,अष्टवक्र, कारंवा,चक्करधिन्नी आदि..जरा सोचिये क्या इस नाम से कोई किताब छापता..और हिन्दी ब्लाग ज्यादा बेहतर लिख रहे है...बहस अच्छी थी..हिन्दी में भी करिये...
अपराजिता जी, बिहार में तलवार बहुत पहले से मौजूद रहा है। आपके कृपाण की प्रतीक्षा नहीं कर रहा है वह। बिहार में गोबर के उपले होते हैं, जिनकी आग बड़ी धीमी और बहुत देर तक रहती है। बिहारियों की सशक्त मौजूदगी को आप हर जगह महसूस कर ही चुकी हैं, तभी तो फ्रायडियन स्लिप के तहत दिल की बात रवीश जी के ब्लॉग पर कमेंट रूप में निकली। अब आप हमें मत समझाइये कि हम नहीं समझे आपकी बात। बहरहाल, बिहार के बारे में इतनी ही कहूंगा कि बिहार महज एक राज्य नहीं वह एक फिनोमिना है। जहां तक उडीसा और दूसरे राज्यों की बात है, वहां के ब्लॉग भी सामने आएँगे। पहली बात तो उनके ब्लाग भी होंगे, पर अंग्रेजी में हिंदी में नहीं। दूसरे उनके ब्लाग हिंदी में भी आएंगे, इंतज़ार तो कीजिए।
ravish ji,
blog par discussion achhe lagge. NDTVindia par hindi mein bhe blog par bat karwaye.
यदि बिहारवाद फैला हुआ है तो मुझे बहुत खुशी है । वैसे बिहारी भारतीय ही हैं । हिन्दी में बोलते लिखते हैं । उनका एक वृहत् समाज है, संस्कृति है । बहुत पुराने समय से विद्या का गढ़ रहा है यह प्रदेश । बिहार के बिना भारत को सोचा भी नहीं जा सकता है ।
घुघूती बासूती
अपराजिता जी ....अगर आप भाषा में भदेसपन को बिहारीपना कह रही हैं तो भी आप उतनी ही गलत हैं जितनी मैं पहले समझ रहा था। और भला बुरा का तो सवाल ही नहीं। मैंने आपके शब्दों से जितना मतलब समझा उस पर हमला किया और मैं अब भी कायम हूं। बहरहाल सीमाएँ बाँधने का काम आप करती रहें और अपनी सत्यान्वेषी सोच पर अपनी पीठ भी थपथपाती रहें। हाँ अगर हो सकें तो खुल कर बोले... ऐसा क्या कि छायावादी कवियों की तरह .... साफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं। आप क्या तलवार चलाएंगी.....
‘Bihar’ shabda ki utpatti ‘Vihar’ se hui, jo ingit karta hai is sthan ke puratan kal mein Bauddh-mathon ka prasiddhi prapta karne ki ore. Bodh Gaya vaise bhi aj vishwa-vikhyat hai shantidoot Buddha ke karan. Kintu Kunwar Gautam yadi apne satyanaveshan mein asafal hogaye hotey tau unhein aj koi bhi nahin janata, athva itihas unhein Buddha ke sthan per buddhu ya ‘Bihari’ hi kahta!
Evam, yadi kaal mein aur gahrayi tak yatra Karein tau sambhavatah payenge ki ‘Vihari’ leeladhar Krishna athva ‘natkhat Nandlal’ ko bhi kaha jata tha! Gita mein Krishna kahte hein ki sari mayavi prakrati unhi k maya-jal ke falaswaroop vibhinna atmaon ko Brahmand vibhinna roop mein dikhai deta hai. Sant Tulsidas bhi kaha gaye, “Jaki rahi bhavana jaisi, Prabhu moorat tin dekhi taisi”.
चलो झगड़ा बंद करते हैं बहुत हो गया समझना,समझाना और बिहारवाद। अब मिलकर रवीश के नए ब्लॉग पर कमेंट लिखते हैं
ये बिहारवाद भी क्या एक किस्म का क्षेत्रवाद नहीं है, जातिवाद, परिवारवाद, भाई-भतीजावाद का ही एक किस्म का एक्सटेंशन। मैं उत्तर प्रदेश की हूं, लेकिन उत्तर प्रदेश की बात आने पर या मुंबई में यू.पी. के लोगों को भईया कहे जाने पर भावुक होकर सूं-सूं करती नाक बहाती रोती नहीं हूं। कोई मुझसे ईमानदारी से पूछे तो मैं कहूंगी कि इलाहाबाद जाकर बसना नहीं चाहती, उ.प्र. के किसी और शहर में तो कभी सपने में भी नहीं। इलाहाबाद में पैदा हुई हूं तो क्या हुआ, दिमागी संकीर्णता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, सामंतवाद का गढ़ हैं वो सारे शहर। सड़क पर चलने वाला हर दूसरा आदमी औरतें पर गंदे फिकरे कसना अपना अधिकार समझता है, पड़ोसी काम-धाम छोड़कर किसके घर में कौन आया और किसकी लड़की किसके साथ कटरा चौराहे पर बात करती दिखी का, पूरा हिसाबी रजिस्टर मेन्टेन करते हैं। लड़कियां हर समय दुपट्टा संभाले, सिर झुकाकर चलती हैं। गैर-शादीशुदा नौकरीपेशा लड़की अकेली रहे तो पड़ोस के दुबे जी, तिवारी जी से लेकर अवस्थी, चौबे, बनिया सब सेवा में पलक-पांवड़े बिछाए रहते हैं। हिंदी प्रदेश भयानक हैं, लड़कियों के लिए किसी सजा से कम नहीं.. मेरा जन्मस्थान है तो होता रहे... मैं तो नहीं जाने वाली लौटकर.. ये क्या नमकहरामी है... किस श्रेणी में रखेंगे इसे.. ये पूरा देश मेरा है, उ.प्र. भी, बिहार भी उड़ीसा भी.. अपनी सारी कमियों और खामियों के साथ....
अपराजिता जी, आपकी सुलह की बात मंजूर है। चलिए भारत के बारे में सोचते हैं.. । वैसे हम भी मानते हैं कि कमियां हर जगह होती हैं, बिहार में भी हैं। पॉन्टिंग-कुंबले में सुलह हो गई तो हममे-आपमें क्यों नहीं। वैसे चीज़ों को देखने को लेकर सापेक्ष नज़रिया सबसे उत्तम है।
मनीषा जी,आप मैदान में कूद ही गई हैं, तो सुनिए.। साधुवाद कि सारा देश आपका है, लेकिन एक खास हिस्से (आपका जन्मस्थान) को लेकर क्यों आप इतना भ्रमित हैं। यूपी हो यूएसए सारी दुनिया में वह सारा कुछ होता है, होता होगा, जो यूपी में हो रहा है। इसके लिए स्थान विशेष नहीं, पुरुषवादी मानसिकता जिम्मेदार होती है। अकेली लड़की को टूलेट की तख्ती लगा मकान मान लिया जाता है, यह यूपी में ही नहीं केरल मे भी होता है, बिहार में भी होता है और यूके में भी। कहीं भी लोग दूध के धुले नहीं हैं, आपके कार्यस्थल पर भी कई लोग आपको घूरते होंगे, नापते होंगे.. हो सकता है आपको पता न चलता हो। चाहे आप दुनिया के किसी भी सुसंस्कारित(?) स्थान पर रहती हों। वैसे यह बात अच्छी लगी कि आप तमाम खामियों के बाद भी जगह को उसके उसी स्वरूप में मंजूर करती हैं। यही सम्यक् दृष्टि है।
मियां गुस्ताख, गुस्ताखी माफ हो। आपको क्यूं लगा कि मैं किसी भ्रम या नादानीवश ये बात कह रही हूं। मैंने तो नहीं कहा कि इलाहाबाद और उ.प्र. के शहर सामंतवाद और संकीर्णता का गढ़ हैं तो मुंबई कोई स्वर्ग है। या कि मुंबई में क्रांति हो चुकी है, स्त्रियों को न्याय और बराबरी का अधिकार प्राप्त है, या कि मुंबई इस देश के और हिस्सों से कटा कोई टापू है।
और आप इलाहाबाद, पटना, बेगूसराय और सुल्तानपुर की तुलना अमरीका और यूरोप से कैसे कर सकते हैं। हिंदी प्रदेशों का अपना मनोविज्ञान है, एक खास किस्म की सामंजी जकड़न है, पिछड़ापन है, मुंबई में क्रांति नहीं है, लेकिन बाजार जो एक न्यूनतम आजादी औरत को देता है, वो तो है। शायद मुंबई हिंदुस्तान का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां इतनी बड़ी तादाद में औरतें घरों से बाहर निकलती हैं, सड़कों पर, प्लेटफॉर्म पर, लोकल ट्रेनों में हर जगह लाखों औरतें हर रोज नजर आती हैं। ये चीज कुछ तो नजरिया बदलती है। इलाहाबाद में सड़क पर लड़की देखकर लोग ऐसे कूदने लगते हैं, जैसे अजायबघर से कोई जानवर निकल आया हो, जिसे पहले कभी देखा नहीं। ऑक्टोपस देखकर जैसे मैं बेचैन होने लगूंगी, इलाहाबाद, पटना में लोग लड़की देखकर होने लगते हैं। इसके गहरे सामाजिक-आर्थिक-ऐतिहासिक कारण हैं जनाब। पटना, मोतिहारी को दिल से लगाकर न बैठिए। आप इस देश के नागरिक हैं, तो पंजाब की समृद्धि और उड़ीसा की गरीबी दोनों आपकी है, बंगाल का साहित्य-संगीत और हरियाणा का जट्टपन आपका है। हिमालय की बर्फ और थार का रेगिस्तान भी आपका है। इलाहाबादवाद, पटनावाद, जिलावाद, मोहल्लावाद से ऊपर उठकर आइए थोड़ा बड़े फलक पर बात करें, इस देश के बारे में, इसके इतिहास के बारे में, हिंदी प्रदेशों के पिछड़ेपन और उसके ठोस कारणों के बारे में...
मनीषा जी, ऐसा नहीं है कि हममें देश को लेकर या गांव को लेकर कोई अँधभक्ति है और हम इसके खिलाफ कोई बात सुनना पसंद नहीं करेंगे। लेकिन तमाम खामियों के बावजूद हमें पश्चिम का चश्मा अपनी आँखों पर नहीं चढाना चाहिए। इलाहाबाद और इंग्लैंड, बनारस और बेल्जियम के बीच के समाजार्थिक अंतर तो आपको पता हैं ही, आपने ज़िक्र भी किया है, यह आपका व्यक्तिगत अनुभव भी हो सकता है। रहा होगा। लेकिन इसमें बिहार की कोई गलती नहीं है। आप बेवजह मुंबई और इलाहाबाद की तुलना ले बैठी हैं। मुंबई, मुंबई है, इलाहाबाद, इलाहाबाद। आज आप मुंबई के गुण गा रही हैं, इलाहाबाद को भूलकर। कल विदेश जाएँगी( भगवान करे कि आप ज़रूर जाएं), तो विदेश के गुण गाने लगेंगी। आपने कहा है पटना, मोतिहारी को दिल से लगाकर न बैठिए, क्यों न बैठूं। जिस धरती की माटी में लोट पोट होकर हम बड़े हुए हैं, उसको कैसे भूल जाएँ। आप भूल सकती है, हम नहीं।
और हां, आजकल सामंती जकड़न वगैरह बात करना फैशन में है, आपने इन शब्दों का इस्तेमाल किया। इससे आपकी बात में बौद्धिकता का पुट आ गया है, साधु..।
पंजाब की समृद्धि और उड़ीसा की गरीबी दोनों हमारी है, बंगाल का साहित्य-संगीत और हरियाणा का जट्टपन आपका है। हिमालय की बर्फ और थार का रेगिस्तान भी आपका है। मानता हूं, है और रहेगा। लेकिन देश की बत तभी हो सकेगी जब ईमानदारी से इलाहाबादवाद, पटनावाद, जिलावाद, और मोहल्लावाद की बातें भी होंगी। उसे अक्खड़पन और गरियने की बजाय समुचित तरीके से बात की जाए। बिना ईँट के कंगूरा नहीं बनता मयडम जी।
सिद्धांत बघारना और बात है। उसे जीवन में उतारना और। बिन इलाहाबादवाद, पटनावाद, जिलावाद, और मोहल्लावाद के भारतवाद और आप जैसे बुद्धिजीवियों क प्रिय विषय विश्ववाद भी डिस्कस नहीं किया जा सकेगा। जड़हीनों के लिए ऐसा सोच पाना मुमकिन नहीं। लिहाजा, थोथी बातों की बजाय सबका सभी भाषाओ. सभी राज्यों और लोगों का सम्मान करना सीखें, ।
उठकर आइए थोड़ा बड़े फलक पर बात करें, इस देश के बारे में, इसके इतिहास के बारे में, हिंदी प्रदेशों के पिछड़ेपन और उसके ठोस कारणों के बारे में...
आखिर की दो पंक्तियां मनीषा जी आपकी ही हैं।
गुस्ताख जी, आप फ्रेंच बोल रहे हैं और मैं जर्मन, आप हिंदी तो मैं फारसी, तो फिर हम कौन-सी बहस सुलटाने में लगे हुए हैं। चलिए, अपनी राह चलें। कभी मिले तो इशारों में बात होगी क्योंकि भाषा तो समझती नहीं है।
मनीषा जी, खरी बात ऐसे ही फ्रेंच लगेगी। हाहाहा.....मिल लीजिए किसी दिन इशारों से भी बात करें तो भी वही कहूंगा, जो आज कह रहा हूं।
मुझे समझ नही आता की बिहारी क्या होता है,क्या ये आदमी से एक दर्जा नीचे कोई और ब्रीड है.? या कोई गाली ? बचपन में एक चुटकुला सुना था की पंजाब में दो तरह के लोग हैं एक आदमी दूसरे सरदार.बिहारियों को षड्यंत्र पूर्वक निशाना बनाया जारहा है......... ब्लॉग की दुनिया में बिहारियों का दखल किन लोगों को नागवार गुजर रहा है और क्यों?सारे संसाधनों के बाद एक बौद्धिक सम्पदा ही तो बची है उनके पास वो भी छीन ली जाए.बिहारी ब्लॉग लिखते हैं तो अपने दम पर किसी के बाप की बपौती छीन के नही,उनका ब्लॉग पढा जाता है क्यों की उस लायक होता है, दिलीप मंडल भाई इधर भी नजर हो........आप ही कुछ शोध परक लिखिए.
विश्ववाद के झंदाबरदारों अलाहाबाद, बेगुसराय,पटना याकि रीवा, सतना जैसी जगहों में पड़ोसी आप को पहचानता तो है वरना मैंने तो यहाँ(भोपाल)पर दो साल से जाना ही नही की बाजू वाले कमरे में कौन रहता है
Bura na manay koi ‘pardha likha’ – Holi samjhlay – waise bhi aag tau lagi deekhti hai aj sab ore!
Jab jungle mein adhik vriksha ho jaatay hein tab way aapas mein lardkar saray jungle ko aag laga detay hein – unhein bhi jinkay honay, athva jinkay astitva ka, na hona maan liya jaata hai, behoshi ya madhoshi ke kaaran. Yeh hamare ‘bharat desh’ ka itihas raha hai – koi ‘naisadak’ per nahin chal rahay hain hum!
Gita mein ‘Krishna’ iska karan ‘agyanta’ bata gayay.
Satya ko samnay rakakhnay mein shreya hamare buddhiman journalists ko jaata hai – jo Hansa, athva ‘Paramhans’ kay saman “doodh ka doodh/ aur pani ka pani karne ki” kshamta rakhtay thay!
JC Joshi
ravish bhai, main pgm dekh nahin paya aur na uska repeat telecast. uski recording agar possible ho aur copy right ka mamala na hota ho to u tube par load karen.
रवीश जी की सोच और प्रतिभा का मैं पहले से कायल हूँ....यह ब्लाग मेरे लिए नया है..लेकिन मुझे लग रहा है कि मेरे विचारों को अब यहां अभिव्यक्ति का एक जरिया मिल गया है.. प्रभात
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